Sunday, 26 April 2020

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को सर्व श्रेष्ठ तिथि क्यो माना जाता है ?

जो कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षय फल मिलता है इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। स्कंदपुराण और भविष्य पुराण में यह उल्लेख कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी अक्षय तृतीया की इस तिथि को परम पुण्यमय बताया है। अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है। युगादि का शाब्दिक अर्थ है युग आदि अर्थात एक युग का आरंभ। इस दिन सूर्य पूर्ण बली होते है इसीलिए इस दिन सूर्य प्रधान त्रेता युग का आरंभ हुआ।
अक्षय तृतीया को विशेष तिथि इस लिए भी माना जाता है कि आज के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी और महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था। भगवान शिव ने आज के दिन ही माॅ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन का संरक्षक नियुक्त किया था। इसीलिए इस दिन सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का विशेष महत्व है।

पुराणो मे ऐसा उल्लेख है कि आज के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन गंगा स्नान करने से व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है और यदि यह तिथि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल अत्यधिक बढ़ जाता हैं। आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

आज के दिन ही ऋषि जमादग्नि तथा माँ रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का भी अवतार हुआ था जो आज भी अजर अमर है। इनके अलावा छः और लोगों को अमरत्व का वरदान है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:,कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
भगवान शिव के परम भक्त श्री परशुराम धर्म न्याय व वीरता के साक्षात उदाहरण है परशुराम जी की त्रेता युग के दौरान सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर क्रोधित होने का उल्लेख मिलता है और दापर युग महाभारत काल मे उन्होंने गंगा पुत्र भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या प्रदान किया।

श्रीबांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से किया जाता है ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके और बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं। श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही होता है जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था।


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Sunday, 12 April 2020

मोदी जी के नेतृत्व में भारत का विश्वगुरु बनने की ओर बड़ता कदम।।

आज जब पुरे विश्व में कोरोना वायरस जैसी एक सूछ्म से परजीवी से लड़ते हुए लोग दम तोड़ रहे है । विश्व के सारे वैज्ञानिको व अनुसंधान केन्द्रो को इसका कोई उपयुक्त इलाज नही समझ आ रहा है, न कोई एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? नासा के सारे अंतरिक्षीय खोजो का औचित्य नगण्य हो गया है, सारा भौगोलिक व आर्थिक विकास एक छोटे से जीवाणु का सामना नहीं कर पा रहा ? एक छोटे से जीव ने आज लगभग पूरे विश्व को घरो में कैद कर दिया है। 
मध्य युग में पुरे यूरोप पर राज करने वाला इटली लगभग नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुका है यहाँ लगभग 20 हजार से अधिक लोग परलोक पहुंच गए हैं लाखों लोग अस्पताल में जीवन और मौत के बीच की सांसें ले रहे है जिन लोगों ने परिवार के सारे सदस्यो को इस महामारी में खो दिया वे लोग अपने जीवन के कमाया सारे धन को सड़को पर लुटा खुद आत्म हत्या कर रहे है। स्पेन, फांस, बेल्जियम, जर्मनी, डेनमार्क, लगभग पूरे यूरोप में त्राहीमाम मचा है अर्थव्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है। कभी पूरे मध्य पूर्व पर अपना आधिपत्य रखने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान व टर्की ) को अब कोई युक्ति नही सुझ रही हैं 3500 से अधिक लोगों की जीवन लीला समाप्त कर दिया एक छोटे से जीवाणु ने। ब्रिटिश साम्राज्य जिसका आधिपत्य एक समय विश्व के 56 देशो तक फैला था उसके वारिश आज स्वयं बर्मिंघम पैलेस में कैद होने को मजबूर हैं। रूस जैसे वृहद क्षेत्रफल वाला देश जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे आज अपना सारे बॉर्डर सील कर दिया हैं। अमेरिका जिसके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं जो पूरी दुनिया में अपने को अघोषित चौधरी समझता है यहाँ भी केवल एक महीने में 25 हजार से अधिक लोग दुनिया छोड़ चुके है और 3.5 लाख लोग जीवन की अंतिम सांसे गिन रहे हैं। जो आने वाले समय में पूरे विश्व को अपने कब्जे में करने के सपने संजोये है, वो चीन आज दुनिया के साथ विश्वासघात कर मुँह छिपता फिर रहा है।
आज विश्व के लगभग सौ से अधिक देश लाकडाउन की प्रकिया से गुजर रहे हैं सभी सामाजिक आर्थिक गतिविधिया बंद है। मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स सोच #कोरोना के कहर में पूर्ण रूप से शिथिल हो गयी है। आज पूरी दुनिया आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं उस भारत की ओर, जिसका सदियों से यही सारे देश अपमान करते रहे, लूटते रहे है लेकिन अब सबको लग रह है कि वर्तमान आपदा से लड़ने की राह विश्व को भारत ही दिखा सकता है ? आज दुनिया को हाइड्रोक्लोरोफ्लेक्सिन जैसी दवा कोरोना वायरस के बीमारी से बचाने में रामबाण का काम कर रही है उसके लिए पुरा विश्व भारत पर निर्भर है ये दवा पाकर ब्राजील के राष्ट्रपति ने मोदी जी को धन्यवाद प्रेषित करते हुए संजीवनी बूटी की संज्ञा दी। इससे पता चलता है कि अब भारतीय वैदिक सांस्कृतिक जीवन शैली की महत्ता का एहसास पूरे विश्व को हो चुका है जहाँ सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले हजारों ॠषि मुनियों ने आयुर्वेद,ध्यान, योग, हवन व यज्ञ जैसे तमाम ऐसे युक्तियो का विकास सदियों पहले कर दिया था जो सुरक्षित स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।
वैसे मुझे लगता है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी का अभी केवल आरम्भ हुआ है जैसे जैसे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी और आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु, जिनका न हमे परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी। ये कोरोना तो बस चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे हम मनुष्यो ने जन्म दिया है यह एक ऐसा युद्ध जिसमे हमें हरने की सम्भावना पूरी है यदि हम अब भी पर्यावरण से छेड़छाड़ करना बंद नही किये। वैसे सूछ्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है, ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा जिससे लड़ने के लिए भारत ने हर हथियार सदियों पहले खोज भी लिया था, मगर अहंकार, लालच व स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता वाली पश्चिमी व यूरोपीय सोच ने सब नष्ट कर दिया लेकिन आज भी भारत अपनी समृद्धिशाली वैदिक संस्कृति व व्यवस्था के उपयोग से विश्व के भीषणतम महामारी से लड़ने व संसार को दिशा देने मे सक्षम है और मार्ग निकलेगा उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से, जिन्हे कभी पैरों की ठोकर से तोडा गया था, उसी नीम और पीपल की छाँव में उम्मीद की किरणें दिखाई दे रही है, जिसका कभी उपहास किया गया था, उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना पड़ेगा, जिसे यही यूरोपीय व पश्चिम देशो ने स्वाद के कारण अपना मुख्य भोजन बना लिया। उन्ही मंदिरो के घंटनाद की परंपरा को अपनाना पड़ेगा जिन मदिंरो को तोडा गया था, उन्ही वेदो मंत्रों को पढ़ना पड़ेगा जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए तिरस्कृत किया था, उसी चन्दन तुलसी को मष्तक व गले पर धारण करना पड़ रहा है, जिसके लिए कभी हमारे मष्तक धड़ से अलग किये गए थे।
ये प्रकृति का न्याय है और विश्व को स्वीकारना होगा। युगों युगों से जब भारतीय सनातन धर्म एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते करने, हाथ पैर धोकर घर मे घुसने व मानवता के उच्चतम आदर्श को मानते हुए जानवरों, पेड़ों और जंगलों की पूजा करने, योग प्रणायाम व शाकाहारी भोजन अपनाने पर जोर दे रहा था, श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करने की परंपरा का पालन करने को कह रहा था तब पूरी दुनिया हंसती थी लेकिन अब? अब कोई नही हंस रहा, बल्कि कोरोना वायरस के प्रभाव में आज पुरा विश्व भारतीय संस्कार को अपना रहा हैं। पुुुरी दुुनिया आज नमस्कार की परंपरा का पालन कर रहा है, अमेरिका जैसा समृृद्धि व शक्तिशाली देश पीपल वृक्ष व तुलसी के पौधे को अच्छे पर्यावरण के लिए सर्वश्रेष्ठ मान रही है चीन दाह संस्कार की व्यवस्था को अपनाने के लिए कह रहा है, मलेशिया के एक वैज्ञानिक ने वहां के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में लेख लिखकर लोगों से शाकाहारी खानपान को अपनाने की अपील किया, इंग्लैंड, अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में ससंद मे वैदिक मंत्रोचचारण कराया गया, जापान में महामृत्युंजय मंत्र का सामूहिक जाप आयोजित किया गया। स्पेन के राष्ट्रीय रेडियो चैनल पर प्रतिदिन सुबह वैदिक मंत्रों का प्रसारण करवाया जा रहा है।
आज प्रकृति, भारतीय संस्कृति सभ्यता का मजाक उड़ाने वालो को सीख दे रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और कर्म फल भोगना ही पड़ता है। कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म का उपदेश देते समय कहा कि वत्स पुरा ब्रहमांड मेरे मे ही समाहित है सब कुछ मै ही हूँ और संसार में घटित होने वाली सभी घटनाएं मेरे इच्छा के अनुरूप ही होती है फिर भी मेरा वस तो केवल कर्मफल तक ही निहित है मनुष्य तो सुख दुःख अपने कर्मो के फलस्वरूप भोगता है। भगवद्गीता में उल्लेखित यह सम्वाद आज रूस जैसे बड़े ताकतवर देश में प्राइमरी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल है। सच ही कहा गया है सनातन धर्म केवल एक धम॔ ही नहीं अपितु एक जीवन पद्धति है इसको दैनिक जीवन में अपनाने वालों को सामान्य विषाणु प्रभावित नहीं कर पाते हैं। 
दुनिया को ये मानना ही होगा कि अगर वास्तव मे समृद्धिशाली जीवन जीना है, तो ॠगवेद यजुर्वेद अथर्वेद व सामवेद, उपनिषद, भागवगीता, रामायण का गहन अध्ययन करना ही होगा, तक्षशिला नालंद की मिट्टी से क्षमा याचना करनी ही होगी और
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ।। की उच्चकोटि की सोच व भारतीय व्यवस्था को अपनाना ही होगा।।


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Tuesday, 24 March 2020

जब भारतीय परिवारों की हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि की दैनिक परंपरा जीवंत हो गयी

भारत देवताओं व ॠषि-मुनियों की भूमि है जहाँ वैदिक मंत्रोंच्चारण व यज्ञो के माध्यम से असंभव कार्यों व बीमारीयो का समाधान किया जाता रहा है, यहाँ शंख व घंट ध्वनि की परंपरा दैनिक जीवन में प्रातः व सांध्य वंदन के समय युगों पुरानी है जिसे राक्षसी प्रवृत्ति के विदेशी आक्रमणकारियों ने हजारो बार आक्रमण कर वैदिक साहित्य व संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयास किया लेकिन भारतीय ब्रम्हषियो की संतानों में वैदिक संस्कृति इस तरह समाहित है कि वे जड़ से समाप्त नहीं कर पाये। यही कारण है कि आज भी हम बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान वैदिक मंत्रों ऋषि मुनियों व पूर्वजों की कृपा से ढूंढ लेते है आज जब पुरा विश्व कोरोना वायरस जैसी महामारी से प्रभावित है ऐसे में एक बार फिर से हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि परंपरा का सहारा लेकर विषाणुओं को हवा में ही नष्ट करने का सफल प्रयास हम सबने मिलकर किया है।
हाल में ही आयोजित ऐतिहासिक जनता कर्फ्यू  का लगभग 100% सफल होना यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि भारतवासी मानवता व वैदिक परंपरा की रक्षा के लिए कभी भी एक आवाज पर संगठित हो सकते है सिर्फ आवाज देने वाले का उद्देश्य सही होना चाहिए। लोग इसको अलग-अलग तरह से परिभाषित कर रहे हैं कुछ लोगो का कहना है कि, ये जनता का सुरक्षित जीवन के प्रति डर या भारतीय सामाज की सवेंदनशील सोच या शायद देश प्रेम की वजह से संभव हुआ, लोग चाहे जो भी कहे लेकिन जिस तरह से रविवार 22 माच॔ की शाम को ठीक 5 बजे देश के हर गाँव, शहर, गली-मोहल्ले, में अमीर से अमीर जैसे देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक व गरीब से गरीब परिवार के प्रत्येक व्यक्तियों का एक साथ खड़े होकर शंखनाद नाद करना, तालियों की गडगडाहट व घंटो की आवाज, महिलाओं बुजुर्गों व बच्चों की उत्साहित भागीदारी ने ये सिद्ध कर दिया कि भारतीयों का युगों पुरानी वैदिक व्यवस्था पर आज भी अटूट विश्वास है। जिस का नजारा आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला, जब देश का हर घर मंदिर प्रतीत हो रहा था। जो भारतीय संस्कृति सभ्यता को जीवंत बनाए रखने का मोदी जी का एक अद्भुत प्रयोग और अगली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का एक बड़ा सदेंश भी था।
कोरोना महामारी के वजह से ही सही लेकिन देश की जनता ने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, संवेदनशीलता व जिम्मेदारी के भाव, लोकतांत्रिक सोच और राष्ट्र के प्रति नागरिक सम्मान के भाव का जो सदेंश जनता कर्फ्यू को सफल बनाकर दिया है ये अतुलनीय है। यह विजय नाद देश को कोरोना वायरस जैसे  दानव से आगे लड़ने में संयम प्रदान करेगा और भारत के नागरिक सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नवदुर्गा की कृपा से कोरोना महामारी को परास्त करेंगे। देश का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभारी है जिन्होंने कोरोना वायरस के खौफ के इस माहौल में भी बिना त्यौहार के, त्योहार जैसी स्थिति पैदा कर लोगों को भयमुक्त बना दिया तथा पूरे देश में एक साथ एक नियत समय पर शंखनाद करवाकर भारतीय संस्कृति सभ्यता को गौरवान्वित कर दिया। अब जनता साहस व विश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला सावधानी व संयम से करने के तैयार हो गयी है।
जय हिंद जय भारत। । 


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Saturday, 21 March 2020

कहीं कोरोना वायरस का कहर मानवता की रक्षा व प्रकृति के संरक्षण का सदेंश तो नहीं

प्रकृति से श्रेष्ठ और बलवान इस ब्रहमांड में कुछ भी नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कोरोना वायरस का कहर जिसके वजह से आज विश्व के 150 से अधिक देश प्रभावित है।  निस्संदेह यह समस्या मानव जनित है और इसकि भयावहता के माध्यम से प्रकृति ये सदेंश दे रहा है कि मनुष्य जन्म लेकर मानवता के परिचायक बनो ना कि दानवता का। आज हम सबको प्रकृति के इस प्रकोप को भूत, वर्तमान और भविष्य के कसौटी पर रखकर जीवन को समझने का प्रयास करना चाहिए।  सुनामी, भूकंप और कोरोना वायरस जैसी आपदाएं समय-समय पर कुछ सदेंश लेकर आती है मानव समाज को जागृत करने के लिए । यदि हम समझने का प्रयास करे तो देखे कैसे एक वायरस ने बहुत कुछ सिखा दिया हम सबको। जैसेकि आज राष्ट्रों की सीमाएं टूट गईं आतंकी बंदूकें खामोश हैं, अमीर - गरीब का भेद मिट गया। आलिंगन,चुम्बन का स्थान मर्यादित आचरण ने ले लिया। क्लब,स्टेडियम, पब, मॉल, होटल,बाज़ार के ऊपर अस्पताल की महत्ता स्थापित हो गई। अर्थशास्त्र के ऊपर चिकित्साशास्त्र स्थापित हो गया। एक सुई, एक थर्मामीटर, गन,मिसाइल टैंक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
मंदिर चर्च दरगाह मस्जिद बंद कर दिया गया है सारे आडंबर, दर्शन -प्रदर्शन सब बंद । मांसाहारी भोजन बंद शाकाहारी जीवन शैली को लोग अपनाने को आतुर है। पुरा विश्व आज भारतीय संस्कृति व परंपरा को अपनाने को तैयार हैं।धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी परिवार में लौट आया, पर संपर्क दुःखदायी और निज संपर्क सुखदाई हो गया है। चहुँ ओर केवल कोरोना वायरस से जीवन रक्षा कैसे की जाएँ बस यही चर्चा चल रही है।
कोरोना वायरस का अद्भुत असर जरा देखिये आज एक बार फिर से बुजुर्गों व अनुभवी लोगों की प्रचलित लोकोकति "जो होता है अच्छा होता है" को चरितार्थ कर दिया। कम से कम इसी बहाने ही सही लोग बहुत कुछ समझने सोचने व जीवन शैली में बदलाल लाने का प्रयास तो करेंगे। आज ये वायरस प्रकोप हमे यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म संप्रदाय या देश नहीं होता।
इस लिए जीवन के प्रति दृढ़संकल्प और संयमित रहते हुए सदैव मानवता व प्रकृति के रक्षा संरक्षण के लिए तत्पर रहे । जीवन में सावधानी और सतर्कता रखें,लपारवाह न बनें। यही कोरोना का संदेश है।

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Monday, 15 July 2019

अन्तर्जातीय प्रेम विवाह कोई मुद्दा नहीं, बड़ा विषय है विश्वास आत्मसम्मान व् पारिवारिक संस्था के अस्तित्व व संस्कार का

आज इक्कीशवी सदी में जब हम ग्लोबल सिटीजनशिप की बात कर रहे है और संचार तकनीकी के माध्यम से  भारत या अफ्रीका में बैठे बैठे अन्टार्कटिका या ब्रह्माण्ड के किसी भी स्थान पर जीवनयापन कर रहे व्यक्ति से साक्षत्कार कर रहे है व्यापर कर रहे है, सोशल मीडिया व् डिजिटल यंत्रो के माध्यम से कसी भी द्वीप या दूरस्थ गांव में बैठे व्यक्ति से मित्रता कर एक दूसरे के संस्कृति संस्कार रहन सहन के बारे में चर्चा कर रहे है, सामजिक राजनीतिक व् व्यापारिक मुद्दों पर खुलकर अपने विचार रख रहे है, ऐसे समय में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह जैसे सदियों पुरानी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है जबकि हमारे भारतीय संस्कृति व् सनातन धर्म में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह के हजारो उच्चस्तरीय उदाहरण है और लगभग प्रत्येक दिन ऐसे विषय देश के विभिन्न हिस्से में सुनने को मिलते रहते है क्योंकि अब तो हमारा संविधान भी बालिग लडके - लड़कियों को आपसी समझ व सहमति से विवाह करने को अनुमति देती है फिरभी देश के लगभग सभी मीडिया चैनल द्वारा एक प्रेम विवाह के मामले में, एक लड़की की अहम्, अपरिपक़्वता या ये कहे की एक पिता पुत्री के बीच व्यवाहिरक या वैचारिक संवादहीनता का, एक चतुर व् चालाक लड़के द्वार अपने निहित स्वार्थ में फायदा उठाकर एक पिता के सपने, आत्मसम्मान व् मित्रवत पारिवारिक सामाजिक संबंधों के विश्वास का माखौल उड़ाना और मीडिया द्वारा उसे दलित समुदाय से जोड़कर हल्ला बोलना बेहद शर्मनाक बात है।
प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया व पवित्रबंधन है जो उम्र व् जाति के बंधन से मुक्त है और किसी भी लडके लड़की या स्त्री पुरुष के बीच आत्मीय शारीरिक रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप आगे बढ़ता है बाद मे पारिवारिक और सामाजिक सहमति से वैवाहिक सम्बन्ध में बदलता है। यंहा पर प्रेम दो विपरीत लिंग के व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन विवाह एक सामजिक व पारिवारिक संस्था है जिससे सामाजिक परम्परा, पारिवारिक संस्कार, नैतिक मूल्य, माता - पिता व रिश्तेदारों का मानसम्मान जुड़ा होता है ऐसे में किसी भी लड़की या लड़के को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आधार बताकर पारिवारिक संस्कारो व सामाजिक मूल्यो का हनन नही करना चाहिए क्योंकि ऐसे अन्तर्जातीय व् बेमेल प्रेमविवाह कुछ समय के लिए लडके लड़की के स्वहितो खुशियों सुखो की पूर्ति तो करते है लेकिन जीवनपर्यन्त के लिये माता पिता भाई बंधुओ रिश्तेदारों के लिए दुःख अपमान व् हजारो सवाल खड़े कर देते है। जिसका जवाब देना बहुत कठिन होता है। 
आज पूरा देश इस विषय पर चर्चा कर रहा है क्योंकि बरेली उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित परिवार की लड़की परिवार की असहमति से अपने पसंद के लडके से घर से भागकर शादी कर लेती है फिर उसे अपने जीवन का ही डर सताने लगता है और वो पिता भाई व घरेलु सम्बन्धियों के द्वारा हत्या कराये जाने का आरोप लगते हुए सोशल मीडिया माध्यम से एक वीडियो जारी कर देती है और पूरे देश मे साक्षी मिश्रा ( २१ वर्ष ) व अजितेश ( लगभग ३२ - ३४  वर्ष ) चर्चा के विषय बन जाते है क्योंकि लड़की के पिता विधायक है और लड़का दलित वर्ग से है इसलिए पिता जी को शादी मंजूर नही है ऐसा लड़की वीडियो सन्देश मे कहती है। देश की मीडिया को मसाला मिल जाता है क्योंकि ये एक ब्राह्मण विधायक की बेटी का दलित लडके से प्रेमविवाह का मामला है और प्रदेश मे सवर्ण समर्थक पार्टी की सरकार है। लडके लड़की को मीडिया नेशनल सेलिब्रिटी बना देती है प्राइम टाइम में सवर्ण व् दलित विवाह के मुद्दे पर चर्चा करवाती है लेकिन अपने नैतिक जिम्मदारी से किंकर्त्तव्यविमूढ़ ये भूल जाती है की मीडिया का एक महत्वपूर्ण कार्य देश व् समाज मे समरसता का माहौल बनाना, संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा कर सामाजिक व् राजनितिक सहमति से सही हल निकलना है न कि समाज, परिवार या विभिन्न वर्ग समूहों मे कटुता पैदा करना। यदि इस विषय पर ईमानदारी से मीडिया की भूमिका का आकलन करे तो पायेंगे की मीडिया ने देशभर को अपना दोहरा चरित्र दिखाते हुए दलित समुदाय के चरित्र पर ही एक बड़ा धब्बा मढ़ दिया की दलित समुदाय के लोगो को मित्र बनाना, घर में बैठाना खतरे से खाली नही है ये किसी के साथ विश्वासघात कर सकते है। मीडिया की सही भूमिका तो तब होती जब अन्तर्जातीय विवाह के बजाय ये लोग इस विषय को समाज में गिरते नैतिक मूल्यो, व्यावहारिक, सामजिक व् मित्रवत सम्बन्धो मे बढ़ती स्वार्थपरकता, पारिवारिक संस्था के कमजोर होते अस्तित्व, धर्म व् संस्कृति से विमुख होती नई पीढ़ी मे संस्कारो का हनन, माता पिता भाई बंधुओ के बीच वैचारिक मतभेद व संवादहीनता कैसे घरेलु छोटी समस्याओं को बड़ा रूप दे रहे है  ? कैसे  लोग अपने व्यक्तिगत अहम् व् स्वाभिमान मे स्वयं को सही साबित करने लिए गलत कदम उठा ले रहे है  जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार मानसिक तनाव मे लम्बे समय तक  तनाव मे जीने को मजबूर हो जाता है।  
जैसा की हम सब पिछले दस दिनों से नवविवाहित जोड़ी का साक्षत्कार विभिन्न टीवी चैनेलो पर सुन रहे है और  साक्षी द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दिए वीडियो सन्देश को भी सुना जिससे स्पष्ट हो रहा है कि ये अन्तर्जातीय विवाह से ज्यादा बड़ा विषय आपसी व पारिवारिक रिश्तो मे बढ़ती दूरियों, वैचारिक मतभेदो,आपसी विश्वास आत्मसम्मान व संस्कार का है। लड़की के बातो से लग रहा है एक पिता को अपने बेटी बेटो के साथ एक उम्र के बाद प्रत्येक मुद्दों पर खुलकर संवाद स्थापित करना चाहिए व प्रतिदिन एक निश्चित समय बैठकर अपने बच्चो से वार्तलाप करना चाहिए अपने अनुभव साझा करने चाहिए उनकी बातो को ध्यान से सुनना समझाना और संयम व विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, अपरिपक्क्व बच्चो की जिम्मेदारियां घर से बाहर के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए, गंभीर परिस्थितियों मे क्रोध से नहीं विवेक से काम लेना चाहिए जो की साक्षी के भाई ने नहीं किया क्योंकि भाई द्वार क्रोध मे अव्यवहारिक व असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग अजितेश व् साक्षी दोनों को बुरा लगा परिवार के इसी कमजोरी का फायदा अजितेश ने उठाया और दोनो ने इसे अपने स्वाभिमान व् अहम् से जोड़कर क्रोध और जल्दीबाजी मे शादी कर लिया जबकि साक्षी के बातो से ऐसा लग रहा है कि उसकी अपने पिता जी से वैचारिक मतभेद जरूर थे लेकिन यदि वे स्वयं से मामले को संभालते उससे बात करते समझाते तो शायद साक्षी शादी के लिए अजितेश की बात अभी नही मानती और विधायक जी को समय मिल जाता उपयुक्त निर्णय लेने का। इस पुरे मामले में अजितेश की भूमिका एकदम गलत है एक तरफ तो उसने अपने मित्र के साथ विश्वासघात किया दूसरी तरफ पारिवारिक सामाजिक सम्बन्धो को ही संदेह के घेरे मे खड़ा कर दिया अजितेश कितनी भी सफाई दे लेकिन उसके इस कदम से एकदम स्पष्ट है की उसकी नियति मे पहले से ही खोट था नहीं तो कोई भी समझदार व् विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने उम्र से १०-१२ साल छोटी लड़की से जिसको वो स्कूल के समय से जनता हो और उसके परिवार मे एक बेटे के सामान सम्मान पाता रहा हो, एक प्रकार से साक्षी उसके लिए बहन के सामान थी, ऐसा गलत कदम कभी नही उठाता। लेकिन यँहा हम लडके जितना दोषी मानते है साक्षी भी उतनी ही दोषी है क्योंकि २१ वर्ष की अवस्था तक बच्चो मे इतनी समझ तो आ ही की वो अपनी मान मर्यादा अच्छी तरह समझते है इसलिए लड़की को किसी भी स्थिति मे अपने माता पिता व् परिवार के सम्मान के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था स्वतंत्र विचार का होने से ये मतलब नहीं की कोई लड़की माता पिता के सपनो व् आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाये सामजिक मूल्यों व संस्कारो का हनन करे।
इस मुद्दे से समाज व परिवार के संरक्षकों को ये सीख लेनी चाहिए की नई पीढ़ी के साथ वैचारिक सामंजस्य व् समन्वय बैठाने की पूरी कोशिस करे उनसे खुलकर संवाद स्थापित करे और बच्चो को पर्याप्त समय दे, घर से सम्बंधित बाहरी लोगो पर, उनकी नियति पर पूरी नजर रखे व् समय रहते ही किसी भी विषम व विपरीत परिस्थिति का सामना करने से पहले ही उसका समाधान करे।


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Monday, 24 July 2017

नये राष्ट्रपति का चुनाव जातीय राजनीति का खेल था या आम आदमी से खास आदमी बनाने का सन्देश !!

एक महीने की लम्बी प्रक्रिया के बाद २१ जुलाई को रामनाथ कोविंद जी को देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया जो भारतीय राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में जातीय राजनीति के लिए याद किया जायेगा। इसके साथ ही कोविंद जी के जीवन का यह स्वर्णिम दिन था जब वे कोई चुनाव जीते इसके पहले वे लोकसभा व् विधानसभा का चुनाव भी लड़े  थे लेकिन हार का सामना करना पड़ा था फिरभी दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके है क्यों कि ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा मे विश्वास  करते है और इन्होने अपना पूरा जीवन उसके प्रचार प्रसार मे लगाया जो की इनकी राष्ट्रीयता के प्रति प्रगाढ़ भाव को दर्शाता है और दूसरा कारण इनकी जाति।

इस बार का राष्ट्रपति चुनाव इस लिए भी और ज्यादा दिलचस्प था की सत्ता पक्ष ने भावी लोकसभा चुनाव २०१९ को ध्यान में रखते हुए जातिय समीकरण को साधने के लिए पार्टी के सबसे प्रबल और सबसे वरिष्ठ नेता व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दरकिनार करते हुए अनसूचित जाति से श्री कोविंद जी को उम्मीदवार बनाया जबकि पुरे देश को ये उम्मीद था की आडवाणी जी ही देश के अगले राष्ट्रपति होंगे, इसी के साथ २०१७ का राष्ट्रपति चुनाव जातीय राजनीति का मैदान बन गया और विपक्ष को मजबूरन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को विपक्ष का उम्मीदवार बनाना पड़ा ये जानते हुए भी की बहुमत सत्ता पक्ष के साथ है।
जैसा की हम सब ये जानते है कि संवैधानिक रूप से हमारे देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में जनता का प्रत्यक्ष रूप से कोई योगदान नहीं होता और न ही राष्ट्रपति अपने स्व विवेक से जनता के पक्ष में कोई निर्णय सकता है क्योकि हमारे संविधान का अनुक्षेद ७८ ये कहता है कि राष्ट्रपति अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह से करेंगे। वैसे तो सभी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की ही है लेकिन वे लगभग सभी नियुक्तियां मंत्रिमंडल की संस्तुति के अनुरूप ही करते है। यदि जनता के सीधे हित की बात करे तो केवल एक ही मुद्दे मृत्युदंड की सजा में माफ़ी के सन्दर्भ में ही राष्ट्रपति मुख्य भूमिका निभाते है लेकिन वे भी तब जब मंत्रिमंडल राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजेंगे तभी। सविंधान के अनुसार केवल एक ही वीटो पावर राष्ट्रपति को प्राप्त है वो अनुक्षेद १११ के तहत राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा संस्तुति किसी भी बिल को अपने पास रोक सकते है लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसको मंत्रिमण्डलके पास पुनः विचार करने के लिए भेजना ही पड़ेगा और यदि दुबारा मंत्रिमंडल उसी  बिल को राष्ट्रपति के पास भेजती है तो उन्हें संस्तुति देना ही पड़ेगा।

यँहा समझने वाली बात तो ये है की जब राष्ट्रपति को जनता के हित  में कोई निर्णय लेना का अधिकार ही नहीं है और न ही राष्ट्रपति जनता द्वारा सीधे चुना जाता है तो देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव के लिए जातीय राजनीत खेलने का औचित्य क्या था ? इस पर सत्ता पक्ष का कहना है वो तो देश के एक योग्य व् आम नागरिक को देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर देश को ये सन्देश देना चाहती है की कोई भी आम आदमी या पार्टी कार्यकर्त्ता हमारे पार्टी में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है।  तो प्रश्न ये उठता है की यदि ऐसा ही सोच थी तो किसी अन्य जाती या धर्म के आम आदमी को क्यों नहीं बनाया उम्मीदवार जिनका वोट प्रतिशत काम होता ? यु पी से ही उम्मीदवार क्यों चुना पंडीचेरी गोवा या नार्थ ईस्ट से भी किसी को उम्मीदवार बना सकते थे लेकिन चुकी कोविंद जी उत्तर प्रदेश के मूल नागरिक और वर्तमान में बिहार के राज्ज्यापल थे और अनुसूचित जाती से थे इसलिए उन्हें उम्मीदवार बनाया जिससे दोनों राज्यों के अधिकतर वोटर को सन्देश दे सके। जँहा से लोकसभा के सबसे ज्यादा लगभग १२0  सदस्य सदन का प्रतिनिधित्व करते है और यदि उत्तराखण्ड की ५  और झारखण्ड की १४ लोकसभा सीट को यदि और जोड़ दे तो कुल १३९  सीट पर राजनीतिक सन्देश देने के लिए इस बार राष्ट्पति चुनाव को जातीय रंग में रंग दिया गया। क्यों कि अब तक का ये इतिहास भी रहा है जो पार्टी इन दो राज्यों में सबसे ज्यादा सीट जीतती वही सरकार बनाती है।
 इसका निष्कर्ष  ये  निकलता है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टिया सत्ता पाने के लिए केवल जातीय राजनीत के खेल में उलझी हुयी है सत्ता पाना और सत्ता में बने रहना उनका प्राथमिकता है न की देश का विकास।  देश का विकाश तो तभी संभव हो पायेगा जब चुनाव पार्टी केंद्रित न होकर क्षेत्र के विकाश पर केंद्रित हो जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिए सही व् योग्य प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करे न कि किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष को ध्यान में रखकर। पार्टिया जातीय राजनीत का खेल इस भी खेलती है क्यों कि जनता भी बहुत हद तक इस खेल को समर्थन करती है जब जनता जाति को महत्व देना काम कर क्षेत्र के विकास को महत्व देना शुरू कर देगी तब राजनीतिक पार्टिया और क्षेत्र का प्रतिनिध दोनो विकाश के प्रति संकल्पित हो जायेंगे। इस लिए खासकर युवाओ को अब पार्टी केंद्रित होकर वोट नहीं देना चाहिए बल्कि प्रतिनिधि व् क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखकर प्रतिनिधि चुनना चाहिए। युवाओ को चाहिए की वे #वोट फॉर राइट कैंडिडेट !!के नारे को मजबूती से जनता के बीच में पहुँचाये जिससे आने वाले समय में जनता सही प्रतिनिधि को चुन सके जो किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए बहुत जरुरी हैऔर पार्टी केंद्रित चुनाव व्यवस्था का बहिस्कार कर प्रतिनिधि केंद्रित वोटिंग प्रणाली को प्रचलित करने की मांग तेज करे।

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Saturday, 9 July 2016

Youth must stand with UNITED NATION to achieve Sustainable Development Goal by 2030 !!

As Today half of World Population, around 51%  is dominated by Youth under age 30 yrs and Asia has largest Youth Population around 754 millions in which India count biggest with 445 millions, Not only Asian country but Middle East and African Country also has 69% population under age 30. Therefore youth has bigger responsibility today, for welfare of Society and in achieving the UN Sustainability Development Goals - which came in to realization During United Nation Sustainable Development Summit on 25 September 2015, where World leaders of 192 member country adopted the agenda of Sustainable Development Goal to end the Poverty, Inequality, Injustice and tackle Changing Climate by 2030 which include 17 point - No Poverty, Zero Hunger, Good Health & Well being, Quality Education, Gender Equality, Clean Water & Sanitation, Affordable Clean Energy, Decent Work & Economic Growth, Industry Innovation Infrastructure, Reduce Inequality, Sustainable Cities n Communities, Responsible Composition n Production, Climate Action, Life Below Water, Life Over Land, Peace Justice n Strong Institution and Partnership For the Goals with the objective of meeting citizens aspiration for Peace, Prosperity, Well being, and to preserve for planet. 


With acceptance of Youth importance United Nation Organization set up separate department for Youths Names as United Nation Youth Envoy to connect and coordinate with member nations youth to ensure the contribution of them in societal problem solving and development. UNO already designed many programs and support for youths to promote and appreciate work doing by them and recognition for his/her contribution for societal uplifment. Not Only UNO but many other international organisation are active in different region and continent of the Globe to support train and recognize the youth works So it depends on us now how to get connected with them to explore our passion towards social development. Though most of the UN SDG Goals can be achieve by creating awareness about Positive and Negative Impact of  act made by human being in day to day life, to create awareness youths can be play major role with better understanding help n solutions So We, Youth must Awake Stand and Understand the problem in deep to find right suggestion for society.

If we go in depth of the above mentioned SDG Goals We find that Inequality, Injustice, Gender Equality ( these 3 problem can be solve by realizing and accepting the importance of each n every community cast creed n genders in society ) , Decent Work Atmosphere ( It can be achieve by developing respect for each others Values n Ethics ), Good Health ( Yoga Practice can play major role to find healthy life ), Climate ( Population n Pollution are two major cause for changing climate it can be solve up to some extant by understanding important of clean environment for sustainable life for coming generation it require to teach society about Positive n Negative impact of modern life styles) , Sustainable Cities n Communities ( its also matter to generating better understanding of public about sustainability specially for traffic and cleanliness ), Peace n Justice ( Its the matter of developing value patience n sacrifices for them self and society ), Strong Institution n Partnership ( its also the matter of devotion respect and accountability about the institution people belongs ) these 9 goals can be achieve by creating awareness and setting stander Values to live better life in society. therefore Youths are in very important role for Society Not only for these 9 goal but for others also with creativity and innovations they can solve employment problem that will help in curbing poverty n hunger etc.

I would like to give call to Youth they must understand own responsibility towards society and country and come forwards with his/her own solutions and contribution to achieve United Nation SDG 2030 cause to find better livelihood society we first make it better .


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Monday, 4 July 2016

युवाओं को आगे आना होगा देश को जातिवादी राजवाडों व क्षत्रपो से आजाद कराने के लिए !

हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य जातिवादी व्यवस्था है इस जातिवादी व्यवस्था की वजह से हिंदुस्तान हमेशा कमजोर पड़ा है। जिसका आभास प्राचीन समय से ही समय समय पर भारत यात्रा पर आये विदेशी यात्रियों व् छात्रों ने कर लिया था। जिसका लाभ पहले हुणो ने लिया आक्रमण कर भारत को लुटा फिर मुगलो ने और बाद में ब्रिटिशो ने। इस दौरान इन्होने जो भारतीय संस्कृत व् सभ्यता की ताकत थी उसे समाप्त करने की पूरी कोशिश की और जो कमजोरी थी जैस जातिवाद उसे आरक्षण जैसे व्यवस्था से जोड़कर और मजबूती दी, अब जो बाकी है उसे हमारे देश के ही कुछ चतुर नेतागण बड़ी ही चालाकी से अपने अपने वर्ग विशेष के लोगो को बरगला कर लूट रहे है।

यदि हम पुरे देश के क्षेत्रीय राजनीत का सही से अवलोकन करे तो पाएंगे की पुनः देश में लगभग उतने ही जातिवादी राजवाड़े पैदा हो गए है जितने सरदार पटेल ने आजादी के बाद हिंदुस्तान में शामिल करवाए थे। यदि हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का अवलोकन करे तो यंहा अजीत सिंह चौधरी रजवाड़ा , मुलायम सिंह यादव रजवाड़ा , मायावती दलित राजकुमारी, अमर सिंह राजा भैया क्षत्रिय राजवाड़ा , मुख़्तार अंसारी मुग़ल राजवाडा कई अन्य और भी है। अब बिहार को देखिए लालू यादव रजवाड़ा , रामविलास पासवान रजवाड़ा , नितीश कुमार कुर्मी राजवाड़ा , जीतनराम मंझिदलित राजवाड़ा, सहाबुदीन अंसारी राजवाड़ा इत्यादि। मध्य प्रदेश में ब्रिटिश समय से चला आ रहा सिंधिया राजवाड़ा, दिग्विजय सिंह राजपूत राजवाड़ा , चौहान राजवाड़ा , इसी तरह से पुरे देश में अलग अलग जातिवादी क्षत्रपो ने अपना अपना राजवाड़ा स्थापित कर लिया है। एक प्रकार से देश पुनः आजादी से पूर्व वाली राजशाही व्यवस्था की और बढ़ चुका है और इन जातिवादी राजाओ को अपने विकास के आलावा केवल उतना दिखता है जितने से केवल वे अपने जाती विशेष के विश्वास को जीतते रहे। जरा सोचिये जिस राजशाही व्यवस्था से निजात पाने के लिए हम सब लोगो ने १५० सालो तक आजादी की लड़ाई लड़ी और लाखो नवजवानों व महिलाओं ने अपनी कुर्बानी दी। पुनः आज ६८ साल बाद फिर उसी जाल में ये जातिवादी मसीहा कहे जाने वाले नेताओं, जो अब रजवाड़ो में बदल चुके है, के चक्कर में बुरी तरह से उलझ गए है जो केवल अपने कुनबे के विकाश में लगे है क्षेत्र, राज्य व देश का विकाश केवल एक दिखावा बन कर रह गया है।

आजादी के बाद जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी गयी थी उन्ही खामियों का फायदा उठाकर कुछ नेता केवल अपने स्वार्थ मे देश को जाती के आधार पर बांट दिया है। मजे की बात तो ये है की तब हमारी साक्षरता बहुत कम थी और बुजुर्गो की जनसंख्या ज्यादा क्यों की सही स्वस्थ सुविधा व पौष्टिक आहार की कम उपलब्धता की वजह से और जानकारी के आभाव मे ज्यादातर बच्चे मर जाते थे परन्तु आज जब कि देश मे युवाओं की संख्या विश्व मे सबसे अधिक है और वैज्ञानिक व शैक्षिक रूप से अच्छा विकाश हुआ है फिर भी देश मे जातिवादी रजवाड़ो व् क्षत्रपों का विकाश बहुत तेज हुआ है और कुछ गिने चुने नेताओं के बरगलाये मे देश के पढ़े लिखें युवा उनका साथ दे रहे है ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। आज चीन व अन्य यूरोपीय देश जो भारत के बाद आजाद हुए ज्यादा विकाश किये और भारत उनसे बहुत पीछे है क्योंकि मध्यकालीन समय से ही भारत को जातिवादी व्यवस्था बुरी तरह से जकड़े हुए है जो अब जादिवादी रजवाड़ो का रूप ले लिए है और ये केवल अपने लिए राजशाही हवेलिया, विदेशो मे हजारो एकड़ जमीन, पांच सितारा होटल और उद्दोग लगा रहे है उन्हें केवल अपने विकाश का ध्यान है जनता का विकाश तो केवल पेपरों पर है इन जातिवादी रजवाड़ो के साथ केवल उनका विकाश हो रहा है जो इनके चापलूस है या इनके लिए कारक, जैसे ब्रिटिश समय मे चापलूस धोखेबाज गद्दार देश के जमींदारों ने अंग्रेज अफसरों की चापलूसी कर कमाई उसी तरह आजके अधिकारी भी इन जातिवादी रजवाड़ो की गुलामी कर रहे है और अपने को मजबूत बना रहे है, आम जनता तो आजादी के पहले भी गुलाम थी आज भी गुलाम है अंतर तो बस इतना है की पहले विदेशियों के गुलाम थे और आज अपने जातिवादी क्षत्रपों के गुलाम।

आज देश के युवाओं को इस बात को बहुत गहराई से समझने की आवश्य्कता है यदि आप वास्तव मे भारत को एक विकसित देश व विश्व मे सबसे ताकतवर देश बनने देखना चाहते हो तो जातिवादी राजनीत से बहार निकलना होगा और राष्ट्र शक्ति व् विकाश के नाम पर एकजुट होना होगा। देश को इन जातिवादी रजवाड़ो के चंगुल से मुक्त कराना है तो अपना नेता जाती के आधार पर न चुनकर उसे चुनना होगा जो विकाश की बात करता हो जो देश की बात करता हो ना कि जाति कि या स्वार्थ कि। अपना नेता उसे चुने जो क्षेत्र के विकाश के लिए दृंढ संकल्पित हो पढ़ा लिखा राष्ट्रवादी हो न कि जातिवादी। जिसके लिए पार्टी से ऊपर क्षेत्र का विकाश व देशहित हो।

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Wednesday, 20 January 2016

अच्छे भविष्य के लिए युवाओ को जातिगत राजनीत से बहार निकल एकत्रित होना होगा !

आजादी के ६९ वर्ष बाद भी हमारा देश धीमीगति से विकास कर रहा उसके पीछे मुख्य कारणो मे से एक कारण जातिगत राजनीतिक अवधारणा है जिसको आरक्षण के लौ ने और मजबूत ही किया है। आज जबकि देश में युवाओ की जनसँख्या विश्व में सबसे अधिक ३५६ मिलियन केवल १०-२४ वर्ष के युवाओ की है और पढ़े लिखे लोगो की जनसंख्या ७० % से अधिक है जो आजादी के समय ४० % भी कम हुआ करती थी ऐसे में यदि एक २२ वर्षीय दलित शोध छात्र आत्मा हत्या करता है  तो ये निसंदेह एक बड़ी सोच व चर्चा का विषय है ऐसी घटनाओ और आंदोलनो के पीछे कौन है ? इसको भी समझाना जरुरी है, नहीं तो देश का युवा शक्ति जो समाज को नई दिशा दे सकता है वो भटक जायेगा और देश गृह युद्ध की स्थिति मे पहुँच जायेगा।
आज जो हमारी आर्थिक विकाश दर विश्व मे तीसरी पायदान पर है उस पर देश का हर युवा गौरवान्वित महसूस कर रहा है और देश को विश्व शक्ति के रूप में देखने के लिए हर संभव योगदान देने को तैयार है। आज जंहा देश मे युवाओ द्वारा स्थापित और संचालित ४४०० संस्थाए देश मे दस लाख से अधिक लोगो को रोजगार मुहैया करा रहे है जो कि अमेरिका व् ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ आने वाले सालो मे करोडो लोगो को रोजगार मुहैया कराते हुए देश को विश्वशक्ति बनाने मे आगे बढ़ने को तैयार है, ऐसे मे कुछ स्वहित से स्थापित संस्थाए व संगठन युवाओ को भ्रमित कर, उनकी एकता को विखंडित कर देश मे गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकते है जो वे अपने स्वहित के सामने या तो समझ नहीं पा रहे या इतना आगे बढ़ चुके है की अब उनके पास ये समझने का विकल्प ही नहीं है ऐसे में सरकार को आगे बढ़कर ऐसे संस्थाओ को  चिंहित कर दिशा देने की जरुरत है।

आज जब हमारे देश की युवा पीढ़ी जागरूक है ऐसे मे विश्वविद्यालय व अन्य सभी शैक्षणिक संस्थाओ को छात्र राजनीत से मुक्त कर, नकारात्मक विचार से संचालित गैर सरकारी संस्थाओ व् संगठनो को शैक्षणिक परिसर मे प्रतिबंधित करना समय की आवश्यकता है क्यों कि छात्रों मे अब नेतृत्व की क्षमता विकसित करने के कई अन्य माध्यम भी प्रचलित हो रहे है जो उनमे सकारत्मक भाव को विकसित कर रहे है जैसे की - "युथ पार्लियामेंट" के तहत सदनीय कार्यवाही का अनुभव कराना, "युथ कांग्रेस" के तहत गंभीर मुद्दो पर चर्चा से समाधान निकालना व युवाओ के विचार और रचनात्मकता को समझाना, "युथ समिट" के माध्यम उनके द्वारा किये जा रहे कार्यो को प्रोत्साहन देकर विभिन्न समस्याओं पर उनसे ही वार्षिक प्रोग्राम तैयार करवाकर उनकी ऊर्जा व रचनात्मकता को उपयोग में लाना, इससे उनमे आत्मविश्वास की वृद्धि होगी व् उनको प्रोत्साहन मिलेगा, न की उनको छात्र जीवन में ही राजनीत मे झोककर उनके अंदर जाति -धर्म -सम्प्रदाय- आरक्षण जैसी नकारात्मक भाव को बढ़ावा देना।

युवाओ को ये सोचनाहोगा की आखिर हमारा देश आज भी पीछे क्यों है ? जब कि हमारे साथ आजाद अन्य देश विकसित देश की श्रेणी मे शामिल है।  उसके पीछे मुख्य कारण, देश के कुछ नेताओ ने अपने फायदे के लिए देश की जनता को "जाति -धर्म- आरक्षण" के जाल मे भ्रमित कर रखा है, जिसे, आज देश के युवाओ को समझाना होगा और ऐसी भावनाओ व नेताओ के चाल से बाहर निकलकर, देश के विकास व राष्ट्रहित मे सोचना होगा तभी हमारा और देश का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। हम युवाओ को ये सोचना होगा की, हम देश को विश्वशक्ति बनाने मे क्या योगदान दे सकते है अपनी ऊर्जा को उसमे लगाना चाहिए, न की जाति धर्म व आरक्षण के भाव को भड़काने वाले संगठनो के बहकावे में आकर अपनी ऊर्जा का दुरूप्रयोग क्योंकि जैसे जैसे समाज शिक्षित व विकसित हो रहा है वैसे वैसे ये जाति धर्म की बाते गौड़ हो रही है, ऐसे में आने वाली पीढ़ी इन मुद्दो पर साथ नहीं देगी इस लिए जो युवा भ्रम में आकर ऐसे मुद्दो पर अपना राजनैतिक भविष्य भी देख रहे है वो बेवकूफ है जैसे की #रोहितवुमेला जो अपने अंतर्मन को भी नही पहचान पाया और अंत मे कुछ जाति धर्म के ठेकेदारो के जाल मे फस कर अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर लिया उनका क्या गया जिन लोगो ने उसे बरगलाया था कुछ भी नही बल्कि उनको तो अपनी राजनीति चमकाने और दलितों का मशीहा बनने का एक और मौका दे गया वो । इसलिए नवजवानों पहचानो अपने मन को की तुम्हारा मन क्या कहता है बहकावे में मत आओ।

देश मे कोई दूसरा #रोहितवुमेला  न बन पाये, इस लिए युवाओ तुम जाति धर्म व आरक्षण के भ्रम से बाहर आओ एकत्रित हो और नकारात्मक भावनाओ को भड़काने वाले संगठनो व नेताओ को सीख दो की, हम एक है विखंडित नहीं होगे।  राष्ट्र का विकास व राष्ट्रहित हमारी प्राथमिकता है न कि घृणत राजनीत।
जय हिन्द जय भारत !!

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Friday, 1 May 2015

An overlook About Gender Inequality Problem in India

Gender inequality in India is multifaceted issue that refers to Health, Education, Economic and Political inequality but majorly it evaluate by “ Sex Ratio Gap” between Men and Women Globally, Which is 940 F/ 1000 M in India . As per annual report made by various institution like UNDP, WEF, OECD on parameter of “ Sex Selective Abortion and Female -Male literacy ratio ” shows that India along with other Developing Countries have high gender inequality and low women empowerment than Developed countries.

Reports indicate that developing countries have Big Gender base Economic inequality, Low Literacy and Poor Health. There are huge gap between Men and Women Wage Payment- men paid 103/ day and women paid 55 / day, Although Government has taken various corrective major like Micro Credit Programme promoted by women Self Help Group, Equal Inheritance Right to Ancestral Properties and allowing them to participate in Armed Forces resulting in improving women economic inequality. Female Literacy rate 65% than male 82% - reason are Patriarchal Society, Lack of Sanitary facilities, Lack of Female Teachers in schools/ college and Social Security even though  government has introduced many programme like “ Non Formal Education Programme” in which about 40% centres in state and 10% in union territory exclusively reserve for females. Also state like Orrisa reserved 30% seats for females in medical- engineering college and universities, UP govt ensure free education for Girl Child till the Graduation etc . On the Health and Survival measures Domestic Gender Violence is major problem of female inequality, major source for Gender violence are Slective Sex Abortion, Rape and Dowry despite Government banned the selective abortion under Pre-conception and Pre-natal Dignostics Techniques Act in 1994 and taking -giving Dowry by Dowry Prohibition Act 1961.

Furthermore Gender inequality is a historic worldwide phenomena rooted in Cultures and Gender norm that organizes social life human relation as well as promote subordination of women in form of social stata. In India this cultural influence favour the preference for son related to kinship, lineage, inheritance, identity, status and economic security across the cast n class line. Also the Patriarchal nature of Indian society feel that Girls child will go to her husband house so they will lose all they have invested in and expected support from the son in old age  are disincentive for girls sex selection. Another reason for Son preferences in Indian Society are they only entitled to perform funeral of parents and daughter become liability due to humpty dowry demand even dowry is prohibited under Indian Civil Law by section 304B and 498A of Indian Penal Code. Although since independence India made many significant legal reform to address gender inequality . For instance Constitution of India contain a clause guarantee the Right of Equality and Freedom from Sensual Discrimination and also the signatory to the Convention for Elimination of all Forms of Discrimination against Women. Also Different state and union territory of India in cooperation with central government initiate numbers of region specific program targeted at women to help reduce gender inequality like Swarnjayanti Gram Swarozgar Yojana, Kidhori Shakti Yojana, Swayamshidha Mahila Mandal Programme,  Rashtriya Mahila Kosh, Swawalamban Programme,  Mahila Samkhya Programme,  Balika Samridhi Yojana etc.

In spite all above corrective major country facing Gender inequality problem cause of Patriarchal Nature of Indian Society, Increasing demand of Dowry and Social Insecurity for Girl Child and Women. So to solve this problem we require to Change mind set of society and build strong positive image about women strength. Youth should come forward to create awareness in society about Government Programme and raise voice against mere evil Dowry - mother of many problems like Gender imbalance,  corruption,  inequality in society etc and stand against the Rape n Female foeticides case.                                                     
                                               

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Tuesday, 3 February 2015

दिल्ली विधान सभा का चुनाव परिणाम तय करेगा देश में आगे की चुनावी राजनीत !

आगामी ७ फरवरी को दिल्ली  में नई सरकार के गठन के लिए पड़ने वाला मतदान देश के राजनीत को नई दिशा देने वाला है। ये चुनाव जहाँ एक तरफ " मोदी टीम "के लिए अग्निपरीक्षा है वही दूसरी तरफ अन्ना आन्दोलन से अस्तित्व में आई "आप पार्टी " के लिए उसका भविष्य तय करेगा। देश में मुख्य तौर पर विपक्ष की भूमिका निभा रही पार्टी इस चुनाव से जँहा  मोदी के विजयरथ को रुकते हुए देखना चाह रही है वही तीसरे मोर्चा के कुछ क्षेत्रिय दल मोदी विजयरथ को रोककर अपना भविष्य मजबूत करने के उम्मीद लगाये हुए  है।

आगामी १० फरवरी को आने वाला चुनाव परिणाम जंहा मोदी, बीजेपी व संघ के लिए आगामी २ सालो में विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनाव में विजयपताका फहराने के लिए आवश्यक है वही कांग्रेस के नेताओ के लिए बीजेपी की हार उनको मोदी सरकार के विरोध में मुखर होने में सहायक होगा जबकि दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस लड़ाई में ही नहीं है यही कारण  है की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दिक्षित जी ने चुनावी रणनीत  के तहत चुनाव पूर्व ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आप पार्टी को समर्थन करने की घोषणा कर दी जिससे की मुस्लिम समुदाय अपना वोट व्यर्थ ना कर विजयी हो रहे आप पार्टी के उम्मीदवार को वोट कर दे और इसी रणनीत के तहत ओवैसी ने अपने उम्मीदवार ही नहीं खड़े किये जबकि हाल ही में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाओ में इनके ३ उम्मीद्वार विजयी हुए थे। लालू - नितीश ने जंहा चुनाव से महीने भर पहले दिल्ली में सयुंक्त सम्मलेन कर एक मंच पे आने की घोषणा की वंही दिल्ली चुनाव में पार्टी उम्मीदवार उतारने से दूर रहे केवल इस वजह से की आप पार्टी का वोट ना बटे और बीजेपी की हार सुनिश्चित हो।

विपक्षियो के रणनीत को भांपते हुए बीजेपी ने भी पार्टी मुख्यमंत्री पद के कमजोर उम्मीदवार की कमी को दूर करते हुए चुनाव घोषणा के ३ दिन पहले ही पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी की सदस्यता दिला विपक्ष  जनता व् आप पार्टी को सत्ता में ना लौटने का संदेश दिए साथ ही बेदी जी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीद्वार घोषित कर पार्टी के कार्यकर्ताओ को हर हाल में दिल्ली में सरकार बनाने का संदेश दे दिया।  दिल्ली के चुनाव में असली राजनीत की शुरूवात यही से होती है।  एक तरफ जँहा बीजेपी द्धार बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीद्वार घोषित करना दिल्ली बीजेपी के ही कुछ पुराने नेताओ को सही नहीं लगा वही पार्टी के अंदर लोकसभा चुनाव से खार खाए कुछ राष्ट्रीय नेता भी मोदी और अमित शाह जी को उनकी हैशियत का अहशास करने की चुप चाप तरीके से पुरजोर कोशिश  कर रहे है ऐसे में बीजेपी पार्टी अध्यक्ष व् मोदी जी के संकटहरण के लिए दिल्ली में सरकार बनाना उनकी काबिलियत सिद्ध करना है।

बेदी को चुनावी चेहरा बनाने से जँहा बीजेपी को चुनाव में महिलाओ व् युवाओ को रुझान में सफलता मिली और चुनाव में जीत की उम्मीद बढ़ गयी वही आप पार्टी व् अन्य विपक्षी पार्टियो ने बेदी पर "अवसरवादी राजनीत" का ठप्पा लगा बीजेपी के डैमेज कंट्रोल को कम करने का प्रयाश किया।  अब यहीसे शुरू हुआ राजनीत का नीचतम प्रयोग आरोप प्रत्यरोप का शिलशिला जो से शुरू हुआ उससे दोनों पार्टियो की असलियत सामने आने लगी कँही आप के कार्यकर्ता  के यँहा शराब की बोरियां पकड़ी जाने लगी तो कँही बीजेपी उम्मीद्वार द्वारा झुग्गी झोपड़ियों में पैसा बाटने का प्रमाण इसी बीच दिल्ली में पूर्व सत्ताधारी पार्टी ने चुप रहते हुए अपना काम दिखाया और बसन्तकुंज इलाके के एक चर्च पे हमला करा बीजेपी व् संघ को शक के घेरे में लाकर साम्प्रदायिक राजनीत करने का आरोप लगाया।  अगले ही दिन बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चुनाव कार्यालय पर तोड़फोड़ करा माहौल को नया मोड़ देने की कोशिश से भी राजनीतिक बू आती है ये सिलशिला आगे बढ़ाते हुए आप पार्टी के ही एक अनुषांगिक संगठन " आवाम " ने आप पार्टी पर दो करोड़ रुपये काले धनराशि का पार्टी फण्ड में आने का विवरण पेश कर देती है और शाजिया इल्मी व् बिन्नी जैसी आप पार्टी की पूर्व नेता ही केजरीवाल को कटघरे में खड़े करना शुरू कर दिये जो बीजेपी को सत्ता में आने की राह आसान कर दिए लेकिन दिल्ली के कमजोर वर्ग के वोटर यानी झुग्गी झोपड़ी फुटपात पे रहने वाले ठेलेवाले रिक्शाचालक सरकारी तंत्र से त्रस्त होकर केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है यही आप पार्टी की सबसे बड़ी मजबूती है जो की बसपा के वोट बैंक की तरह कँही और वोट नहीं करेगी ऐसे में बीजेपी के लिए राह आसान तो नहीं है लेकिन एक बात तय है इस बार दिल्ली की जनता पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना चाहती है ऐसे में ७ फरवरी के दिन वोट पड़ने का रुझान जिस पार्टी के पक्ष में सुबह ज्यादा होगा शाम होते होते जनता उसी के पक्ष में एकतरफा वोटिंग भी कर सकती है जिससे पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना सुनिश्चित हो जाये क्योंकि दिल्ली जैसे राज्य में जँहा पढ़े लिखी व् व्यापारी मतदाता ज्यादा है वे बार बार चुनाव नहीं देखना चाहते।
कुछ बुद्धिजीवी व् समझदार लोगो का ये भी कहना है की मोदी सरकार को अलर्ट करने और देश में एक तीसरा विकल्प खड़ा करने के लिए आप पार्टी को एक बार जीता देना चाहिए जिससे "मोदी सरकार" शतर्क हो जाये और बोल वचन बंदकर लोकसभा चुनाव में जनता को किये वादे को पूरा करने में ध्यान लगाये। ऐसे में देखना है की जनता क्या करती है आप पार्टी को जीता कर केजरीवाल का भविष्य मजबूतकर देश को एक "तीसरा विकल्प" देती है या बीजेपी के विजयरथ को आगे बढ़ाते हुए आनेवाले दिनों में देश के अन्य राज्यों में कमल के फूल खिलने  का राह प्रसस्त करते हुए मोदी सरकार के पिछले ८ महीनो में किये कार्य को प्रमाणित करती है।

परिणाम जो भी हो ये चुनाव देश की आगामी राजनीतिक दिशा तय करेगी कुछ लोगो का भविष्य सुरक्षित होगा और कुछ लोगो को सीख मिलेगी।


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Saturday, 22 March 2014

युवा देंगे अपराधियों को करारा जवाब, दिखाएंगे इस बार सदन से बहार का रास्ता !

वर्षो से अपराध मुक्त व स्वक्छ राजनीत का  राग अलाप रही राजनीतिक पार्टी सबकुछ भूलकर, मई  २०१४ में गठित होने वाली १६ वीं लोकसभा के चुनावी समर में, अपराधिक पृष्ठभूमि व भ्रस्ट व्यक्तित्व के लोगो को सम्मानित कर चुनाओ मैदान में भेज रही है जो देश के युवाओ के साथ अन्याय है। जिस देश की कुल मतदाता आबादी का ४७ % मतदाता युवा हो वँहा संसद और विधानसभा में लगभग ४० % प्रतिनिधि अपहरण  हत्या , बलात्कार और चोरी - छिनैती जैसे अपराधो के आरोपी हो ये हमारे देश के युवाओ की अकरणमयता, आलस्य, स्वार्थ व  देश के बजाय व्यक्ति को महत्ता देने का परिणाम है।  निसंदेह व्यक्ति को महत्ता देनी चाहिए क्यों कि हमारा प्रतिनिधि ही  हमारे क्षेत्र का विकाश सुनिश्चित कर पायेगा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं किन्तु देश कि अंतर्राष्ट्रीय गरिमा को ध्यान रखते हुए अपराधिक छवि व सोच के व्यक्ति को सदन में पहुचने से रोकना हम युवाओ का देशहित में कर्त्तव्य है।

वर्तमान लोकसभा में कुल १६२  सांसदो पर आपराधिक मामले दर्ज है जिसमे ७६ सांसदो पर गम्भीर आरोप है। बावजूद इसके बीजेपी ने अबतक कुल १०७ ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया है जिनपर आपराधिक मामले चलरहे है जिनमे २६ पर गम्भीर आरोप है। कांग्रेस इनसे एक कदम आगे ३३ गम्भीर आरोप वाले उम्मीदवार मैदान में उतारे है अमूमन यहीहाल क्षेत्रीय पार्टियो का है इनके भी ६०% उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि से है। सत्ता कि भूख और जोड़ तोड़ के इस चुनावी समर में बीजेपी ने हाल में कई आपराधिक पृष्ठभूमि के वर्तमान और पूर्व सांसदो को पार्टी में शामिल किया इसी कड़ी में झारखण्ड के पलामू से सांसद कामेश्वर बइठा है जिनके ऊपर ४६ गम्भीर अपराधो के मुकदमे चल रहे है।  केवल इतना ही नहीं बीजेपी सत्ता के लालच में तो भ्रष्टाचार के मूल की संज्ञा दे चुकी कांग्रेस पार्टी के ऐसे नेताओ को भी शामिल कर रही है, जिनके भ्रष्टाचार का राग पिछले २ वर्षो से अलाप रही थी। जिसमे जगदम्बिका पाल और सतपाल  महराज मुख्य है जो वर्षो से उसी जड़ को सींच रहे थे। सोचनीय प्रश्न ये है कि कोई व्यक्ति जो कांग्रेस व अन्य पार्टी में भ्रष्ट रहा हो बीजेपी में आने पर स्वछ सोच का कैसे हो जाएगा। ऐसे में हम युवाओ को सोचना होगा कि हमे क्षेत्र के विकास के नाम पर वोट करना है या एक व्यक्ति जो प्रधानमंत्री के नाम पर वोट मांग रहा हो।

चुनाव आयोग के आकड़े के अनुसार इस बार कुल ३९ करोड़ युवा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे जिसमे ४९ % युवा महिला मतदाता है और १८  - २३  आयु के कुल  ७.५ करोड़ मतदाता है।  १८ -१९  आयु के २.३ करोड़ युवा  पहली बार  मतदान करेंगे जिनकी संख्या प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में लगभग ९२००० है जो २२६ सीटों पर जीत के अंतर से अधिक है। सोशल मीडिया के इस दौर में ९.१ करोड़ शहरी युवा मतदाता आयु १८ - २५  सीधे देश के २८७ संसदीय सीटो पर जीत को प्रभावित करेंगे जिसमे १६० शहरी सीट सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। चुनाओ आयोग के इस आकड़े से लगता है इस बार युवा ही देश के ५४३ लोकसभा सांसदो का भविष्य तय करेंगे।

पिछले दो सालो में हम युवाओ ने अपनी ताकत का अहसास सरकार, प्रशासन व अपराधियों को कराया है। अन्ना के नेतृत्व में सड़क पर उतरकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की लड़ाई ( प्रशासन के खिलाफ ), निर्भया के समर्थन में महिलाओ के सुरक्षा की लड़ाई ( अपराधियों के खिलाफ  ) और केजरीवाल के साथ खड़े होकर दिल्ली की सरकार परिवर्तन की लड़ाई लड़ी। अब बारी है देश की संसद से अपराधियो को बाहर रखने की लड़ाई। तो सोचिये मत आगे आइये लोगो को जागरूक करिये, देश के साथ- साथ क्षेत्र का विकास भी प्राथमिक है इसलिए वोट उसे करिये, जो हमारे बीच का हो, जो हमारी सुनता हो, जिससे हम मिल सकते हो, जो विकास कि बात करता हो अपराध की नहीं। दोस्तों अबकी बार चुक हुयी तो पाँच साल इंतज़ार करना पड़ेगा।  इस बार अपराधियो को सदन तक पहुचने मत दो।

दोस्तों यदि आप सब देश की संस्कृति, सम्प्रभुता व गरिमा को सुरक्षित करना चाहते है तो इस बार अपराधी व भ्रस्ट मनोवृत्ति के उम्मीदवार को वोट न करे। वोट करे क्षेत्र के विकास, अपराधमुक्त वातावरण, महिलाओ की सुरक्षा, मुफ्त शिक्षा, बिजली  व रोजगार के नाम पर।

उम्मीदवार वही चुने जो क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करे , हमारी आवाज को सदन में मजबूती के साथ उठाये, अपराधिक पृष्ठभूमि ना हो, शिक्षित व अनुभवी हो।

उम्मीद के साथ इस बार हमारा संसद अपराधियो से मुक्त होगा।

जय हिन्द ! जय हिन्द ! जय जय जय जय हिन्द  !

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Sunday, 12 January 2014

बिकाऊ हुई नौकरिया उ प्र लोक सेवा आयोग बना भ्रस्टाचार का केंद्र !

आज के इस प्रतिस्पर्धा के दौर में, जँहा विद्यार्थी कई  सालो से घर परिवार त्यागकर सदूर बैठ, अच्छे जीवनशैली के सपने  सजोए घंटो पढ़ाई में लीन है , जिनके साथ माँ बाप खुद दुख झेलकर व त्यागकर  उनके आवस्यकताओ की पूर्तिकर रहे , ये बाट लगाये बैठे है कि बेटा अधिकारी बन जाएगा तो उसका जीवन सफल हो जाएगा , पर  उनको  ये नहीं पता कि अब उ प्र  लोक सेवा आयोग भ्रस्टाचार  केंद्र बन गया है जिस पर समाज के हर व्यक्ति का विश्वास था कि ये एक संवैधानिक संस्था है यंहा पर नेता व अधिकारियों कि नहीं चलती यंहा तो वही चुना जाता है जो प्रत्येक मापदंडो पर खरा उतरता है परन्तु अब ये लोकोक्ति हो चुका है।  आयोग के  अध्यक्ष और सचिव आपसी मिलीभगत से पैसे लेकर एक वर्ग विशेष और क्षेत्र के छात्रो को वरीयता देकर परीक्षा परिणामो में धांधली कर नियुक्ति दे रहे है और प्रदेश कि समाजवादी सरकार सहयोगात्मक भूमिका निभा रही है। एक तरफ जंहा सालो से मेहनत कर रहे छात्रो का भविष्य दांव पर लगा है वंही दूसरी ओर  सरकार और विपक्ष शान्त बैठ तमाशा देख रही है ऐसे में छात्रो का आग बबूला होना स्वाभाविक है जिसके परिणाम स्वरुप पिछले ६ महीनो में दो बार विरोध प्रदर्शन कर छात्रो ने सरकार व आयोग के मनमाने कार्यप्रणाली पर अपनी आवाज समाज के सामने उठायी है परन्तु सरकार मूक बनी है।  हांलहि में २ जनवरी को हुए विरोध प्रदर्शन में सरकार के मुखिया मूक बने थे और अलाहबाद में आयोग के सामने पुलिश प्रसाशन ने बर्बरता पूर्ण लाठीचार्ज कर ३२ छात्रो को अपराधिक धाराओं के तहत जेल भेज दिए।

अलाहाबाद विश्वविद्यालय व् छात्र राजनीत के इतिहास में ये कालादिन था जब सारकार ने छात्रो के विरोध प्रदर्शन पे कोई संज्ञान नहीं लिया।  इसे हम उ प्र सरकार का अन्धापन ही कह सकते है।  जंहा एक ओर मुज़फ्फरनगर  में दन्गा पीड़ित, कड़ाके  की  ठंढ में कैम्पों में पीड़ित पड़े है , इल्लाहाबाद में छात्र आयोग में व्याप्त भ्रस्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे है वँही  दूसरी ओर सरकार जनता के गाढ़ी कमाई से भरे टैक्स से मंत्रियों और विधायको को विदेश भ्रमड पे भेज दी और सैफई महोत्सव में प्रदेश के सबसे युवा  मुख्यमंत्री अपने मुखिया मुलायम के साथ नाच देखने में मशगूल थे।  कहने को तो ये समाजवादी है परन्तु इनके शौख और विलाशिता किसी मुगलकालीन राजा से कम नहीं  वैसे भी प्रदेश में मुलायम के मुगलिया शौख किसी से छुपे नहीं है।  प्रदेश सरकार केवल वोटबैंक कि राजनीत करना जानती है इनको विकाश का मायने पता ही नहीं दुर्भाग्य तो प्रदेश कि जनता का है कि एक को हटाने के लिए उसने दूसरे भ्रस्ट समूह को वोट स्वार्थवश कर इनको पूर्ण बहुमत में लाई जिसके लिए आज अपने हित कि लड़ाई लड़ रहे छात्र भी जिमेदार है जिन्होने मायावती सरकार को हटाने के लिए बढ़चढ़ के इनके चुनाव में हिस्सा लिए थे और आज फिर उन्ही के भ्रस्टाचार से त्रस्त होकर सड़क पर  उतरचुके है।  ऐसे में सरकार और छात्रो दोनों को सिख लेने कि जरुरत है।  समाजवादी सरकार को ये समझाना होगा कि यदि ये नवजवान सत्ता में ला सकते है तो सत्ता से बहार भी कर सकते है और छात्रो को स्वार्थहित में नहीं बल्कि तर्कशक्ति के आधार पर देशहित में वोट करना चाहिए क्योंकि यदि पड़े लिखे नवजवान ये नहीं समझ पाएंगे, तो ये मजदूरो से उम्मीद नहीं कि जा सकती है।  यदि हम नवजवानो के आँख कि पट्टी अब भी नहीं खुली तो ये आयोग कि नौकरी के लायक ही नहीं है क्योंकि जब ये सही व्यक्ति को चुनकर सदन में नहीं भेज सकते तो ये सही प्रशासक भी नहीं बन सकते।

हमे तो आश्चर्य हो रहा है कि समाजवादी सरकार सत्ता में आते ही सारे नियमो को ताकपर रखकर आयोग के अध्यक्ष व् सचिव कि नियुक्ति केवल वोट बैंक कि राजनीत के लिए कराती है जिनपर उनके गृह जनपद में कई आपराधिक मामले दर्ज है और हमारा युवा सो रहा था। हमारे समाज का  दुर्भाग्य है कि लोग तबतक नहीं बोलते जबतक कि गाज अपने पे नहीं गिरती और यही हमारे प्रतियोगी छात्रो ने किया, जब अपने पे आयी तो सड़क पे आ गए।  यंहा पर एक कहावत  याद आती है     " जब जागो तभी सवेरा " .

मित्रो ये लड़ाई केवल अपना हक़ पाने भर से नहीं ख़त्म होगी, ये लड़ाई तब पूरी होगी, जब आम चुनाव में समाजवादी चोंगा पहने इस सरकार को हमारे यही युवा इनके विपक्ष वोटकर सबक सिखायेंगे और वर्ग विशेष को मिल रहे आरक्षड की निति को समाप्तकर आर्थिक रूप से कमजोर छात्रो को इसका लाभ सुनिष्चित कराने के शर्त पर ही वोट सुनिश्चित करेंगे।

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Tuesday, 9 July 2013

ELECTION 2014 ! Require to Show the Power of Youth Votes .

All Party Eyeing on Youth and Women, Start luring by offering key Post n Reservation in Party. Our focus should not be PARTY but Candidate coz Constituency Development n Better Administration in Region can be insure only by choosing right Representative .

Friends Country total Population dominate by Youth, We need to understand our duty toward Country n Constituency Development and to insure better Infrastructure for coming generation . To realize our duty, First we need to make sure our VOTE for right Candidate, Second Be the Human Being, ignore the thought of Cast, Religion and Regionalism . We youth only, can eliminate this thought from society, come forward and fight with this EVIL cause Shrewd Politician use this thought to divide us and make weak to continue with power. In Ancient Era They divide us on the basis of Profession and In Modern Era develop the propaganda of  Reservation. In reality they manipulate the Article 15, 16, 243, 334, 341 of the Constitution on specific interval to get advantage in Election to return in Power only not for our Welfare and unfortunately we get advantage of this propaganda.

Reservation can never be the real advantage for us, it make us weak only not strengthen for long time . We can benefited in long term only if Government will focus to insure better Infrastructure , Electricity, World class Education campus, Skilled labor, modern Police System etc. So Support Equality for All and Reservation for those who really deserve for ( Economic Reservation ) .

Dnt go for CAST n RELIGION base Vote.

Corporate Guys Dnt be relaxed on Voting days, Understand the power of Voting Right, Make sure your Vote and spare few hr to ignite your neighbor slums, poor people to avoid voting in favor of  just 500 Rs n Quarter Whisky or Saree, realize them make Vote for those candidate who can hear his Voice, give hand when they require more and fight with them on road to insure justice & basic amenity .

VOTE FOR RIGHT CANDIDATE NOT FOR PARTY/ CAST/ RELIGION.

VOTE FOR DEVELOPMENT NOT TO FOR CORRUPT PRACTICES.

SELECT RIGHT REPRESENTATIVE FOR YOUR CONSTITUENCY WHO CAN FIGHT WITH CORRUPT ADMINISTRATOR AND RAISE YOUR VOICE IN PARLIAMENT.

Friends be Intelligent Voter in Welfare of Country, Constituency, Society not for Self benefit . Realize the Citizen responsibility, Show the Power of Youth to Shrewd Politician .

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Sunday, 11 November 2012

Library Chain at Panchayat Level could be Key Information Center for Villagers

We are the World 2nd largest populated Country with 1.22 billions after China, out of this 73% are still living in Village Area, in which 56% are engaged in Agriculture Activity. Country literacy reach around 75%  but in Rural part its still around 55%,  more important is Unemployment in Educated Youth in Rural part is more then average country rate because of lacking Information and Guidance. From the time of our Freedom Struggle Gandhi Ji  was more focus about Village Swaraj, I salute him about his Vision, he was well aware about the problem we are facing after 65 yrs of our Independence, Unfortunate to say Our leader  are still not understand Vision of Bapu  perfectly, they more focused about to Grab the seats in Parliament and Legislative body. I obliged to Lt. Sri Rajeev Gandhi ji, he understand the Vision - Father of Nation and put sheer effort for Local Self Government which was already define in Our Constitution Article 40 . In 1993 finally action has been taken to give tribute to Gandhi Ji therefore 73rd Amendment Act came in to realization through which 11th Schedule for Panchaytiraj include in Constitution - Which explain about 29 major Function of Pachayat in detail. Library establishment is one of the major function mention there but no one focus about.

Surprise is that Country Policy Maker, Politician, Social Activist and Village Panchayat, no one realize the importance of  Library at Panchayat, which could be major Information and Guidance Center for Rural Youth and Villagers. More important, it will help to develop reading hobbit and change the thought process of villagers, definition of Literacy also be change, to provoked rational thought in Rural Youth. From here Govt. can deliver all information related New Change in Laws and Programs in terms Rural Development and People Empowerment. Lawyers, Educationist, Psychologist should associate here to give solution in daily life to villagers. Library can be center for Vocational Courses for Youth to organize Sports Activity and many more things.......  Even it will help to train member of Gram Sabha.

At present 2.4 lac's Gram Panchayat are acting cover 6.3 lac village's therefore By Establishing Library Govt. can generate approx 10 lac's Employment at Village level cause to manage Library there are 5 key people require.

To develop World Class Library at Panchayat level, Ministry of Panchayatiraj Rural Development, Sports & Youth Welfare and Information Technology can give major fund contribution, for better management n establishment, also we can invite Corporate NGO's .

Library could also establish through the help of NGO and Self help Group by the help of Volunteer's like Retired Govt. Teachers and Officials. To Run Library we could acquire place at Pachayat Bhawan of village or Primary Schools with the coordination of Gram Sabha.

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Friday, 2 November 2012

Weapon Licencing Law for Citizen have to be modified !

Now Days, Its very common to here or read in news about suicide or shoot out in house or out side due to very small Argument and Psycho-societal pressure. An incident of South West Distt. Delhi where Father n Son came out to eat Ice cream in near by market, An Youth group start arguing with them sudden one Guy make fire by pistol, Son got dead on the spot and Father injured too. We could Never forgot Jesica Lal murder in 1999 just for not serving wine first, An Youth belongs from high profile family of Hariyana Shoot her. Country Opposition Party master mind, key player of NDA Government, Pramod Mahajan shoot out by his brother licence Riwalver in 2005 in mental pressure etc many incident are happen due frustration. These mental pressure are related to youth regarding study, better marks in collage, better life style, beautiful Girl friend, Good job, After marriage better education for child, Luxurious House for wife, Social recognition, dream for international tour etc and to make sure all these things happen in short span of time, they are ready to go any way, these pressure make them short tempered, frustrated from life and society. They become isolated and get away from family / friends, due to loneliness they run towards suicide, for this they shoot himself coz it resultant with out pain in second.

Licensed weapon become status symbol for today Youth, they prefer outing with these but miss use of these weapons increased due to pressure on social life. Now days an small argument resultant in death cause it insure easy death with out any pain in second.......... So The Arms Act 1956 and 1986  must be modified and made strict for Citizen to get weapon licence for self defense/safety cause many of them applied just for status symbol not for safety, many of them i know they do not have any threat or raivallary but they are very keen to take or buy weapons. As easy licencing become one of the major reason for short tempered death act or suicide cause it insure easy death with out any pain in second.. So it must be Control to reduce suicide cases.

Most of high profile suicide happen with licensed weapon So IPC Act 1860 also be modified in terms of keeping and use Weapons.

Humble request to all my Bureaucrat friends - IAS/ IPS  be careful before giving final consideration for weapon licence, there must be insure security reason not the status and Political leaders kindly stop Nepotism for Weapon licence .

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Friday, 21 September 2012

Finally Action has been taken in favor of FDI in Retail !

Yesterday BHARAT BAND was just Political Drama and fully supported by Middle mans Traders, Nothing Else . All regional party are only trying to create environment in favor of his party in comming Lok Sabh Election 2014 and few of them trying to creat pressure on Central Govt to Grab fund. If we go in history, will find the action taken by Manmohan ji in 1991 in favor of Libralization, was also continue by the Previous NDA Govt . Result are billion's of job created in Software, Telicom,  Automobile, Banking and Insurance, Many Public Sector units shows tremendous growth because of competition created by Privete Co, Millions of SMEs came in to realization by job source through MNCs. Out put of these development, 8 metro of country shining well now days. These metro will shine more once FDI in retail properly implement cause it will help to stop movement of Labor and Youth towards metros, Slums in metro will decrease.

Now time for 2 tier cities and Rural India, for which FDI in retail could play crucial role in development, I am dam sure this will not effect Kiraana stores cause MNCs are niether going to open store in every Chauraha, Tiraha or Nukkad of the city's / town nor every person will go to buy daily basis small requirement from MNCs stores. Students,Batchlors and Rikshawpuller requirement are very small, generally they prefer credit so they will always prefer to buy goods from Nukkad Kiraana store. FDI in retail will create compitition in market result of that consumer get better deal and local Kirana Store will improve the service and quality in fear of survival in market.

The existing FDI policy of the country ensure maximum benefit to our Govt, Citizens and Corporate houses,  result we are seeing in different sectors. In addition of this FDI in Retail policy have many things in favor of Farmers like - MNCs will not allowed to open store in less then 10 lac population cities, 100 % manufacturing should be insure inside the country, of which 30% will be out source to Framers and 50 % fund raise from FDI will be use in Rural Infrastructure Development. According to Population condition, only 80 cities having population 10 lac above, in which 8 metros - having population more then 5 millions retails business are in boom there fore FDI in retail will not effect Kiraana stores in near future even result of that Middle Man role will end and Former will get better price from the buyer.

MNCs will promote Contract forming also introduce New forming technology, Supply chain management will improve, wastage of vegetables and goods will control etc. Downfall of Agriculture contribution in GDP will increase, better return in forming will motivate former even youths participation in Agribusiness increase. Job out sourcing by Retail MNC's will promote entrepreneurship in forming sector by which most of traders will get benefited - those are today shouting slogan against govt, lifestyle of rural India will improve. Overall millions of job will shape the life of Rural Youth and Infrastructure and real development of  country will realize.


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Thursday, 13 September 2012

Still Dowry is Major factor in Upper Class Marriage !

We are living in 21st century, Our country 60 % population are Youth age below 45, literacy level reach 80% which was just 26% at the time of Independence . Raja Ram Mohan Rai country well know social reformist were taken initiative against Child Marriage 1826 but still socially and economically backward class population bound to marry his/her child in below the age 14 . Payment of dowry prohibited by Dowry Protection Law 1961, supported by section 304b and 498a of IPC Act, in spite that Dowry are still major factor in deciding marriage of upper class society due to status of bride family.

Most of the country literate population following the trend of western culture - our dressing sense changed, Dhoti- Kurta replace by Jeans, Cargo & T- shirts, using Cars for local travel in place Bullock Cart , Mobile become basic need of people make communication easy today, consumption of liquor & bear increase in youth , parents pushing children to be part glamours world like Modelling, Acting, Singing, Anchoring, DJ, Radio Jockey etc, Night dance party and Pub culture become the part of daily routine . Question is that if our society freely adopting western culture then why not ready to remove the dowry system from the country? Why Honor Killing supporting by so called thekedar of society? Why we not follow western culture in this issues? there is no "cast creed" boundation in marriage, youths are free to choose Grooms AND in place of dowry they give & take only Roses and Chocklates . Why our society always adopt double stander ?

Dowry is ancient tradition of our country, people believes that giving & receiving dowry reflects the status AND help to achieve different hierarchy in society but it was also related to Self satisfaction, Willingness and Happiness of Grooms family. Now days it become the condition with the list of Goods for Marriage by Brides family , this condition should be in terms of high qualification, better understanding about family values & society, self dependency etc, Which help To increase Women literacy of country - very important for Nurturing and Grooming for next generation, To decrease the death ratio due to dowry, To increase the strong bonding and happiness b/w newly couple, these are important requisite for peaceful life .

Therefore Dowry should be in form of Willingness from Grooms family, not condition with the list of Goods from the Brides family.

To irredicate dowry give freedom to youth to choose Groom or Bride as per his/ her preference.

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Wednesday, 2 May 2012

Your thought can lead you to Success

Thought of the person may help to reach at towering height may it kept person in corner of crowd cause of bad activity . Positive thought attract positive energy which make good things in life and Negative thought push person toward bad act . Some times positive thought require sheer determination and risk taking ability to made great achievement in life .

RATNESH MISHRAThe Youth mob. 08808503100 www.theindianyouths.blogspots.comTEA TOWN CAFE - "Sup For The Soul"An place to stimulate mind and body with the new flavour of tea on the basis of ocassion,season,time and environment.

Sunday, 21 November 2010

क्या आप ने कभी सोचा की, स्वतंत्रता से वास्तव में हमे क्या मिला ? क्या सही मायने में हम स्वतंत्रता से प्राप्त अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे है ?

आज जब की हम आज़ादी की ६४वि सालगिरा माना रहे है ऐसे में kuchh महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा करना आवश्यक है, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की उस व्यवस्था के प्रति सच्ची श्रधांजलि होगी जिसके हम भागिदार है, और usaki निष्पक्षता सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है क्यों की किसी देश की आत्मा उस देश के नागरिको में बसती है अतः अपनी संवैधानिक व्यवस्था के प्रति हम जीतनी अधिक शुद्धता सुनिश्चित कर पायेंगे उतनी ही शुद्धता आर तीब्रता के साथ इस व्यवस्था का सञ्चालन भी सुनिश्चित ho paayega , यह संभव तभी हो पायेगा जब देश का प्रतेक नागरिक संविधान के मूल उधेश्य को आत्मसात करे और स्वतंत्रता से प्राप्त मूल अधिकारों का सही उपयोग सुनिश्चित हो ।

चर्चा को आगे बढ़ने से पहले हम देश के इतिहास को संक्षिप्त में समझाने की कोशिश करेगे, जैसा की हम सब जानते है की लांखो नवजवानों, महिलाओं, बुजुर्गो की कुर्बानी का परिणाम है की आज हम २०० साल के ब्रिटिश हुकूमत से १५ august १९४७ को आजाद हो पायें। देश की आजादी का तो हम सब को गर्व है परन्तु हम उन शहीदों की शहादत को hum भूल गएँ है जिसके लिए unhone लड़ाई । british शासन से छुटकारा हम क्यों चाहते थे? आजादी से मुख्यरूप से हमे क्या मिला ? स्वतंत्रता का मूल अर्थ क्या है ? क्या वास्तव में हम स्वतंत्रता से प्राप्त अपने अधिकारों का प्रयोग सही रूप में कर पा रहे है ? भारतीय संविधान द्वारा नागरिको को दिया गया सबसे महत्वपूर्ण अधिकार क्या है ? आज हमारी शक्शार्ता ७५% से अधिक हो चुकी है फिर भी इन प्रश्नों पर न कोई सोचता है न ही आवाज उठता है , इस लेख के माध्यम से स्वतंत्रता से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण अधिकार के बारे में प्रकाश डालेंगे जो हमे मुग़ल और ब्रिटिश काल में प्राप्त नहीं था, जैसे की अपने राजा को चुनने का अधिकार, वोट का अधिकार


वोट का अधिकार, एकलौता अधिकार है जो सही मायना में हमे स्वतंत्र होने का यह्सास करता है इसे छोड़ दे तो हम आज भी उसी व्यवस्था व् परंपरा के भागिदार है जैसे मुग़ल व् ब्रिटिश काल के दौरान थे, केवल उसका संचालन समय व् परिस्थिति के अनुसार एक हाथ से दुसरे हाथ में भटक रही है और यह भी तभी संभव हो पाया जब हमे वोट का अधिकार मिला। इस तरह हम समझ सकते है की वोट का अधिकार हमारे हाथ में एक ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से हम अपने क्षेत्र, राज्य, देश के विकाश को सुनिश्चित करवा सकते है और जो जनता के प्रतिनिधि इसके विपरीत सोच रखते है उनका परिवर्तन भी सुनिश्चित कर सकते है। जैसे की वोट के अधिकार की उपयोगिता बिना चुनाव के संभव नहीं है वैसे ही बिना उपयुक्त प्रतिनिधि के चुने क्षेत्र का विकाश संभव नहीं है । गाँधी जी हमेशा कान्हा करते थे की किसी देश का विकाश तभी संभव है जब गाँव का विकाश सुनिश्चित हो पायेगा, अर्थार्थ जब गाँव में पानी, विजली, स्वस्थ्य, सड़क व् रोजगार की सुविधाए सुचार रूप से कार्य करे तभी किसी देश का सम्पूर्ण विकाश सुनिश्चित होगा, यही कारण है की पंचायतीराज व्यवस्था आज गाँव में मौलिक सिविधाये उपलब्ध कराने का मुख्या केंद्र बन गया है । इस प्रकार पंचायत का मुखिया व् विधायक किसी भी क्षेत्र के विकाश की मुक्य कड़ी है जहाँ से किसी भी देश के विकाश का वास्तविक पैमाना तय होता है, अर्थार्थ जब हम अपना मुखिया व् विधायक ही गलत चुन लेंगे तो क्षेत्र का विकाश अशंभव है इस लिए वोट देने से पहले प्रत्यासी के पृष्ठभूमि, शिक्षा, उपलब्धियों को ध्यान में रखना जरुरी है। अफसोश तो इस बात का है की जैसे जैसे हमारी शक्शार्ता बढ़ रही है वैसे ही वोट करने की रूचि कम होती जा रही है शिक्षित सिविल सोसाइटी के लोग वोट के दिन घर में आराम फरमा रहे होते है यही कारण है की हम उपयुक्त प्रतिनिधि नहीं चुन पाते है भ्रष्टाचार बढ़ने का एक कारन ये भी है जिसके लिया हम सभी जिमेदार है परन्तु हम अपनी गलतियों को सिख नहीं लेते है आरोप और पर लगाते है

अतः मई आप लोगो से इस लेख के माध्यम से अपना वोट सुनिश्चित करने का अनुरोध करता हु और वोट ऐसे व्यक्ति को दे जो हमारी सुरक्षा सुनिश्चित कर पाए , अपराध व् गुंडागर्दी से मुक्त करा पाए, जो हमारे क्षेत्र का विकाश सुनिश्चित करा पाए, जो सदन में पूरी दृढ़ता व् आत्म विश्वाश के साथ अपने बातो व् समस्याओ को रख सके.