Friday, 30 December 2022

इक्कीसवीं सदी में मां शब्द और मातृत्व के आस्तित्व को चरितार्थ करने वाली हीराबेन बा और नरेन्द्र मोदी

देश के यशश्वी प्रधानमंत्री की देवतुल्य माता हीराबेन मोदी जी की दिव्य आत्मा पंचतत्व से बने दैहिक जैविक शरीर में 100 वर्ष तक एक सशक्त महिला पत्नी और मां के रुप में समाज में एक मजबूत छवि स्थापित करने के पश्चात आज ब्रह्ममुहूर्त में गोलोक की यात्रा पर निकल गई जिनके मातृत्व प्रेम की चर्चा हम सब लोग जब से नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए है तब अक्सर सुनते रहें है खास तौर पर जब मोदी जी अपने जन्मदिवस पर उनसे आशीर्वाद लेने जाते या माता जी के जन्मदिवस पर उनसे मिलने उनका कुशलक्षेम पूछने जाते......
जो भी हो मोदी जी ने पिछले आठ सालों में पूरे देश की युवा पीढ़ी और समस्त जनमानस को मातृत्व प्रेम आशीर्वाद व अस्तित्व का जो संस्कार देश के प्रधानमंत्री के रूप प्रेषित किया है वो  निःसंदेह सराहनीय है और मैंने ऐसा महसूस किया है कि देश में मातृशक्ति के प्रति लोगो का दृष्टि पिछले कुछ वर्षों में बदला और सम्मान भी बढ़ा है। हीराबेन के सांसारिक जीवन के अंतिम यात्रा में एक प्रधानमंत्री के रुप में उनके अर्थी को कांधा देकर मोदी जी ने देश वासियों को अपने कर्तव्य निर्वहन का बहुत बड़ा संदेश दिया है।

वैसे तो सनातन संस्कृति में मातृत्व का बहुत आदर सत्कार और सम्मान एक जननी के रूप में वैदिक काल से ही बताया गया है लेकिन मोदी जी ने आज इक्कीसवीं सदी में मातृत्व के सम्मान में अपने व्यवहार से देश व समाज को जो सन्देश दिया है वह निःसंदेह प्रेरणादायक है।
मोदी के अनुसार हीराबेन ने अपने अंतिम मुलाकात में मोदी से "अपने कर्तव्यों को बौद्धिक क्षमता से और जीवन को शुद्धता से जीने का मंत्र दिया "

ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करे।
ॐ शांति। ॐ शांति। ॐ शांति।। 


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Wednesday, 14 September 2022

गर्व से कहो हम हिंदी भाषी है और हिंदी हमारी आत्मीय भाषा है

आज हिंदी दिवस है तो सोचा कुछ हिन्दी पर ही लिख दिया जाए ......
सही पूछिए तो हिन्दी के बिना कोई भी भारतीय अपनी भावनाओं को सही मायने में नहीं व्यक्त कर पता है .... हम ये भी कह सकते है दिल की बात प्यार दुलार अपनेपन की बात जितना सरल और अच्छे तरीके से हम अपने क्षेत्रीय भाषा चाहे वो पंजाबी गुजराती मराठी हो या बंगला हो, या उड़िया या तमिल तेलगू या हो अवधी या मैथिली या हो मलयाली या कन्नड़ में व्यक्त कर सकते है उतना आंग्ल या अंग्रेज़ी भाषा में नहीं ........
हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में जो आत्मीयता या अपनापन है वो किसी और में नहीं उदाहरण के तौर पर देखे कि अंग्रेजी भाषा में केवल एक ही शब्द Uncle - Aunty से ही चाचा चाची मामा मामी फूफा बुआ मौसा मौसी सबको संबोधित कर दिया जाता है सब एक ही समान है चाहे बड़े हो या छोटे कोई सम्मान या प्यार या लगाव का भाव नहीं और मजेदार बात यह है की यदि सारे लोग एक साथ खड़े हो तो एक बड़ी फजीहत हो जाती है पांच बार बोलो और इशारे करो तब समझ आएगा की किस Uncle - Aunty को बुला रहे है आप .........
इसी प्रकार अन्य रिश्तों में है पिता जी माता जी कहने में जो आत्मीयता, प्यार व सम्मान का भाव हैं वो Daddy, Mummy कहने में नहीं है। वैसे भी Daddy Mummy दोनो शब्द मृत भाव को प्रेषित करते है कहने का अर्थ है की अंग्रेजी भाषा में हम माता पिता को ऐसे शब्दों से पुकार कर उनके सकारात्मक ऊर्जा को दूषित ही कर रहे होते है इससे उनकी आयु व स्वास्थ्य को प्राभावित कर रहे होते है आप...........
क्या अध्यापक को Teacher कहना और Teacher नाम का दारू पीना दोनों में कोई अपनापन लगाव व सम्मान है जो आचार्या जी या गुरु जी कहने में ..........

अब यदि बात करे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से प्रयोग होने वाले कुछ अन्य अंग्रेजी शब्दो का जैसे......
Congratulations, Best Wishes " हार्दिक बधाई मित्र, बहुत बहुत शुभकामनाएं "
Thank You को "आभार भाई साहब" / मित्र
Wish You Happy Birthday, God Bless You or Stay Blessed को " जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मित्र/ भाई, ईश्वर आपको दीर्घायु बनाए " कहते है।
आप महसूस करेंगे की ज्यादा अपनापन किस भाषा में लग रहा है।
इसी तरह किसी के मृत्यु पर दुःख प्रकट करने के लिए व्यवहारिकता निभाने के लिए लोग अक्सर RIP Rest in Peace बोल देते है या लिख देते है वैसे तो अब लोगों को social media के माध्यम से इस शब्द का सही अर्थ तो पता चल गया है फिर भी लोग यही शब्द प्रयोग करते है लेकिन जब यही हम अपने भाषा में बोले तो भाव बदल जाता है " बहुत दुखद घटना, ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करे" ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति।।
जरा पढ़ के देखिए कितनी आत्मीयता हिन्दी शब्दो में महसूस हो रहा हैं।
ऐसे बहुत उदाहरण है जिसकी हम यहां चर्चा कर सकते है लेकिन बहुत लंबा हो जायेगा
यहीं नहीं मैने स्वयं कई बार ऐसा महसूस किया है यहां facebook पर लिखते समय जब मैं अंग्रेज़ी में कुछ लिखता हूं तो वो भाव नहीं प्रेषित कर पता हूं जो हिन्दी भाषा में .......
मैं ही नही मैने बड़े बड़े पत्रकारों और अधिकारियो को देखा है वे अपने भाव हिंदी भाषा में ही व्यक्त करना ज्यादा सुगम समझते है जो स्वाभाविक ही है ......
यही नहीं आप संस्कृत के श्लोक को या हिन्दी गीत को सुनकर ज्यादा शांत और आनंदित महसूस करते है बजाय अंग्रेज़ी गीत के ..........
केवल यही नहीं मैने कई बार ऐसा देखा है जब job interview के लिए कोई उम्मीदवार HR Manager ya Team Manager के सामने ज्याता है वो कोशिश करता है की कितना जल्दी वह अंग्रेज़ी से हिंदी में संवाद शुरू कर सके क्यों कि हिंदी में वो अपने बातो कामों हुनर और उपलंधियो को ज्यादा सरलता से भावात्मक रूप से कह पता है और सामने वाले को प्रभिवित करने में उसे ज्यादा आसानी होती यही नहीं अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में वो ज्यादा संवाद स्थापित कर पता हैं साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति से,..........

वैसे भी आप अंग्रेजी में लिखकर या बोलकर कुछ लोगो को प्राभावित तो कर सकते है लेकिन संवाद स्थापित करने वाले व्यक्ति को अपना तभी बना पाएंगे जब आप उनसे हिन्दी में भाव व्यक्त करेंगे, संवाद करेंगे, क्यो कि अपनी भावनाओं को आप जितनी सहजता सुगमता सरलता से हिंदी में व्यक्त कर पाएंगे जो सामने वाले के दिल और दिमाग में आपकी एक अच्छी छवि बना सके वो अन्य भाषा में संभव नहीं है
इस लिए मेरा तो यही कहना है कि अंग्रेजी भाषा को केवल official भाषा तक ही सीमित रखें और व्यावहारिक ब वक्तिगत जीवन में हिन्दी भाषा या मातृ भाषा को ही उपयोग में लाए तो ज्यादा अच्छा है और ये केवल अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे बच्चो को भी समझाए की अंग्रेजी स्कूल और प्रतियोगिता तक ही सीमित रखें।
जय हिंद जय भारत ।।
आप सभी मित्रों को हम भारतीयों की मातृ भाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। 💐💐🙏

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 12 September 2022

राजधानी दिल्ली का राजपथ मार्ग अब कर्त्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा

देश की राजधानी दिल्ली के लुटियन जोन में स्थित राजपथ मार्ग अब "कर्त्तव्य पथ" के नाम से जाना जाएगा। निःसंदेह नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार का यह एक अच्छा निर्णय है। जो मार्ग से गुजरने वाले सांसदों मंत्रियों अधिकारियों व अन्य नेताओं को उनके कर्तव्यों का कम से कम रोज एक बार एहसास तो कराएगा ....
क्योंकि मैंने अक्सर बड़े बुजुर्गो से सुना है नाम का असर उससे जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है इसका एक उदाहरण हम ऐसे ले सकते है विवेकानंद जी का नाम भी "नरेंद्र" था और उन्होंने भारत को विश्व में वैदिक सनातन धर्म के प्रचार के माध्यम से एक उच्चस्तरीय कीर्ति दिलाई और अब देश के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र मोदी जी है जो अपना पूरा प्रयास भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे है इसका एक बड़ा उदाहरण है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग दिवस 21जून को मान्यता देना और विश्व स्तर पर योगदिवस का आयोजन होना।

इसी प्रकार हो सकता है राजपथ का नाम अब कर्तव्य पथ होने पर उसके प्रभाव स्वरुप मार्ग से गुजरने वाले देश के जिम्मेदार व्यक्तियों की भी कर्व्यप्रणायता जागृत हो और भारत का विकास और जनकल्याणकारी कार्य और तेजी से संभव हो पाए ... हालाकि इसके लिए दृढ़ इस्छाशक्ति व सही नियति का भी होना बहुत जरूरी है ......
फिर भी हम उम्मीद तो कर ही सकते है शायद नाम का असर प्रभावकारी हो और ..... .......... कुछ नया परिर्वतन देखने को मिले आने वाले समय में .......
वैसे भी राजपथ तो राजाओं के लिए होता था आजादी के बाद जब राजशाही व्यवथा खत्म हो गई तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजपथ की क्या आवश्यकता रही। अब तो उस परिक्षेत्र में रहने वाले और उस मार्ग से गुजरने वाले लोगो को तो अपने कर्तव्यों का याद रहना ज्यादा आवश्यक है। ना कि राजशाही का एहसास होना .......
वैसे भी शायद राजपथ नाम का ही असर था की देश तो राजशाही व्यवस्था से आजाद तो हो गया था लेकिन आजादी के बाद के नेता संसद में पहुंचने के बाद अपने आपको किसी राजा से कम नहीं समझते है ........ और साउथ ब्लाक नॉर्थ ब्लॉक में तैनात अधिकारियों का भी अमूमन यही हाल है .... ......

काश देश के सदन में उपस्थित सभी प्रतिनिधि और मंत्रालय में उपस्थित सभी अधिकारीगण ये समझपाते की राजपथ पर चलने से वे राजशाही व्यवस्था के अंश नही बल्कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कर्मयोधा है ...... और देश का विकास व जनता का भविष्य उनके हाथ में है जिसे सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है लेकिन राजशाही व्यवस्था का आनंद लेने के आदि बने संसद प्रतिनिधियों व
अधिकारियों ने ईमानदार तरीके से कभी काम ही नहीं किया।

उम्मीद है कि शायद कर्तव्य पथ का सकारात्मक प्रभाव लोगो पर पड़ेगा और देश के नेताओ व अधिकारियों के अंदर कुछ नया परिर्वतन देखने को मिलेगा।।

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Wednesday, 7 September 2022

कौन है ईश्वर ? क्या आपने कभी देखा

कौन चलाता है इस पूरे संसार को ? कहाँ है ईश्वर ? क्या कभी देखा, कभी महसूस किया ? नही ना 
आइए समझने की कोशिश करते है 

जब हम माँ के पेट में नौ महीने तक थे, कोई हाथ—पैर न थे कि हम भोजन कर ले। 
श्वास लेने का भी उपाय न था,
फिर भी जिए। 
न कोई दुकान चलाते, न कोई काम धंधा करते थे, फिर भी जिए।

नौ महीने माँ के पेट में हम थे, कैसे जिए ? 
किसकी मर्जी से जिए ?
तुम्हारी मर्जी क्या थी ?
कुछ नही पता ?
फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ , जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया, कैसे 
किसकी मर्जी से ?
अभी दूध को पीनेवाला
आने ही वाला है कि
पहले से ही दूध तैयार है,
किसकी मर्जी से ? कौन है वो ?
गर्भ से बाहर होते ही
तुमने सांस ली कभी इसके पहले
साँस नहीं ली थी 
जब माँ के पेट में
तो माँ की साँस से ही
काम चलता था—
लेकिन जैसे ही तुम्हें
माँ के पेट से बाहर होने का
अवसर आया,
तत्क्षण तुमने साँस ली,
किसने सिखाया ? कौन है वह 
जब की पहले कभी सांस नहीं लिया था
किसी पाठशाला में नहीं गए थे,
किसने सिखाया कि कैसे साँस लो ?
किसकी मर्जी से ?
जो तुम दूध पीते थे कौन पचाता था , तुम्हारे भोजन को ?
तुम्हारे ग्रहण किए हुए भोजन को हड्डी—मांस—मज्जा में कौन बदलता है ? कैसे तुम साल दर साल तुम बड़े होते जाते हो तुम्हारा शारीरिक सौष्ठव बनने लगता है।
किसने तुम्हें जीवन की
सारी प्रक्रियाएँ दी हैं ?
जब तुम थक जाते हो 
तो कौन तुम्हें सुला देता है?
और कौन जब तुम्हारी
नींद पूरी हो जाती है तो
तुम्हें उठा देता है?
कौन चलाता है चाँद—सूर्यों व अन्य ग्रह नक्षत्र को ? सूर्योदय से सूर्यास्त फिर सूर्योदय 
किसकी इच्छा से सब संभव हो रहा है सदियों से 
पौधों वृक्षों को हरा कौन रखता है ?
कौन खिलाता है पौधों वृक्षों में फूल फल को 
अनंत—अनंत रंगों के
और गंधों के ? 
कौन भरता उनमें सुगंध व स्वाद ?
संसार की प्राकृतिक गतिविधियों को कौन संचालित करता है 
कभी सोचा ? नहीं ना 
जिस स्रोत से ये पूरा ब्रह्माण्ड संचालित हो रहा है,
क्या उसके बिना सहारे के 
एक पल भी हमारी छोटी—सी जिंदगी चल सकेगी ?
कभी कार को ड्राइव करते सोचा है की थोड़े से अंदाज से गाड़ी कैसे निकल जाती है आगे 
कोई न कोई अदृश्य शक्ति ऊर्जा ड्राइवर को मार्गदर्शन कर रही होती है 
थोड़ा सोचो,
थोड़ा ध्यान करो।
अगर इस विराट संसार को
बिना किसी व्यवधान के 
चलते हुए हम देख रहे है,
सब सुंदर तरीके से चल रहा है,
कोई न कोई अदृश्य शक्ति तो है 
वो कौन है ? 
जिसे हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते है 
ईश्वर वही है जो 
ईश्वर दिखता नही देता बल्कि दिखाता है
ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है
ईश्वर बोलता नहीं है लेकिन जन्म के बाद बिना किसी गुरुकुल में गए बोलने की शक्ति देता है बोलना सीखता है 
इस संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है
जिसने इस सुंदर प्रकृति की रचना किया है 
वही तो ईश्वर है !!
इस संसार में हम तुक्ष्य मनुष्य पड़े पौधे नही उगा सकते
किसी को सांसे नही दे सकते इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम सबने कोरोना महामारी में देख और महसूस किया  
हम हमारे जैसे मनुष्य नहीं बना कर सकते न ही पुरुष के शरीर से महिलाओं की तरह प्रजनन की क्षमता उत्पन्न कर सकते है 
दूध तो गाय भैंस बकरी ऊट सब देते है लेकिन सभी की पौष्टिक क्षमता अलग अलग होता है क्यों कैसे कभी सोचा दूध का रंग तो लगभग समान सफेद ही होता है फिर स्वाद और तत्व सब में अगल अलग क्यों और कैसे 
कोई विज्ञान नहीं है इसमें 
विज्ञान से हमे केवल वही पता चल पा रहा है जो पहले से ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने रचना कर रखा है या जो उनकी इच्छा है और जब उनकी इच्छा है तभी विज्ञान कुछ खोज पता है अन्यथा वर्षो लग जाता है एक छोटी चीज भी खोजने में 
यही ईश्वर है मित्रों
इस लिए अपने आप को सनातन धर्म संस्कृति से जोड़े 
भगवान दिखाते नही , न हि दिखाते है वो तो केवल भाव देखते है भावना और प्रेम श्रद्धा व विश्वास को देखते है
स्वयं को भागवत भजन में लगाए जीवन सरल लगने लगेगा शांति मिलेगी लालच माया मोह से विशोभ होने लगेगा 
आप ईश्वर के नजदीक होने लगेंगे यही जीवन का मूल उद्देश्य है।।

जय श्री राम जय श्री सनातन धर्म।।


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Wednesday, 15 June 2022

युवा भारत के भविष्य को संवारने के लिए अग्निपथ के अग्निवीर योजना

अपने बच्चों को IAS, IPS, PCS, Bank Manager बाद में बनाइयेगा पहले उन्हे सशक्त संवेदनशील जुझारू व्व्यक्ति बनाए जिसके लिए भारत सरकार द्वारा आयोजित अग्निपथ के अग्निवीर नियुक्ति प्रक्रिया मे युवाओ की भागीदारी सुनिश्चित कराए।

कल रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने देश के तीनो सेनाओं के अध्यक्षों के साथ भारतीय सेना मे भर्ती के लिए #AgnipathKeAgniveer योजना की घोषणा किया है जिसके अंतर्गत साढ़े 17 वर्ष से लेकर 21 वर्ष तक के युवक युवतियों को सेना के तीनो अंग थलसेना, वायुसेना और नौसेना में 4 वर्ष के लिए भर्ती की जाएगी, जिन्हे #Agniveer के नाम दिया गया है। 

इस भर्ती प्रक्रिया के प्रथम चरण में आगामी 90 दिनों में, 40000 युवा व युवतियों को चुना जाएगा जिसके लिए शैक्षणिक योग्यता किसी भी विषय से केवल 10वी व 12वी पास रखा गया है । सभी चयनित अभ्यर्थियों को प्रथम वर्ष में 30000, द्वितीय वर्ष में 33000 तृतीय वर्ष में 36000 और चतुर्थ वर्ष में 40000 रुपए मासिक वेतन व अन्य भत्ता मिलेंगे। जिसमें से पूरे चार वर्ष मे 5.02 लाख फंड के रूप मे कटेगा और 4 वर्ष बाद जब इनको सेवा मुक्त किया जायेगा तब उन्हे कुल 10.04 लाख + 8% चक्रविधि व्याज जोड कर मिलेंगे क्योंकि कटे फंड के बराबर का योगदान भारत की सरकार भी उसे देगी जो लगभग 15 लाख के बराबर होगा। भारतीय सैन्य विभाग इन चुने हुए अभ्यर्थीयो मे से ही 25% लोगो को  सीधे भर्ती के माध्यम से चार साल के Performance के आधार पर Permanent नियुक्ति देगा बाकि शेष बचे लोग जब 4 वर्ष बाद भारतीय सेना छोड़ेंगे तब उनके पास योग्यता अनुसार शैक्षिक शिक्षा का सर्टिफिकेट तो मिलेगा ही जो सभी जगह मान्य होगा, साथ में जिस हुनर में वे प्रशिक्षित होंगे या अपनाया होगा उसका स्किल डेवलपमेंट का प्रमाणपत्र भी मिलेगा। भारत सरकार इतना करने के साथ ही उन्हें स्वयं का उद्यम शुरू करने के लिए बैंक से ऋण देने की संतुति देगी और उनके पास अपना खुद का 15-20 लाख बचत पूँजी होगी जिसके सहयोग से एक अच्छे नागरिक के रूप मे जीवन यापन कर सकेंगे और संभवतः कुछ लोगो को रोजगार भी उपलब्ध करा पायेंगे, साथ मे समाज मे गुमराह युवा पीढ़ी को प्रशिक्षण भी दे सकेंगे जो अच्छे सामाजिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।

मैं समझता हूँ यह घोषित योजना देश व समाज के लिए आने वाले वर्षो मे अभूतपूर्व सामाजिक बदलाव लाएगी व विकास परक सिद्ध होगी । यदि प्रत्यक्ष लाभों को देखे तो 10वी, 12वी या फिर भेड़िया धसान की तरह नकल के सहारे डिग्री पाए लोगो के लिए अपने स्किलों को पहचानने और उसमे भारतीय सेना के अनुरूप अनुशासन सीखने का यह स्वर्णिम अवसर है। जो भटके हुए युवाओ को एक तरफ आत्मविश्वास व स्वाभिमान देगा एवं स्वालम्बी बनाएगा वहीं जब ये युवा सेवामुक्त होगे तो कम ही उम्र में स्वतः लोगो को रोजगार देने वाला उद्यमी बनने का सुअवसर भी प्रदान करेगा।

अब इससे हट कर एक गंभीर विचार की तरफ बढ़ते है। इस योजना के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण भारतीय सेना में बढ़ते हुए पेंशन व सेना के स्थायित्व को बनाए रखने में बढ़ रहे खर्चों के दबाव को कम करने का भी है, लेकिन यह भारत सरकार की केवल एक समस्या के लिए निकला गया हल नहीं है बल्कि मोदी सरकार द्वारा आने वाले भविष्य की मजबूत सैन्य तैयारी का भी संकेत है। मेरा मानना है की भारत को क्षितिज पर आसन्न संकट के बादल दिखने लगे है। भारत एक लंबे अंतराल तक चलने वाले, भविष्य के एक बड़े महायुद्ध की पूर्व तैयारी कर रहा है। जो युद्ध सिर्फ भारत की सीमाओं या बाहर ही नहीं होगा बल्कि आंतरिक भी होने की संभावनाए है।

भारत इसीलिए कम समय में, भारतीय युवाओं की एक शृंखला तैयार कर रही है जो भारतीय सेना की छत्रछाया में अनुशासन व उद्यम में प्रशिक्षित होंगे। वे 75% युवा,  युवती जो सेना में समायोजित न हो कर भारतीय समाज में जायेंगे, वे आपातकालीन स्थिति में भारत के लिए एक प्रशिक्षित व रक्षित बल के रूप में उपलब्ध होंगे जो भारत को एक लंबे उथलपथल के काल में या फिर खिंचते हुए युद्ध की परिस्थित मे सरकार को अक्समिक भर्तियों के दोराहे पर नही खड़ा होना होगा क्योंकि उसके पास स्वयं में एक प्रशिक्षित वा अनुशासित मानव संसाधन उपलब्ध होगा। 

मैं समझता हूँ की भारत की जनता को आने वाले समय मे एक लंबे संघर्ष के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए क्योकि आने वाला समय विध्वंस से पुनर्निर्माण और स्थापित मूल्यों व व्यवस्थाओं के बदलाव का होगा। मेरा दृढ़ विश्वास है की इसमें भारत सफलतापूर्वक अवश्य निकल जायेगा लेकिन इसके लिए हमे मन, तन व धन तीनो ही स्पतर पर सरकार का सहयोग के लिए तैयार रहना चाहिए।

इसलिए मेरा देश के सभी प्रबुद्ध नागरिको मित्रो व महिलाओ से निवेदन है कि इस योजना मे स्वयं अपने परिवार के बच्चो को लाभ लेने लिए तो प्रोत्साहित करे ही साथ मे मित्रो रिश्तेदारो व आसपास के लोगो के बच्चो को भी इस भर्ती प्रक्रिया मे भाग लेने के लिए बोले।

आभार धन्यवाद 🙏🏻
जय हिंद, जय भारत।।

 #RatneshMishra #GlobalYouthAwardee2016

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Friday, 17 December 2021

विवाह एक संस्कार है जो पारिवार सामाज व परम्पराओ के अनुसार सम्पादित होता है ना कि कानून के मुताबिक।

देश के उच्च सदन मे महिलाओ के विवाह के संदर्भ मे शादी के लिए उम्र सीमा को निर्धारित करने का कानून पास हुआ जिसके अनुसार अब लडकियो की शादियाँ  21 वर्ष से पहले कानूनन अवैध मानी जाएगी। मेरे समझ से आज के समय मे ऐसे कानून का कोई औचित्य ही नही है क्योकि शादी विवाह एक व्यक्तिगत, पारिवारिक व विशेषकर सामाजिक विषय है जो कि परिवार की सामाजिक आर्थिक व परम्परागत व्यवस्थाओ पर निर्भर करता है। इसके भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि विवाह जैसी सामाजिक परंपरा का प्रावधान मनुष्य जीवन मे होने वाली शारिरीक विकास व प्राकृतिक आवश्यकता के अनुरूप किया गया है जो कि सनातन धर्म का एक प्रमुख संस्कार भी है और भारत जैसा देश, जो विश्व मे सबसे अधिक विभिन्नताओ भाषाओ व सांस्कृतिक परम्पराओ से भरा देश है जहाँ हर दस किलोमीटर पर बोली भाषा, बात व्यवहार बदल जाता जहाँ वैवाहिक रिश्ते दादा - दादी, बुआ- फूफा व अन्य सगे - संबंधियो, गुरुजनो के आशीर्वाद, ग्रह नक्षत्रो, कुटुंब के रीति-रिवाजो, परम्पराओ और भावनाओ से तय होता है वहाँ पर उम्र सीमा का बंधन सामाजिक संबंधो मे कवल असहजता ही उत्पन्न करेगा न कि कोई सुगमता होगी लोगो को इससे।

मेरा मानना है कि जब पहले से ही महिलाओ के लिए 18 वर्ष व पुरुषो के लिए 21 वर्ष की सीमा विवाह के लिए निर्धारित है और आजकल तो लडकियो की शादियाँ चाहे गरीब हो या अमीर सबके घर, समाज मे सामान्यतः देर से ही हो रही तो ऐसे मे समाज को कानून के बंधन मे बाधने की कोई आवश्यकता नही है ऐसे कानून का लोगो लाभ तो कुछ नही होगा बल्कि दुष्प्रभाव यह होगा कि समाज के दुष्टप्रवृत्ति के लोग समाज मे कई अन्य तरह की समस्याए पैदा करेगे इससे सभ्य व कमजोर लोगो के लिए जीवन मे असहजता ही उत्पन्न होगा। निस्संदेह आज भी समाज मे 5-10% ऐसे परिवार है जो अपनी लड़की की शादी 18-20 साल से कम उम्र मे कर रहे है लेकिन इसके पीछे उनकी अपनी परिवारिक सामाजिक व आर्थिक मजबूरियाँ भी है अन्यथा आज तो लगभग हर परिवार मे चाहे वो अमीर है या गरीब लड़की की शादी 22-23 साल मे और लड़के की शादी 25-27 साल मे ही हो रहा है तो ऐसे मे जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है वो अपने आप पुरा हो रहा है। रही बात लडकिया के परिपक्वता की तो उन्हे ईश्वर व प्रकृति का ऐसा वरदान है कि वे लडको से कम ऊम्र मे ज्यादा समझदार व परिपक्व हो जाती है बाकि वास्तविक परिपक्वता तो मनुष्य जीवन मे अनुभव व समय से ही आती है इसके लिए किसी कानून की आवश्यक नही है।। 

वैसे अत्यधिक कानून से समाज मे असंतुष्टि व विषमताए ही पैदा होती है लोग अपनी स्वतन्त्रता को बाधित होने पर उसे तोडने का प्रयास करते है जिससे कानून व्यवस्थाओ पर असर पडता है। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को इस कानून को लागू करने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए। ।

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

हम सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है

अक्सर हम लोगो को हिन्दुधर्म के अस्तित्व को लेकर चर्चा करते सुना व बहस करते देखा, खास तौर पर विपक्षी राजनीतिक पार्टी के नेताओ व समर्थको के द्वारा, कुछ लोग कहते है कि हिन्दु कोई धर्म ही नही है जो लोग ऐसा कहते मै ऐसे लोगो को हृदय से धन्यवाद देता हूँ कम से कम इसी वजह से सनातन धर्म पर लोग चर्चा तो शुरु किए और जो ऐसा कहते है वो बिल्कुल सही बोल रहे है हिन्दुधर्म तो केवल एक जीवन शैली है और अपने मूल सनातन धर्म का एक परिष्कृत रूप है जो पूरे भारतवर्ष ( हिन्द महासागर ) के परिक्षेत्र मे फैला था ना कि केवल भारत या हिन्दुस्तान की सीमा तक ही सीमित था बल्कि लगभग पुरे एशियाई परिक्षेत्र तक सनातन धर्म वृहदता लिए हुए था जिसे विदेशी आक्रान्ताओ ने नया नाम हिन्दुधर्म दे दिया जिससे की सनातन धर्म का अस्तित्व और वास्तविक पहचान धीरे धीरे समाप्त हो जाए  और संभवतः यह नाम इस परिक्षेत्र मे रहने वाले लोगो के जीवन शैली के आधार पर तय हुआ होगा लेकिन जो जीवन शैली इस परिक्षेत्र के लोगो का है वह पूर्णतः सनातन धर्म यानि वैदिक ज्ञान पर आधारित है जो एक प्रकार से प्राकृतिक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है।
मुझे लगता है सनातन धर्म को हिन्दुधर्म का नाम मुगल शासन के दौरान एक राजनीतिक कुचक्र के तहत प्रचारित प्रसारित किया गया और जैसे जैसे मुस्लिम आक्रंताओ ने हिन्द महासागर के परिक्षेत्र पर अपना कब्जा कर सनातन धर्म मानने वालो की संख्या कम करते गए वैसे वैसे सनातन धर्म मानने वाले लोग एक निश्चित सीमा मे ही सीमित हो गये तब यह धर्म केवल हिन्दुधर्म बनकर रह गया जो कि वास्तविक सनातन धर्म का ही एक जीवन शैली है।

वैसे भी मुगलो का यह उद्देश्य ही था कि सनातन धर्म को समाप्त कर दिया जाए जिसे उन्होने हिन्दुधर्म का नाम देकर बहुत हद तक सफलता भी हासिल कर लिया था और जो बचा रहा उसे काग्रेस पार्टी के लोगो ने समाप्त करने की कोशिश किया क्योंकि मुगलो को सनातन धर्म व संस्कृति की श्रेष्ठता एवं वैज्ञानिक महत्ता अपाच्चय था जबकि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो आदिकाल से मनुष्य जीवन क लिए ज्ञान व संस्कार का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है बाकि सब तो बस एक सम्प्रदाय है एक विचार धारा है एक जीवन शैली है इससे अधिक और कुछ भी नही। यह हम भारतीयो का दुर्भाग्य है कि जो गलतफहमी मुगल व ब्रिटिश फैला गए उसी को सभी विपक्षी पार्टी आज सह दे रही है उसी पर राजनीति कर रही है और हम है कि उनके खेल का हिस्सा बनकर हो हल्ला कर रहे है आनंद ले रहे है और हमारा मूल धर्म- सनातन धर्म विलुप्त हो रहा है जिसे अब एक बार फिर से जिंदा करने का प्रयास किया जा रहा है तो कुछ समुह के लोग धर्म की राजनीति का नाम दे रहे है। 
मेरा अनुरोध है सभी सनातनियो से अब तो जागिये नही तो हमारी आने वाली पीढ़ी अपने मूल धर्म को जान ही नही पाएगी और सब लोग अपने को हिन्दु की जगह सनातनी कहना शुरू करिए क्योंकि हम सब सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है । सरकार से मांग करिए की सरकारी कार्यो व पहचान पत्रो मे प्रत्येक जगह धर्म के कालम मे हिन्दुधर्म हटाकर सनातन धर्म करे इसके लिए यदि बड़ा आन्दोलन करने की जरूरत हो तो उसके लिए माहौल तैयार करिए जातिवाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठिए सबको इकठ्ठा करिए जिससे हम सनातनी अपनी वास्तविक पहचान को विश्व से परिचित करवाए जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ये गर्व से कह सके की हम सनातनी है ।।
जय हो सत्य सनातन धर्म की ।। 

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 23 November 2020

कर्म फल का एक अद्भुत उदाहरण महाभारत के एक मुख्य पात्र धृतराष्ट्र से मिलता है

महाभारत युद्ध के मुख्य कारणों में से एक कारण धृतराष्ट्र स्वयं थे उनका राज्य के प्रति अत्यधिक मोह व लोभ और अपने पुत्रो की अपेक्षा पांडव पुत्रों का अधिक संस्कारी, सदाचारी व गुणवान होने का प्रभाव उन्हे अंदर से राजपाठ छूटने का भय पैदा करता था जिससे पांडवो के प्रति उनके अदंर ईर्ष्या का भाव बन गया था जो धृतराष्ट्र को व्यवहारिक रूप से अंधा बना दिया था और वे एक राजा का वास्तविक धर्म निभाने मे असफल रहे यह सब कुछ कही न कही उनके पूर्व जन्म के कर्मफल प्रारब्ध के प्रभाव के कारण हो रहा था लेकिन यदि वे चाहते तो अपने वर्तमान जन्म के कर्म, बुद्धि, विवेक, त्याग व सदाचार से उस प्रभाव को सुधार सकते थे परन्तु उनका स्व मन पर दृढ़ संयम न होने से उनका प्रारब्ध उन पर भारी पड़ा और कुरुक्षेत्र के मैदान में उनको अपने सौ पुत्रों का बलिदान देना पड़ा। 
 
धृतराष्ट्र जन्मांध क्यों थे ? इसके बारे में शायद ही कुछ लोगों को पता हो लेकिन पुराणों में उनके पूर्व जन्म की एक कथा का उल्लेख है जिसके अनुसार पूर्व जन्म में एक बार उन्होंने बिना देखे ही जंगल की झाड़ियों में आग लगा दिया था जहाँ एक सर्प, नागिन के १०० अंडेों की देखरेख कर रहा था, जो उसके बच्चो को जन्म देने ही वाली थी किन्तु उसी समय आग लग गई। जब नागिन ने अपनी आँखों के सामने अपनी संतानों की हत्या देखी, तो अत्यंत क्रोधित हो राजा को श्राप दे दिया कि "जिस प्रकार मेरी आँखों के सामने तूने मेरे १०० पुत्रो की हत्या की है, जिनका मुख भी मैं नहीं देख सकी... उसी प्रकार तेरे १०० पुत्र तेरी आँखों के सामने ही मारे जायेंगे और तू उनके मुख कभी नहीं देख सकेगा।
प्रारब्ध का खेल देखिए कि सर्प-श्राप के कारण कर्मफल फलित करने के लिए ईश्वर ने ऐसी रचना रची की धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे पैदा हुए और द्रौपदी जिनका एक दुसरा नाम याग्निक था  क्यो कि उनका जन्म अग्नि वेदी से हुआ था यानि द्रौपदी अग्नि पुत्री थी जो कि महाभारत युद्ध की दुसरी मुख्य पात्र थी जिन्होंने धृतराष्ट्र के लाड़ले पुत्र पर ऐसा व्यंग बाण छोड़ा कि दुर्योधन ने अपने विवेकहीनता की सारी पराकाष्ठा पार कर अपने कुल का ही सर्वनाशक बन गया। यहाँ एक बात समझिये कि पूर्व जन्म में नागिन के पुत्रों के मृत्यु का कारण अग्नि था तो  धृतराष्ट्र के पुत्रों के मृत्यु का कारण भी अग्नि पुत्री द्रौपदी ही बनी और धृतराष्ट के १०० पुत्र उनकी आँखों के सामने कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में मारे गये और राजा अपने पुत्रो का मुख कभी नहीं देख सके, विधि का विधान देखिये महाभारत युद्ध के पश्चात् जब धृतराष्ट्र को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो कुछ समय बाद उन्होंने अपने बुरे कर्मो का पश्चाताप करने के लिए अपने कुल गुरू वेद व्यास के आश्रम में जाकर तपस्या करने की इच्छा युधिष्ठिर से व्यक्त किया तब गांधारी व कुंती भी उनके साथ महल छोड़ जंगल में व्यास जी के आश्रम में प्रवास करने लगे। कुछ समय पश्चात एक दिन तीनों ध्यान साधना में लीन थे कि अचानक जंगल में आग लग गयी और तीनों की जीवन लीला आग की तेज लपटों ने समाप्त कर दिया।
कर्मो के बंधनों से मुक्ति असंभव है इसलिए कभी भी किसी की आत्मा को केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए दुःखी पीड़ित न होने दे क्यो कि किसी कमजोर असहाय की अंतरआत्मा की पीड़ा से निकला श्राप निश्चित रूप से फलित होता है। इसका एक और उदाहरण महाभारत कथा से मिलता है युद्ध समाप्ति के पश्चात भगवान श्री कृष्ण पांडवो को लेकर जब धृतराष्ट्र व गांधारी के पास गये तब दोनों अपने सौ पुत्रों के मृत्यु की वजह से बहुत दुःखी थे वार्ता के दौरान पुत्र मोह में दुःखी गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि वासुदेव तुम तो भगवान हो तुम तो सब कुछ जानते थे तो क्यो युद्ध को रोका नहीं तुम भी मेरे पुत्रों के मृत्यु के कारण हो और तुम्हारा परिवार व राजपाठ भी इसी प्रकार नष्ट हो जायेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका भी हस्तिनापुर की तरह नष्ट हुईं और श्री कृष्ण की मृत्यु भी बहुत पीड़ादायी थी। 
जय श्री कृष्ण। ।
RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Sunday, 22 November 2020

मौन मानव जीवन के लिए अध्यात्मिक ज्ञान व चिंतन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है जिससे जीवन की बहुत समस्याओं का समाधान संभव है।

मौन का अर्थ है वाणी की पूर्ण शान्ति यह वह शक्ति है जो आत्मा को परमात्मा से जोडने में सार्थक सिद्ध होती है। जीवन मे मौन का मतलब केवल चुप रहना नहीं है यह एक गहरी साधना का माध्यम है जिससे मनुष्य अपने अंतरआत्मा की धुंधली परतों को हटाकर अपने वास्तविक स्व रूप का परिचय प्राप्त करता है। मौन मनुष्य के भीतर के सौन्दर्य और गहराई को निहारने की एक अनूठी प्रक्रिया है। लेकिन जीवन मे मौन तभी संभव है जब व्यक्ति अपने आपको सांसारिक गतिविधियों से स्वयं को थोड़ा दुर कर अपने वाणी को विराम दे क्यो कि जब व्यक्ति अपनी  वाणी को संयमित करने का अभ्यास करना शुरू करता है तो वाणी धीरे-धीरे अपने आप विराम अवस्था को प्राप्त होने लगती  है तब व्यक्ति आहिस्ता -अहिस्ता अपने अंतरआत्मा के समीप पहुँचने लगता हैं और अपनी वास्तविक पहचान प्राप्त करने मे सक्षम होने लगता हैं क्यो कि मौन में वह शक्ति है जो प्राणों की ऊर्जा के अपव्यय का समापन करती है जिसे अक्सर मनुष्य अनर्गल बोलकर शब्दों के माध्यम से ह्रास करता रहता है। जो मौन धारण करके एकत्रित किया जा सकता है।

यदि लोग जीवन मे थोड़ा मौन धारण करने का प्रयास करे तो  मौन से संसारिक जीवन की नब्बे प्रतिशत समस्याएं कम होने  की संभावनाएं है लेकिन होता यह है कि मनुष अपने भीतर बैठे हर मनोविकार को वाणी के द्वारा बाहर प्रवाहित करता रहता है  जिससे उसके आस पास के नकारात्मक परिवेश का सृजन होता है। इसलिए व्यक्ति को विषम परिस्थितियों में बोलते समय हमेशा सतर्क रहना चाहिए क्यो कि विषम परिस्थिति में जिह्वा जो भाषा उत्पन्न कर सकती है वैसा तलवार के माध्यम से भी होना कठिन है। जिह्वा द्वारा दिया गया घाव कभी नहीं भरता इसलिए हमें हमेशा सकारात्मक सोच व विचार का प्रवाह रखना चाहिए और क्रोध कि स्थिति में हमेशा मौन रहे।  

आध्यत्मिक स्तर पर भी जीवन में ऊँचाइयों को छूने के लिए मौन का सहारा अवश्य लेना पड़ता है इसके लिए महावीर स्वामी ने भी बारह वर्ष तक मौन रखा और गौतम बुद्ध ने भी छ:वर्ष तक, जिसके पश्चात उनकी वाणी दिव्य हो गई। सांसारिक जीवन में साधारण मनुष्य के मन में हर पल विचारों का मेला लगा रहता है, हर क्षण उसके मन में एक नये विचार का उदय होता है। ऐसी स्थिति में मौन का पूरा लाभ तभी लिया जा सकता जब व्यक्ति बाहर के साथ-साथ अन्दर से मौन सुनिश्चित कर पाये और अंदर से मौन सुनिश्चित करने के लिए व्यक्ति को विचारों को भी संयमित करना होगा जो केवल ध्यान साधना से ही संभव है वैसे भी मौन और ध्यान दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है। इसके लिये व्यक्ति को संसारिक कौतूहल व लोगों के भीड से दूर प्रकृति के बीच में जाकर प्रयास करना चाहिए क्योंकि प्रकृति  हर समय संसार को एक नया सन्देश देती है उसके कण कण में एक दिव्य संगीत की धुन सुनाई देती है जिससे व्यक्ति भीतर से धीरे धीरे शान्त होते जाता है और प्रकृति के हर शब्द को अपने भीतर अनुभव करने लगता हैँ। भ्रमरों के गुंजार की अनन्त ध्वनि व्यक्ति को सुनाई देने लगती है डालों पर बैठे पक्षियों के चहचहाने जैसे भैरवी स्वरों का आभास व्यक्ति को होने लगता है। इस प्रकार मनुष्य जीवन मे आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को प्रकृति को समझना होगा जो कि अपने भीतर के मौन को जाग्रत करने से ही संभव है। 

मौन वास्तव में मनुष्य जीवन की वह संजीवनी शक्ति है जिससे व्यक्ति के प्राणों की ऊर्जा का पुन:विकास एवं उत्थान होता है। जीवन मे नित्यप्रति तीन या चार घंटे का मौन रखना लाभदायक होता है। मौन के निरन्तर अभ्यास से व्यक्ति की वाणी पवित्र होने लगती है और उसमें सत्यता जाग्रत होती है। ऐसा व्यक्ति वाणी से जो भी बोलता है वह सच होने लगता है। उसके व्यक्तित्व में गंभीरता आने लगती है और मन एकाग्रता की ओर बढ़ता है।  
मौन जब पूर्ण रूप से सिद्ध होकर लयबद्ध हो जाता है तब ऐसा महसूस होता है जैसे जीवन मे कोई विचार ही नहीं है और मन आत्मा में विलीन हो एक शान्त सागर जैसा प्रतीत होता है जहाँ  कोई लहरे नहीं उठती तब व्यक्ति एक रस में बहता चला जाता है। मौन में लहरों की भांति उठने वाले विचार विलीन हो जाते हैं। व्यक्ति को अहसास होता है कि जो 'मै' था वह केवल जड़ की अनुभूति थी। अब मै एक चेतना का सागर हूँ। परिपूर्ण मौन शान्ति के जल में मन की आहूति है।

मौन शान्ति का सन्देश है। यह स्वयं को ईश्वर से जुडने का सबसे सरल उपाय है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यस्त दिनचर्या में से कुछ क्षण निकालकर संकल्पबद्ध होकर प्रतिदिन मौन साधना में उतरकर परम शान्ति का अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए। यह मनुष्य जीवन के लिए एक श्रेष्ठ तप है जो हमारे ऋषि-मुनियों की अमूल्य धरोहर है। 
                           

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

घर में बहू चुनते समय संस्कार को वरीयता दे ना कि दहेज़

एक ऐसा सच जिसे बहुत कम लोग ही आज तक समझ पाये है कि - बुढापे की लाठी-"बहु" होती है न कि "बेटा"
हम लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है। इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कट जाए परन्तु ये बात केवल इतना ही सच है कि बेटे ही माध्यम होते है बहु को घर लाने के लिए बुढापे की लाठी तो बहू ही बनती है। बहु के आ जाने के बाद बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में डाल देता है और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी, जी हाँ ये लगभग सत्य है कि वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर या माॅ-बाप अपना जीवन व्यतीत करते हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती कि वे कब और कैसी चाय पीते है, उनके लिए क्या खाना बनाना है, शाम में उन्हे नाश्ता क्या देना है, रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है ये बहु को ही पता होता है न कि बेटे को। अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो अक्सर पूरे मन या बेमन से कहे बहु ही देखभाल करती है, अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चली जाएं, बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो। वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे उन्हे कोई पूछेगा नही, उनका अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटे को फुर्सत नही है और अगर बेटे को फुरसत मिल भी जाये तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है क्योंकि बेटो के तो केवल कुछ निश्चित सवाल है जैसे कि माँ-बाबूजी खाना खाएं,चाय नाश्ता किये या बीमार होने पर हास्पीटल तक छोड़ने तक ही वे अपनी जिम्मेदारी समझते है या ये कहे कि इससे ज्यादा उनके पास समय ही नही है लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं और ऐसा तभी संभव है जब वे उनके पास बैठे बाते करे लेकिन दुर्भाग्य से हमारे समाज मे माता पिता भी अपने बच्चों के साथ कभी इतना समय नही दिये होते है कि बच्चे उनके पास बैठकर कुछ समय व्यतीत करे या बात चीत करे जिससे उन्हे अपने बूढ़े माता पिता की दिनचर्या पता रहे ऐसा इसलिए भी है कि बहुत से माता पिता अपने बच्चों से खुलना पसंद नहीं करते है  लगभग हर घर की यही कहानी है। हम सब अपने आस-पास अक्सर देखते सुनते होंगे कि बहुएं या बेटियां ही अंत समय मे अपनी सास ससुर की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी बिल्कुल एक बच्चे की तरह, जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी, बेटा तो बचकर निकल जाता था किसी न किसी बहाने। ऐसे बहुत से बहुओ के उदाहरण हम सबको मिल जायेंगे। मैंने अपनी माँ व चाची को दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है वो बोलेंगी गुस्सा भी करेगी लेकिन आवश्यकता अनुरूप देखभाल भी करेगी। आपलोग में से ही कईयों ने अपने घर परिवार व समाज में बहुत सी बहुओं को अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा करते देखा होगा या कर रही होगी। कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है तब बहु ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत पड़ने पर नौकरी करती है लेकिन अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है। इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही बुढ़ापे की असली लाठी लेकिन अफसोस "बहु" की त्याग और सेवा उन्हे भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है। बहु के बाद यदि कोई और सास ससुर की सेवा करता तो वे पोते -पोती ही करते है लेकिन ये तभी संभव है जब बहू संस्कारी हो और सास ससुर ने उन्हें अपने घर लाने के बाद अच्छा सम्मान दिया हो क्यो कि घर का कोई नया सदस्य चाहे वो बहू हो या पोता पोती संस्कार तो अपने बड़ो से ही सीखते है।
इस लिए मेरा एक विनम्र निवेदन है आप सब लोगों से की बहू को #दहेज की तराजू में तौल कर मत लाइये बल्कि संस्कार शिक्षा व व्यवहार के तराजू पर तौल के लाइये क्योंकि बुढापे की लाठी बहू व उसके बच्चे ही बनेंगे न कि बेटा और भ्रूण हत्या का विचार भी मन से निकालिए खुशी मन से बेटियों का आगमन, जीवन मे ईश्वर का आशीर्वाद समझकर करें क्यो कि बेटियों का महत्व केवल बहू के रूप में लाने तक ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक महत्व है इस सृष्टि की संरचना को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए।
आप सबसे  प्रार्थना है कि मेरे इस विचार को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं शायद कुछ लोग इस सत्यता को समझ सके और #दहेज रूपी दानव का अपने जीवन परिवार व समाज से बहिष्कार करने मे आगे आए।


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Sunday, 26 April 2020

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को सर्व श्रेष्ठ तिथि क्यो माना जाता है ?

जो कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षय फल मिलता है इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। स्कंदपुराण और भविष्य पुराण में यह उल्लेख कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी अक्षय तृतीया की इस तिथि को परम पुण्यमय बताया है। अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है। युगादि का शाब्दिक अर्थ है युग आदि अर्थात एक युग का आरंभ। इस दिन सूर्य पूर्ण बली होते है इसीलिए इस दिन सूर्य प्रधान त्रेता युग का आरंभ हुआ।
अक्षय तृतीया को विशेष तिथि इस लिए भी माना जाता है कि आज के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी और महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था। भगवान शिव ने आज के दिन ही माॅ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन का संरक्षक नियुक्त किया था। इसीलिए इस दिन सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का विशेष महत्व है।

पुराणो मे ऐसा उल्लेख है कि आज के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन गंगा स्नान करने से व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है और यदि यह तिथि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल अत्यधिक बढ़ जाता हैं। आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

आज के दिन ही ऋषि जमादग्नि तथा माँ रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का भी अवतार हुआ था जो आज भी अजर अमर है। इनके अलावा छः और लोगों को अमरत्व का वरदान है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:,कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
भगवान शिव के परम भक्त श्री परशुराम धर्म न्याय व वीरता के साक्षात उदाहरण है परशुराम जी की त्रेता युग के दौरान सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर क्रोधित होने का उल्लेख मिलता है और दापर युग महाभारत काल मे उन्होंने गंगा पुत्र भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या प्रदान किया।

श्रीबांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से किया जाता है ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके और बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं। श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही होता है जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था।


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Sunday, 12 April 2020

मोदी जी के नेतृत्व में भारत का विश्वगुरु बनने की ओर बड़ता कदम।।

आज जब पुरे विश्व में कोरोना वायरस जैसी एक सूछ्म से परजीवी से लड़ते हुए लोग दम तोड़ रहे है । विश्व के सारे वैज्ञानिको व अनुसंधान केन्द्रो को इसका कोई उपयुक्त इलाज नही समझ आ रहा है, न कोई एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? नासा के सारे अंतरिक्षीय खोजो का औचित्य नगण्य हो गया है, सारा भौगोलिक व आर्थिक विकास एक छोटे से जीवाणु का सामना नहीं कर पा रहा ? एक छोटे से जीव ने आज लगभग पूरे विश्व को घरो में कैद कर दिया है। 
मध्य युग में पुरे यूरोप पर राज करने वाला इटली लगभग नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुका है यहाँ लगभग 20 हजार से अधिक लोग परलोक पहुंच गए हैं लाखों लोग अस्पताल में जीवन और मौत के बीच की सांसें ले रहे है जिन लोगों ने परिवार के सारे सदस्यो को इस महामारी में खो दिया वे लोग अपने जीवन के कमाया सारे धन को सड़को पर लुटा खुद आत्म हत्या कर रहे है। स्पेन, फांस, बेल्जियम, जर्मनी, डेनमार्क, लगभग पूरे यूरोप में त्राहीमाम मचा है अर्थव्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है। कभी पूरे मध्य पूर्व पर अपना आधिपत्य रखने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान व टर्की ) को अब कोई युक्ति नही सुझ रही हैं 3500 से अधिक लोगों की जीवन लीला समाप्त कर दिया एक छोटे से जीवाणु ने। ब्रिटिश साम्राज्य जिसका आधिपत्य एक समय विश्व के 56 देशो तक फैला था उसके वारिश आज स्वयं बर्मिंघम पैलेस में कैद होने को मजबूर हैं। रूस जैसे वृहद क्षेत्रफल वाला देश जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे आज अपना सारे बॉर्डर सील कर दिया हैं। अमेरिका जिसके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं जो पूरी दुनिया में अपने को अघोषित चौधरी समझता है यहाँ भी केवल एक महीने में 25 हजार से अधिक लोग दुनिया छोड़ चुके है और 3.5 लाख लोग जीवन की अंतिम सांसे गिन रहे हैं। जो आने वाले समय में पूरे विश्व को अपने कब्जे में करने के सपने संजोये है, वो चीन आज दुनिया के साथ विश्वासघात कर मुँह छिपता फिर रहा है।
आज विश्व के लगभग सौ से अधिक देश लाकडाउन की प्रकिया से गुजर रहे हैं सभी सामाजिक आर्थिक गतिविधिया बंद है। मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स सोच #कोरोना के कहर में पूर्ण रूप से शिथिल हो गयी है। आज पूरी दुनिया आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं उस भारत की ओर, जिसका सदियों से यही सारे देश अपमान करते रहे, लूटते रहे है लेकिन अब सबको लग रह है कि वर्तमान आपदा से लड़ने की राह विश्व को भारत ही दिखा सकता है ? आज दुनिया को हाइड्रोक्लोरोफ्लेक्सिन जैसी दवा कोरोना वायरस के बीमारी से बचाने में रामबाण का काम कर रही है उसके लिए पुरा विश्व भारत पर निर्भर है ये दवा पाकर ब्राजील के राष्ट्रपति ने मोदी जी को धन्यवाद प्रेषित करते हुए संजीवनी बूटी की संज्ञा दी। इससे पता चलता है कि अब भारतीय वैदिक सांस्कृतिक जीवन शैली की महत्ता का एहसास पूरे विश्व को हो चुका है जहाँ सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले हजारों ॠषि मुनियों ने आयुर्वेद,ध्यान, योग, हवन व यज्ञ जैसे तमाम ऐसे युक्तियो का विकास सदियों पहले कर दिया था जो सुरक्षित स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।
वैसे मुझे लगता है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी का अभी केवल आरम्भ हुआ है जैसे जैसे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी और आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु, जिनका न हमे परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी। ये कोरोना तो बस चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे हम मनुष्यो ने जन्म दिया है यह एक ऐसा युद्ध जिसमे हमें हरने की सम्भावना पूरी है यदि हम अब भी पर्यावरण से छेड़छाड़ करना बंद नही किये। वैसे सूछ्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है, ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा जिससे लड़ने के लिए भारत ने हर हथियार सदियों पहले खोज भी लिया था, मगर अहंकार, लालच व स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता वाली पश्चिमी व यूरोपीय सोच ने सब नष्ट कर दिया लेकिन आज भी भारत अपनी समृद्धिशाली वैदिक संस्कृति व व्यवस्था के उपयोग से विश्व के भीषणतम महामारी से लड़ने व संसार को दिशा देने मे सक्षम है और मार्ग निकलेगा उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से, जिन्हे कभी पैरों की ठोकर से तोडा गया था, उसी नीम और पीपल की छाँव में उम्मीद की किरणें दिखाई दे रही है, जिसका कभी उपहास किया गया था, उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना पड़ेगा, जिसे यही यूरोपीय व पश्चिम देशो ने स्वाद के कारण अपना मुख्य भोजन बना लिया। उन्ही मंदिरो के घंटनाद की परंपरा को अपनाना पड़ेगा जिन मदिंरो को तोडा गया था, उन्ही वेदो मंत्रों को पढ़ना पड़ेगा जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए तिरस्कृत किया था, उसी चन्दन तुलसी को मष्तक व गले पर धारण करना पड़ रहा है, जिसके लिए कभी हमारे मष्तक धड़ से अलग किये गए थे।
ये प्रकृति का न्याय है और विश्व को स्वीकारना होगा। युगों युगों से जब भारतीय सनातन धर्म एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते करने, हाथ पैर धोकर घर मे घुसने व मानवता के उच्चतम आदर्श को मानते हुए जानवरों, पेड़ों और जंगलों की पूजा करने, योग प्रणायाम व शाकाहारी भोजन अपनाने पर जोर दे रहा था, श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करने की परंपरा का पालन करने को कह रहा था तब पूरी दुनिया हंसती थी लेकिन अब? अब कोई नही हंस रहा, बल्कि कोरोना वायरस के प्रभाव में आज पुरा विश्व भारतीय संस्कार को अपना रहा हैं। पुुुरी दुुनिया आज नमस्कार की परंपरा का पालन कर रहा है, अमेरिका जैसा समृृद्धि व शक्तिशाली देश पीपल वृक्ष व तुलसी के पौधे को अच्छे पर्यावरण के लिए सर्वश्रेष्ठ मान रही है चीन दाह संस्कार की व्यवस्था को अपनाने के लिए कह रहा है, मलेशिया के एक वैज्ञानिक ने वहां के राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में लेख लिखकर लोगों से शाकाहारी खानपान को अपनाने की अपील किया, इंग्लैंड, अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में ससंद मे वैदिक मंत्रोचचारण कराया गया, जापान में महामृत्युंजय मंत्र का सामूहिक जाप आयोजित किया गया। स्पेन के राष्ट्रीय रेडियो चैनल पर प्रतिदिन सुबह वैदिक मंत्रों का प्रसारण करवाया जा रहा है।
आज प्रकृति, भारतीय संस्कृति सभ्यता का मजाक उड़ाने वालो को सीख दे रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और कर्म फल भोगना ही पड़ता है। कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म का उपदेश देते समय कहा कि वत्स पुरा ब्रहमांड मेरे मे ही समाहित है सब कुछ मै ही हूँ और संसार में घटित होने वाली सभी घटनाएं मेरे इच्छा के अनुरूप ही होती है फिर भी मेरा वस तो केवल कर्मफल तक ही निहित है मनुष्य तो सुख दुःख अपने कर्मो के फलस्वरूप भोगता है। भगवद्गीता में उल्लेखित यह सम्वाद आज रूस जैसे बड़े ताकतवर देश में प्राइमरी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल है। सच ही कहा गया है सनातन धर्म केवल एक धम॔ ही नहीं अपितु एक जीवन पद्धति है इसको दैनिक जीवन में अपनाने वालों को सामान्य विषाणु प्रभावित नहीं कर पाते हैं। 
दुनिया को ये मानना ही होगा कि अगर वास्तव मे समृद्धिशाली जीवन जीना है, तो ॠगवेद यजुर्वेद अथर्वेद व सामवेद, उपनिषद, भागवगीता, रामायण का गहन अध्ययन करना ही होगा, तक्षशिला नालंद की मिट्टी से क्षमा याचना करनी ही होगी और
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ।। की उच्चकोटि की सोच व भारतीय व्यवस्था को अपनाना ही होगा।।


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Tuesday, 24 March 2020

जब भारतीय परिवारों की हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि की दैनिक परंपरा जीवंत हो गयी

भारत देवताओं व ॠषि-मुनियों की भूमि है जहाँ वैदिक मंत्रोंच्चारण व यज्ञो के माध्यम से असंभव कार्यों व बीमारीयो का समाधान किया जाता रहा है, यहाँ शंख व घंट ध्वनि की परंपरा दैनिक जीवन में प्रातः व सांध्य वंदन के समय युगों पुरानी है जिसे राक्षसी प्रवृत्ति के विदेशी आक्रमणकारियों ने हजारो बार आक्रमण कर वैदिक साहित्य व संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयास किया लेकिन भारतीय ब्रम्हषियो की संतानों में वैदिक संस्कृति इस तरह समाहित है कि वे जड़ से समाप्त नहीं कर पाये। यही कारण है कि आज भी हम बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान वैदिक मंत्रों ऋषि मुनियों व पूर्वजों की कृपा से ढूंढ लेते है आज जब पुरा विश्व कोरोना वायरस जैसी महामारी से प्रभावित है ऐसे में एक बार फिर से हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि परंपरा का सहारा लेकर विषाणुओं को हवा में ही नष्ट करने का सफल प्रयास हम सबने मिलकर किया है।
हाल में ही आयोजित ऐतिहासिक जनता कर्फ्यू  का लगभग 100% सफल होना यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि भारतवासी मानवता व वैदिक परंपरा की रक्षा के लिए कभी भी एक आवाज पर संगठित हो सकते है सिर्फ आवाज देने वाले का उद्देश्य सही होना चाहिए। लोग इसको अलग-अलग तरह से परिभाषित कर रहे हैं कुछ लोगो का कहना है कि, ये जनता का सुरक्षित जीवन के प्रति डर या भारतीय सामाज की सवेंदनशील सोच या शायद देश प्रेम की वजह से संभव हुआ, लोग चाहे जो भी कहे लेकिन जिस तरह से रविवार 22 माच॔ की शाम को ठीक 5 बजे देश के हर गाँव, शहर, गली-मोहल्ले, में अमीर से अमीर जैसे देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक व गरीब से गरीब परिवार के प्रत्येक व्यक्तियों का एक साथ खड़े होकर शंखनाद नाद करना, तालियों की गडगडाहट व घंटो की आवाज, महिलाओं बुजुर्गों व बच्चों की उत्साहित भागीदारी ने ये सिद्ध कर दिया कि भारतीयों का युगों पुरानी वैदिक व्यवस्था पर आज भी अटूट विश्वास है। जिस का नजारा आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला, जब देश का हर घर मंदिर प्रतीत हो रहा था। जो भारतीय संस्कृति सभ्यता को जीवंत बनाए रखने का मोदी जी का एक अद्भुत प्रयोग और अगली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का एक बड़ा सदेंश भी था।
कोरोना महामारी के वजह से ही सही लेकिन देश की जनता ने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, संवेदनशीलता व जिम्मेदारी के भाव, लोकतांत्रिक सोच और राष्ट्र के प्रति नागरिक सम्मान के भाव का जो सदेंश जनता कर्फ्यू को सफल बनाकर दिया है ये अतुलनीय है। यह विजय नाद देश को कोरोना वायरस जैसे  दानव से आगे लड़ने में संयम प्रदान करेगा और भारत के नागरिक सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नवदुर्गा की कृपा से कोरोना महामारी को परास्त करेंगे। देश का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभारी है जिन्होंने कोरोना वायरस के खौफ के इस माहौल में भी बिना त्यौहार के, त्योहार जैसी स्थिति पैदा कर लोगों को भयमुक्त बना दिया तथा पूरे देश में एक साथ एक नियत समय पर शंखनाद करवाकर भारतीय संस्कृति सभ्यता को गौरवान्वित कर दिया। अब जनता साहस व विश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला सावधानी व संयम से करने के तैयार हो गयी है।
जय हिंद जय भारत। । 


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Saturday, 21 March 2020

कहीं कोरोना वायरस का कहर मानवता की रक्षा व प्रकृति के संरक्षण का सदेंश तो नहीं

प्रकृति से श्रेष्ठ और बलवान इस ब्रहमांड में कुछ भी नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कोरोना वायरस का कहर जिसके वजह से आज विश्व के 150 से अधिक देश प्रभावित है।  निस्संदेह यह समस्या मानव जनित है और इसकि भयावहता के माध्यम से प्रकृति ये सदेंश दे रहा है कि मनुष्य जन्म लेकर मानवता के परिचायक बनो ना कि दानवता का। आज हम सबको प्रकृति के इस प्रकोप को भूत, वर्तमान और भविष्य के कसौटी पर रखकर जीवन को समझने का प्रयास करना चाहिए।  सुनामी, भूकंप और कोरोना वायरस जैसी आपदाएं समय-समय पर कुछ सदेंश लेकर आती है मानव समाज को जागृत करने के लिए । यदि हम समझने का प्रयास करे तो देखे कैसे एक वायरस ने बहुत कुछ सिखा दिया हम सबको। जैसेकि आज राष्ट्रों की सीमाएं टूट गईं आतंकी बंदूकें खामोश हैं, अमीर - गरीब का भेद मिट गया। आलिंगन,चुम्बन का स्थान मर्यादित आचरण ने ले लिया। क्लब,स्टेडियम, पब, मॉल, होटल,बाज़ार के ऊपर अस्पताल की महत्ता स्थापित हो गई। अर्थशास्त्र के ऊपर चिकित्साशास्त्र स्थापित हो गया। एक सुई, एक थर्मामीटर, गन,मिसाइल टैंक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
मंदिर चर्च दरगाह मस्जिद बंद कर दिया गया है सारे आडंबर, दर्शन -प्रदर्शन सब बंद । मांसाहारी भोजन बंद शाकाहारी जीवन शैली को लोग अपनाने को आतुर है। पुरा विश्व आज भारतीय संस्कृति व परंपरा को अपनाने को तैयार हैं।धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी परिवार में लौट आया, पर संपर्क दुःखदायी और निज संपर्क सुखदाई हो गया है। चहुँ ओर केवल कोरोना वायरस से जीवन रक्षा कैसे की जाएँ बस यही चर्चा चल रही है।
कोरोना वायरस का अद्भुत असर जरा देखिये आज एक बार फिर से बुजुर्गों व अनुभवी लोगों की प्रचलित लोकोकति "जो होता है अच्छा होता है" को चरितार्थ कर दिया। कम से कम इसी बहाने ही सही लोग बहुत कुछ समझने सोचने व जीवन शैली में बदलाल लाने का प्रयास तो करेंगे। आज ये वायरस प्रकोप हमे यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म संप्रदाय या देश नहीं होता।
इस लिए जीवन के प्रति दृढ़संकल्प और संयमित रहते हुए सदैव मानवता व प्रकृति के रक्षा संरक्षण के लिए तत्पर रहे । जीवन में सावधानी और सतर्कता रखें,लपारवाह न बनें। यही कोरोना का संदेश है।

RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 15 July 2019

अन्तर्जातीय प्रेम विवाह कोई मुद्दा नहीं, बड़ा विषय है विश्वास आत्मसम्मान व् पारिवारिक संस्था के अस्तित्व व संस्कार का

आज इक्कीशवी सदी में जब हम ग्लोबल सिटीजनशिप की बात कर रहे है और संचार तकनीकी के माध्यम से  भारत या अफ्रीका में बैठे बैठे अन्टार्कटिका या ब्रह्माण्ड के किसी भी स्थान पर जीवनयापन कर रहे व्यक्ति से साक्षत्कार कर रहे है व्यापर कर रहे है, सोशल मीडिया व् डिजिटल यंत्रो के माध्यम से कसी भी द्वीप या दूरस्थ गांव में बैठे व्यक्ति से मित्रता कर एक दूसरे के संस्कृति संस्कार रहन सहन के बारे में चर्चा कर रहे है, सामजिक राजनीतिक व् व्यापारिक मुद्दों पर खुलकर अपने विचार रख रहे है, ऐसे समय में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह जैसे सदियों पुरानी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है जबकि हमारे भारतीय संस्कृति व् सनातन धर्म में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह के हजारो उच्चस्तरीय उदाहरण है और लगभग प्रत्येक दिन ऐसे विषय देश के विभिन्न हिस्से में सुनने को मिलते रहते है क्योंकि अब तो हमारा संविधान भी बालिग लडके - लड़कियों को आपसी समझ व सहमति से विवाह करने को अनुमति देती है फिरभी देश के लगभग सभी मीडिया चैनल द्वारा एक प्रेम विवाह के मामले में, एक लड़की की अहम्, अपरिपक़्वता या ये कहे की एक पिता पुत्री के बीच व्यवाहिरक या वैचारिक संवादहीनता का, एक चतुर व् चालाक लड़के द्वार अपने निहित स्वार्थ में फायदा उठाकर एक पिता के सपने, आत्मसम्मान व् मित्रवत पारिवारिक सामाजिक संबंधों के विश्वास का माखौल उड़ाना और मीडिया द्वारा उसे दलित समुदाय से जोड़कर हल्ला बोलना बेहद शर्मनाक बात है।
प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया व पवित्रबंधन है जो उम्र व् जाति के बंधन से मुक्त है और किसी भी लडके लड़की या स्त्री पुरुष के बीच आत्मीय शारीरिक रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप आगे बढ़ता है बाद मे पारिवारिक और सामाजिक सहमति से वैवाहिक सम्बन्ध में बदलता है। यंहा पर प्रेम दो विपरीत लिंग के व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन विवाह एक सामजिक व पारिवारिक संस्था है जिससे सामाजिक परम्परा, पारिवारिक संस्कार, नैतिक मूल्य, माता - पिता व रिश्तेदारों का मानसम्मान जुड़ा होता है ऐसे में किसी भी लड़की या लड़के को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आधार बताकर पारिवारिक संस्कारो व सामाजिक मूल्यो का हनन नही करना चाहिए क्योंकि ऐसे अन्तर्जातीय व् बेमेल प्रेमविवाह कुछ समय के लिए लडके लड़की के स्वहितो खुशियों सुखो की पूर्ति तो करते है लेकिन जीवनपर्यन्त के लिये माता पिता भाई बंधुओ रिश्तेदारों के लिए दुःख अपमान व् हजारो सवाल खड़े कर देते है। जिसका जवाब देना बहुत कठिन होता है। 
आज पूरा देश इस विषय पर चर्चा कर रहा है क्योंकि बरेली उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित परिवार की लड़की परिवार की असहमति से अपने पसंद के लडके से घर से भागकर शादी कर लेती है फिर उसे अपने जीवन का ही डर सताने लगता है और वो पिता भाई व घरेलु सम्बन्धियों के द्वारा हत्या कराये जाने का आरोप लगते हुए सोशल मीडिया माध्यम से एक वीडियो जारी कर देती है और पूरे देश मे साक्षी मिश्रा ( २१ वर्ष ) व अजितेश ( लगभग ३२ - ३४  वर्ष ) चर्चा के विषय बन जाते है क्योंकि लड़की के पिता विधायक है और लड़का दलित वर्ग से है इसलिए पिता जी को शादी मंजूर नही है ऐसा लड़की वीडियो सन्देश मे कहती है। देश की मीडिया को मसाला मिल जाता है क्योंकि ये एक ब्राह्मण विधायक की बेटी का दलित लडके से प्रेमविवाह का मामला है और प्रदेश मे सवर्ण समर्थक पार्टी की सरकार है। लडके लड़की को मीडिया नेशनल सेलिब्रिटी बना देती है प्राइम टाइम में सवर्ण व् दलित विवाह के मुद्दे पर चर्चा करवाती है लेकिन अपने नैतिक जिम्मदारी से किंकर्त्तव्यविमूढ़ ये भूल जाती है की मीडिया का एक महत्वपूर्ण कार्य देश व् समाज मे समरसता का माहौल बनाना, संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा कर सामाजिक व् राजनितिक सहमति से सही हल निकलना है न कि समाज, परिवार या विभिन्न वर्ग समूहों मे कटुता पैदा करना। यदि इस विषय पर ईमानदारी से मीडिया की भूमिका का आकलन करे तो पायेंगे की मीडिया ने देशभर को अपना दोहरा चरित्र दिखाते हुए दलित समुदाय के चरित्र पर ही एक बड़ा धब्बा मढ़ दिया की दलित समुदाय के लोगो को मित्र बनाना, घर में बैठाना खतरे से खाली नही है ये किसी के साथ विश्वासघात कर सकते है। मीडिया की सही भूमिका तो तब होती जब अन्तर्जातीय विवाह के बजाय ये लोग इस विषय को समाज में गिरते नैतिक मूल्यो, व्यावहारिक, सामजिक व् मित्रवत सम्बन्धो मे बढ़ती स्वार्थपरकता, पारिवारिक संस्था के कमजोर होते अस्तित्व, धर्म व् संस्कृति से विमुख होती नई पीढ़ी मे संस्कारो का हनन, माता पिता भाई बंधुओ के बीच वैचारिक मतभेद व संवादहीनता कैसे घरेलु छोटी समस्याओं को बड़ा रूप दे रहे है  ? कैसे  लोग अपने व्यक्तिगत अहम् व् स्वाभिमान मे स्वयं को सही साबित करने लिए गलत कदम उठा ले रहे है  जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार मानसिक तनाव मे लम्बे समय तक  तनाव मे जीने को मजबूर हो जाता है।  
जैसा की हम सब पिछले दस दिनों से नवविवाहित जोड़ी का साक्षत्कार विभिन्न टीवी चैनेलो पर सुन रहे है और  साक्षी द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दिए वीडियो सन्देश को भी सुना जिससे स्पष्ट हो रहा है कि ये अन्तर्जातीय विवाह से ज्यादा बड़ा विषय आपसी व पारिवारिक रिश्तो मे बढ़ती दूरियों, वैचारिक मतभेदो,आपसी विश्वास आत्मसम्मान व संस्कार का है। लड़की के बातो से लग रहा है एक पिता को अपने बेटी बेटो के साथ एक उम्र के बाद प्रत्येक मुद्दों पर खुलकर संवाद स्थापित करना चाहिए व प्रतिदिन एक निश्चित समय बैठकर अपने बच्चो से वार्तलाप करना चाहिए अपने अनुभव साझा करने चाहिए उनकी बातो को ध्यान से सुनना समझाना और संयम व विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, अपरिपक्क्व बच्चो की जिम्मेदारियां घर से बाहर के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए, गंभीर परिस्थितियों मे क्रोध से नहीं विवेक से काम लेना चाहिए जो की साक्षी के भाई ने नहीं किया क्योंकि भाई द्वार क्रोध मे अव्यवहारिक व असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग अजितेश व् साक्षी दोनों को बुरा लगा परिवार के इसी कमजोरी का फायदा अजितेश ने उठाया और दोनो ने इसे अपने स्वाभिमान व् अहम् से जोड़कर क्रोध और जल्दीबाजी मे शादी कर लिया जबकि साक्षी के बातो से ऐसा लग रहा है कि उसकी अपने पिता जी से वैचारिक मतभेद जरूर थे लेकिन यदि वे स्वयं से मामले को संभालते उससे बात करते समझाते तो शायद साक्षी शादी के लिए अजितेश की बात अभी नही मानती और विधायक जी को समय मिल जाता उपयुक्त निर्णय लेने का। इस पुरे मामले में अजितेश की भूमिका एकदम गलत है एक तरफ तो उसने अपने मित्र के साथ विश्वासघात किया दूसरी तरफ पारिवारिक सामाजिक सम्बन्धो को ही संदेह के घेरे मे खड़ा कर दिया अजितेश कितनी भी सफाई दे लेकिन उसके इस कदम से एकदम स्पष्ट है की उसकी नियति मे पहले से ही खोट था नहीं तो कोई भी समझदार व् विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने उम्र से १०-१२ साल छोटी लड़की से जिसको वो स्कूल के समय से जनता हो और उसके परिवार मे एक बेटे के सामान सम्मान पाता रहा हो, एक प्रकार से साक्षी उसके लिए बहन के सामान थी, ऐसा गलत कदम कभी नही उठाता। लेकिन यँहा हम लडके जितना दोषी मानते है साक्षी भी उतनी ही दोषी है क्योंकि २१ वर्ष की अवस्था तक बच्चो मे इतनी समझ तो आ ही की वो अपनी मान मर्यादा अच्छी तरह समझते है इसलिए लड़की को किसी भी स्थिति मे अपने माता पिता व् परिवार के सम्मान के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था स्वतंत्र विचार का होने से ये मतलब नहीं की कोई लड़की माता पिता के सपनो व् आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाये सामजिक मूल्यों व संस्कारो का हनन करे।
इस मुद्दे से समाज व परिवार के संरक्षकों को ये सीख लेनी चाहिए की नई पीढ़ी के साथ वैचारिक सामंजस्य व् समन्वय बैठाने की पूरी कोशिस करे उनसे खुलकर संवाद स्थापित करे और बच्चो को पर्याप्त समय दे, घर से सम्बंधित बाहरी लोगो पर, उनकी नियति पर पूरी नजर रखे व् समय रहते ही किसी भी विषम व विपरीत परिस्थिति का सामना करने से पहले ही उसका समाधान करे।


RATNESH MISHRAA mob. 09453503100 tcafe - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 24 July 2017

नये राष्ट्रपति का चुनाव जातीय राजनीति का खेल था या आम आदमी से खास आदमी बनाने का सन्देश !!

एक महीने की लम्बी प्रक्रिया के बाद २१ जुलाई को रामनाथ कोविंद जी को देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया जो भारतीय राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में जातीय राजनीति के लिए याद किया जायेगा। इसके साथ ही कोविंद जी के जीवन का यह स्वर्णिम दिन था जब वे कोई चुनाव जीते इसके पहले वे लोकसभा व् विधानसभा का चुनाव भी लड़े  थे लेकिन हार का सामना करना पड़ा था फिरभी दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके है क्यों कि ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा मे विश्वास  करते है और इन्होने अपना पूरा जीवन उसके प्रचार प्रसार मे लगाया जो की इनकी राष्ट्रीयता के प्रति प्रगाढ़ भाव को दर्शाता है और दूसरा कारण इनकी जाति।

इस बार का राष्ट्रपति चुनाव इस लिए भी और ज्यादा दिलचस्प था की सत्ता पक्ष ने भावी लोकसभा चुनाव २०१९ को ध्यान में रखते हुए जातिय समीकरण को साधने के लिए पार्टी के सबसे प्रबल और सबसे वरिष्ठ नेता व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दरकिनार करते हुए अनसूचित जाति से श्री कोविंद जी को उम्मीदवार बनाया जबकि पुरे देश को ये उम्मीद था की आडवाणी जी ही देश के अगले राष्ट्रपति होंगे, इसी के साथ २०१७ का राष्ट्रपति चुनाव जातीय राजनीति का मैदान बन गया और विपक्ष को मजबूरन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को विपक्ष का उम्मीदवार बनाना पड़ा ये जानते हुए भी की बहुमत सत्ता पक्ष के साथ है।
जैसा की हम सब ये जानते है कि संवैधानिक रूप से हमारे देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में जनता का प्रत्यक्ष रूप से कोई योगदान नहीं होता और न ही राष्ट्रपति अपने स्व विवेक से जनता के पक्ष में कोई निर्णय सकता है क्योकि हमारे संविधान का अनुक्षेद ७८ ये कहता है कि राष्ट्रपति अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह से करेंगे। वैसे तो सभी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की ही है लेकिन वे लगभग सभी नियुक्तियां मंत्रिमंडल की संस्तुति के अनुरूप ही करते है। यदि जनता के सीधे हित की बात करे तो केवल एक ही मुद्दे मृत्युदंड की सजा में माफ़ी के सन्दर्भ में ही राष्ट्रपति मुख्य भूमिका निभाते है लेकिन वे भी तब जब मंत्रिमंडल राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजेंगे तभी। सविंधान के अनुसार केवल एक ही वीटो पावर राष्ट्रपति को प्राप्त है वो अनुक्षेद १११ के तहत राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा संस्तुति किसी भी बिल को अपने पास रोक सकते है लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसको मंत्रिमण्डलके पास पुनः विचार करने के लिए भेजना ही पड़ेगा और यदि दुबारा मंत्रिमंडल उसी  बिल को राष्ट्रपति के पास भेजती है तो उन्हें संस्तुति देना ही पड़ेगा।

यँहा समझने वाली बात तो ये है की जब राष्ट्रपति को जनता के हित  में कोई निर्णय लेना का अधिकार ही नहीं है और न ही राष्ट्रपति जनता द्वारा सीधे चुना जाता है तो देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव के लिए जातीय राजनीत खेलने का औचित्य क्या था ? इस पर सत्ता पक्ष का कहना है वो तो देश के एक योग्य व् आम नागरिक को देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर देश को ये सन्देश देना चाहती है की कोई भी आम आदमी या पार्टी कार्यकर्त्ता हमारे पार्टी में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है।  तो प्रश्न ये उठता है की यदि ऐसा ही सोच थी तो किसी अन्य जाती या धर्म के आम आदमी को क्यों नहीं बनाया उम्मीदवार जिनका वोट प्रतिशत काम होता ? यु पी से ही उम्मीदवार क्यों चुना पंडीचेरी गोवा या नार्थ ईस्ट से भी किसी को उम्मीदवार बना सकते थे लेकिन चुकी कोविंद जी उत्तर प्रदेश के मूल नागरिक और वर्तमान में बिहार के राज्ज्यापल थे और अनुसूचित जाती से थे इसलिए उन्हें उम्मीदवार बनाया जिससे दोनों राज्यों के अधिकतर वोटर को सन्देश दे सके। जँहा से लोकसभा के सबसे ज्यादा लगभग १२0  सदस्य सदन का प्रतिनिधित्व करते है और यदि उत्तराखण्ड की ५  और झारखण्ड की १४ लोकसभा सीट को यदि और जोड़ दे तो कुल १३९  सीट पर राजनीतिक सन्देश देने के लिए इस बार राष्ट्पति चुनाव को जातीय रंग में रंग दिया गया। क्यों कि अब तक का ये इतिहास भी रहा है जो पार्टी इन दो राज्यों में सबसे ज्यादा सीट जीतती वही सरकार बनाती है।
 इसका निष्कर्ष  ये  निकलता है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टिया सत्ता पाने के लिए केवल जातीय राजनीत के खेल में उलझी हुयी है सत्ता पाना और सत्ता में बने रहना उनका प्राथमिकता है न की देश का विकास।  देश का विकाश तो तभी संभव हो पायेगा जब चुनाव पार्टी केंद्रित न होकर क्षेत्र के विकाश पर केंद्रित हो जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिए सही व् योग्य प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करे न कि किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष को ध्यान में रखकर। पार्टिया जातीय राजनीत का खेल इस भी खेलती है क्यों कि जनता भी बहुत हद तक इस खेल को समर्थन करती है जब जनता जाति को महत्व देना काम कर क्षेत्र के विकास को महत्व देना शुरू कर देगी तब राजनीतिक पार्टिया और क्षेत्र का प्रतिनिध दोनो विकाश के प्रति संकल्पित हो जायेंगे। इस लिए खासकर युवाओ को अब पार्टी केंद्रित होकर वोट नहीं देना चाहिए बल्कि प्रतिनिधि व् क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखकर प्रतिनिधि चुनना चाहिए। युवाओ को चाहिए की वे #वोट फॉर राइट कैंडिडेट !!के नारे को मजबूती से जनता के बीच में पहुँचाये जिससे आने वाले समय में जनता सही प्रतिनिधि को चुन सके जो किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए बहुत जरुरी हैऔर पार्टी केंद्रित चुनाव व्यवस्था का बहिस्कार कर प्रतिनिधि केंद्रित वोटिंग प्रणाली को प्रचलित करने की मांग तेज करे।

RATNESH MISHRA mob. 09453503100 www.theindianyouths.blogspots.com tCafe - "Sup For The Soul"Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Saturday, 9 July 2016

Youth must stand with UNITED NATION to achieve Sustainable Development Goal by 2030 !!

As Today half of World Population, around 51%  is dominated by Youth under age 30 yrs and Asia has largest Youth Population around 754 millions in which India count biggest with 445 millions, Not only Asian country but Middle East and African Country also has 69% population under age 30. Therefore youth has bigger responsibility today, for welfare of Society and in achieving the UN Sustainability Development Goals - which came in to realization During United Nation Sustainable Development Summit on 25 September 2015, where World leaders of 192 member country adopted the agenda of Sustainable Development Goal to end the Poverty, Inequality, Injustice and tackle Changing Climate by 2030 which include 17 point - No Poverty, Zero Hunger, Good Health & Well being, Quality Education, Gender Equality, Clean Water & Sanitation, Affordable Clean Energy, Decent Work & Economic Growth, Industry Innovation Infrastructure, Reduce Inequality, Sustainable Cities n Communities, Responsible Composition n Production, Climate Action, Life Below Water, Life Over Land, Peace Justice n Strong Institution and Partnership For the Goals with the objective of meeting citizens aspiration for Peace, Prosperity, Well being, and to preserve for planet. 


With acceptance of Youth importance United Nation Organization set up separate department for Youths Names as United Nation Youth Envoy to connect and coordinate with member nations youth to ensure the contribution of them in societal problem solving and development. UNO already designed many programs and support for youths to promote and appreciate work doing by them and recognition for his/her contribution for societal uplifment. Not Only UNO but many other international organisation are active in different region and continent of the Globe to support train and recognize the youth works So it depends on us now how to get connected with them to explore our passion towards social development. Though most of the UN SDG Goals can be achieve by creating awareness about Positive and Negative Impact of  act made by human being in day to day life, to create awareness youths can be play major role with better understanding help n solutions So We, Youth must Awake Stand and Understand the problem in deep to find right suggestion for society.

If we go in depth of the above mentioned SDG Goals We find that Inequality, Injustice, Gender Equality ( these 3 problem can be solve by realizing and accepting the importance of each n every community cast creed n genders in society ) , Decent Work Atmosphere ( It can be achieve by developing respect for each others Values n Ethics ), Good Health ( Yoga Practice can play major role to find healthy life ), Climate ( Population n Pollution are two major cause for changing climate it can be solve up to some extant by understanding important of clean environment for sustainable life for coming generation it require to teach society about Positive n Negative impact of modern life styles) , Sustainable Cities n Communities ( its also matter to generating better understanding of public about sustainability specially for traffic and cleanliness ), Peace n Justice ( Its the matter of developing value patience n sacrifices for them self and society ), Strong Institution n Partnership ( its also the matter of devotion respect and accountability about the institution people belongs ) these 9 goals can be achieve by creating awareness and setting stander Values to live better life in society. therefore Youths are in very important role for Society Not only for these 9 goal but for others also with creativity and innovations they can solve employment problem that will help in curbing poverty n hunger etc.

I would like to give call to Youth they must understand own responsibility towards society and country and come forwards with his/her own solutions and contribution to achieve United Nation SDG 2030 cause to find better livelihood society we first make it better .


RATNESH MISHRA mob. 09453503100 Cafe Nutri Club - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the flavor of Indian Home Food on the basis of occasion,season,time and environment.

Monday, 4 July 2016

युवाओं को आगे आना होगा देश को जातिवादी राजवाडों व क्षत्रपो से आजाद कराने के लिए !

हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य जातिवादी व्यवस्था है इस जातिवादी व्यवस्था की वजह से हिंदुस्तान हमेशा कमजोर पड़ा है। जिसका आभास प्राचीन समय से ही समय समय पर भारत यात्रा पर आये विदेशी यात्रियों व् छात्रों ने कर लिया था। जिसका लाभ पहले हुणो ने लिया आक्रमण कर भारत को लुटा फिर मुगलो ने और बाद में ब्रिटिशो ने। इस दौरान इन्होने जो भारतीय संस्कृत व् सभ्यता की ताकत थी उसे समाप्त करने की पूरी कोशिश की और जो कमजोरी थी जैस जातिवाद उसे आरक्षण जैसे व्यवस्था से जोड़कर और मजबूती दी, अब जो बाकी है उसे हमारे देश के ही कुछ चतुर नेतागण बड़ी ही चालाकी से अपने अपने वर्ग विशेष के लोगो को बरगला कर लूट रहे है।

यदि हम पुरे देश के क्षेत्रीय राजनीत का सही से अवलोकन करे तो पाएंगे की पुनः देश में लगभग उतने ही जातिवादी राजवाड़े पैदा हो गए है जितने सरदार पटेल ने आजादी के बाद हिंदुस्तान में शामिल करवाए थे। यदि हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का अवलोकन करे तो यंहा अजीत सिंह चौधरी रजवाड़ा , मुलायम सिंह यादव रजवाड़ा , मायावती दलित राजकुमारी, अमर सिंह राजा भैया क्षत्रिय राजवाड़ा , मुख़्तार अंसारी मुग़ल राजवाडा कई अन्य और भी है। अब बिहार को देखिए लालू यादव रजवाड़ा , रामविलास पासवान रजवाड़ा , नितीश कुमार कुर्मी राजवाड़ा , जीतनराम मंझिदलित राजवाड़ा, सहाबुदीन अंसारी राजवाड़ा इत्यादि। मध्य प्रदेश में ब्रिटिश समय से चला आ रहा सिंधिया राजवाड़ा, दिग्विजय सिंह राजपूत राजवाड़ा , चौहान राजवाड़ा , इसी तरह से पुरे देश में अलग अलग जातिवादी क्षत्रपो ने अपना अपना राजवाड़ा स्थापित कर लिया है। एक प्रकार से देश पुनः आजादी से पूर्व वाली राजशाही व्यवस्था की और बढ़ चुका है और इन जातिवादी राजाओ को अपने विकास के आलावा केवल उतना दिखता है जितने से केवल वे अपने जाती विशेष के विश्वास को जीतते रहे। जरा सोचिये जिस राजशाही व्यवस्था से निजात पाने के लिए हम सब लोगो ने १५० सालो तक आजादी की लड़ाई लड़ी और लाखो नवजवानों व महिलाओं ने अपनी कुर्बानी दी। पुनः आज ६८ साल बाद फिर उसी जाल में ये जातिवादी मसीहा कहे जाने वाले नेताओं, जो अब रजवाड़ो में बदल चुके है, के चक्कर में बुरी तरह से उलझ गए है जो केवल अपने कुनबे के विकाश में लगे है क्षेत्र, राज्य व देश का विकाश केवल एक दिखावा बन कर रह गया है।

आजादी के बाद जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी गयी थी उन्ही खामियों का फायदा उठाकर कुछ नेता केवल अपने स्वार्थ मे देश को जाती के आधार पर बांट दिया है। मजे की बात तो ये है की तब हमारी साक्षरता बहुत कम थी और बुजुर्गो की जनसंख्या ज्यादा क्यों की सही स्वस्थ सुविधा व पौष्टिक आहार की कम उपलब्धता की वजह से और जानकारी के आभाव मे ज्यादातर बच्चे मर जाते थे परन्तु आज जब कि देश मे युवाओं की संख्या विश्व मे सबसे अधिक है और वैज्ञानिक व शैक्षिक रूप से अच्छा विकाश हुआ है फिर भी देश मे जातिवादी रजवाड़ो व् क्षत्रपों का विकाश बहुत तेज हुआ है और कुछ गिने चुने नेताओं के बरगलाये मे देश के पढ़े लिखें युवा उनका साथ दे रहे है ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। आज चीन व अन्य यूरोपीय देश जो भारत के बाद आजाद हुए ज्यादा विकाश किये और भारत उनसे बहुत पीछे है क्योंकि मध्यकालीन समय से ही भारत को जातिवादी व्यवस्था बुरी तरह से जकड़े हुए है जो अब जादिवादी रजवाड़ो का रूप ले लिए है और ये केवल अपने लिए राजशाही हवेलिया, विदेशो मे हजारो एकड़ जमीन, पांच सितारा होटल और उद्दोग लगा रहे है उन्हें केवल अपने विकाश का ध्यान है जनता का विकाश तो केवल पेपरों पर है इन जातिवादी रजवाड़ो के साथ केवल उनका विकाश हो रहा है जो इनके चापलूस है या इनके लिए कारक, जैसे ब्रिटिश समय मे चापलूस धोखेबाज गद्दार देश के जमींदारों ने अंग्रेज अफसरों की चापलूसी कर कमाई उसी तरह आजके अधिकारी भी इन जातिवादी रजवाड़ो की गुलामी कर रहे है और अपने को मजबूत बना रहे है, आम जनता तो आजादी के पहले भी गुलाम थी आज भी गुलाम है अंतर तो बस इतना है की पहले विदेशियों के गुलाम थे और आज अपने जातिवादी क्षत्रपों के गुलाम।

आज देश के युवाओं को इस बात को बहुत गहराई से समझने की आवश्य्कता है यदि आप वास्तव मे भारत को एक विकसित देश व विश्व मे सबसे ताकतवर देश बनने देखना चाहते हो तो जातिवादी राजनीत से बहार निकलना होगा और राष्ट्र शक्ति व् विकाश के नाम पर एकजुट होना होगा। देश को इन जातिवादी रजवाड़ो के चंगुल से मुक्त कराना है तो अपना नेता जाती के आधार पर न चुनकर उसे चुनना होगा जो विकाश की बात करता हो जो देश की बात करता हो ना कि जाति कि या स्वार्थ कि। अपना नेता उसे चुने जो क्षेत्र के विकाश के लिए दृंढ संकल्पित हो पढ़ा लिखा राष्ट्रवादी हो न कि जातिवादी। जिसके लिए पार्टी से ऊपर क्षेत्र का विकाश व देशहित हो।

RATNESH MISHRA mob. 09453503100 www.theindianyouths.blogspots.com Cafe Nutri Club - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.

Wednesday, 20 January 2016

अच्छे भविष्य के लिए युवाओ को जातिगत राजनीत से बहार निकल एकत्रित होना होगा !

आजादी के ६९ वर्ष बाद भी हमारा देश धीमीगति से विकास कर रहा उसके पीछे मुख्य कारणो मे से एक कारण जातिगत राजनीतिक अवधारणा है जिसको आरक्षण के लौ ने और मजबूत ही किया है। आज जबकि देश में युवाओ की जनसँख्या विश्व में सबसे अधिक ३५६ मिलियन केवल १०-२४ वर्ष के युवाओ की है और पढ़े लिखे लोगो की जनसंख्या ७० % से अधिक है जो आजादी के समय ४० % भी कम हुआ करती थी ऐसे में यदि एक २२ वर्षीय दलित शोध छात्र आत्मा हत्या करता है  तो ये निसंदेह एक बड़ी सोच व चर्चा का विषय है ऐसी घटनाओ और आंदोलनो के पीछे कौन है ? इसको भी समझाना जरुरी है, नहीं तो देश का युवा शक्ति जो समाज को नई दिशा दे सकता है वो भटक जायेगा और देश गृह युद्ध की स्थिति मे पहुँच जायेगा।
आज जो हमारी आर्थिक विकाश दर विश्व मे तीसरी पायदान पर है उस पर देश का हर युवा गौरवान्वित महसूस कर रहा है और देश को विश्व शक्ति के रूप में देखने के लिए हर संभव योगदान देने को तैयार है। आज जंहा देश मे युवाओ द्वारा स्थापित और संचालित ४४०० संस्थाए देश मे दस लाख से अधिक लोगो को रोजगार मुहैया करा रहे है जो कि अमेरिका व् ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ आने वाले सालो मे करोडो लोगो को रोजगार मुहैया कराते हुए देश को विश्वशक्ति बनाने मे आगे बढ़ने को तैयार है, ऐसे मे कुछ स्वहित से स्थापित संस्थाए व संगठन युवाओ को भ्रमित कर, उनकी एकता को विखंडित कर देश मे गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकते है जो वे अपने स्वहित के सामने या तो समझ नहीं पा रहे या इतना आगे बढ़ चुके है की अब उनके पास ये समझने का विकल्प ही नहीं है ऐसे में सरकार को आगे बढ़कर ऐसे संस्थाओ को  चिंहित कर दिशा देने की जरुरत है।

आज जब हमारे देश की युवा पीढ़ी जागरूक है ऐसे मे विश्वविद्यालय व अन्य सभी शैक्षणिक संस्थाओ को छात्र राजनीत से मुक्त कर, नकारात्मक विचार से संचालित गैर सरकारी संस्थाओ व् संगठनो को शैक्षणिक परिसर मे प्रतिबंधित करना समय की आवश्यकता है क्यों कि छात्रों मे अब नेतृत्व की क्षमता विकसित करने के कई अन्य माध्यम भी प्रचलित हो रहे है जो उनमे सकारत्मक भाव को विकसित कर रहे है जैसे की - "युथ पार्लियामेंट" के तहत सदनीय कार्यवाही का अनुभव कराना, "युथ कांग्रेस" के तहत गंभीर मुद्दो पर चर्चा से समाधान निकालना व युवाओ के विचार और रचनात्मकता को समझाना, "युथ समिट" के माध्यम उनके द्वारा किये जा रहे कार्यो को प्रोत्साहन देकर विभिन्न समस्याओं पर उनसे ही वार्षिक प्रोग्राम तैयार करवाकर उनकी ऊर्जा व रचनात्मकता को उपयोग में लाना, इससे उनमे आत्मविश्वास की वृद्धि होगी व् उनको प्रोत्साहन मिलेगा, न की उनको छात्र जीवन में ही राजनीत मे झोककर उनके अंदर जाति -धर्म -सम्प्रदाय- आरक्षण जैसी नकारात्मक भाव को बढ़ावा देना।

युवाओ को ये सोचनाहोगा की आखिर हमारा देश आज भी पीछे क्यों है ? जब कि हमारे साथ आजाद अन्य देश विकसित देश की श्रेणी मे शामिल है।  उसके पीछे मुख्य कारण, देश के कुछ नेताओ ने अपने फायदे के लिए देश की जनता को "जाति -धर्म- आरक्षण" के जाल मे भ्रमित कर रखा है, जिसे, आज देश के युवाओ को समझाना होगा और ऐसी भावनाओ व नेताओ के चाल से बाहर निकलकर, देश के विकास व राष्ट्रहित मे सोचना होगा तभी हमारा और देश का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। हम युवाओ को ये सोचना होगा की, हम देश को विश्वशक्ति बनाने मे क्या योगदान दे सकते है अपनी ऊर्जा को उसमे लगाना चाहिए, न की जाति धर्म व आरक्षण के भाव को भड़काने वाले संगठनो के बहकावे में आकर अपनी ऊर्जा का दुरूप्रयोग क्योंकि जैसे जैसे समाज शिक्षित व विकसित हो रहा है वैसे वैसे ये जाति धर्म की बाते गौड़ हो रही है, ऐसे में आने वाली पीढ़ी इन मुद्दो पर साथ नहीं देगी इस लिए जो युवा भ्रम में आकर ऐसे मुद्दो पर अपना राजनैतिक भविष्य भी देख रहे है वो बेवकूफ है जैसे की #रोहितवुमेला जो अपने अंतर्मन को भी नही पहचान पाया और अंत मे कुछ जाति धर्म के ठेकेदारो के जाल मे फस कर अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर लिया उनका क्या गया जिन लोगो ने उसे बरगलाया था कुछ भी नही बल्कि उनको तो अपनी राजनीति चमकाने और दलितों का मशीहा बनने का एक और मौका दे गया वो । इसलिए नवजवानों पहचानो अपने मन को की तुम्हारा मन क्या कहता है बहकावे में मत आओ।

देश मे कोई दूसरा #रोहितवुमेला  न बन पाये, इस लिए युवाओ तुम जाति धर्म व आरक्षण के भ्रम से बाहर आओ एकत्रित हो और नकारात्मक भावनाओ को भड़काने वाले संगठनो व नेताओ को सीख दो की, हम एक है विखंडित नहीं होगे।  राष्ट्र का विकास व राष्ट्रहित हमारी प्राथमिकता है न कि घृणत राजनीत।
जय हिन्द जय भारत !!

RATNESH MISHRA mob. 09453503100  Cafe Nutri Club - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the flavor Indian Traditional Dishes.

Friday, 1 May 2015

An overlook About Gender Inequality Problem in India

Gender inequality in India is multifaceted issue that refers to Health, Education, Economic and Political inequality but majorly it evaluate by “ Sex Ratio Gap” between Men and Women Globally, Which is 940 F/ 1000 M in India . As per annual report made by various institution like UNDP, WEF, OECD on parameter of “ Sex Selective Abortion and Female -Male literacy ratio ” shows that India along with other Developing Countries have high gender inequality and low women empowerment than Developed countries.

Reports indicate that developing countries have Big Gender base Economic inequality, Low Literacy and Poor Health. There are huge gap between Men and Women Wage Payment- men paid 103/ day and women paid 55 / day, Although Government has taken various corrective major like Micro Credit Programme promoted by women Self Help Group, Equal Inheritance Right to Ancestral Properties and allowing them to participate in Armed Forces resulting in improving women economic inequality. Female Literacy rate 65% than male 82% - reason are Patriarchal Society, Lack of Sanitary facilities, Lack of Female Teachers in schools/ college and Social Security even though  government has introduced many programme like “ Non Formal Education Programme” in which about 40% centres in state and 10% in union territory exclusively reserve for females. Also state like Orrisa reserved 30% seats for females in medical- engineering college and universities, UP govt ensure free education for Girl Child till the Graduation etc . On the Health and Survival measures Domestic Gender Violence is major problem of female inequality, major source for Gender violence are Slective Sex Abortion, Rape and Dowry despite Government banned the selective abortion under Pre-conception and Pre-natal Dignostics Techniques Act in 1994 and taking -giving Dowry by Dowry Prohibition Act 1961.

Furthermore Gender inequality is a historic worldwide phenomena rooted in Cultures and Gender norm that organizes social life human relation as well as promote subordination of women in form of social stata. In India this cultural influence favour the preference for son related to kinship, lineage, inheritance, identity, status and economic security across the cast n class line. Also the Patriarchal nature of Indian society feel that Girls child will go to her husband house so they will lose all they have invested in and expected support from the son in old age  are disincentive for girls sex selection. Another reason for Son preferences in Indian Society are they only entitled to perform funeral of parents and daughter become liability due to humpty dowry demand even dowry is prohibited under Indian Civil Law by section 304B and 498A of Indian Penal Code. Although since independence India made many significant legal reform to address gender inequality . For instance Constitution of India contain a clause guarantee the Right of Equality and Freedom from Sensual Discrimination and also the signatory to the Convention for Elimination of all Forms of Discrimination against Women. Also Different state and union territory of India in cooperation with central government initiate numbers of region specific program targeted at women to help reduce gender inequality like Swarnjayanti Gram Swarozgar Yojana, Kidhori Shakti Yojana, Swayamshidha Mahila Mandal Programme,  Rashtriya Mahila Kosh, Swawalamban Programme,  Mahila Samkhya Programme,  Balika Samridhi Yojana etc.

In spite all above corrective major country facing Gender inequality problem cause of Patriarchal Nature of Indian Society, Increasing demand of Dowry and Social Insecurity for Girl Child and Women. So to solve this problem we require to Change mind set of society and build strong positive image about women strength. Youth should come forward to create awareness in society about Government Programme and raise voice against mere evil Dowry - mother of many problems like Gender imbalance,  corruption,  inequality in society etc and stand against the Rape n Female foeticides case.                                                     
                                               

RATNESH MISHRA mob. 09453503100 www.theindianyouths.blogspots.com Cafe Nutri Club - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.