देश के उच्च सदन मे महिलाओ के विवाह के संदर्भ मे शादी के लिए उम्र सीमा को निर्धारित करने का कानून पास हुआ जिसके अनुसार अब लडकियो की शादियाँ 21 वर्ष से पहले कानूनन अवैध मानी जाएगी। मेरे समझ से आज के समय मे ऐसे कानून का कोई औचित्य ही नही है क्योकि शादी विवाह एक व्यक्तिगत, पारिवारिक व विशेषकर सामाजिक विषय है जो कि परिवार की सामाजिक आर्थिक व परम्परागत व्यवस्थाओ पर निर्भर करता है। इसके भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि विवाह जैसी सामाजिक परंपरा का प्रावधान मनुष्य जीवन मे होने वाली शारिरीक विकास व प्राकृतिक आवश्यकता के अनुरूप किया गया है जो कि सनातन धर्म का एक प्रमुख संस्कार भी है और भारत जैसा देश, जो विश्व मे सबसे अधिक विभिन्नताओ भाषाओ व सांस्कृतिक परम्पराओ से भरा देश है जहाँ हर दस किलोमीटर पर बोली भाषा, बात व्यवहार बदल जाता जहाँ वैवाहिक रिश्ते दादा - दादी, बुआ- फूफा व अन्य सगे - संबंधियो, गुरुजनो के आशीर्वाद, ग्रह नक्षत्रो, कुटुंब के रीति-रिवाजो, परम्पराओ और भावनाओ से तय होता है वहाँ पर उम्र सीमा का बंधन सामाजिक संबंधो मे कवल असहजता ही उत्पन्न करेगा न कि कोई सुगमता होगी लोगो को इससे।
मेरा मानना है कि जब पहले से ही महिलाओ के लिए 18 वर्ष व पुरुषो के लिए 21 वर्ष की सीमा विवाह के लिए निर्धारित है और आजकल तो लडकियो की शादियाँ चाहे गरीब हो या अमीर सबके घर, समाज मे सामान्यतः देर से ही हो रही तो ऐसे मे समाज को कानून के बंधन मे बाधने की कोई आवश्यकता नही है ऐसे कानून का लोगो लाभ तो कुछ नही होगा बल्कि दुष्प्रभाव यह होगा कि समाज के दुष्टप्रवृत्ति के लोग समाज मे कई अन्य तरह की समस्याए पैदा करेगे इससे सभ्य व कमजोर लोगो के लिए जीवन मे असहजता ही उत्पन्न होगा। निस्संदेह आज भी समाज मे 5-10% ऐसे परिवार है जो अपनी लड़की की शादी 18-20 साल से कम उम्र मे कर रहे है लेकिन इसके पीछे उनकी अपनी परिवारिक सामाजिक व आर्थिक मजबूरियाँ भी है अन्यथा आज तो लगभग हर परिवार मे चाहे वो अमीर है या गरीब लड़की की शादी 22-23 साल मे और लड़के की शादी 25-27 साल मे ही हो रहा है तो ऐसे मे जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है वो अपने आप पुरा हो रहा है। रही बात लडकिया के परिपक्वता की तो उन्हे ईश्वर व प्रकृति का ऐसा वरदान है कि वे लडको से कम ऊम्र मे ज्यादा समझदार व परिपक्व हो जाती है बाकि वास्तविक परिपक्वता तो मनुष्य जीवन मे अनुभव व समय से ही आती है इसके लिए किसी कानून की आवश्यक नही है।।
वैसे अत्यधिक कानून से समाज मे असंतुष्टि व विषमताए ही पैदा होती है लोग अपनी स्वतन्त्रता को बाधित होने पर उसे तोडने का प्रयास करते है जिससे कानून व्यवस्थाओ पर असर पडता है। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को इस कानून को लागू करने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए। ।
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