शिव आदि है अनंत है अविनाशी है निराकार है महायोगी है देवाधीदेव है महादेव है प्रकृति है अगोचर है
हम सबने सुना है ईश्वर एक है वो "शिव" ही है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में है शिव, शिव अनंत ऊर्जा है शिव के बिना ब्रह्माण्ड की संकल्पना ही नहीं की जा सकती है सूर्य चंद्र पृथ्वी जल आकाश नभ नव ग्रह सप्तर्षि, सप्त नदिया और ब्रह्माण्ड की समस्त दिव्य शक्तियां व ऊर्जा "शिव" के अंश मात्र है
शिव अनंत ऊर्जा है शिव ही "शंकर" शिव ही "विष्णु" शिव ही "ब्रह्मा" है
शिव ही रचनाकार पालनहार और संहारक है
शिव "आदिपुरुष" और प्रकृति "आदिशक्ति" के संयोजन से निराकार शिव, शहस्त्राब्दी वर्ष पूर्व त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की इच्छा व प्रेम से वशीभूत होकर आदिशिव महादेव ने फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि की रात्रि, प्रदोष काल में मानव कल्याण के लिए अपने भक्तों में योग उपासना व भक्ति भाव जागृत करने के लिए "लिंग" आकार लिया ...............
वैसे तो सनातन संस्कृति में विक्रम संवत् के अनुसार प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है जो की अमावस्या तिथि के एक दिन पूर्व आता है चूंकि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मानव कल्याण हेतु स्वयं भू लिंग आकार में महादेव शिव ने त्रिदेव भक्तों को दर्शन दिया और इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग आकार महादेव का दिव्य दर्शन और पूजन किया इसी लिए फाल्गुन मास की शिवरात्रि "महा शिवरात्रि" कहलाती है। महाशिवरात्रि आदि शिव के प्रकटोत्सव का दिवस है आदि शिव व आदि शक्ति के प्राकृतिक संयोजन का दिन है। मान्यता है महाशिवरात्रि पर सभी देवतागण और दिव्य आत्माएं पृथ्वी पर स्वयं भू शिव लिंग का साक्षात दर्शन करने सूक्ष्म रुप में आते है इसीलिए महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण व मंत्र जाप का भी बहुत है।
शिवलिंग हमे यह संदेश भी देता है कि आदिशिव व आदिशक्ति एक ही है अलग अलग नहीं और यही महादेव और प्रकृति स्वरूपा आदिशक्ति के अर्धनारीश्वर रूप का आधार भी है..............
महाशिवरात्रि महापर्व को लोग शंकर भगवान और पार्वती माता के विवाह वर्षगांठ के रूप भी में मनाते है इसमें कोई बुराई नही लोग अपने आराध्य देव महादेव और जगत जननी की भक्ति महाशिवरात्रि पर विवाह वर्षगांठ मनाकर करते है अच्छी बात है लेकिन "शिव महापुराण" के सती खण्ड के अनुसार सच्चाई यह है कि भगवान शंकर - माता सती का विवाह चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ था और पार्वती खण्ड के अनुसार माता पार्वती और शंकर का विवाह मार्गशीर्ष चतुर्दाशी को हुआ था। इस लिए महाशिवरात्रि को यदि हम योगसाधना ध्यान व मंत्र सिद्धि अथवा आत्म साक्षात्कार के माध्यम से ह्रदय में उपस्थित शिव के दिव्य अंश दिव्य आत्मा को जागृत करने और अध्यात्मिक चेतना के विकाश के लिए करे तो और अच्छा होगा.....
तीन पत्तो वाले बेलपत्र महादेव को प्रिय है क्यो कि बेल पत्र के तीन पत्तो वाली टहनियां ब्राह्म विष्णु महेश के प्रतीक रूप है जो मानव कल्याण के लिए प्रकृति की अमूल्य निधि है वैसे भी शिव पुराण में बेल वृक्ष को साक्षात शिव का व पीपल के वृक्ष में श्री हरि विष्णु का वास बताया गया है इसी लिए तीन पत्तो वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से शिव की कृपा प्राप्त होती है
महादेव यानि शिव जो निराकार है सर्वश्रेष्ठ है उनका एक ही आकार है वो है शिवलिंग और शिव के शरीर धारी रूप है ब्राह्म विष्णु महेश व सप्तऋषि है, महेश ही शंकर है शंकर योगी है संन्यासी है संत है साधु है त्यागी है दानी है अघोरी है विनाशक है मृत्युदाता और जीवन रक्षक भी है और यमराज इनके सेनापति, भूत प्रेत पिशाच डांकिनी शाकिनी निशाचर सब इनके सहयोगी है।
बेलपत्र के अलावा महादेव को जल धारा बहुत प्रिय हैं क्यों कि जल से महादेव को शीतलता प्राप्त होती है ऐसा इस लिए की जब समुद्र मंथन से निकले विष को महादेव ने मानव कल्याण हेतु ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं ग्रहण कर लिया था तब शिवशंकर का शरीर नीला पड़ गया और हिमालय के नीलकंठ पर्वत पर विश्राम करने गए तब श्री ब्रह्मा विष्णु के साथ सभी देवतागण उनका जलाभिषेक किया जिससे उनके शरीर को शीतलता प्राप्त हुई और महादेव को नीलकंठ के नाम से पुकार गया। आज भी नीलकंठ महादेव का शिवलिंग ऋषिकेश के पास नीलकंठ पर्वत पर स्थित है जहां जलाभिषेक का बहुत महत्त्व है। महादेव के अभिषेक करने कई अन्य विधियां भी है जैसे दूध से अभिषेक लेकिन ऐसा विशेष उद्देश्य या कार्य के संकल्प के लिए प्रयोग करना चाहिए ना कि जब भी मंदिर जाए एक लीटर दूध ही चढ़ाके आ जाए।
हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय
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