देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व लोकसभा चुनाव की चर्चा आजकाल हर गली मोहल्लों, नुक्कड़ों, गांव के चौपालों, चाय की गुमटियों और पार्कों में सुबह के सैर सपाटो से लेकर शाम के खाने के हाजमे के समय चहल कदमी करते हुए हर जुबान पर चल रहीं है। अभी तक दो चरणों के चुनाव हों चुके है विपक्षी पार्टियां पहले दो चरणों में हुए मतदान प्रतिशत को २०१९ की अपेक्षा कुछ कम होने पर अपने विजय रथ को आगे बढ़ता देख रहे हैं लेकिन वह यह भूल जाते है की २००४, २००९ और २०१४ का समय कुछ और हुआ करता था तब सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया का बोलबाला न के बराबर था और आज सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया की पहुंच जन जन घर घर तक युवा हो या घर में खाना पका रही महिला या बुर्जुग, हर हाथ में एंड्रॉयड मोबाइल, हर वर्ग के मतदाताओं को इतना जागरुक बना दिया है की अब किसी परिवार या गांव को प्रत्याशियों द्वारा अपनी झुठी बातों में फसाना बहुत कठिन हो गया है आज प्रत्येक मतदाता गूगल पर केवल एक वायस कमांड देकर प्रत्याशी और उनके नेता साथ में पूर्व के जनप्रतिनिधियों का सारा कच्चा चिट्ठा पता कर प्रत्यासियों द्वारा खेल जा रहें सह मात के खेल को अब अच्छे से समझते है। आज प्रत्येक जागरूक मतदाता क्षेत्रीय उम्मीदवारों के व्यक्तिव से लेकर प्रधानमत्री पद तक के उम्मीदवार की चर्चा कर रहा है की कौन सबसे उपयुक्त व्यक्ति होगा क्षेत्र व देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए लेकिन इन सभी चर्चाओं के बीच इस बार लगभग ३० - ४० वर्षो बाद लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात यह देखने को मिल रही है की जनता - मतदाता, क्षेत्रवाद जातिवाद से ऊपर उठकर देशहित में राष्ट्र की गरिमा, भारतीय संस्कृति सभ्यता के संरक्षण, आर्थिक विकास, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को मतदान के लिए सर्वोपरि मान रहा है। यहीं कारण है की क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व अब धीरे धीरे कमजोर होता दिख रहा है। जो पार्टियां पिछले कई चुनावों से जातीय समीकरण बनाकर कई दशक से राष्ट्रीय राजनीत में अपना वर्चस्व बनाए हुए थे और केंद्रीय सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बाधा पहुंचाते थे जिनके परिणाम स्वरूप केंद्रीय सरकार को कई पंच वर्षीय में सही नेतृत्व न मिलने से देश आर्थिक रूप कमजोर होता चला गया लेकिन पिछले १५ सालों में युवा मतदाताओ की संख्या में हुई लगभग ४०% तक की वृद्धि से, सुझबुझ के साथ मतदान करने वालो की संख्या बढ़ गई हैं जिसकी वजह से अब क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद कमजोर हो रहा है जो एक मजबूत राष्ट्र के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इन बदलाव के कारण अब जनता केवल यह देख रही है की देश की मजबूती किस हाथ में सुनिश्चित हो सकतीं है।
चूंकि देश की डेमोग्राफी पिछले २० वर्षो में इतनी बदल गई की अब चुनाव परिणाम युवाओं, महिलाओं और दो समुदायों के वोट की संख्या पर निर्भर हो गया जिसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को गुमराह करने के लिए २०२४ के आम चुनाव को क्षेत्रवाद व जातिवाद से अलग हटकर चुनाव का विषय दो समुदायों की विचारधारा पर केंद्रित कर दिया है। जिससे वोटों का धुव्रीकरण किया जा सके। जहां ....
एक विचारधारा वर्तमान सत्ताधारी गठबंधन समर्थित है जो राष्ट्रीय अस्मिता ब सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुऐ हजारों वर्षों की गुलामी के धब्बों को मिटाने के संकल्प के साथ भारत की प्राचीन पहचान और गरिमा को आर्थिक प्रगति के साथ पुनः वापस लौटाने और भारत को विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्थ बनाने के लिए जनता से मतदान करने की बात कर रही है जिससे सबका साथ सबके विकास के नारे को सच साबित करते हुए भारत को २०४७ तक आज़ादी के सौवीं वर्षगांठ पर विकसित राष्ट्र के रुप में विश्व पटल पर मान्यता दिलाकर विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बना सके।
और दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का गठबंधन अपने पार्टी की अस्मिता की रक्षा की लडाई में देश के एक समुदाय को अपना कोर मतदाता मानते हुए उनको गुमराह कर केवल उनके वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास कर अधिक से अधिक सीट जितना चाहता है जिससे पारिवारिक सत्ता की चाभी उनके हाथ में पुनः वापस लौट सके और देश की आज़ादी के समय से एक समुदाय विशेष के लिए निर्धारीत लक्ष्य को परीणाम तक पहुंचा सके इसके लिए मतदाताओं को लोक लुभावने वायदे किए जा रहे है हो सकता है इनके लुभावने वादे से प्रभावित होकर कुछ साधारण श्रेणी के मतदाता पैसे के लालच और क्षेत्रीय नेताओ के नाम पर वोट कर दे जिससे इनके पार्टी का वजूद तो बना रहेगा लेकिन सत्ता वापसी की संभावना बहुत ही कम ही नजर आ रही है।
आइए अब हम समझते है कि २०२४ का लोकसभा चुनाव परिणाम बीजेपी के पक्ष में कैसे संभव दिखाई दे रहा है। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में दो चरणों में लगभग प्रत्येक राज्यों के ५ से १५ सीटों पर मतदान हो चुका है जिसमे कई राज्यों में २०१९ चुनाव की अपेक्षा मतदान प्रतिशत कम रहा जिसमे मुख्यरुप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य है जहां पिछले वर्ष की तुलना में लगभग २% मतदान कम हुआ है लेकिन कई राज्यों में मतदान प्रतिशत अधिक भी हुआ जैसे त्रिपुरा, असम, बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक। जिसका पिछले चुनाव परिणामों के आधार पर तुलना करते हुए विपक्षी पार्टियां और उनके समर्थक अनुमान लगा रहे है की इसका लाभ विपक्ष को मिलेगा। हो सकता है कुछ सीटों पर कम वोटिंग प्रतिशत का कुछ लाभ विपक्षी पार्टियों को मिल जाए लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकलता की विपक्ष वर्तमान सरकार को बदलने में सफल हो पाएगा। जिसके तीन कारण है पहला यह कि २०२४ का चुनाव पिछले चुनावों से भिन्न है यह चुनाव दो विचार धाराओं और राष्ट्रीय अस्मिता के मुद्दे पर हो रहा है न कि क्षेत्रवाद और जातिवाद पर, दूसरा कारण यह की वर्तमान चुनाव में युवा ब महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे जो यह अच्छी तरह समझते है की देश किस हाथ में सुरक्षित रहेगा और तीसरा कारण है विपक्षी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का दावेदार कौन है यह अभी तक निश्चित ही नहीं हो पाया है कांग्रेस के तरफ से कोई हो ही नही सकता क्यों कि कांग्रेस अभी पार्टी के अस्तित्व की रक्षा में उलझा है जो केवल २३५ सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि पूर्ण बहुमत के लिए कम से कम २७५ सीटों की आवश्यकता है और इनके सहयोगियों में भी मोदी जी जैसा कोई बेदाग चेहरा है कोई नही जिसे जनता प्रधानमन्त्री पद के लिए पसंद करे। इस लिए जनता स्पष्ट रूप से यह समझ रही है की प्रधनमंत्री पद का श्रेष्ठ दावेदार कौन है और कौन सी पार्टी सरकार बनाने में समर्थ है। वर्तमान समय में बच्चा हो या जवान, महिला हो या बुर्जुग सबके दिमाग में केवल एक ही चेहरा है प्रधानमत्री पद का वह है नरेंद्र मोदी जिसका चुनाव चिन्ह है कमल निशान और जनता प्रधानमन्त्री चुनने के लिए वोट कर रही है तो उसको पहला चेहरा मोदी ही नजर आता है।
अब २०१९ चुनाव के चुनाव परिणाम और देश के विभिन्न राज्यों में हुए मतदान प्रतिशत को आधार मानते हुए आकलन करते है की सत्ता पक्ष और विपक्ष कौन बढ़त बना रहा है।
शुरुवात करते है देश के मुकुट राज्य जम्मू कश्मीर से, २०१९ के चुनाव में यहां ३ सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और तीन ही सीटों पर विपक्ष को जब कि २०१९ की सरकार बनने के बाद पहला निर्णय मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा ३७० हटाने का बड़ा निर्णय लिया था और पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों नेताओ की कमर तोड़कर बहुत सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया सारे पत्थरबाज या तो घर में घुस गए या किसी काम धंधे में लग गए है पर्यटकों की राज्य में वृद्धि से रोजगार और आय के साधन में वृद्धि हुई है जिससे वहा के लोग अब बहुत खुश है और शान्ति महसूस कर रहे है इसके परिणाम स्वरूप बीजेपी अपनी तीन सीट बरकार रखते हुए हो सकता है एक दो सीट अधिक जीत ले यानी यहां बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम दिखाई दे रहा है हो सकता है एक दो सीट का फायदा ही मिल जाए।
अब बात करते है हिमाचल, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की
हिमाचल में पिछली बार राज्य में बीजेपी सरकार थी और बीजेपी ने लोकसभा की चारो सीटें जीती थी अब राज्य सरकार बदल गईं है लेकिन कांग्रेस पार्टी के क्षेत्रीय नेताओ में वर्चस्व की लड़ाई और हिमाचल में विकास कार्यों की राह डगमगाने से जनता सीख लेते हुए सम्भवतः फिर से चारो सीटें बीजेपी कोटे में डाल सकती यदि बहुत अंतर आया भी तो एक या दो सीट का इससे ज्यादा नहीं जिसकी सम्भावना कम ही है तो यहां भी बीजेपी को बहुत नुकसान नहीं हो रहा हैं।
पंजाब में बीजेपी को पिछली बार केवल दो ही सीट मिले थी और कांग्रेस को ९ सीटें क्यों की वहा तब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर के सम्मान का सवाल था लेकिन अब पंजाब में आप की सरकार है और मुख्यमंत्री भगवंत मान जिनका चरित्र बहुत अच्छा नही है और कार्यशैली भी जनता को समझ नही आ रही है फिर भी आप को पिछली बार की अपेक्षा कम से कम २- ३ सीट का लाभ मिल सकता है यानी आप यहां ५- ६ सीट जीत सकती है। कैप्टन अमरिंदर अब यहां बीजेपी में शामिल हो चुके है तो कांग्रेस को पंजाब में सबसे ज्यादा लगभग ५-६ सीटों का नुकसान होगा इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा जिससे बीजेपी को कम से कम २ सीटों का फायदा हो सकता है। इस तरह सम्भवतः इस बार बीजेपी यहां ३-५ सीट जीत सकती है।
हरियाणा में पिछली बार बीजेपी दस की दसों सीटें जीती थी लेकिन इस बार २-३ सीटों का नुकसान हो सकता है और कांग्रेस अपना खाता खोल लेगी राज्य में और हो सकता है एक सीट हरियाणा जनहित पार्टी के खाते में चला जाय।
अब यदि दिल्ली की बात करे तो दिल्ली में विपक्ष के पास कोई मजबूत उम्मीदवार न होने से नरेंद्र मोदी के सामने कोई लोक लुभावन जुमला काम नही करेगा यहां भी बीजेपी को सात में से ५ सीटें मिलना तय है हो सकता है फिर से सातों सीट बीजेपी ही जीते।
इस प्रकार पूरे नॉर्थ क्षेत्र में बीजेपी को बहुत ज्यादा नुकसान की सम्भावना नहीं दिख रही है और ना ही कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा। ज्यादा सम्भावना है की बीजेपी इस क्षेत्र में पिछली बार की अपेक्षा एक दो सीट अधिक जीत ले।
अब देखते है उत्तर मध्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
वर्तमान में चारो राज्यो के बीजेपी की सरकार है जिसमे उत्तर प्रदेश में पिछली बार बीजेपी को ६२ सीट मिली थी इस बार यहां बीजेपी ३- ५ सीटें अधिक जीत सकती है और कुल मिलाकर अपने सहयोगियों के साथ ६८- ७० सीटों का आंकड़ा पहुंच सकती हैं। सपा को ७- १० सीटें मिल सकती है, कांग्रेस हो सकता है अपनी दोनो परंपरागत सीटें अमेठी व रायबरेली खो दे लेकिन वोटों के धुव्रीकरण और कुछ सीटों पर उम्मीदवार की छवि व त्रिकोणीय लड़ाई में एक दो सीट पा सकती है लगभग यही हाल बीएसपी का होगा जो पिछली बार दस सीटें जीती थी इस बार सीधे ८ सीटों का नुकसान हो सकता है सम्भावना है की बीएसपी का खाता भी नहीं खुले जिसका सीधा लाभ बीजेपी और सपा को मिलेगा। लेकिन कांग्रेस की तरह बीएसपी को भी हो सकता है १-२ सीट मिल जाए।
उत्तराखंड में सम्भवतः बीजेपी इस बार फ़िर से पांचों सीटें जीत जाएंगी क्यों की कांग्रेस के उम्मीदवार कमजोर है और पुष्कर धामी व मोदी जी द्वारा किए जा रहे कार्यों से पहाड़ की जनता संतुष्ट दिख रही है।
मध्य प्रदेश में पिछली बार बीजेपी लगभग सभी 29 में से 28 सीटें जीत ली थी कांग्रेस केवल एक ही सीट जीत पाई थी इस बार भी लगभग यही परिणाम रहेगा क्यों की यहां केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच लडाई है यदि त्रिकोणीय लडाई होती तो शायद कांग्रेस को एक दो सीट का फायदा मिल जाता और कांग्रेस में यहां बड़े नेताओं कमलनाथ व दिग्विजय की टीम में आपसी मतभेद का लाभ भी बीजेपी को मिलेगा और इस बार भी बीजेपी मध्य प्रदेश की लगभग सभी सीटें जीत लेगी।
छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा एक दो सीट का फायदा मिलेगा हो सकता है यहां भी बीजेपी सभी सीटों को जीत ले क्यों की इस बार यहां बीजेपी की सरकार है और कांग्रेसी नेताओं में ऊर्जा व उत्साह की कमी नजर आती है तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सम्भवतः अपनी राजनांदगांव की सीट भी न जीत पाए।
इस प्रकार इस क्षेत्र में भी बीजेपी को बहुत नुकसान होता नही दिखाई दे रहा है बल्कि बीजेपी इस क्षेत्र से २०१९ चुनाव की अपेक्षा कम से कम ७- १० सीटे अधिक जीतेगी।
अब बात करते है पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों की
बिहार झारखंड ओरिसा बंगाल असम त्रिपुरा अरूणांचल मणिपुर मेघालय नागालैंड सिक्किम की .....
यदि हम बिहार की बात करे तो यहां परिणाम पिछली बार की अपेक्षा एकदम अलग हो सकता है यहां बीजेपी और एनडीए गठबंधन दोनो को नुकसान होगा जिसका लाभ राजद व कांग्रेस को मिलेगा। जिसके तीन कारण है पहला यहां पीएफआई और कांग्रेस की रणनीति काम कर सकती है क्यों की बिहार की कई सीटों पर समुदाय विशेय के मतदाता अधिक संख्या में है दूसरा नीतीश कुमार की पलटू राम वाली छवि से यादव और कुछ ओबीसी समाज भी नाराज है तीसरा कुछ सीटों पर बीजेपी और एनडीए गठबंधन का सही प्रत्याशी न मिलने से जनता नाराज है जिसका सीधा लाभ आरजेडी उम्मीदवारों को मिलेगा। पिछली बार बिहार की लगभग सभी सीटें एनडीए को मिली थी केवल एक सीट कांग्रेस को लेकिन इस बार यहां एनडीए २५ - ३० सीट के आस पास रहेंगी, यहां इस बार ६- ८ सीट राजद को जाने की सम्भावना लग रही है, कांग्रेस २ सीट पा सकती है और दो सीटें पर निर्दलियों का भाग्य खुल सकता है। इस प्रकार बिहार में बीजेपी को लगभग ३ सीट और एनडीए गठबंधन को १० -१२ सीट का नुकसान निश्चित है।
झारखंड में बीजेपी को न बहुत ज्यादा नुकसान होगा और न ही बहुत फायदा यहां भी बीजेपी २०१९ के परिणाम को दोहराएगी।
ओरिसा में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा इस बार २- ३ सीट अधिक मिल सकती है हालंकि यहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की जनता पर बहुत गहरी पकड़ है और ओरिसा के विकास के लिए काम भी करते है फिर भी मोदी का काम जनता को वहा भी अच्छा लग रहा है और मोदी जी ने देश को जनजातीय महिला राष्ट्रपति देकर जन जातियों का बहुत मान बढ़ाया है इस लिए ओरिसा की जनता भी मोदी को बड़े पैमाने पर वोट कर सकती है। यहां कांग्रेस का जनाधार और पार्टी की जड़े लगभग कमज़ोर हो चुकी है इस लिए यहां बीजू जनता दल और बीजेपी का ही बोलबाला रहेगा। यहां बीजेपी पिछली बार 8 सीटें जीती थी और बीजेडी 12 हो सकता है इस बार यह परिणाम उल्टा हो जाय।
बंगाल का परिणाम भी इस बार एक दम बदल सकता है हो सकता है यहां बीजेपी २२- २५ सीट जीत जाए और ममता दीदी २० के अंदर आ जाए क्यों कि यहां भी केवल बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही लडाई है। यहां भी ममता दीदी का विशेष समुदाय के प्रति प्रेम की वजह से वोटों का धुव्रीकरण हो चुका है जिससे हो सकता था बीजेपी क्लीन स्वीप कर जाती लेकिन ममता दीदी के सत्ता में होने से तृणमूल के कार्यकर्ताओ का मनोबल बहुत मजबूत है और प्रशासन की भी कुछ मजबूरियां है जिससे ममता दीदी अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में है फिर भी परिणाम बदलने की पूरी सम्भावना है। हों सकता है कांग्रेस भी अपनी यहां अपनी पिछली तीनों सीट बरकार रखें।
यदि असम की बात करें तो यहां बीजेपी पिछली बार ९ सीटें जीती थी और कांग्रेस ३ सीटें और दो सीट अन्य को गया था। चूंकि यहां हेमंता विस्वास मुख्यमंत्री है और जनता के बीच में अच्छी पकड़ रखते है कुछ क्षेत्रों के मुस्लिम मतदताओ पर भी इनका अच्छा प्रभाव है इस लिए यहां भी बीजेपी को नुकसान कम दिखाई दे रहा है बल्कि हो सकता बीजेपी इस बार असम की सभी सीटें जीत ले क्यों की NRC और CAA लागू होने से वहा के मूल निवासियों को इसका बड़ा फायदा होगा और मतदान प्रतिशत भी बहुत अच्छा है।
पूर्वोत्तर राज्यों के लगभग ११ सीटों में ५ - ६ सीट बीजेपी को मिलना तय है। त्रिपुरा, सिक्किम और अरूणांचल की सभी सीटें बीजेपी जीतेगी हो सकता है इस बार मणिपुर में बीजेपी को एक सीट का नुकसान हो जाए।
इस प्रकार इन क्षेत्रों में भी बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम है बल्कि बंगाल और ओरिसा और अन्य क्षेत्रों से कुल मिलाकर २०१९ की अपेक्षा १० सीटें अधिक मिल सकती है।
अब बात करते है दक्षिण भारत की
तेलंगाना आंध्र तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरला और कर्नाटका की तो इन राज्यों में पिछले पांच सालों में मोदी जी ने अपने प्रभाव को बहुत तेजी से बढ़ाया है और इस बार बीजेपी ने आंध्र में अपने गठबंधन को और मजबूत किया है जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता दिख रहा है। हालांकि तेलंगाना और कर्नाटका में इस बार सरकार कांग्रेस की है जिससे बीजेपी को कर्नाटका में थोड़ा नुकसान होगा क्यों कि यहां भी कांग्रेस विधान सभा चुनाव से ही वोटों का धुव्रीकरण करने का प्रयास कर रही है हालांकि इसका लाभ कुछ सीटों पर बीजेपी को भी मिल सकता हैं।
तेलांगना में बीजेपी को पिछली बार की अपेक्षा २ सीट अधिक मिल सकती है कुल लगभग ६ सीटे बीजेपी को मिलेगी। यहां टीआरएस को सबसे अधिक नुकसान और कांग्रेस को सबसे अधिक फायदा दिखाई दे रहा है क्यों दक्षिण राज्यों में वोटरों को पैसे के दम पर बड़े पैमाने पर प्राभावित किया जाता है चुंकि इस बार तेलांगना में कांग्रेस की सरकार है तो कांग्रेस इसका लाभ उठाएगी। जिससे सबसे अधिक सीट यहां कांग्रेस को ही मिलेगा।
आंध्र में इस बार बीजेपी पिछली बार की गलती को सुधारते हुए टीडीपी और पवन कल्याण के जन सेना से गठबंधन किया है, वर्तमान में जगन रेड्डी की भ्रष्टाचारी सरकार से यहां की जनता बुरी तरह त्रस्त है, सड़के बदहाल हो चुकी है, सरकारी दफ्तरों में भ्रटाचार चरम पर है, सरकारी कर्मचारियों को ५-६ महीनों तक सैलरी का इंतजार करना पड़ रहा है, हालंकि जगन निचले तबके के लोगों को अच्छा खासा पैसे हर महीने सरकारी खजाने से बाट रही है फिर भी यहां की भी शिक्षित जनता जगन को बदलना चाह रही है इस लिए जहां पिछली बार जगन रेड्डी की पार्टी को २६ सीटों पर जीत मिली थी और चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी को केवल ३ सीटे, बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था लेकिन इस बार यहां भी मोदी जी, पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू का प्रभाव काम करेगा और जगन रेड्डी की पार्टी १०-१५ सीटों पर सिमट जाएगी जिसका सीधा १० सीटों का लाभ टीडीपी को मिलेगा पवन कल्याण की जनसेना भी यहां २ सीट पा सकती है और बीजेपी भी ३-४ सीटे जीत लेंगी।
तमिलनाडु में इस बार जनता बड़ा बदलाव के मूड में है मोदी के राष्ट्रभक्ति व सनातन भक्ति से यहां की जनता बहुत खुश हैं इस लिए यहां डीएमके को बड़ा नुकसान हो सकता है और बीजेपी इस बार यहां लगभग ५ से अधिक सीटें जीत सकती है।
पुडुचेरी में में केवल एक ही सीट पिछली बार बीजेपी को मिली थी इस बार भी बीजेपी यहां फिर से जीत लेंगी।
कर्नाटका में इस बार बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा क्यों कि यहां कांग्रेस सत्ता में है मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट कर अधिक सीटें जीतना चाह रही है। हो सकता है यह २०१९ की अपेक्षा बीजेपी को ३-५ सीटों का नुकसान हों जाए।
केरल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और यहां भी सीधे सीधे हिंदु और मुस्लिम वोटरों का धुव्रीकरण किया जा रहा है फिर भी बीजेपी यहां भी इस बार अधिक सीटें जीतेंगे। यहां पिछली बार बीजेपी केवल २ सीट ही जीत पाई थी लेकिन इस बार मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी लगभग ५ सीटे जीत सकती है क्यों कि राज्य के कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओ में आपसी समन्वय कम है जिसका प्रभाव राहुल गांधी की वायनाड सीट पर भी देखने को मिल रहा है और कांग्रेस के दमदार नेता ए के एंटोनी का बेटा खुद बीजेपी के सिंबल पर केरल में चुनाव लड़ रहा है जिसकी वजह से बीजेपी उम्मीदवारो को बढ़त मिलेगी।
इस प्रकार दक्षिण भारत में इस बार बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियां को कमजोर करते हुए अब तक का सबसे बड़ा लाभ लेगी और पिछली बार की अपेक्षा लगभग १०-१२ सीटे अधिक जीत सकती है हालांकि कांग्रेस को भी दक्षिण में पिछली बार की अपेक्षा ५ - ७ सीट अधिक मिल सकती है खास तौर पर जहां जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा होंगे।
आइए अब बात करते है पश्चिम क्षेत्र, महाराष्ट्र गोवा गुजरात और राजस्थान की
यहां चारों राज्यों में बीजेपी की सरकार है जहां पिछली बार राजस्थान और गुजरात में बीजेपी लगभग सभी सीटें जीत गई थी, महाराष्ट्र में लगभग २२ सीटे अकेले बीजेपी जीती थी और गोवा में एक सीट बीजेपी को मिली थी एक कांग्रेस के पक्ष में चली गई थी।
इस क्षेत्र में भी लगभग २०१९ के समान ही परिणाम आने की संभावना है बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं होगा लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी २ या ३ सीटे अधिक ला सकती है क्यों की महाराष्ट्र में विपक्ष लगभग ख़त्म हो चुका है कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के कई बड़े बड़े धुरंधर नेता बीजेपी का दामन थाम चुके है।
हो सकता है यहां पर शिवसेना शिंदे गुट को उतना सीट न मिल पाएं जीतना पिछली बार शिवसेना उद्धव को मिला था क्यों की शिवसेना के पुराने कार्यकर्त्ता शिंदे गुट के मूल शिवसेना से विरोध की वजह से नाराज़ है।
अब यदि पूरे देश के चुनाव परिणाम की बात करे तो बीजेपी को केवल हरियाणा बिहार कर्नाटका में स्पष्ट रुप से कुछ सीटों का नुकसान होता दिखाई दे रहा है लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु आंध्रा, बंगाल ऑरिसा और उत्तर प्रदेश में निश्चित रूप से बीजेपी को लाभ होता दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा पूरे देश से यदि कुछ क्षेत्रों में १५ - २० सीटों का नुकसान होता दिख रहा है तो कुछ क्षेत्रों से जहां पिछली बार कम सीटें आए थे वहा से लगभग २०- ३० सीटों का लाभ भी दिख रहा है क्यों की वोटिंग प्रतिशत में पिछली बार की अपेक्षा इस बार बहुत ज्यादा अंतर नही दिख रहा है बस इतना है की कुछ राज्यों में कम मतदान हो रहा है तो कुछ राज्यों में अधिक मतदान भी हो रहा है। इस लिए मतदान प्रतिशत बीजेपी के सीटों पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगा। कम ज्यादा मतदान का लाभ हानि केवल उन्हीं सीटों पर प्रभाव डाल पायेगा जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा है और हिंदू मतदाता घरों से बाहर नहीं निकले। इस प्रकार बीजेपी इस बार भी लगभग २०१९ के परिणाम के आसपास ही ३०० या ३१० सीटें जीतकर फिर से मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनाएगी और एनडीए गठबंधन कुल मिलाकर ३७५+ सीटों का आंकड़ा पार कर जाएगी
लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व कमजोर होगा जिसका फायदा सीधे सीधे कांग्रेस को मिलेगा और मुस्लिम मतदाता पूरे देश में सीधे सीधे कांग्रेस को वोट करेंगे जिससे कांग्रेस की सीटे भी इस बार कुछ बढ़ सकती है और पिछली बार की अपेक्षा ५- १० सीटों का लाभ मिल सकता है लेकिन कांग्रेस को इस बार भी ६० - ७० सीटों का अकड़ा पार करना बड़ा कठिन होगा।
यह रहा चुनाव का रुझान लेकिन जिस तरह से पूरे देश में मोदी जी से जनता का व्यक्तिगत लगाव बढ़ा है हर वर्ग में, खासतौर पर महिलाओं, युवाओं में, दक्षिण भारत राज्यों में तो ऐसा लगता जैसे उनको कोई देव पुरुष मिल गया हो जो देश को विश्व में सबसे मजबूत राष्ट्र बना देगा यदि यह फैक्टर काम कर गया और बाकी चरणों वोटिंग प्रतिशत अच्छा रहा तो कोई बड़ी बात नहीं की मोदी जी का नारा अबकी बार ४०० सौ पर सत्य हो जाएगा।
#OnceMoreNAMO
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