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Saturday, 14 January 2023
क्या भारत जोड़ो यात्रा के सहारे सत्ता वापसी का राहुल गांधी का जीवट प्रयास सफल होगा
Friday, 30 December 2022
इक्कीसवीं सदी में मां शब्द और मातृत्व के आस्तित्व को चरितार्थ करने वाली हीराबेन बा और नरेन्द्र मोदी
देश के यशश्वी प्रधानमंत्री की देवतुल्य माता हीराबेन मोदी जी की दिव्य आत्मा पंचतत्व से बने दैहिक जैविक शरीर में 100 वर्ष तक एक सशक्त महिला पत्नी और मां के रुप में समाज में एक मजबूत छवि स्थापित करने के पश्चात आज ब्रह्ममुहूर्त में गोलोक की यात्रा पर निकल गई जिनके मातृत्व प्रेम की चर्चा हम सब लोग जब से नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए है तब अक्सर सुनते रहें है खास तौर पर जब मोदी जी अपने जन्मदिवस पर उनसे आशीर्वाद लेने जाते या माता जी के जन्मदिवस पर उनसे मिलने उनका कुशलक्षेम पूछने जाते......
जो भी हो मोदी जी ने पिछले आठ सालों में पूरे देश की युवा पीढ़ी और समस्त जनमानस को मातृत्व प्रेम आशीर्वाद व अस्तित्व का जो संस्कार देश के प्रधानमंत्री के रूप प्रेषित किया है वो निःसंदेह सराहनीय है और मैंने ऐसा महसूस किया है कि देश में मातृशक्ति के प्रति लोगो का दृष्टि पिछले कुछ वर्षों में बदला और सम्मान भी बढ़ा है। हीराबेन के सांसारिक जीवन के अंतिम यात्रा में एक प्रधानमंत्री के रुप में उनके अर्थी को कांधा देकर मोदी जी ने देश वासियों को अपने कर्तव्य निर्वहन का बहुत बड़ा संदेश दिया है।
वैसे तो सनातन संस्कृति में मातृत्व का बहुत आदर सत्कार और सम्मान एक जननी के रूप में वैदिक काल से ही बताया गया है लेकिन मोदी जी ने आज इक्कीसवीं सदी में मातृत्व के सम्मान में अपने व्यवहार से देश व समाज को जो सन्देश दिया है वह निःसंदेह प्रेरणादायक है।
मोदी के अनुसार हीराबेन ने अपने अंतिम मुलाकात में मोदी से "अपने कर्तव्यों को बौद्धिक क्षमता से और जीवन को शुद्धता से जीने का मंत्र दिया "
ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करे।
ॐ शांति। ॐ शांति। ॐ शांति।।
Wednesday, 14 September 2022
गर्व से कहो हम हिंदी भाषी है और हिंदी हमारी आत्मीय भाषा है
आज हिंदी दिवस है तो सोचा कुछ हिन्दी पर ही लिख दिया जाए ......
सही पूछिए तो हिन्दी के बिना कोई भी भारतीय अपनी भावनाओं को सही मायने में नहीं व्यक्त कर पता है .... हम ये भी कह सकते है दिल की बात प्यार दुलार अपनेपन की बात जितना सरल और अच्छे तरीके से हम अपने क्षेत्रीय भाषा चाहे वो पंजाबी गुजराती मराठी हो या बंगला हो, या उड़िया या तमिल तेलगू या हो अवधी या मैथिली या हो मलयाली या कन्नड़ में व्यक्त कर सकते है उतना आंग्ल या अंग्रेज़ी भाषा में नहीं ........
हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में जो आत्मीयता या अपनापन है वो किसी और में नहीं उदाहरण के तौर पर देखे कि अंग्रेजी भाषा में केवल एक ही शब्द Uncle - Aunty से ही चाचा चाची मामा मामी फूफा बुआ मौसा मौसी सबको संबोधित कर दिया जाता है सब एक ही समान है चाहे बड़े हो या छोटे कोई सम्मान या प्यार या लगाव का भाव नहीं और मजेदार बात यह है की यदि सारे लोग एक साथ खड़े हो तो एक बड़ी फजीहत हो जाती है पांच बार बोलो और इशारे करो तब समझ आएगा की किस Uncle - Aunty को बुला रहे है आप .........
इसी प्रकार अन्य रिश्तों में है पिता जी माता जी कहने में जो आत्मीयता, प्यार व सम्मान का भाव हैं वो Daddy, Mummy कहने में नहीं है। वैसे भी Daddy Mummy दोनो शब्द मृत भाव को प्रेषित करते है कहने का अर्थ है की अंग्रेजी भाषा में हम माता पिता को ऐसे शब्दों से पुकार कर उनके सकारात्मक ऊर्जा को दूषित ही कर रहे होते है इससे उनकी आयु व स्वास्थ्य को प्राभावित कर रहे होते है आप...........
क्या अध्यापक को Teacher कहना और Teacher नाम का दारू पीना दोनों में कोई अपनापन लगाव व सम्मान है जो आचार्या जी या गुरु जी कहने में ..........
अब यदि बात करे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से प्रयोग होने वाले कुछ अन्य अंग्रेजी शब्दो का जैसे......
Congratulations, Best Wishes " हार्दिक बधाई मित्र, बहुत बहुत शुभकामनाएं "
Thank You को "आभार भाई साहब" / मित्र
Wish You Happy Birthday, God Bless You or Stay Blessed को " जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मित्र/ भाई, ईश्वर आपको दीर्घायु बनाए " कहते है।
आप महसूस करेंगे की ज्यादा अपनापन किस भाषा में लग रहा है।
इसी तरह किसी के मृत्यु पर दुःख प्रकट करने के लिए व्यवहारिकता निभाने के लिए लोग अक्सर RIP Rest in Peace बोल देते है या लिख देते है वैसे तो अब लोगों को social media के माध्यम से इस शब्द का सही अर्थ तो पता चल गया है फिर भी लोग यही शब्द प्रयोग करते है लेकिन जब यही हम अपने भाषा में बोले तो भाव बदल जाता है " बहुत दुखद घटना, ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करे" ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति।।
जरा पढ़ के देखिए कितनी आत्मीयता हिन्दी शब्दो में महसूस हो रहा हैं।
ऐसे बहुत उदाहरण है जिसकी हम यहां चर्चा कर सकते है लेकिन बहुत लंबा हो जायेगा
यहीं नहीं मैने स्वयं कई बार ऐसा महसूस किया है यहां facebook पर लिखते समय जब मैं अंग्रेज़ी में कुछ लिखता हूं तो वो भाव नहीं प्रेषित कर पता हूं जो हिन्दी भाषा में .......
मैं ही नही मैने बड़े बड़े पत्रकारों और अधिकारियो को देखा है वे अपने भाव हिंदी भाषा में ही व्यक्त करना ज्यादा सुगम समझते है जो स्वाभाविक ही है ......
यही नहीं आप संस्कृत के श्लोक को या हिन्दी गीत को सुनकर ज्यादा शांत और आनंदित महसूस करते है बजाय अंग्रेज़ी गीत के ..........
केवल यही नहीं मैने कई बार ऐसा देखा है जब job interview के लिए कोई उम्मीदवार HR Manager ya Team Manager के सामने ज्याता है वो कोशिश करता है की कितना जल्दी वह अंग्रेज़ी से हिंदी में संवाद शुरू कर सके क्यों कि हिंदी में वो अपने बातो कामों हुनर और उपलंधियो को ज्यादा सरलता से भावात्मक रूप से कह पता है और सामने वाले को प्रभिवित करने में उसे ज्यादा आसानी होती यही नहीं अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में वो ज्यादा संवाद स्थापित कर पता हैं साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति से,..........
वैसे भी आप अंग्रेजी में लिखकर या बोलकर कुछ लोगो को प्राभावित तो कर सकते है लेकिन संवाद स्थापित करने वाले व्यक्ति को अपना तभी बना पाएंगे जब आप उनसे हिन्दी में भाव व्यक्त करेंगे, संवाद करेंगे, क्यो कि अपनी भावनाओं को आप जितनी सहजता सुगमता सरलता से हिंदी में व्यक्त कर पाएंगे जो सामने वाले के दिल और दिमाग में आपकी एक अच्छी छवि बना सके वो अन्य भाषा में संभव नहीं है
इस लिए मेरा तो यही कहना है कि अंग्रेजी भाषा को केवल official भाषा तक ही सीमित रखें और व्यावहारिक ब वक्तिगत जीवन में हिन्दी भाषा या मातृ भाषा को ही उपयोग में लाए तो ज्यादा अच्छा है और ये केवल अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे बच्चो को भी समझाए की अंग्रेजी स्कूल और प्रतियोगिता तक ही सीमित रखें।
जय हिंद जय भारत ।।
आप सभी मित्रों को हम भारतीयों की मातृ भाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। 💐💐🙏
Monday, 12 September 2022
राजधानी दिल्ली का राजपथ मार्ग अब कर्त्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा
Wednesday, 7 September 2022
कौन है ईश्वर ? क्या आपने कभी देखा
Wednesday, 15 June 2022
युवा भारत के भविष्य को संवारने के लिए अग्निपथ के अग्निवीर योजना
Friday, 17 December 2021
विवाह एक संस्कार है जो पारिवार सामाज व परम्पराओ के अनुसार सम्पादित होता है ना कि कानून के मुताबिक।
हम सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है
Monday, 23 November 2020
कर्म फल का एक अद्भुत उदाहरण महाभारत के एक मुख्य पात्र धृतराष्ट्र से मिलता है
Sunday, 22 November 2020
मौन मानव जीवन के लिए अध्यात्मिक ज्ञान व चिंतन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है जिससे जीवन की बहुत समस्याओं का समाधान संभव है।
घर में बहू चुनते समय संस्कार को वरीयता दे ना कि दहेज़
एक ऐसा सच जिसे बहुत कम लोग ही आज तक समझ पाये है कि - बुढापे की लाठी-"बहु" होती है न कि "बेटा"
हम लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है। इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कट जाए परन्तु ये बात केवल इतना ही सच है कि बेटे ही माध्यम होते है बहु को घर लाने के लिए बुढापे की लाठी तो बहू ही बनती है। बहु के आ जाने के बाद बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में डाल देता है और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी, जी हाँ ये लगभग सत्य है कि वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर या माॅ-बाप अपना जीवन व्यतीत करते हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती कि वे कब और कैसी चाय पीते है, उनके लिए क्या खाना बनाना है, शाम में उन्हे नाश्ता क्या देना है, रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है ये बहु को ही पता होता है न कि बेटे को। अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो अक्सर पूरे मन या बेमन से कहे बहु ही देखभाल करती है, अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चली जाएं, बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो। वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे उन्हे कोई पूछेगा नही, उनका अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटे को फुर्सत नही है और अगर बेटे को फुरसत मिल भी जाये तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है क्योंकि बेटो के तो केवल कुछ निश्चित सवाल है जैसे कि माँ-बाबूजी खाना खाएं,चाय नाश्ता किये या बीमार होने पर हास्पीटल तक छोड़ने तक ही वे अपनी जिम्मेदारी समझते है या ये कहे कि इससे ज्यादा उनके पास समय ही नही है लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं और ऐसा तभी संभव है जब वे उनके पास बैठे बाते करे लेकिन दुर्भाग्य से हमारे समाज मे माता पिता भी अपने बच्चों के साथ कभी इतना समय नही दिये होते है कि बच्चे उनके पास बैठकर कुछ समय व्यतीत करे या बात चीत करे जिससे उन्हे अपने बूढ़े माता पिता की दिनचर्या पता रहे ऐसा इसलिए भी है कि बहुत से माता पिता अपने बच्चों से खुलना पसंद नहीं करते है लगभग हर घर की यही कहानी है। हम सब अपने आस-पास अक्सर देखते सुनते होंगे कि बहुएं या बेटियां ही अंत समय मे अपनी सास ससुर की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी बिल्कुल एक बच्चे की तरह, जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी, बेटा तो बचकर निकल जाता था किसी न किसी बहाने। ऐसे बहुत से बहुओ के उदाहरण हम सबको मिल जायेंगे। मैंने अपनी माँ व चाची को दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है वो बोलेंगी गुस्सा भी करेगी लेकिन आवश्यकता अनुरूप देखभाल भी करेगी। आपलोग में से ही कईयों ने अपने घर परिवार व समाज में बहुत सी बहुओं को अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा करते देखा होगा या कर रही होगी। कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है तब बहु ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत पड़ने पर नौकरी करती है लेकिन अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है। इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही बुढ़ापे की असली लाठी लेकिन अफसोस "बहु" की त्याग और सेवा उन्हे भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है। बहु के बाद यदि कोई और सास ससुर की सेवा करता तो वे पोते -पोती ही करते है लेकिन ये तभी संभव है जब बहू संस्कारी हो और सास ससुर ने उन्हें अपने घर लाने के बाद अच्छा सम्मान दिया हो क्यो कि घर का कोई नया सदस्य चाहे वो बहू हो या पोता पोती संस्कार तो अपने बड़ो से ही सीखते है।
इस लिए मेरा एक विनम्र निवेदन है आप सब लोगों से की बहू को #दहेज की तराजू में तौल कर मत लाइये बल्कि संस्कार शिक्षा व व्यवहार के तराजू पर तौल के लाइये क्योंकि बुढापे की लाठी बहू व उसके बच्चे ही बनेंगे न कि बेटा और भ्रूण हत्या का विचार भी मन से निकालिए खुशी मन से बेटियों का आगमन, जीवन मे ईश्वर का आशीर्वाद समझकर करें क्यो कि बेटियों का महत्व केवल बहू के रूप में लाने तक ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक महत्व है इस सृष्टि की संरचना को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए।
आप सबसे प्रार्थना है कि मेरे इस विचार को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं शायद कुछ लोग इस सत्यता को समझ सके और #दहेज रूपी दानव का अपने जीवन परिवार व समाज से बहिष्कार करने मे आगे आए।
Sunday, 26 April 2020
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को सर्व श्रेष्ठ तिथि क्यो माना जाता है ?
अक्षय तृतीया को विशेष तिथि इस लिए भी माना जाता है कि आज के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी और महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था। भगवान शिव ने आज के दिन ही माॅ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन का संरक्षक नियुक्त किया था। इसीलिए इस दिन सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का विशेष महत्व है।
पुराणो मे ऐसा उल्लेख है कि आज के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन गंगा स्नान करने से व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है और यदि यह तिथि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल अत्यधिक बढ़ जाता हैं। आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।
आज के दिन ही ऋषि जमादग्नि तथा माँ रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का भी अवतार हुआ था जो आज भी अजर अमर है। इनके अलावा छः और लोगों को अमरत्व का वरदान है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:,कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
भगवान शिव के परम भक्त श्री परशुराम धर्म न्याय व वीरता के साक्षात उदाहरण है परशुराम जी की त्रेता युग के दौरान सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर क्रोधित होने का उल्लेख मिलता है और दापर युग महाभारत काल मे उन्होंने गंगा पुत्र भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या प्रदान किया।
श्रीबांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से किया जाता है ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके और बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं। श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही होता है जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था।
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Sunday, 12 April 2020
मोदी जी के नेतृत्व में भारत का विश्वगुरु बनने की ओर बड़ता कदम।।
आज प्रकृति, भारतीय संस्कृति सभ्यता का मजाक उड़ाने वालो को सीख दे रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और कर्म फल भोगना ही पड़ता है। कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म का उपदेश देते समय कहा कि वत्स पुरा ब्रहमांड मेरे मे ही समाहित है सब कुछ मै ही हूँ और संसार में घटित होने वाली सभी घटनाएं मेरे इच्छा के अनुरूप ही होती है फिर भी मेरा वस तो केवल कर्मफल तक ही निहित है मनुष्य तो सुख दुःख अपने कर्मो के फलस्वरूप भोगता है। भगवद्गीता में उल्लेखित यह सम्वाद आज रूस जैसे बड़े ताकतवर देश में प्राइमरी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल है। सच ही कहा गया है सनातन धर्म केवल एक धम॔ ही नहीं अपितु एक जीवन पद्धति है इसको दैनिक जीवन में अपनाने वालों को सामान्य विषाणु प्रभावित नहीं कर पाते हैं।
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Tuesday, 24 March 2020
जब भारतीय परिवारों की हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि की दैनिक परंपरा जीवंत हो गयी
हाल में ही आयोजित ऐतिहासिक जनता कर्फ्यू का लगभग 100% सफल होना यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि भारतवासी मानवता व वैदिक परंपरा की रक्षा के लिए कभी भी एक आवाज पर संगठित हो सकते है सिर्फ आवाज देने वाले का उद्देश्य सही होना चाहिए। लोग इसको अलग-अलग तरह से परिभाषित कर रहे हैं कुछ लोगो का कहना है कि, ये जनता का सुरक्षित जीवन के प्रति डर या भारतीय सामाज की सवेंदनशील सोच या शायद देश प्रेम की वजह से संभव हुआ, लोग चाहे जो भी कहे लेकिन जिस तरह से रविवार 22 माच॔ की शाम को ठीक 5 बजे देश के हर गाँव, शहर, गली-मोहल्ले, में अमीर से अमीर जैसे देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक व गरीब से गरीब परिवार के प्रत्येक व्यक्तियों का एक साथ खड़े होकर शंखनाद नाद करना, तालियों की गडगडाहट व घंटो की आवाज, महिलाओं बुजुर्गों व बच्चों की उत्साहित भागीदारी ने ये सिद्ध कर दिया कि भारतीयों का युगों पुरानी वैदिक व्यवस्था पर आज भी अटूट विश्वास है। जिस का नजारा आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला, जब देश का हर घर मंदिर प्रतीत हो रहा था। जो भारतीय संस्कृति सभ्यता को जीवंत बनाए रखने का मोदी जी का एक अद्भुत प्रयोग और अगली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का एक बड़ा सदेंश भी था।
कोरोना महामारी के वजह से ही सही लेकिन देश की जनता ने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, संवेदनशीलता व जिम्मेदारी के भाव, लोकतांत्रिक सोच और राष्ट्र के प्रति नागरिक सम्मान के भाव का जो सदेंश जनता कर्फ्यू को सफल बनाकर दिया है ये अतुलनीय है। यह विजय नाद देश को कोरोना वायरस जैसे दानव से आगे लड़ने में संयम प्रदान करेगा और भारत के नागरिक सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नवदुर्गा की कृपा से कोरोना महामारी को परास्त करेंगे। देश का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभारी है जिन्होंने कोरोना वायरस के खौफ के इस माहौल में भी बिना त्यौहार के, त्योहार जैसी स्थिति पैदा कर लोगों को भयमुक्त बना दिया तथा पूरे देश में एक साथ एक नियत समय पर शंखनाद करवाकर भारतीय संस्कृति सभ्यता को गौरवान्वित कर दिया। अब जनता साहस व विश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला सावधानी व संयम से करने के तैयार हो गयी है।
जय हिंद जय भारत। ।
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Saturday, 21 March 2020
कहीं कोरोना वायरस का कहर मानवता की रक्षा व प्रकृति के संरक्षण का सदेंश तो नहीं
मंदिर चर्च दरगाह मस्जिद बंद कर दिया गया है सारे आडंबर, दर्शन -प्रदर्शन सब बंद । मांसाहारी भोजन बंद शाकाहारी जीवन शैली को लोग अपनाने को आतुर है। पुरा विश्व आज भारतीय संस्कृति व परंपरा को अपनाने को तैयार हैं।धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी परिवार में लौट आया, पर संपर्क दुःखदायी और निज संपर्क सुखदाई हो गया है। चहुँ ओर केवल कोरोना वायरस से जीवन रक्षा कैसे की जाएँ बस यही चर्चा चल रही है।
कोरोना वायरस का अद्भुत असर जरा देखिये आज एक बार फिर से बुजुर्गों व अनुभवी लोगों की प्रचलित लोकोकति "जो होता है अच्छा होता है" को चरितार्थ कर दिया। कम से कम इसी बहाने ही सही लोग बहुत कुछ समझने सोचने व जीवन शैली में बदलाल लाने का प्रयास तो करेंगे। आज ये वायरस प्रकोप हमे यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म संप्रदाय या देश नहीं होता।
इस लिए जीवन के प्रति दृढ़संकल्प और संयमित रहते हुए सदैव मानवता व प्रकृति के रक्षा संरक्षण के लिए तत्पर रहे । जीवन में सावधानी और सतर्कता रखें,लपारवाह न बनें। यही कोरोना का संदेश है।
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Monday, 15 July 2019
अन्तर्जातीय प्रेम विवाह कोई मुद्दा नहीं, बड़ा विषय है विश्वास आत्मसम्मान व् पारिवारिक संस्था के अस्तित्व व संस्कार का
प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया व पवित्रबंधन है जो उम्र व् जाति के बंधन से मुक्त है और किसी भी लडके लड़की या स्त्री पुरुष के बीच आत्मीय शारीरिक रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप आगे बढ़ता है बाद मे पारिवारिक और सामाजिक सहमति से वैवाहिक सम्बन्ध में बदलता है। यंहा पर प्रेम दो विपरीत लिंग के व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन विवाह एक सामजिक व पारिवारिक संस्था है जिससे सामाजिक परम्परा, पारिवारिक संस्कार, नैतिक मूल्य, माता - पिता व रिश्तेदारों का मानसम्मान जुड़ा होता है ऐसे में किसी भी लड़की या लड़के को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आधार बताकर पारिवारिक संस्कारो व सामाजिक मूल्यो का हनन नही करना चाहिए क्योंकि ऐसे अन्तर्जातीय व् बेमेल प्रेमविवाह कुछ समय के लिए लडके लड़की के स्वहितो खुशियों सुखो की पूर्ति तो करते है लेकिन जीवनपर्यन्त के लिये माता पिता भाई बंधुओ रिश्तेदारों के लिए दुःख अपमान व् हजारो सवाल खड़े कर देते है। जिसका जवाब देना बहुत कठिन होता है।
आज पूरा देश इस विषय पर चर्चा कर रहा है क्योंकि बरेली उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित परिवार की लड़की परिवार की असहमति से अपने पसंद के लडके से घर से भागकर शादी कर लेती है फिर उसे अपने जीवन का ही डर सताने लगता है और वो पिता भाई व घरेलु सम्बन्धियों के द्वारा हत्या कराये जाने का आरोप लगते हुए सोशल मीडिया माध्यम से एक वीडियो जारी कर देती है और पूरे देश मे साक्षी मिश्रा ( २१ वर्ष ) व अजितेश ( लगभग ३२ - ३४ वर्ष ) चर्चा के विषय बन जाते है क्योंकि लड़की के पिता विधायक है और लड़का दलित वर्ग से है इसलिए पिता जी को शादी मंजूर नही है ऐसा लड़की वीडियो सन्देश मे कहती है। देश की मीडिया को मसाला मिल जाता है क्योंकि ये एक ब्राह्मण विधायक की बेटी का दलित लडके से प्रेमविवाह का मामला है और प्रदेश मे सवर्ण समर्थक पार्टी की सरकार है। लडके लड़की को मीडिया नेशनल सेलिब्रिटी बना देती है प्राइम टाइम में सवर्ण व् दलित विवाह के मुद्दे पर चर्चा करवाती है लेकिन अपने नैतिक जिम्मदारी से किंकर्त्तव्यविमूढ़ ये भूल जाती है की मीडिया का एक महत्वपूर्ण कार्य देश व् समाज मे समरसता का माहौल बनाना, संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा कर सामाजिक व् राजनितिक सहमति से सही हल निकलना है न कि समाज, परिवार या विभिन्न वर्ग समूहों मे कटुता पैदा करना। यदि इस विषय पर ईमानदारी से मीडिया की भूमिका का आकलन करे तो पायेंगे की मीडिया ने देशभर को अपना दोहरा चरित्र दिखाते हुए दलित समुदाय के चरित्र पर ही एक बड़ा धब्बा मढ़ दिया की दलित समुदाय के लोगो को मित्र बनाना, घर में बैठाना खतरे से खाली नही है ये किसी के साथ विश्वासघात कर सकते है। मीडिया की सही भूमिका तो तब होती जब अन्तर्जातीय विवाह के बजाय ये लोग इस विषय को समाज में गिरते नैतिक मूल्यो, व्यावहारिक, सामजिक व् मित्रवत सम्बन्धो मे बढ़ती स्वार्थपरकता, पारिवारिक संस्था के कमजोर होते अस्तित्व, धर्म व् संस्कृति से विमुख होती नई पीढ़ी मे संस्कारो का हनन, माता पिता भाई बंधुओ के बीच वैचारिक मतभेद व संवादहीनता कैसे घरेलु छोटी समस्याओं को बड़ा रूप दे रहे है ? कैसे लोग अपने व्यक्तिगत अहम् व् स्वाभिमान मे स्वयं को सही साबित करने लिए गलत कदम उठा ले रहे है जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार मानसिक तनाव मे लम्बे समय तक तनाव मे जीने को मजबूर हो जाता है।
जैसा की हम सब पिछले दस दिनों से नवविवाहित जोड़ी का साक्षत्कार विभिन्न टीवी चैनेलो पर सुन रहे है और साक्षी द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दिए वीडियो सन्देश को भी सुना जिससे स्पष्ट हो रहा है कि ये अन्तर्जातीय विवाह से ज्यादा बड़ा विषय आपसी व पारिवारिक रिश्तो मे बढ़ती दूरियों, वैचारिक मतभेदो,आपसी विश्वास आत्मसम्मान व संस्कार का है। लड़की के बातो से लग रहा है एक पिता को अपने बेटी बेटो के साथ एक उम्र के बाद प्रत्येक मुद्दों पर खुलकर संवाद स्थापित करना चाहिए व प्रतिदिन एक निश्चित समय बैठकर अपने बच्चो से वार्तलाप करना चाहिए अपने अनुभव साझा करने चाहिए उनकी बातो को ध्यान से सुनना समझाना और संयम व विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, अपरिपक्क्व बच्चो की जिम्मेदारियां घर से बाहर के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए, गंभीर परिस्थितियों मे क्रोध से नहीं विवेक से काम लेना चाहिए जो की साक्षी के भाई ने नहीं किया क्योंकि भाई द्वार क्रोध मे अव्यवहारिक व असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग अजितेश व् साक्षी दोनों को बुरा लगा परिवार के इसी कमजोरी का फायदा अजितेश ने उठाया और दोनो ने इसे अपने स्वाभिमान व् अहम् से जोड़कर क्रोध और जल्दीबाजी मे शादी कर लिया जबकि साक्षी के बातो से ऐसा लग रहा है कि उसकी अपने पिता जी से वैचारिक मतभेद जरूर थे लेकिन यदि वे स्वयं से मामले को संभालते उससे बात करते समझाते तो शायद साक्षी शादी के लिए अजितेश की बात अभी नही मानती और विधायक जी को समय मिल जाता उपयुक्त निर्णय लेने का। इस पुरे मामले में अजितेश की भूमिका एकदम गलत है एक तरफ तो उसने अपने मित्र के साथ विश्वासघात किया दूसरी तरफ पारिवारिक सामाजिक सम्बन्धो को ही संदेह के घेरे मे खड़ा कर दिया अजितेश कितनी भी सफाई दे लेकिन उसके इस कदम से एकदम स्पष्ट है की उसकी नियति मे पहले से ही खोट था नहीं तो कोई भी समझदार व् विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने उम्र से १०-१२ साल छोटी लड़की से जिसको वो स्कूल के समय से जनता हो और उसके परिवार मे एक बेटे के सामान सम्मान पाता रहा हो, एक प्रकार से साक्षी उसके लिए बहन के सामान थी, ऐसा गलत कदम कभी नही उठाता। लेकिन यँहा हम लडके जितना दोषी मानते है साक्षी भी उतनी ही दोषी है क्योंकि २१ वर्ष की अवस्था तक बच्चो मे इतनी समझ तो आ ही की वो अपनी मान मर्यादा अच्छी तरह समझते है इसलिए लड़की को किसी भी स्थिति मे अपने माता पिता व् परिवार के सम्मान के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था स्वतंत्र विचार का होने से ये मतलब नहीं की कोई लड़की माता पिता के सपनो व् आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाये सामजिक मूल्यों व संस्कारो का हनन करे।
इस मुद्दे से समाज व परिवार के संरक्षकों को ये सीख लेनी चाहिए की नई पीढ़ी के साथ वैचारिक सामंजस्य व् समन्वय बैठाने की पूरी कोशिस करे उनसे खुलकर संवाद स्थापित करे और बच्चो को पर्याप्त समय दे, घर से सम्बंधित बाहरी लोगो पर, उनकी नियति पर पूरी नजर रखे व् समय रहते ही किसी भी विषम व विपरीत परिस्थिति का सामना करने से पहले ही उसका समाधान करे।
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Monday, 24 July 2017
नये राष्ट्रपति का चुनाव जातीय राजनीति का खेल था या आम आदमी से खास आदमी बनाने का सन्देश !!
इस बार का राष्ट्रपति चुनाव इस लिए भी और ज्यादा दिलचस्प था की सत्ता पक्ष ने भावी लोकसभा चुनाव २०१९ को ध्यान में रखते हुए जातिय समीकरण को साधने के लिए पार्टी के सबसे प्रबल और सबसे वरिष्ठ नेता व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दरकिनार करते हुए अनसूचित जाति से श्री कोविंद जी को उम्मीदवार बनाया जबकि पुरे देश को ये उम्मीद था की आडवाणी जी ही देश के अगले राष्ट्रपति होंगे, इसी के साथ २०१७ का राष्ट्रपति चुनाव जातीय राजनीति का मैदान बन गया और विपक्ष को मजबूरन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को विपक्ष का उम्मीदवार बनाना पड़ा ये जानते हुए भी की बहुमत सत्ता पक्ष के साथ है।
जैसा की हम सब ये जानते है कि संवैधानिक रूप से हमारे देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में जनता का प्रत्यक्ष रूप से कोई योगदान नहीं होता और न ही राष्ट्रपति अपने स्व विवेक से जनता के पक्ष में कोई निर्णय सकता है क्योकि हमारे संविधान का अनुक्षेद ७८ ये कहता है कि राष्ट्रपति अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह से करेंगे। वैसे तो सभी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की ही है लेकिन वे लगभग सभी नियुक्तियां मंत्रिमंडल की संस्तुति के अनुरूप ही करते है। यदि जनता के सीधे हित की बात करे तो केवल एक ही मुद्दे मृत्युदंड की सजा में माफ़ी के सन्दर्भ में ही राष्ट्रपति मुख्य भूमिका निभाते है लेकिन वे भी तब जब मंत्रिमंडल राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजेंगे तभी। सविंधान के अनुसार केवल एक ही वीटो पावर राष्ट्रपति को प्राप्त है वो अनुक्षेद १११ के तहत राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा संस्तुति किसी भी बिल को अपने पास रोक सकते है लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसको मंत्रिमण्डलके पास पुनः विचार करने के लिए भेजना ही पड़ेगा और यदि दुबारा मंत्रिमंडल उसी बिल को राष्ट्रपति के पास भेजती है तो उन्हें संस्तुति देना ही पड़ेगा।
यँहा समझने वाली बात तो ये है की जब राष्ट्रपति को जनता के हित में कोई निर्णय लेना का अधिकार ही नहीं है और न ही राष्ट्रपति जनता द्वारा सीधे चुना जाता है तो देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव के लिए जातीय राजनीत खेलने का औचित्य क्या था ? इस पर सत्ता पक्ष का कहना है वो तो देश के एक योग्य व् आम नागरिक को देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर देश को ये सन्देश देना चाहती है की कोई भी आम आदमी या पार्टी कार्यकर्त्ता हमारे पार्टी में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है। तो प्रश्न ये उठता है की यदि ऐसा ही सोच थी तो किसी अन्य जाती या धर्म के आम आदमी को क्यों नहीं बनाया उम्मीदवार जिनका वोट प्रतिशत काम होता ? यु पी से ही उम्मीदवार क्यों चुना पंडीचेरी गोवा या नार्थ ईस्ट से भी किसी को उम्मीदवार बना सकते थे लेकिन चुकी कोविंद जी उत्तर प्रदेश के मूल नागरिक और वर्तमान में बिहार के राज्ज्यापल थे और अनुसूचित जाती से थे इसलिए उन्हें उम्मीदवार बनाया जिससे दोनों राज्यों के अधिकतर वोटर को सन्देश दे सके। जँहा से लोकसभा के सबसे ज्यादा लगभग १२0 सदस्य सदन का प्रतिनिधित्व करते है और यदि उत्तराखण्ड की ५ और झारखण्ड की १४ लोकसभा सीट को यदि और जोड़ दे तो कुल १३९ सीट पर राजनीतिक सन्देश देने के लिए इस बार राष्ट्पति चुनाव को जातीय रंग में रंग दिया गया। क्यों कि अब तक का ये इतिहास भी रहा है जो पार्टी इन दो राज्यों में सबसे ज्यादा सीट जीतती वही सरकार बनाती है।
इसका निष्कर्ष ये निकलता है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टिया सत्ता पाने के लिए केवल जातीय राजनीत के खेल में उलझी हुयी है सत्ता पाना और सत्ता में बने रहना उनका प्राथमिकता है न की देश का विकास। देश का विकाश तो तभी संभव हो पायेगा जब चुनाव पार्टी केंद्रित न होकर क्षेत्र के विकाश पर केंद्रित हो जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिए सही व् योग्य प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करे न कि किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष को ध्यान में रखकर। पार्टिया जातीय राजनीत का खेल इस भी खेलती है क्यों कि जनता भी बहुत हद तक इस खेल को समर्थन करती है जब जनता जाति को महत्व देना काम कर क्षेत्र के विकास को महत्व देना शुरू कर देगी तब राजनीतिक पार्टिया और क्षेत्र का प्रतिनिध दोनो विकाश के प्रति संकल्पित हो जायेंगे। इस लिए खासकर युवाओ को अब पार्टी केंद्रित होकर वोट नहीं देना चाहिए बल्कि प्रतिनिधि व् क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखकर प्रतिनिधि चुनना चाहिए। युवाओ को चाहिए की वे #वोट फॉर राइट कैंडिडेट !!के नारे को मजबूती से जनता के बीच में पहुँचाये जिससे आने वाले समय में जनता सही प्रतिनिधि को चुन सके जो किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए बहुत जरुरी हैऔर पार्टी केंद्रित चुनाव व्यवस्था का बहिस्कार कर प्रतिनिधि केंद्रित वोटिंग प्रणाली को प्रचलित करने की मांग तेज करे।
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Saturday, 9 July 2016
Youth must stand with UNITED NATION to achieve Sustainable Development Goal by 2030 !!
If we go in depth of the above mentioned SDG Goals We find that Inequality, Injustice, Gender Equality ( these 3 problem can be solve by realizing and accepting the importance of each n every community cast creed n genders in society ) , Decent Work Atmosphere ( It can be achieve by developing respect for each others Values n Ethics ), Good Health ( Yoga Practice can play major role to find healthy life ), Climate ( Population n Pollution are two major cause for changing climate it can be solve up to some extant by understanding important of clean environment for sustainable life for coming generation it require to teach society about Positive n Negative impact of modern life styles) , Sustainable Cities n Communities ( its also matter to generating better understanding of public about sustainability specially for traffic and cleanliness ), Peace n Justice ( Its the matter of developing value patience n sacrifices for them self and society ), Strong Institution n Partnership ( its also the matter of devotion respect and accountability about the institution people belongs ) these 9 goals can be achieve by creating awareness and setting stander Values to live better life in society. therefore Youths are in very important role for Society Not only for these 9 goal but for others also with creativity and innovations they can solve employment problem that will help in curbing poverty n hunger etc.
I would like to give call to Youth they must understand own responsibility towards society and country and come forwards with his/her own solutions and contribution to achieve United Nation SDG 2030 cause to find better livelihood society we first make it better .
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Monday, 4 July 2016
युवाओं को आगे आना होगा देश को जातिवादी राजवाडों व क्षत्रपो से आजाद कराने के लिए !
यदि हम पुरे देश के क्षेत्रीय राजनीत का सही से अवलोकन करे तो पाएंगे की पुनः देश में लगभग उतने ही जातिवादी राजवाड़े पैदा हो गए है जितने सरदार पटेल ने आजादी के बाद हिंदुस्तान में शामिल करवाए थे। यदि हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का अवलोकन करे तो यंहा अजीत सिंह चौधरी रजवाड़ा , मुलायम सिंह यादव रजवाड़ा , मायावती दलित राजकुमारी, अमर सिंह राजा भैया क्षत्रिय राजवाड़ा , मुख़्तार अंसारी मुग़ल राजवाडा कई अन्य और भी है। अब बिहार को देखिए लालू यादव रजवाड़ा , रामविलास पासवान रजवाड़ा , नितीश कुमार कुर्मी राजवाड़ा , जीतनराम मंझिदलित राजवाड़ा, सहाबुदीन अंसारी राजवाड़ा इत्यादि। मध्य प्रदेश में ब्रिटिश समय से चला आ रहा सिंधिया राजवाड़ा, दिग्विजय सिंह राजपूत राजवाड़ा , चौहान राजवाड़ा , इसी तरह से पुरे देश में अलग अलग जातिवादी क्षत्रपो ने अपना अपना राजवाड़ा स्थापित कर लिया है। एक प्रकार से देश पुनः आजादी से पूर्व वाली राजशाही व्यवस्था की और बढ़ चुका है और इन जातिवादी राजाओ को अपने विकास के आलावा केवल उतना दिखता है जितने से केवल वे अपने जाती विशेष के विश्वास को जीतते रहे। जरा सोचिये जिस राजशाही व्यवस्था से निजात पाने के लिए हम सब लोगो ने १५० सालो तक आजादी की लड़ाई लड़ी और लाखो नवजवानों व महिलाओं ने अपनी कुर्बानी दी। पुनः आज ६८ साल बाद फिर उसी जाल में ये जातिवादी मसीहा कहे जाने वाले नेताओं, जो अब रजवाड़ो में बदल चुके है, के चक्कर में बुरी तरह से उलझ गए है जो केवल अपने कुनबे के विकाश में लगे है क्षेत्र, राज्य व देश का विकाश केवल एक दिखावा बन कर रह गया है।
आजादी के बाद जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी गयी थी उन्ही खामियों का फायदा उठाकर कुछ नेता केवल अपने स्वार्थ मे देश को जाती के आधार पर बांट दिया है। मजे की बात तो ये है की तब हमारी साक्षरता बहुत कम थी और बुजुर्गो की जनसंख्या ज्यादा क्यों की सही स्वस्थ सुविधा व पौष्टिक आहार की कम उपलब्धता की वजह से और जानकारी के आभाव मे ज्यादातर बच्चे मर जाते थे परन्तु आज जब कि देश मे युवाओं की संख्या विश्व मे सबसे अधिक है और वैज्ञानिक व शैक्षिक रूप से अच्छा विकाश हुआ है फिर भी देश मे जातिवादी रजवाड़ो व् क्षत्रपों का विकाश बहुत तेज हुआ है और कुछ गिने चुने नेताओं के बरगलाये मे देश के पढ़े लिखें युवा उनका साथ दे रहे है ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। आज चीन व अन्य यूरोपीय देश जो भारत के बाद आजाद हुए ज्यादा विकाश किये और भारत उनसे बहुत पीछे है क्योंकि मध्यकालीन समय से ही भारत को जातिवादी व्यवस्था बुरी तरह से जकड़े हुए है जो अब जादिवादी रजवाड़ो का रूप ले लिए है और ये केवल अपने लिए राजशाही हवेलिया, विदेशो मे हजारो एकड़ जमीन, पांच सितारा होटल और उद्दोग लगा रहे है उन्हें केवल अपने विकाश का ध्यान है जनता का विकाश तो केवल पेपरों पर है इन जातिवादी रजवाड़ो के साथ केवल उनका विकाश हो रहा है जो इनके चापलूस है या इनके लिए कारक, जैसे ब्रिटिश समय मे चापलूस धोखेबाज गद्दार देश के जमींदारों ने अंग्रेज अफसरों की चापलूसी कर कमाई उसी तरह आजके अधिकारी भी इन जातिवादी रजवाड़ो की गुलामी कर रहे है और अपने को मजबूत बना रहे है, आम जनता तो आजादी के पहले भी गुलाम थी आज भी गुलाम है अंतर तो बस इतना है की पहले विदेशियों के गुलाम थे और आज अपने जातिवादी क्षत्रपों के गुलाम।
आज देश के युवाओं को इस बात को बहुत गहराई से समझने की आवश्य्कता है यदि आप वास्तव मे भारत को एक विकसित देश व विश्व मे सबसे ताकतवर देश बनने देखना चाहते हो तो जातिवादी राजनीत से बहार निकलना होगा और राष्ट्र शक्ति व् विकाश के नाम पर एकजुट होना होगा। देश को इन जातिवादी रजवाड़ो के चंगुल से मुक्त कराना है तो अपना नेता जाती के आधार पर न चुनकर उसे चुनना होगा जो विकाश की बात करता हो जो देश की बात करता हो ना कि जाति कि या स्वार्थ कि। अपना नेता उसे चुने जो क्षेत्र के विकाश के लिए दृंढ संकल्पित हो पढ़ा लिखा राष्ट्रवादी हो न कि जातिवादी। जिसके लिए पार्टी से ऊपर क्षेत्र का विकाश व देशहित हो।
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Wednesday, 20 January 2016
अच्छे भविष्य के लिए युवाओ को जातिगत राजनीत से बहार निकल एकत्रित होना होगा !
आज जो हमारी आर्थिक विकाश दर विश्व मे तीसरी पायदान पर है उस पर देश का हर युवा गौरवान्वित महसूस कर रहा है और देश को विश्व शक्ति के रूप में देखने के लिए हर संभव योगदान देने को तैयार है। आज जंहा देश मे युवाओ द्वारा स्थापित और संचालित ४४०० संस्थाए देश मे दस लाख से अधिक लोगो को रोजगार मुहैया करा रहे है जो कि अमेरिका व् ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ आने वाले सालो मे करोडो लोगो को रोजगार मुहैया कराते हुए देश को विश्वशक्ति बनाने मे आगे बढ़ने को तैयार है, ऐसे मे कुछ स्वहित से स्थापित संस्थाए व संगठन युवाओ को भ्रमित कर, उनकी एकता को विखंडित कर देश मे गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकते है जो वे अपने स्वहित के सामने या तो समझ नहीं पा रहे या इतना आगे बढ़ चुके है की अब उनके पास ये समझने का विकल्प ही नहीं है ऐसे में सरकार को आगे बढ़कर ऐसे संस्थाओ को चिंहित कर दिशा देने की जरुरत है।
आज जब हमारे देश की युवा पीढ़ी जागरूक है ऐसे मे विश्वविद्यालय व अन्य सभी शैक्षणिक संस्थाओ को छात्र राजनीत से मुक्त कर, नकारात्मक विचार से संचालित गैर सरकारी संस्थाओ व् संगठनो को शैक्षणिक परिसर मे प्रतिबंधित करना समय की आवश्यकता है क्यों कि छात्रों मे अब नेतृत्व की क्षमता विकसित करने के कई अन्य माध्यम भी प्रचलित हो रहे है जो उनमे सकारत्मक भाव को विकसित कर रहे है जैसे की - "युथ पार्लियामेंट" के तहत सदनीय कार्यवाही का अनुभव कराना, "युथ कांग्रेस" के तहत गंभीर मुद्दो पर चर्चा से समाधान निकालना व युवाओ के विचार और रचनात्मकता को समझाना, "युथ समिट" के माध्यम उनके द्वारा किये जा रहे कार्यो को प्रोत्साहन देकर विभिन्न समस्याओं पर उनसे ही वार्षिक प्रोग्राम तैयार करवाकर उनकी ऊर्जा व रचनात्मकता को उपयोग में लाना, इससे उनमे आत्मविश्वास की वृद्धि होगी व् उनको प्रोत्साहन मिलेगा, न की उनको छात्र जीवन में ही राजनीत मे झोककर उनके अंदर जाति -धर्म -सम्प्रदाय- आरक्षण जैसी नकारात्मक भाव को बढ़ावा देना।
युवाओ को ये सोचनाहोगा की आखिर हमारा देश आज भी पीछे क्यों है ? जब कि हमारे साथ आजाद अन्य देश विकसित देश की श्रेणी मे शामिल है। उसके पीछे मुख्य कारण, देश के कुछ नेताओ ने अपने फायदे के लिए देश की जनता को "जाति -धर्म- आरक्षण" के जाल मे भ्रमित कर रखा है, जिसे, आज देश के युवाओ को समझाना होगा और ऐसी भावनाओ व नेताओ के चाल से बाहर निकलकर, देश के विकास व राष्ट्रहित मे सोचना होगा तभी हमारा और देश का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। हम युवाओ को ये सोचना होगा की, हम देश को विश्वशक्ति बनाने मे क्या योगदान दे सकते है अपनी ऊर्जा को उसमे लगाना चाहिए, न की जाति धर्म व आरक्षण के भाव को भड़काने वाले संगठनो के बहकावे में आकर अपनी ऊर्जा का दुरूप्रयोग क्योंकि जैसे जैसे समाज शिक्षित व विकसित हो रहा है वैसे वैसे ये जाति धर्म की बाते गौड़ हो रही है, ऐसे में आने वाली पीढ़ी इन मुद्दो पर साथ नहीं देगी इस लिए जो युवा भ्रम में आकर ऐसे मुद्दो पर अपना राजनैतिक भविष्य भी देख रहे है वो बेवकूफ है जैसे की #रोहितवुमेला जो अपने अंतर्मन को भी नही पहचान पाया और अंत मे कुछ जाति धर्म के ठेकेदारो के जाल मे फस कर अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर लिया उनका क्या गया जिन लोगो ने उसे बरगलाया था कुछ भी नही बल्कि उनको तो अपनी राजनीति चमकाने और दलितों का मशीहा बनने का एक और मौका दे गया वो । इसलिए नवजवानों पहचानो अपने मन को की तुम्हारा मन क्या कहता है बहकावे में मत आओ।
देश मे कोई दूसरा #रोहितवुमेला न बन पाये, इस लिए युवाओ तुम जाति धर्म व आरक्षण के भ्रम से बाहर आओ एकत्रित हो और नकारात्मक भावनाओ को भड़काने वाले संगठनो व नेताओ को सीख दो की, हम एक है विखंडित नहीं होगे। राष्ट्र का विकास व राष्ट्रहित हमारी प्राथमिकता है न कि घृणत राजनीत।
जय हिन्द जय भारत !!
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