चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को त्रेता और द्वापर युग का संधि काल कहा जाता है मान्यता है कि आज के दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का अक्षय फल प्राप्त होता है इसी लिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो, अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ आज के दिन किया जा सकता है.... आज के दिन शुरु किया गया कार्य हर प्रकार से सफलता देने वाला होता है।
आज के ही दिन ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में श्री हरि विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर अवतरण लिया था। श्री परशुराम भगवान देवधिदेव महादेव के परम भक्त थे और उनकी निरंतर साधना किया करते थे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हे अपना परशु शस्त्र प्रदान किया था। परशुराम भगवान शस्त्र और शास्त्र से युक्त पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ पुरुषों में से एक है जिन्होंने अकेले स्व पुरुषार्थ के बल से २१ बार पृथ्वी पर व्याप्त कुरीतियों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोगो को विनष्ट कर दिया था।
महायोद्धा भीष्म पितामह, सूर्यपुत्र कर्ण और गुरू द्रोणाचार्य को दीक्षा भगवान परशुराम ने ही प्रदान किया था। प्रभु श्री राम को पिनाक धनुष और श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र श्री परशुराम ने ही दिया था।
पृथ्वी पर आज भी विचरण करने वाले आठ दिव्य आत्माओं में से एक भगवान परशुराम जी चिरंजीवी है और आज भी महेंद्र पर्वत पर विचरण करते है। अन्य सात चिरंजीवी आत्माओं में श्री हनुमान जी पवनपुत्र के रूप में सर्वत्र विराजमान हैं, ऋषि वेदव्यास, गुरु कृपाचार्य, रामभक्त विभीषण, किष्किंधा के राजा बलि और द्रोणाचार्य पुत्र अस्वथामा है जिनके बारे में मान्यता है कि अस्वथमा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से २० किलोमीटर दूर असीरगढ़ किला में स्थित शिव मंदिर में आज भी ब्रह्म मुहूर्थ में पूजा करने आते है। ऋषि मार्कण्डेय पृथ्वी पर आठवें चिरंजीवी आत्मा है जिन्होंने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया है जिससे इन्हे अमरत्व प्राप्त हो गया है।
आज के ही दिन पृथ्वी पर नर नारायण और ब्रह्मा विष्णु अवतरित हुए थे। मां गंगा का भी आज के ही दिन भगवान विष्णु के चरणों से पृथ्वी पर आगमन हुआ था।
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय भी आज के ही दिन जन्म लिए।
सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की शुरुवात भी आज के ही दिन से हुआ था।
माँ अन्नपूर्णा का जन्म और देवताओं के कोषाध्यक्ष श्री कुबेर भगवान को खजाना आज ही मिला था।
सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया और कनकधारा स्तोत्र की रचना भी श्री आदि शंकराचार्य ने आज के ही दिन किया था।
वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ शुरू किया था और महाभारत का युद्ध भी आज ही समाप्त हुआ था।
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट भी आज के ही दिन खोले जाते है और वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन वर्ष में केवल एक बार चैत्र शुक्ल तृतीया को होते है।
भगवान जगन्नाथ के सभी रथों को बनाना भी आज के दिन प्रारम्भ किया जाता है।
इस प्रकार अक्षय तृतीया की तिथि सनातन संस्कृति सभ्यता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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