Thursday, 18 July 2024

किसी व्यक्ति का सोच और संस्कार उसे वास्तविक रूप से अमीर बनाता है न की ब्रांडेड पहनावा और लग्जरी गाड़ी

आज कल सोशल मीडिया पर अनंत अंबानी और राधिका के विवाह के चर्चे से भरा पड़ा है, हो भी क्यों न भारत के सबसे अमीर व्यक्ति के लड़के का विवाह हुआ है जो कई महीनों तक चला मेरी जानकारी में तो पूरे विश्व में अब तक किसी परिवार ने इस तरह इतने लंबे समय तक चलने वाले विवाह कार्यक्रम का आयोजन अंबानी परिवार से पहले तो नही ही किया था .........

विश्व का कोई जाना माना व्यक्ति नहीं बचा जो अनंत राधिका की शादी का हिस्सा न बना हो, देश का कोई भी ऐसा राजनीतिक परिवार, खिलाड़ी, व्यापारी, फिल्मी कलाकार या साधु संत नहीं बचा जो अंबानी परिवार के इस भव्य कार्यक्रम में न शामिल हुआ हो जो लोग इतने भव्य कार्यक्रम का हिस्सा बने वे अपने को सौभाग्यशाली समझ रहे है और जो किसी वजह से नहीं शामिल हो पाए वो स्वयं का अपमान समझ रहें होंगे, पता चला की आज के सबसे युवा संत हनुमान जी के उपासक बागेश्वर बाबा ऑस्ट्रेलिया में कथा करने गए थे उन्हें मुकेश और नीता अंबानी जी ने व्यक्तिगत चार्टर प्लेन भेजकर बुलाया अनंत राधिका को आर्शीवाद देने के लिए......... 

विवाह कार्यक्रम में जो पैसे खर्च हुए उसकी चर्चा तो हर गली कूचे सड़क पर रिक्शा चलाने वाले से लेकर ठेले पर सब्जी बेचने वाले और चाय की दुकानों पर चल रही है, खेत में धान की रोपाई कर रही महिला हो या रसोई में रोटी बनाने वाली सब जगह आजकल एक यही चर्चा चल रही है मुकेश अंबानी के बेटे की शादी में बहुत खर्च हुए ......... 
ज्यादातर लोगों  ने यह तो नोटिस कर लिया की जियो का रिचार्ज बढ़ाकर अंबानी ने शादी के खर्चे वसूल लिए लेकिन एयरटेल वोडाफोन ने भी उतना ही टैरिफ प्लान अपने उपभोक्ताओं का बढ़ा दिया यह बात किसी ने नोटिस नही किया, दुसरी ओर अंबानी परिवार ने इतने लंबे समय तक चले कार्यक्रम में हजारों करोड़ खर्च खरने के साथ साथ भारतीय संस्कृति परंपरा, खान पान और पहनावे से कोई समझौता नहीं किया ...... इस बात को बहुत ही कम लोगो ने समझने की कोशिश किया होगा ....... 

देश के सबसे प्रतिष्ठित परिवार के इस कार्यक्रम से आज के युवा पीढ़ी को सीखने के लिए जो सबसे बड़ी बात रही वह यह की अनन्त के बड़े भाई आकाश जो जियो के CEO है उनकी पत्नी श्लोका के संस्कार पहनावे और व्यवहार पूरे कार्यक्रम के दौरान एकदम सामान्य दिखाई दे रहे थे कोई दिखावा नहीं कोई बनावटीपन नही, श्लोका के दो बच्चे है बड़ा पृथ्वी जो चार साल का है लोगो का अभिवादन "जय श्री कृष्णा" बोलकर करता है यहां अपने आस पास के साधारण परिवार और सामान्य स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता Good Morning और Hello करने को सिखाते है यदि उनका बच्चा नमस्ते या प्रणाम कर ले तो अपनी बेज्जती समझते है ...... घर में सैकड़ों हेल्पर होने के बावजूद श्लोका अपने छोटे बच्चे को लगातार अपने गोद में ही लेकर नजर आ रही थी, सामान्य परिवारों में कोई महिला यदि पचास हजार की नौकरी कर रही हो या कोई सरकारी पद पर हो या उसका पति अच्छा व्यापार करता हो या अधिकारी हो तो एक पल भी वो अपने बच्चे को अपनी गोदी में नही उठाएगी, उनका ध्यान केवल लोगो को अपने महंगे कपड़े पर्स और मोबाइल दिखाने पर ही केंद्रित रहेगा ......... मैंने तो यहां तक देखा है कि कुछ अधिकारी गण की पत्नियां तो अपने बच्चों की हगिस भी सरकारी हेल्पर से साफ करवाती है क्यों कि उनको बदबू आती है।
अनंत की बहन ईशा अंबानी पीरामल ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक अजय पीरामल की बहु और आनंद पीरामल की पत्नी है जो पीरामल रियल एस्टेट और पीरामल फाइनेंस के CEO है आनंद पीरामल पूरे कार्यक्रम के दौरान इतने साधारण और समान्य दिखाई दे रहे थे कोई दिखावा नहीं कोई तामझाम नही और हमारे छोटे शहरों में एक साधारण सरकारी अधिकारी, व्यापारी या नेता के बच्चे ऐसा शो करते है जैसे उनके शहर में उनसे बडा व ताकतवर कोई और है ही नही ......

मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी जो आजकल भले ही आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे है लेकिन फिर भी उनकी व्यक्तिगत हैसीयत हजार करोड़ से उपर ही होगी लेकिन इनके बड़े बेटे अनमोल अंबानी जो आजकल Reliance Caipital के CEO है लेकिन शादी में ऐसे शामिल हुए जैसे कोई साधारण परिवार का लड़का हो जब कि अनमोल अंबानी अपनी बौद्धिक क्षमता और चतुराई से अनिल अंबानी की डूबी हुई कंपनीज को अब सवार रहे है जिसके परिणाम स्वरूप रिलायंस कैपिटल और रिलायंस पॉवर अब मंदी से उबर रही है 

मुझे तो लगता है अंबानी परिवार के इस विवाह समारोह से यदि कुछ सीखने लायक है तो वह है भारतीय संस्कार परंपरा का निर्वहन, मेहमानों व साधु संतो का सम्मान कैसे किया जाता है यह सीखना चाहिए क्यों की कोई व्यक्ति वास्त्विक अमीर दिखावे से नही संस्कारों से होता है परंपराओं के निर्वहन से होता है .......
इसका एक बडा उदाहरण यह देखिए हजारों विदेशों मेहमान शादी में शामिल हुए, पूरे कार्यक्रम के दौरान हजारों प्रकार के व्यंजन परोसे गए लेकिन मांसाहार और शराब को पूर्णरूप से वर्जित किया गया था..... 

परिवार का प्रत्येक सदस्य भारतीय परिधानों को ही पहना था महिलाओं के पहनावे में शरीर के अंगो का कोई प्रदर्शन नहीं था यहां सामान्य शादियों में दिसंबर और जनवरी के महीनों में भी महिलाएं कम से कम और भडकीले परिधानों को ही धारण करना पसंद करती है जिससे लोगो को पता चले की वो बहुत मॉडर्न और अमीर परिवार से है नही तो लोग गवार समझेंगे ........ 
पूरे शादी कार्यक्रम में ज्यादातर मौके पर केवल धार्मिक और सभ्य शब्दों वाले गाने ही बज रहे थे फूहड़ गानों का प्रयोग न के बराबर ही सुनाई दिया..... हमारे आपके सामान्य परिवारों में जब तक "शीला की जवानी" अंगूरी बदन, जलेबी बाई.... जैसे फूहड़ से फूहड़ शब्दों वाले भोजपुरी गानों पर घर की महिलाएं समाज के पुरुषों के सामने सड़क पर डीजे वाले के साथ नाचेंगी नहीं तब तक उनको लगेगा की कही लोग उन्हें गवार न समझ ले........

मुकेश और नीता अंबानी ने अनंत राधिका के भव्य विवाह समारोह से पूरे भारतीय समाज को यह संदेश दिया है की चाहें आप कितने भी अमीर क्यों न हो जाएं अमीरी गरीबी से व्यवहार पर फर्क नहीं पढ़ना चाहिए, संस्कारों और परंपराओं का सम्मान सर्वोपरी होना चाहिए। दोनो ने देश को बताया की आप गरीब है या अमीर, आपके सोच और संस्कार की श्रेष्ठता आपके व्यवहार में दिखाई देना चाहिए क्यों कि अमीर व्यक्ति के सोच और संस्कार यदि नीच है तो वह भी व्यवहार में दिख जाता है इसी प्रकार गरीब व्यक्ती यदि उच्च सोच और संस्कार का है तो वह भी उसके भाषा और व्यवहार में दिख जाता है। मतलब यह अमीरी के साथ साथ ऊंची सोच और संस्कार भी उच्च होने चाहिए नही तो केवल ब्रांडेड पहनावे और लग्जरी गाड़ी दिखाने से कोई अमीर नही होता।

यदि कोई व्यक्ति वास्तव में किसी अमीर परिवार से है तो उसके सोच और संस्कार भी उच्च होने ही चाहिए लेकिन यह सब घर के आध्यात्मिक माहौल के बिना संभव नही है जिस घर परिवार का आध्यात्मिक माहौल और खान पान उच्च कोटि का होगा वहा संस्कार और सोच भी उच्च ही होंगे जो अंबानी परिवार ने देश को प्रमाणित रूप से दिखा दिया।
दुर्भाग्यवश आजकल तो ज्यादातर घरों का खान पान ही  एकदम से बिगड़ गया है अच्छे अच्छे ब्राह्मण घरों के लड़के लड़कियां आजकल मांस  मदिरा और शबाब के शौकीन हो गए है, नेटफ्लिक्स पर थर्ड कैटेगरी के फिल्म देखने में व्यस्त है तो अध्यात्म और संस्कार कहा से आएगा....... 
अंबानी परिवार में शायद ही कोई शराब मांसाहार और शबाब का शौकिन होगा आध्यात्मिकता तो इतनी है की बिना भगवान को भोग लगाए घर में कोई भोजन भी नही ग्रहण करता है। 
हमारे साधु संत और वेद पुराण भी यही कहते है जिस परिवार में भागवत प्रेम होगा वही वास्त्विक रूप में संस्कार बसेगा अन्यथा केवल दिखावा के सिवाय और कुछ नही।

अफसोस यह है की आज की दुनिया केवल दिखावे की दुनियां है जितना अधिक दिखवा उतना अधिक वाहवाही और सम्मान।

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 29 April 2024

दो विचारधारा की लड़ाई में लोकसभा चुनाव २०२४ का परिणाम बीजेपी के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है

देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व लोकसभा चुनाव की चर्चा आजकाल हर गली मोहल्लों, नुक्कड़ों, गांव के चौपालों, चाय की गुमटियों और पार्कों में सुबह के सैर सपाटो से लेकर शाम के खाने के हाजमे के समय चहल कदमी करते हुए हर जुबान पर चल रहीं है। अभी तक दो चरणों के चुनाव हों चुके है विपक्षी पार्टियां पहले दो चरणों में हुए मतदान प्रतिशत को २०१९ की अपेक्षा कुछ कम  होने पर अपने विजय रथ को आगे बढ़ता देख रहे हैं लेकिन वह यह भूल जाते है की २००४, २००९ और २०१४ का समय कुछ और हुआ करता था तब सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया का बोलबाला न के बराबर था और आज सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया की पहुंच जन जन घर घर तक युवा हो या घर में खाना पका रही महिला या बुर्जुग, हर हाथ में एंड्रॉयड मोबाइल, हर वर्ग के मतदाताओं को इतना जागरुक बना दिया है की अब किसी परिवार या गांव को प्रत्याशियों द्वारा अपनी झुठी बातों में फसाना बहुत कठिन हो गया है आज प्रत्येक मतदाता गूगल पर केवल एक वायस कमांड देकर प्रत्याशी और उनके नेता साथ में पूर्व के जनप्रतिनिधियों का सारा कच्चा चिट्ठा पता कर  प्रत्यासियों द्वारा खेल जा रहें सह मात के खेल को अब अच्छे से समझते है। आज प्रत्येक जागरूक मतदाता क्षेत्रीय उम्मीदवारों के व्यक्तिव से लेकर प्रधानमत्री पद तक के उम्मीदवार की चर्चा कर रहा है की कौन सबसे उपयुक्त व्यक्ति होगा क्षेत्र व देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए लेकिन इन सभी चर्चाओं के बीच इस बार लगभग ३० - ४० वर्षो बाद लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात यह देखने को मिल रही है की जनता - मतदाता, क्षेत्रवाद जातिवाद से ऊपर उठकर देशहित में राष्ट्र की गरिमा, भारतीय संस्कृति सभ्यता के संरक्षण, आर्थिक विकास, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को मतदान के लिए सर्वोपरि मान रहा है। यहीं कारण है की क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व अब धीरे धीरे कमजोर होता दिख रहा है। जो पार्टियां पिछले कई चुनावों से जातीय समीकरण बनाकर कई दशक से राष्ट्रीय राजनीत में अपना वर्चस्व बनाए हुए थे और केंद्रीय सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बाधा पहुंचाते थे जिनके परिणाम स्वरूप केंद्रीय सरकार को कई पंच वर्षीय में सही नेतृत्व न मिलने से देश आर्थिक रूप कमजोर होता चला गया लेकिन पिछले १५ सालों में युवा मतदाताओ की संख्या में हुई लगभग ४०% तक की वृद्धि से, सुझबुझ के साथ मतदान करने वालो की संख्या बढ़ गई हैं जिसकी वजह से अब क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद कमजोर हो रहा है जो एक मजबूत राष्ट्र के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इन बदलाव के कारण अब जनता केवल यह देख रही है की देश की मजबूती किस हाथ में सुनिश्चित हो सकतीं है। 
चूंकि देश की डेमोग्राफी पिछले २० वर्षो में इतनी बदल गई की अब चुनाव परिणाम युवाओं, महिलाओं और दो समुदायों के वोट की संख्या पर निर्भर हो गया जिसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को गुमराह करने के लिए २०२४ के आम चुनाव को क्षेत्रवाद व जातिवाद से अलग हटकर चुनाव का विषय दो समुदायों  की विचारधारा पर केंद्रित कर दिया है। जिससे वोटों का धुव्रीकरण किया जा सके। जहां ....
एक विचारधारा वर्तमान सत्ताधारी गठबंधन समर्थित है जो राष्ट्रीय अस्मिता ब सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुऐ हजारों वर्षों की गुलामी के धब्बों को मिटाने के संकल्प के साथ भारत की प्राचीन पहचान और गरिमा को आर्थिक प्रगति के साथ पुनः वापस लौटाने और भारत को विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्थ बनाने के लिए जनता से मतदान करने की बात कर रही है जिससे सबका साथ सबके विकास के नारे को सच साबित करते हुए भारत को २०४७ तक आज़ादी के सौवीं वर्षगांठ पर विकसित राष्ट्र के रुप में विश्व पटल पर मान्यता दिलाकर विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बना सके। 
और दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का गठबंधन अपने पार्टी की अस्मिता की रक्षा की लडाई में देश के एक समुदाय को अपना कोर मतदाता मानते हुए उनको गुमराह कर केवल उनके वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास कर अधिक से अधिक सीट जितना चाहता है जिससे पारिवारिक सत्ता की चाभी उनके हाथ में पुनः वापस लौट सके और देश की आज़ादी के समय से एक समुदाय विशेष के लिए निर्धारीत लक्ष्य को परीणाम तक पहुंचा सके इसके लिए मतदाताओं को लोक लुभावने वायदे किए जा रहे है हो सकता है इनके लुभावने वादे से प्रभावित होकर कुछ साधारण श्रेणी के मतदाता पैसे के लालच और क्षेत्रीय नेताओ के नाम पर वोट कर दे जिससे इनके पार्टी का वजूद तो बना रहेगा लेकिन सत्ता वापसी की संभावना बहुत ही कम ही नजर आ रही है।

आइए अब हम समझते है कि २०२४ का लोकसभा चुनाव परिणाम बीजेपी के पक्ष में कैसे संभव दिखाई दे रहा है। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में दो चरणों में लगभग प्रत्येक राज्यों के ५ से १५ सीटों पर मतदान हो चुका है जिसमे कई राज्यों में २०१९ चुनाव की अपेक्षा मतदान प्रतिशत कम रहा जिसमे  मुख्यरुप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य है जहां  पिछले वर्ष की तुलना में लगभग २% मतदान कम हुआ है लेकिन कई राज्यों में मतदान प्रतिशत अधिक भी हुआ जैसे त्रिपुरा, असम, बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक। जिसका पिछले चुनाव परिणामों के आधार पर तुलना करते हुए विपक्षी पार्टियां और उनके समर्थक अनुमान लगा रहे है की इसका लाभ विपक्ष को मिलेगा। हो सकता है कुछ सीटों पर कम वोटिंग प्रतिशत का कुछ लाभ विपक्षी पार्टियों को मिल जाए लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकलता की विपक्ष वर्तमान सरकार को बदलने में सफल हो पाएगा। जिसके तीन कारण है पहला यह कि २०२४ का चुनाव पिछले चुनावों से भिन्न है यह चुनाव दो विचार धाराओं और राष्ट्रीय अस्मिता के मुद्दे पर हो रहा है न कि क्षेत्रवाद और जातिवाद पर, दूसरा कारण यह की वर्तमान चुनाव में युवा ब महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे जो यह अच्छी तरह समझते है की देश किस हाथ में सुरक्षित रहेगा और तीसरा कारण है विपक्षी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का दावेदार कौन है यह अभी तक निश्चित ही नहीं हो पाया है कांग्रेस के तरफ से कोई  हो ही नही सकता क्यों कि कांग्रेस अभी पार्टी के अस्तित्व की रक्षा में उलझा है जो केवल २३५ सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि पूर्ण बहुमत के लिए कम से कम २७५ सीटों की आवश्यकता है और इनके सहयोगियों में भी मोदी जी जैसा कोई बेदाग चेहरा है कोई नही जिसे जनता प्रधानमन्त्री पद के लिए पसंद करे। इस लिए जनता स्पष्ट रूप से यह समझ रही है की प्रधनमंत्री पद का श्रेष्ठ दावेदार कौन है और  कौन सी पार्टी सरकार बनाने में समर्थ है। वर्तमान समय में बच्चा हो या जवान, महिला हो या बुर्जुग सबके दिमाग में केवल एक ही चेहरा है प्रधानमत्री पद का वह है नरेंद्र मोदी जिसका चुनाव चिन्ह है कमल निशान और जनता प्रधानमन्त्री चुनने के लिए वोट कर रही है तो उसको पहला चेहरा मोदी ही नजर आता है। 

अब २०१९ चुनाव के चुनाव परिणाम और देश के विभिन्न राज्यों में हुए मतदान प्रतिशत को आधार मानते हुए आकलन करते है की सत्ता पक्ष और विपक्ष कौन बढ़त बना रहा है। 
शुरुवात करते है देश के मुकुट राज्य जम्मू कश्मीर से, २०१९ के चुनाव में यहां ३ सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और तीन ही सीटों पर विपक्ष को जब कि २०१९ की सरकार बनने के बाद पहला निर्णय मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा ३७० हटाने का बड़ा निर्णय लिया था और पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों नेताओ की कमर तोड़कर बहुत सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया सारे पत्थरबाज या तो घर में घुस गए या किसी काम धंधे में लग गए है पर्यटकों की राज्य में वृद्धि से रोजगार और आय के साधन में वृद्धि हुई है जिससे वहा के लोग अब बहुत खुश है और शान्ति महसूस कर रहे है इसके परिणाम स्वरूप बीजेपी अपनी तीन सीट बरकार रखते हुए हो सकता है एक दो सीट अधिक जीत ले यानी यहां बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम दिखाई दे रहा है हो सकता है एक दो सीट का फायदा ही मिल जाए। 
अब बात करते है हिमाचल, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की 
हिमाचल में पिछली बार राज्य में बीजेपी सरकार थी और बीजेपी ने लोकसभा की चारो सीटें जीती थी अब राज्य सरकार बदल गईं है लेकिन कांग्रेस पार्टी के क्षेत्रीय नेताओ में वर्चस्व की लड़ाई और हिमाचल में विकास कार्यों की राह डगमगाने से जनता सीख लेते हुए सम्भवतः फिर से चारो सीटें बीजेपी कोटे में डाल सकती यदि बहुत अंतर आया भी तो एक या दो सीट का इससे ज्यादा नहीं जिसकी सम्भावना कम ही है तो यहां भी बीजेपी को बहुत नुकसान नहीं हो रहा हैं। 
पंजाब में बीजेपी को पिछली बार केवल दो ही सीट मिले थी और कांग्रेस को ९ सीटें क्यों की वहा तब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर के सम्मान का सवाल था लेकिन अब पंजाब में आप की सरकार है और मुख्यमंत्री भगवंत मान जिनका चरित्र बहुत अच्छा नही है और कार्यशैली भी जनता को समझ नही आ रही है फिर भी आप को पिछली बार की अपेक्षा कम से कम २- ३ सीट का लाभ मिल सकता है यानी आप यहां ५- ६ सीट जीत सकती है। कैप्टन अमरिंदर अब यहां बीजेपी में शामिल हो चुके है तो कांग्रेस को पंजाब में सबसे ज्यादा लगभग ५-६ सीटों का नुकसान होगा इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा जिससे बीजेपी को कम से कम २ सीटों का फायदा हो सकता है। इस तरह सम्भवतः इस बार बीजेपी यहां ३-५ सीट जीत सकती है। 
हरियाणा में पिछली बार बीजेपी दस की दसों सीटें जीती थी लेकिन इस बार २-३ सीटों का नुकसान हो सकता है और कांग्रेस अपना खाता खोल लेगी राज्य में और हो सकता है एक सीट हरियाणा जनहित पार्टी के खाते में चला जाय।
अब यदि दिल्ली की बात करे तो दिल्ली में विपक्ष के पास कोई मजबूत उम्मीदवार न होने से नरेंद्र मोदी के सामने कोई लोक लुभावन जुमला काम नही करेगा यहां भी बीजेपी को सात में से ५ सीटें मिलना तय है हो सकता है फिर से सातों सीट बीजेपी ही जीते।

इस प्रकार पूरे नॉर्थ क्षेत्र में बीजेपी को बहुत ज्यादा नुकसान की सम्भावना नहीं दिख रही है और ना ही कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा। ज्यादा सम्भावना है की बीजेपी इस क्षेत्र में पिछली बार की अपेक्षा एक दो सीट अधिक जीत ले।

अब देखते है उत्तर मध्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ 
वर्तमान में चारो राज्यो के बीजेपी की सरकार है जिसमे उत्तर प्रदेश में पिछली बार बीजेपी को ६२ सीट मिली थी इस बार यहां बीजेपी ३- ५ सीटें अधिक जीत सकती है और कुल मिलाकर अपने सहयोगियों के साथ ६८- ७० सीटों का आंकड़ा पहुंच सकती हैं। सपा को ७- १० सीटें मिल सकती है, कांग्रेस हो सकता है अपनी दोनो परंपरागत सीटें अमेठी व रायबरेली खो दे लेकिन वोटों के धुव्रीकरण और कुछ सीटों पर उम्मीदवार की छवि व त्रिकोणीय लड़ाई में एक दो सीट पा सकती है लगभग यही हाल बीएसपी का होगा जो पिछली बार दस सीटें जीती थी इस बार सीधे ८ सीटों का नुकसान हो सकता है सम्भावना है की बीएसपी का खाता भी नहीं खुले जिसका सीधा लाभ बीजेपी और सपा को मिलेगा। लेकिन कांग्रेस की तरह बीएसपी को भी हो सकता है १-२ सीट मिल जाए।

उत्तराखंड में सम्भवतः बीजेपी इस बार फ़िर से पांचों सीटें जीत जाएंगी क्यों की कांग्रेस के उम्मीदवार कमजोर है और पुष्कर धामी व मोदी जी द्वारा किए जा रहे कार्यों से पहाड़ की जनता संतुष्ट दिख रही है। 
मध्य प्रदेश में पिछली बार बीजेपी लगभग सभी 29 में से 28 सीटें जीत ली थी कांग्रेस केवल एक ही सीट जीत पाई थी इस बार भी लगभग यही परिणाम रहेगा क्यों की यहां केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच लडाई है यदि त्रिकोणीय लडाई होती तो शायद कांग्रेस को एक दो सीट का फायदा मिल जाता और कांग्रेस में यहां बड़े नेताओं कमलनाथ व दिग्विजय की टीम में आपसी मतभेद का लाभ भी बीजेपी को मिलेगा और इस बार भी बीजेपी मध्य प्रदेश की लगभग सभी सीटें जीत लेगी। 
छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा एक दो सीट का फायदा मिलेगा हो सकता है यहां भी बीजेपी सभी सीटों को जीत ले क्यों की इस बार यहां बीजेपी की सरकार है और कांग्रेसी नेताओं में ऊर्जा व उत्साह की कमी नजर आती है तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सम्भवतः अपनी राजनांदगांव की सीट भी न जीत पाए।

इस प्रकार इस क्षेत्र में भी बीजेपी को बहुत नुकसान होता नही दिखाई दे रहा है बल्कि बीजेपी इस क्षेत्र से २०१९ चुनाव की अपेक्षा कम से कम ७- १० सीटे अधिक जीतेगी। 

अब बात करते है पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों की 
बिहार झारखंड ओरिसा बंगाल असम  त्रिपुरा अरूणांचल मणिपुर मेघालय नागालैंड सिक्किम की ..... 
यदि हम बिहार की बात करे तो यहां परिणाम पिछली बार की अपेक्षा एकदम अलग हो सकता है यहां बीजेपी और एनडीए गठबंधन दोनो को नुकसान होगा जिसका लाभ राजद व कांग्रेस को मिलेगा। जिसके तीन कारण है पहला यहां पीएफआई और कांग्रेस की रणनीति काम कर सकती है क्यों की बिहार की कई सीटों पर समुदाय विशेय के मतदाता अधिक संख्या में है दूसरा नीतीश कुमार की पलटू राम वाली छवि से यादव और कुछ ओबीसी समाज भी नाराज है तीसरा कुछ सीटों पर बीजेपी और एनडीए गठबंधन का सही प्रत्याशी न मिलने से जनता नाराज है जिसका सीधा लाभ आरजेडी उम्मीदवारों को मिलेगा। पिछली बार बिहार की लगभग सभी सीटें एनडीए को मिली थी केवल एक सीट कांग्रेस को लेकिन इस बार यहां एनडीए २५ - ३० सीट के आस पास रहेंगी, यहां  इस बार ६- ८ सीट राजद को जाने की सम्भावना लग रही है, कांग्रेस २ सीट पा सकती है और दो सीटें पर निर्दलियों का भाग्य खुल सकता है। इस प्रकार बिहार में बीजेपी को लगभग ३ सीट और एनडीए गठबंधन को १० -१२ सीट का नुकसान निश्चित है। 
झारखंड में बीजेपी को न बहुत ज्यादा नुकसान होगा और न ही बहुत फायदा यहां भी बीजेपी २०१९ के परिणाम को दोहराएगी। 
ओरिसा में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा इस बार २- ३ सीट अधिक मिल सकती है हालंकि यहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की जनता पर बहुत गहरी पकड़ है और ओरिसा के विकास के लिए काम भी करते है फिर भी मोदी का काम जनता को वहा भी अच्छा लग रहा है और मोदी जी ने देश को जनजातीय महिला राष्ट्रपति देकर जन जातियों का बहुत मान बढ़ाया है इस लिए ओरिसा की जनता भी मोदी को बड़े पैमाने पर वोट कर सकती है। यहां कांग्रेस का जनाधार और पार्टी की जड़े लगभग कमज़ोर हो चुकी है इस लिए यहां बीजू जनता दल और बीजेपी का ही बोलबाला रहेगा। यहां बीजेपी पिछली बार 8 सीटें जीती थी और बीजेडी 12 हो सकता है इस बार यह परिणाम उल्टा हो जाय।
बंगाल का परिणाम भी इस बार एक दम बदल सकता है हो सकता है यहां बीजेपी २२- २५ सीट जीत जाए और ममता दीदी २० के अंदर आ जाए क्यों कि यहां भी केवल बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही लडाई है। यहां भी ममता दीदी का विशेष समुदाय के प्रति प्रेम की वजह से वोटों का धुव्रीकरण हो चुका है जिससे हो सकता था बीजेपी क्लीन स्वीप कर जाती लेकिन ममता दीदी के सत्ता में होने से तृणमूल के कार्यकर्ताओ का मनोबल बहुत मजबूत है और प्रशासन की भी कुछ मजबूरियां है जिससे ममता दीदी अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में है  फिर भी परिणाम बदलने की पूरी सम्भावना है। हों सकता है कांग्रेस भी अपनी यहां अपनी पिछली तीनों सीट बरकार रखें। 
यदि असम की बात करें तो यहां बीजेपी पिछली बार ९ सीटें जीती थी और कांग्रेस ३ सीटें और दो सीट अन्य को गया था। चूंकि यहां हेमंता विस्वास मुख्यमंत्री है और जनता के बीच में अच्छी पकड़ रखते है कुछ क्षेत्रों के मुस्लिम मतदताओ पर भी इनका अच्छा प्रभाव है इस लिए यहां भी बीजेपी को नुकसान कम दिखाई दे रहा है बल्कि हो सकता बीजेपी इस बार असम की सभी सीटें जीत ले क्यों की NRC और CAA लागू होने से वहा के मूल निवासियों को इसका बड़ा फायदा होगा और मतदान प्रतिशत भी बहुत अच्छा है।

पूर्वोत्तर राज्यों के लगभग ११ सीटों में ५ - ६ सीट बीजेपी को मिलना तय है। त्रिपुरा, सिक्किम और अरूणांचल की सभी सीटें बीजेपी जीतेगी हो सकता है इस बार मणिपुर में बीजेपी को एक सीट का नुकसान हो जाए। 
इस प्रकार इन क्षेत्रों में भी बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम है बल्कि बंगाल और ओरिसा और अन्य क्षेत्रों से कुल मिलाकर २०१९ की अपेक्षा १० सीटें अधिक मिल सकती है। 

अब बात करते है दक्षिण भारत की 
तेलंगाना आंध्र तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरला और कर्नाटका की तो इन राज्यों में पिछले पांच सालों में मोदी जी ने अपने प्रभाव को बहुत तेजी से बढ़ाया है और इस बार बीजेपी ने आंध्र में अपने गठबंधन को और मजबूत किया है जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता दिख रहा है। हालांकि तेलंगाना और कर्नाटका में इस बार सरकार कांग्रेस की है जिससे बीजेपी को कर्नाटका में थोड़ा नुकसान होगा क्यों कि यहां भी कांग्रेस विधान सभा चुनाव से ही वोटों का धुव्रीकरण करने का प्रयास कर रही है हालांकि इसका लाभ कुछ सीटों पर बीजेपी को भी मिल सकता हैं। 
तेलांगना में बीजेपी को पिछली बार की अपेक्षा २ सीट अधिक मिल सकती है कुल लगभग ६ सीटे बीजेपी को मिलेगी। यहां टीआरएस को सबसे अधिक नुकसान और कांग्रेस को सबसे अधिक फायदा दिखाई दे रहा है क्यों दक्षिण राज्यों में वोटरों को पैसे के दम पर बड़े पैमाने पर प्राभावित किया जाता है चुंकि इस बार तेलांगना में कांग्रेस की सरकार है तो कांग्रेस इसका लाभ उठाएगी। जिससे सबसे अधिक सीट यहां कांग्रेस को ही मिलेगा। 

आंध्र में इस बार बीजेपी पिछली बार की गलती को सुधारते हुए टीडीपी और पवन कल्याण के जन सेना से गठबंधन किया है, वर्तमान में जगन रेड्डी की भ्रष्टाचारी सरकार से यहां की जनता बुरी तरह त्रस्त है, सड़के बदहाल हो चुकी है, सरकारी दफ्तरों में भ्रटाचार चरम पर है, सरकारी कर्मचारियों को ५-६ महीनों तक सैलरी का इंतजार करना पड़ रहा है, हालंकि जगन निचले तबके के लोगों को अच्छा खासा पैसे हर महीने सरकारी खजाने से बाट रही है फिर भी यहां की भी शिक्षित जनता जगन को बदलना चाह रही है इस लिए जहां पिछली बार जगन रेड्डी की पार्टी को २६ सीटों पर जीत मिली थी और चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी को केवल ३ सीटे, बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था लेकिन इस बार यहां भी मोदी जी, पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू का प्रभाव काम करेगा और जगन रेड्डी की पार्टी १०-१५ सीटों पर सिमट जाएगी जिसका सीधा १० सीटों का लाभ टीडीपी को मिलेगा पवन कल्याण की जनसेना भी यहां २ सीट पा सकती है और बीजेपी भी ३-४ सीटे जीत लेंगी।
तमिलनाडु में इस बार जनता बड़ा बदलाव के मूड में है मोदी के राष्ट्रभक्ति व सनातन भक्ति से यहां की जनता बहुत खुश हैं इस लिए यहां डीएमके को बड़ा नुकसान हो सकता है और बीजेपी इस बार यहां लगभग ५ से अधिक सीटें जीत सकती है।
पुडुचेरी में में केवल एक ही सीट पिछली बार बीजेपी को मिली थी इस बार भी बीजेपी यहां फिर से जीत लेंगी। 
कर्नाटका में इस बार बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा क्यों कि यहां कांग्रेस सत्ता में है मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट कर अधिक सीटें जीतना चाह रही है। हो सकता है यह २०१९ की अपेक्षा बीजेपी को ३-५ सीटों का नुकसान हों जाए।
केरल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और यहां भी सीधे सीधे हिंदु और मुस्लिम वोटरों का धुव्रीकरण किया जा रहा है फिर भी बीजेपी यहां भी इस बार अधिक सीटें जीतेंगे। यहां पिछली बार बीजेपी केवल २ सीट ही जीत पाई थी लेकिन इस बार मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी लगभग ५ सीटे जीत सकती है क्यों कि राज्य के कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओ में आपसी समन्वय कम है जिसका प्रभाव राहुल गांधी की वायनाड सीट पर भी देखने को मिल रहा है और कांग्रेस के दमदार नेता ए  के एंटोनी का बेटा खुद बीजेपी के सिंबल पर केरल में चुनाव लड़ रहा है जिसकी वजह से बीजेपी उम्मीदवारो को बढ़त मिलेगी।

इस प्रकार दक्षिण भारत में इस बार बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियां को कमजोर करते हुए अब तक का सबसे बड़ा लाभ लेगी और पिछली बार की अपेक्षा लगभग १०-१२ सीटे अधिक जीत सकती है हालांकि कांग्रेस को भी दक्षिण में पिछली बार की अपेक्षा ५ - ७ सीट अधिक मिल सकती है खास तौर पर जहां जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा होंगे।

आइए अब बात करते है पश्चिम क्षेत्र, महाराष्ट्र गोवा गुजरात और राजस्थान की 
यहां चारों राज्यों में बीजेपी की सरकार है जहां पिछली बार राजस्थान और गुजरात में बीजेपी लगभग सभी सीटें जीत गई थी, महाराष्ट्र में लगभग २२ सीटे अकेले बीजेपी जीती थी और गोवा में एक सीट बीजेपी को मिली थी एक कांग्रेस के पक्ष में चली गई थी।
इस क्षेत्र में भी लगभग २०१९ के समान ही परिणाम आने की संभावना है बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं होगा लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी २ या ३ सीटे अधिक ला सकती है क्यों की महाराष्ट्र में विपक्ष लगभग ख़त्म हो चुका है कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के कई बड़े बड़े धुरंधर नेता बीजेपी का दामन थाम चुके है।
हो सकता है यहां पर शिवसेना शिंदे गुट को उतना सीट न मिल पाएं जीतना पिछली बार शिवसेना उद्धव को मिला था क्यों की शिवसेना के पुराने कार्यकर्त्ता शिंदे गुट के मूल शिवसेना से विरोध की वजह से नाराज़ है। 

अब यदि पूरे देश के चुनाव परिणाम की बात करे तो बीजेपी को केवल हरियाणा बिहार कर्नाटका में स्पष्ट रुप से कुछ सीटों का नुकसान होता दिखाई दे रहा है लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु आंध्रा, बंगाल ऑरिसा और उत्तर प्रदेश में निश्चित रूप से बीजेपी को लाभ होता दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा पूरे देश से यदि कुछ क्षेत्रों में १५ - २० सीटों का नुकसान होता दिख रहा है तो कुछ क्षेत्रों से जहां पिछली बार कम सीटें आए थे वहा से लगभग २०- ३० सीटों का लाभ भी दिख रहा है क्यों की वोटिंग प्रतिशत में पिछली बार की अपेक्षा इस बार बहुत ज्यादा अंतर नही दिख रहा है बस इतना है की कुछ राज्यों में कम मतदान हो रहा है तो कुछ राज्यों में अधिक मतदान भी हो रहा है। इस लिए मतदान प्रतिशत बीजेपी के सीटों पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगा। कम ज्यादा मतदान का लाभ हानि केवल उन्हीं सीटों पर प्रभाव डाल पायेगा जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा है और हिंदू मतदाता घरों से बाहर नहीं निकले। इस प्रकार बीजेपी इस बार भी लगभग २०१९ के परिणाम के आसपास ही ३०० या ३१० सीटें जीतकर फिर से मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनाएगी और एनडीए गठबंधन कुल मिलाकर ३७५+ सीटों का आंकड़ा पार कर जाएगी
लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व कमजोर होगा जिसका फायदा सीधे सीधे कांग्रेस को मिलेगा और मुस्लिम मतदाता पूरे देश में सीधे सीधे कांग्रेस को वोट करेंगे जिससे कांग्रेस की सीटे भी इस बार कुछ बढ़ सकती है और पिछली बार की अपेक्षा ५- १० सीटों का लाभ मिल सकता है लेकिन कांग्रेस को इस बार भी ६० - ७० सीटों का अकड़ा पार करना बड़ा कठिन होगा। 

यह रहा चुनाव का रुझान लेकिन जिस तरह से पूरे देश में मोदी जी से जनता का व्यक्तिगत लगाव बढ़ा है हर वर्ग में, खासतौर पर महिलाओं, युवाओं में, दक्षिण भारत राज्यों में तो ऐसा लगता जैसे उनको कोई देव पुरुष मिल गया हो जो देश को विश्व में सबसे मजबूत राष्ट्र बना देगा यदि यह फैक्टर काम कर गया और बाकी चरणों वोटिंग प्रतिशत अच्छा रहा तो कोई बड़ी बात नहीं की मोदी जी का नारा अबकी बार ४०० सौ पर सत्य हो जाएगा। 

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Friday, 23 February 2024

विकसित भारत के लिए युवाओं की भूमिका

आईए हम बात करते है अपने देश भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने में यूवाओ की भूमिका पर, विषय पर आगे बढ़ने से पहले हम देश की आर्थिक स्थिति पर थोड़ा नजर डाल लेते है क्या देश की वर्तमान स्थिति ऐसी है की भारत विकसित राष्ट्र बन पाएगा। भारत निश्चित रूप से एक विकसित राष्ट्र बन सकता है क्यों की आज देश में एक मजबूत एवम पूर्ण बहुमत की सरकार है। इसका सबसे बड़ा प्रणाम इस बात से मिलता है कि कोरोना काल के बाद से जहां विश्व के लगभग सभी यूरोपीय, पश्चिमी और एशियन देशों की अर्थव्यव्स्था लगातार नीचे की तरफ जा रही है अमेरिका ब्रिटेन चीन जापान जैसे आर्थिक रूप से मजबूत देशों की सालाना आर्थिक विकास वर्तमान में केवल 2-3 % की दर से आगे बढ़ रही है वही हमारे देश भारत की अर्थव्यवस्था 6-7% की दर से बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेषज्ञों का मानना है की आने वाले वर्षो में भारत की अर्थ व्यवस्था लगातार इसी गति से आगे बढ़ती रहेगी। इसके ठीक विपरीत पूरे विश्व में सालाना महंगाई दर जहां 7-8% की दर से बढ़ी है वहीं भारत में मंहगाई दर संतुलित होकर 3-4% पर आ गई है। वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन डॉलर पहुंच गया है और लगातार तेज गति से प्रति वर्ष वृद्धि कर रहा है। आज भारत, रूस, यूएई, मॉरिशस, श्रीलंका बांग्लादेश, फिजी,कतार, इजरायल, मलेशिया जैसे लगभग 15 महत्वपूर्ण देशों के साथ भारत अपना व्यापार अपनी मुद्रा रूपए में करने की सहमति बना चुका है और कई अन्य देशों से बातचीत का दौर जारी है भारत की प्रगति और मजबूत भविष्य को देखते हुए बहुत सारे देश भारत के साथ रुपए में व्यापार करने के लिए इच्छुक है। 
आज हम आत्मनिर्भर, स्वच्छ और ग्रीन भारत के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे है जिससे देश में लगातार रोज़गार की बढ़ोतरी हो रहीं है हमारा आयात निर्यात सुदृढ़ और संयमित तरीके से आगे बढ़ रहा है देश में स्वास्थ्य सड़क और सुरक्षा सुदृढ़ हो रहा है क्रूड ऑयल के आयात पर निर्भरता कम हो रहा है आज भारत सौर व वायु ऊर्जा का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व का सबसे बड़ा स्टार्टअप वाला देश बन गया है। यही कारण है की आज भारत ब्रिटेन को चौथे स्थान से छठे स्थान पर ढकेलते हुए 4 ट्रिलियन क्षमता के साथ विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया और भारत सरकार नीति आयोग का लक्ष्य है की 2027 तक देश की आर्थिक व्यापारिक क्षमता को छः ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाना है। जिस गति से वर्तमान सरकार कार्य कर रही है यदि यही गति जारी रही तो निःसंदेह आने वाले वर्षो में भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। 

आईए अब हम समझते है कौन विकसित राष्ट्र है और कौन विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ सकता है। 
सामान्य तौर पर विकसित राष्ट्र उसे कहते है जिस देश का औद्यौगिक प्रगति उच्च स्तर का हो साथ में तकनीकी व सेवा क्षेत्र भी उन्नति कर रहा हो, प्रति व्यक्ति मासिक आय उच्चतर होने के साथ लोगो का जीवन स्तर बेहतर हो, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास ऐसा हो की उद्योग और आम जनता के लिए परिवहन व्यवस्था बहुत सुलभ और उच्च स्तर का हो, वित्तीय व्यापारिक लेन देन सुगम सरल हो, स्वास्थ्य और शिक्षा देश के प्रत्येक नागरिक को आसानी से सुलभ हो जिससे देश के नागरिकों की आयु सीमा अधिकतम सुनिश्चित हो सके। 
इस प्रकार यदि विकसित राष्ट्र की परिभाषा को आधार माने तो भारत विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बनते ही ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विकासशील राष्ट्र की श्रेणी से ऊपर आ चुका है लेकिन विकसित राष्ट्र बनने से अभी बहुत पीछे हैं क्यों कि वर्तमान में देश की जनसंख्या चीन की जनसंख्या को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है जो भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी से बाहर कर देता है जब की ब्रिटेन की वार्षिक अर्थव्यवस्था भारत से कम होने बावजूद आज भी विकसित राष्ट्र की श्रेणी में है क्यों की ब्रिटेन के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय 52 हजार डालर है और भारत की जनसंख्या के अनुसार देश का प्रति व्यक्ति आय केवल लगभग 3 हजार डालर है जिसे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए वार्षिक अर्थव्यवस्था वर्तमान 4 ट्रिलियन से पांच गुना अधिक होना चाहिए यानी जब भारत की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन से अधिक और प्रति व्यक्ती आय 12000 डॉलर से अधिक हो जायेगा तब भारत विकसित राष्ट्र कहलाएगा और अमरीका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनने के लिए भारत की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होना चाहिए जो सम्भवतः 2045 तक हासिल किया जा सकता है यदि भारत की विकास गति बिना रुके लगातार वर्तमान गति से चलता रहे। 

अब हम बात करते है युवा भारत देश को कैसे विश्व गुरू बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है आज भारत में 35 वर्ष की आयु की जनसंख्या लगभग 65% है जो भारत को विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश बनाता है और देश की आर्थिक प्रगति का एक बड़ा मज़बूत आधार भी आज युवा ही है क्यों कि युवाओं की जनसंख्या अधिक होने से देश में उपभोक्ताओं की संख्या के साथ ही सस्ते कामगारों की उपलब्धता भी बढ़ी है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी बड़े ब्रांड आईफोन हो या टेस्ला या सिट्रोएन भारत में अपना उत्पादन शुरु कर रहे है। ऐसी सकारात्मक स्थिति में जब पूरा विश्व भारत की तरफ देख रहा है तब तो निश्चित ही भारत के युवाओं को भी भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। 
भारत विष्व गुरु कैसे बने इस बात को समझने के लिए हम सबको चीन की आर्थिक विकास की नीति को भी समझनी होगी जिसको आधार बनाके आज चीन विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद 18 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और 13000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति बना है। जब हम चीन की आर्थिक प्रगति का गहन अध्यन करते है तो हमें पता चलता है चीन की सरकार ने घर घर गांव गांव उद्योग की स्थापना करके प्रति व्यक्ति आय को 13000 डॉलर तक पहुंचा दिया चीन की इसी नीति को अपनाते हुए भारत सरकार नीति आयोग ने भी आत्मनिर्भर भारत make in India का नारा देते हुए युवाओं को उद्योग स्थापित कर स्व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए Startup India Mudra loan, MSME loan जैसी बहुत सी योजनाओं के तहत पीछले 8 सालो में बड़े पैमाने पर लोन दिया है जिसमे युवा उद्योग को प्राथमिकता दिया जा रहा है जिसका परिणाम यह हुआ की आज भारत में प्रति व्यक्ति आय लगभग 3 हजार डॉलर पहुंच गया जो की 2014 में पगभग 1200 डॉलर था।
जब भारत सरकार देश को विश्व की महाशक्ति बनाने की दिशा में प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है ऐसी स्थिति में देश की युवा आबादी को भी अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए सरकार को नीतियों का सहयोगी बनकर Make in India Start-up India योजनाओं को जमीन स्तर लागु करने पर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। 

वैसे केवल आर्थिक विकास से ही कोई देश विश्व गुरु नही बन सकता इस लिए भारत जैसे युवा देश में युवाओं की जिम्मेदारी केवल रोज़गार पाने या उद्योग तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि युवाओं को भारत का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए भारत के सामाजिक एवम राजनीतिक विकास,  वैज्ञानिक अन्वेषण एवम तकनीकी विकास, ( SPST - Social Political Scientific Research and Technical Development) में महत्तवपूर्ण भूमिका निभानी होगी.

जब हम सामाजिक विकास की बात करते है तो युवाओं को अपने धर्म, संस्कृति, कला, परंपरा को संरक्षित करने अपनाने पर जोर देना चाहिए और पश्चिमी संस्कृति की जीवन शैली के नाकारात्मक प्रभाव से लोगो को जागरूक करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा की सीमा से बाहर निकलकर एक स्वच्छ हरित वातावरण विकसित करना चाहिए जिसमे हम युवा महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।

राजनीतिक विकास की बात करे तो युवाओं को राजनीतिक कार्यों में सक्रियता निभानी चाहिए जिससे भारत जैसे युवा देश के सदन में पढ़े लिखे ईमानदार छवि के युवा प्रतिनिधि सदन में अधिक संख्या में पहुंच सके यह इस लिए भी जरूरी है की हम सदन से बाहर रहकर भ्रष्टाचार के विषय में केवल चर्चा कर सकते है लेकिन यदि सच में हम भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना चाहते है और देश को विकसित राष्ट्र बनाना है तो युवाओं को आर्थिक विकास के साथ साथ राजनीतिक हिस्सेदार भी बनाना पड़ेगा अपने गांव समाज के लोगो को अधिक संख्या में जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा से बहार रहकर क्षेत्र व देश के विकास के लिए वोट करने के लिए लोगो को जागरूक करना होगा।

वैज्ञानिक विकाश की बात करे तो हम युवाओं को चंद्रयान, कोरॉना वैक्सीन और नैनो यूरिया जैसी वैज्ञानिक अन्वेषण के विकास में अपनी भागीदारी बढ़ानी चहिए जिससे की देश की जनता को शुद्ध और उच्च गुणवत्ता की खाद्य सामग्री सुलभ हो सके एवम देश के नागरिको की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि सुनिश्चित हो। 

तकनीकी विकास की बात करे तो डिजिटल,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक तकनीकी के विकास में भी युवाओं को अपनी भागीदारी निभानी चाहिए जिससे देश में बैंकिंग सुविधाओ को सरल बनाया जा सके और सामाजिक दूरी कम कर ग्लोबल स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों को और गति प्रदान किया जा सके।

इस प्रकार देश के युवा सरकार के साथ स्वयं सेवक बनकर भारत को सांस्कृतिक सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक समृद्ध विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
 
इस लिए युवा देश के नौजवानों केवल रोजगार पाने की उम्मीद में मत बैठे रहो बल्कि उद्यमी बनो रोजगारों पैदा करो सभी समस्यायों के लिए केवल सरकार को दोष मत दो बल्कि स्वयं से समाधान खोजो और लोगो को समाधान दो। 

जय हिंद जय भारत जय युवा ।। 


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Sunday, 31 December 2023

दैनिक दिनचर्या के कार्यकारी नववर्ष 2024 की आप सभी को मंगल शुभकामनाएं।

आज 31 दिसंबर 2023 कार्यकारी संवैधानिक दैनिक दिनचर्या वर्ष का अंतिम दिन है हममें से बहुत सारे लोग आज की रात धूम धड़ाका करने की तैयारी में हैं अच्छी बात है जीवन के हर पल को खुशियों के साथ व्यतीत करना चाहिए।
श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण जी भी यही कहते है दुःख हो या किसी बात की निराशा या हो असफलता या किसी भी प्रकार के हानि से तनाव, हमेशा खुश रहना चाहिए क्यों कि अच्छा बुरा सब कुछ श्री कृष्ण की इच्छा है। 

लेकिन आज 31 दिसंबर के दिन नए वर्ष के स्वागत के साथ बीते दिनों का चिंतन - आत्म समीक्षा भी होना चाहिए की हमारा जाने वाला वर्ष कैसा रहा ? क्या गलतियां हुई हमसे, किसी भी कार्य को पुर्ण करने में कहा कमियां रह गईं ? क्या उपलब्धियां हासिल किया, दूसरो के जीवन उत्थान के लिए क्या करना चाहिए था कितना कर पाए, क्या बाकी रह गया, व्यक्तिगत जीवन में क्या नया सीखा और क्या सिखाना रह गया ? हम अपने विचारो और कार्य व्यवहार से कितने लोगो सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर पाए और कल की सुबह से शुरू होने वाले नए वर्ष 2024 में हमें क्या करना है ? 

हममें से बहुत लोगो को 2023 में ऐतिहासिक स्मृतियां और  उपलब्धियां मिली होगी तो कुछ को बहुत निराशा, अपमान, पीड़ा व नुकसान भी झेलना पड़ा होगा। बहुत से लोग सुख के सागर में गोते लगाए होंगे तो कई लोगों ने दु:खों के तूफान भी झेले होंगे। कभी बसंत तो कभी पतझड़ यही जीवन का मर्म है जिसमे कितने ऐसे बदनसीब भी होंगे जिनके लिए 2023 का अंतिम महीना कड़ाके की ठंड में ठिटूरन में गुजर रहा होगा जो अपने परिवारों के साथ रोते बिलखते आज की रात व्यतीत कर रहे होंगे। बहुत से बच्चो ने 2023 में ही भारत की धारा पर जन्म लिया होंगा जिनको कुछ पता ही नही चला होगा की उन्होंने इस धरा पर एक वर्ष व्यतीत कर लिया। वर्ष 2023 का 365 दिन कुछ लोगो के लिए सुरम्य-घाटियों से होकर गुजरा होगा तो कुछ लोगो का ऊबड़-खाबड़ दुर्गम रास्तों से भी गुजारा होगा, पूरे वर्ष सुखद संभावनाओं के साथ दु:खद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा। 
इस लिए यदि आज के दिन हम धूम धड़ाका करने के बजाय अपने बीते 364 दिन की समीक्षा करें तो शायद हम बीते दिनों से बहुत कुछ सीखकर आने वाले नए वर्ष को बहुत सुखमय और उपलब्धियों से भरा बना सकेंगे। 

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने सम्पर्क में रहे लोगो से बीते 364 दिनों में हुए किसी भी प्रकार की गलत व्यवहार, अपशब्द और अपमान के लिए क्षमा मांगता हूं जिससे किसी की आत्मा को ठेस पहुंचा हो या दुःख महसूस हुआ हो।

इसी के साथ बीते वर्ष 2023 को नमस्कार 
और आगामी नववर्ष 2024 की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं यह नववर्ष भारत धारा पर राम राज्य की स्थापना का वर्ष बने भारत प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की अस्मिता और गरिमा को स्वर्णिम बनाने के लिए हर संभव प्रयास करे और प्रत्येक परिवार खुशियों के साथ जीवन यापन करे।।
जय श्री राम 💐💐🙏

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Sunday, 15 October 2023

किसी देव स्थान में दर्शन के पश्चात मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ क्षण के लिए ज़रूर बैठे।

हमारी पीढ़ी और पहले की दो तीन पीढ़ियां या हम यह कह सकते है की ६० के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी की शुरूवात तक पिता पुत्र और परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों के बीच संवाद हीनता की वजह से दैनिक जीवन के सनातन संस्कारों को ना तो हमारे बड़े बुजुर्गो या माता पिता ने अपने बच्चो को बताया, न ही हमे देखने सुनने को मिला जिसका सबसे बड़ा कारण हजारों वर्षों के विदेशी सत्ता से आजादी के बाद भारतीय समाज इतना भ्रमित हों चुका था की अपनी वास्त्विक पहचान और संस्कृति भूलकर, मिश्रित संस्कार और संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहा था, भारत की मूल वैदिक शिक्षा तहस नहस हो चुकी थी जिसकी वजह से आजादी के बाद खासतौर पर ६० के दशक के बाद की पीढ़ी की परवरिश बहुत ही संकीर्ण व संयमित माहौल में हुआ, परिणाम यह हुआ की इस दौर में जन्म लेने वाले बच्चे कभी ऐसे प्रश्नों का किसी से संकोच वश जवाब ही नहीं  पूछ पाए। इस दौर में बच्चों का आपने समाज के बड़े बुजुर्गो से ज्यादा सवाल जवाब करना भी अच्छा नहीं माना जाता था जो बच्चे ज्यादा सवाल जवाब करते लोग ऐसे बच्चों को संस्कारहीन बताने लगते और ऐसा अक्सर ऐसे ही बुजुर्ग किया करते जिन्हे बच्चों के गुढ़ प्रश्नों का उत्तर नहीं पता होता। 

ऐसे बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मेरे पीढ़ी और बाद की पीढ़ी के लोगो को भी नही पता क्यों कि कभी सुना पढ़ा जाना ही नहीं। ऐसा इस लिए की हमारे समाज में लोगो का मानना है बच्चों का स्कूल में अच्छा मार्क्स जरुर आना चाहिए भले ही वह खेल या अन्य विषय में रुचि ना ले, दुर्भाग्य वश लोगो को यह नही समझ था कि खेल प्रतियोगिता में भाग ना लेने से बच्चा शारिरिक रूप से कमजोर होता है बच्चे का मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। मेरा मानना है कि ऐसे माहौल के पीछे एक बहुत प्रचलित लोककोक्ति का प्रभाव भी रहा है अक्सर घर के मुखिया या माता पिता को हम सबने अपने बच्चों को यह कहते सुना है कि"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब" कुछ हद तक यह लोककोक्ती तो सही है लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते की जीवन के हर पड़ाव पर संतुलन होना बहुत जरुरी होता है। यानी कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जरुरी होता है ना कि केवल स्कूल में अच्छे मार्क्स आना।

भारतीय सनातन समाज मोदी जी का ऋणी है जो उन्होंने सूचना तकनीकी तंत्र को गाँव गांव तक पहुंचकर डिजिटल शिक्षा के माध्यम से लोगो को इतना जागरुक करने का कार्य किया की आज डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के गुढ़ विषयों के बारे में जन जन तक जानकारी पहुंच रहीं है जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ऐसी जानकारियों से अनभिज्ञ नही रहेगी और हमारी भारतीय संस्कृति जड़ मजबूत होगी।  भारतीय संस्कृति में देव स्थान दर्शन से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या चौखट पर थोड़ी देर ज़रूर बैठे।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा के पीछे का गुढ़ रहस्य क्या है ?

आइए जानते है वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ करके हमें एक श्लोक को क्यों पढ़ना चाहिये और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह क्यों बताना चाहिये....

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-

अनायासेन मरणम्... 
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं !!

बिना देन्येन जीवनम्... 
अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो, ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके !!

देहांते तव सानिध्यम.. 
अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए, उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले !!

देहि में परमेशवरम्...
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना !!
यह प्रार्थना करें।

गाड़ी, घर, धन, नौकरी,लड़का, लड़की, अच्छा पति-पत्नी, यह मांगना नहीं पड़ता है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं इसीलिए जब भी कभी कही भी देव स्थान पर दर्शन करने जाए तो उपरोक्त श्लोक के अनुसार भाव लेकर जाए और मंदिर में दर्शन के बाद कुछ समय मंदिर की पैड़ी पर बैठकर उपरोक्त भाव की प्रार्थना करिएगा।

उपरोक्त श्लोक प्रार्थना है, याचना नहीं।
क्यों कि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
प्रार्थना का अर्थ विशिष्ट, श्रेष्ठ निवेदन से है न कि याचना से अर्थार्थ जब भी किसी शक्ति पीठ या देव स्थान पर जाए तो प्रभु से प्रार्थना करें ना की याचना सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना यही होगा की ऊपर लिखित श्लोक को मन ही मन दोहराएं। 

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजकल लोग यदि मंदिर की पैड़ी पर बैठते भी है तो वहा भी अपने घर, व्यापार व राजनीति की चर्चा करते हैं और केवल अपना थकान मिटाने के लिए ही बैठते है परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। को बार बार दोहराना। 

सब से जरूरी बात... जब भी मंदिर में दर्शन करने जाए तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं, आंखें बंद क्यों करना हम तो भगवान का दर्शन करने जाते हैं, तो भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें। आंखों में उस मोहक दृश्य भर ले भगवान के उस स्वरूप को और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें, नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें, यहीं शास्त्र और बड़े बुजुर्गो का कहना हैं ...

जय माता दी 💐🙏

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Friday, 5 May 2023

एक राजा जिसने बोधिसत्व प्राप्त कर स्वयं को चिरंजीव बना लिया।

हम सब बचपन से देखते आए है महात्मा गौतम बुद्ध की तस्वीरे और स्टैच्यू सर्वत्र विश्व में शांति और ध्यान की मुद्रा में ही उपलब्ध है। जो हमे यह सन्देश देती है की ज्ञान और ध्यान से ही जीवन में शांति व सद्भावना सम्भव है जहा इसकी कमी है वहा अशांति ही अशांति है। इस लिए ज्ञानार्जन और ध्यान का निरंतर अभ्यास जीवन में बहुत आवश्यक है। 
भारतीय पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र में ५६३ ईशा पूर्व में भगवान श्री राम के पुत्र कुश के कुल में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन की धर्मपत्नी महारानी महामाया देवी के पुत्र के रूप में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था जिनको उनके जन्म से लेकर सन्यास धारण करने से पहले तक सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था आगे चलकर इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से पहचान मिली। बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण संयोग यह है कि वैशाख पूर्णिमा के ही दिन ३५ वर्ष की आयु में ५२८ ईशा पूर्व मे बोध गया बिहार में वटवृक्ष के नीचे आपको आत्मज्ञान प्राप्त हुआ जो वटवृक्ष आज भी बोधगया में मौजूद है और इसी दिन ४८३ ईशा पूर्व ८० वर्ष की आयु में कुशीनगर उत्तर प्रदेश में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। 
देह छोड़ने के पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे 
'अप्प दिपो भव:...सम्मासती। 
अपने दीये खुद बनो...स्मरण रखो कि तुम भी एक बुद्ध हो।
आज के दिन का दैवीय महत्व है क्यों कि इसी दिन देवी छिन्नमस्तिका और श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। आज के ही दिन ब्रह्मदेव ने काले और सफ़ेद तिलों का निर्माण भी किया था इसी लिए आज के दिन तिलों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे। बुद्ध का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे महात्मा सन्यासी होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी। राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो लेकिन राजा शुद्धोदन की यही गलती सिद्धार्थ के मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। वैराग्य भाव उत्पन्न होने के बाद एक बार सिद्धार्थ शाक्यों के संघ में सम्मलित होने गए। जहां उनका संघ के गुरुवों से विचारिक मतभेद हो गया। क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे या तो वे फांसी पर चढ़ जाए या देश छोड़कर चले जाए। सिद्धार्थ ने कहा कि जो भी दंड उन्हें मिले स्वीकार है लेकिन शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और उन्हें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्यागकर 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर लिया। उस वक्त उनकी आयु 29 वर्ष थी। छः वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् सिद्धार्थ को बोधिसत्व 528 वर्ष पूर्व 35 वर्ष की आयु में बिहार प्रदेश के बोधगया में वटवृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था जो आज भी विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है। सम्राट अशोक इस वृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले जाकर स्थापित किया यह शाखा भी आज मौजूद है।

श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में भी शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए। इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे। राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। 

बुद्ध के प्रमुख गुरु गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त थे जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) थे और बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व या बोधिधर्मा, विमल मित्र, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि का नाम लिया जाता है।
बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति सम्पन्न हुआ था जिसमे संघ के दो हिस्से हो गए थे हीनयान और महायान। सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्घ संगती का आयोजन 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में कराया था उसके बाद भी सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के बहुत प्रयास किए गए किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव को रोक पाना सम्भव नहीं हो पाया।

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में लोगो को शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्तिव में संतुलन की धारणा को मजबूत बनाए रखने पर बहुत बल दिया और कहा की मनुष्यों को भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है क्यों कि भोग की अति से चेतना का बिखराव हो जाता है विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की पर विनाश का पहरा मदराने लगता है ठीक इसी प्रकार तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव नही हो पाती है क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्माण करने का स्वप्न संजोना।

गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं 
पहला यह कि दुःख है। 
दूसरा यह कि दुःख का कारण है। 
तीसरा यह कि दुःख का निदान है। 
चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।

गौतम बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है। अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेष्ठ जीवन के लिए श्रेयस्कर है।

गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है। वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता यह केवल मैत्री से ही बैर मिटता सकता है।

शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य यह कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो ‍कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध अनेक जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। जिनके आधार पर ही ईशा की कथाएं निर्मित हुई। यही कारण है कि पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी देशों के लोगो की तादाद बढ़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है क्योंकि बौद्ध धर्म, ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था। दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया के हर इलाके में खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्‍यान और ज्ञान पर बहुत से राष्ट्रों में आज भी शोध जारी है।
ऐसा प्रमाण मिलता है कि भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा। तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया। कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी। उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के कहीं। 


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