Monday 15 July 2019

अन्तर्जातीय प्रेम विवाह कोई मुद्दा नहीं, बड़ा विषय है विश्वास आत्मसम्मान व् पारिवारिक संस्था के अस्तित्व व संस्कार का

आज इक्कीशवी सदी में जब हम ग्लोबल सिटीजनशिप की बात कर रहे है और संचार तकनीकी के माध्यम से  भारत या अफ्रीका में बैठे बैठे अन्टार्कटिका या ब्रह्माण्ड के किसी भी स्थान पर जीवनयापन कर रहे व्यक्ति से साक्षत्कार कर रहे है व्यापर कर रहे है, सोशल मीडिया व् डिजिटल यंत्रो के माध्यम से कसी भी द्वीप या दूरस्थ गांव में बैठे व्यक्ति से मित्रता कर एक दूसरे के संस्कृति संस्कार रहन सहन के बारे में चर्चा कर रहे है, सामजिक राजनीतिक व् व्यापारिक मुद्दों पर खुलकर अपने विचार रख रहे है, ऐसे समय में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह जैसे सदियों पुरानी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है जबकि हमारे भारतीय संस्कृति व् सनातन धर्म में प्रेम विवाह या अन्तर्जातीय विवाह के हजारो उच्चस्तरीय उदाहरण है और लगभग प्रत्येक दिन ऐसे विषय देश के विभिन्न हिस्से में सुनने को मिलते रहते है क्योंकि अब तो हमारा संविधान भी बालिग लडके - लड़कियों को आपसी समझ व सहमति से विवाह करने को अनुमति देती है फिरभी देश के लगभग सभी मीडिया चैनल द्वारा एक प्रेम विवाह के मामले में, एक लड़की की अहम्, अपरिपक़्वता या ये कहे की एक पिता पुत्री के बीच व्यवाहिरक या वैचारिक संवादहीनता का, एक चतुर व् चालाक लड़के द्वार अपने निहित स्वार्थ में फायदा उठाकर एक पिता के सपने, आत्मसम्मान व् मित्रवत पारिवारिक सामाजिक संबंधों के विश्वास का माखौल उड़ाना और मीडिया द्वारा उसे दलित समुदाय से जोड़कर हल्ला बोलना बेहद शर्मनाक बात है।
प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया व पवित्रबंधन है जो उम्र व् जाति के बंधन से मुक्त है और किसी भी लडके लड़की या स्त्री पुरुष के बीच आत्मीय शारीरिक रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप आगे बढ़ता है बाद मे पारिवारिक और सामाजिक सहमति से वैवाहिक सम्बन्ध में बदलता है। यंहा पर प्रेम दो विपरीत लिंग के व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन विवाह एक सामजिक व पारिवारिक संस्था है जिससे सामाजिक परम्परा, पारिवारिक संस्कार, नैतिक मूल्य, माता - पिता व रिश्तेदारों का मानसम्मान जुड़ा होता है ऐसे में किसी भी लड़की या लड़के को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आधार बताकर पारिवारिक संस्कारो व सामाजिक मूल्यो का हनन नही करना चाहिए क्योंकि ऐसे अन्तर्जातीय व् बेमेल प्रेमविवाह कुछ समय के लिए लडके लड़की के स्वहितो खुशियों सुखो की पूर्ति तो करते है लेकिन जीवनपर्यन्त के लिये माता पिता भाई बंधुओ रिश्तेदारों के लिए दुःख अपमान व् हजारो सवाल खड़े कर देते है। जिसका जवाब देना बहुत कठिन होता है। 
आज पूरा देश इस विषय पर चर्चा कर रहा है क्योंकि बरेली उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित परिवार की लड़की परिवार की असहमति से अपने पसंद के लडके से घर से भागकर शादी कर लेती है फिर उसे अपने जीवन का ही डर सताने लगता है और वो पिता भाई व घरेलु सम्बन्धियों के द्वारा हत्या कराये जाने का आरोप लगते हुए सोशल मीडिया माध्यम से एक वीडियो जारी कर देती है और पूरे देश मे साक्षी मिश्रा ( २१ वर्ष ) व अजितेश ( लगभग ३२ - ३४  वर्ष ) चर्चा के विषय बन जाते है क्योंकि लड़की के पिता विधायक है और लड़का दलित वर्ग से है इसलिए पिता जी को शादी मंजूर नही है ऐसा लड़की वीडियो सन्देश मे कहती है। देश की मीडिया को मसाला मिल जाता है क्योंकि ये एक ब्राह्मण विधायक की बेटी का दलित लडके से प्रेमविवाह का मामला है और प्रदेश मे सवर्ण समर्थक पार्टी की सरकार है। लडके लड़की को मीडिया नेशनल सेलिब्रिटी बना देती है प्राइम टाइम में सवर्ण व् दलित विवाह के मुद्दे पर चर्चा करवाती है लेकिन अपने नैतिक जिम्मदारी से किंकर्त्तव्यविमूढ़ ये भूल जाती है की मीडिया का एक महत्वपूर्ण कार्य देश व् समाज मे समरसता का माहौल बनाना, संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा कर सामाजिक व् राजनितिक सहमति से सही हल निकलना है न कि समाज, परिवार या विभिन्न वर्ग समूहों मे कटुता पैदा करना। यदि इस विषय पर ईमानदारी से मीडिया की भूमिका का आकलन करे तो पायेंगे की मीडिया ने देशभर को अपना दोहरा चरित्र दिखाते हुए दलित समुदाय के चरित्र पर ही एक बड़ा धब्बा मढ़ दिया की दलित समुदाय के लोगो को मित्र बनाना, घर में बैठाना खतरे से खाली नही है ये किसी के साथ विश्वासघात कर सकते है। मीडिया की सही भूमिका तो तब होती जब अन्तर्जातीय विवाह के बजाय ये लोग इस विषय को समाज में गिरते नैतिक मूल्यो, व्यावहारिक, सामजिक व् मित्रवत सम्बन्धो मे बढ़ती स्वार्थपरकता, पारिवारिक संस्था के कमजोर होते अस्तित्व, धर्म व् संस्कृति से विमुख होती नई पीढ़ी मे संस्कारो का हनन, माता पिता भाई बंधुओ के बीच वैचारिक मतभेद व संवादहीनता कैसे घरेलु छोटी समस्याओं को बड़ा रूप दे रहे है  ? कैसे  लोग अपने व्यक्तिगत अहम् व् स्वाभिमान मे स्वयं को सही साबित करने लिए गलत कदम उठा ले रहे है  जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार मानसिक तनाव मे लम्बे समय तक  तनाव मे जीने को मजबूर हो जाता है।  
जैसा की हम सब पिछले दस दिनों से नवविवाहित जोड़ी का साक्षत्कार विभिन्न टीवी चैनेलो पर सुन रहे है और  साक्षी द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दिए वीडियो सन्देश को भी सुना जिससे स्पष्ट हो रहा है कि ये अन्तर्जातीय विवाह से ज्यादा बड़ा विषय आपसी व पारिवारिक रिश्तो मे बढ़ती दूरियों, वैचारिक मतभेदो,आपसी विश्वास आत्मसम्मान व संस्कार का है। लड़की के बातो से लग रहा है एक पिता को अपने बेटी बेटो के साथ एक उम्र के बाद प्रत्येक मुद्दों पर खुलकर संवाद स्थापित करना चाहिए व प्रतिदिन एक निश्चित समय बैठकर अपने बच्चो से वार्तलाप करना चाहिए अपने अनुभव साझा करने चाहिए उनकी बातो को ध्यान से सुनना समझाना और संयम व विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, अपरिपक्क्व बच्चो की जिम्मेदारियां घर से बाहर के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए, गंभीर परिस्थितियों मे क्रोध से नहीं विवेक से काम लेना चाहिए जो की साक्षी के भाई ने नहीं किया क्योंकि भाई द्वार क्रोध मे अव्यवहारिक व असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग अजितेश व् साक्षी दोनों को बुरा लगा परिवार के इसी कमजोरी का फायदा अजितेश ने उठाया और दोनो ने इसे अपने स्वाभिमान व् अहम् से जोड़कर क्रोध और जल्दीबाजी मे शादी कर लिया जबकि साक्षी के बातो से ऐसा लग रहा है कि उसकी अपने पिता जी से वैचारिक मतभेद जरूर थे लेकिन यदि वे स्वयं से मामले को संभालते उससे बात करते समझाते तो शायद साक्षी शादी के लिए अजितेश की बात अभी नही मानती और विधायक जी को समय मिल जाता उपयुक्त निर्णय लेने का। इस पुरे मामले में अजितेश की भूमिका एकदम गलत है एक तरफ तो उसने अपने मित्र के साथ विश्वासघात किया दूसरी तरफ पारिवारिक सामाजिक सम्बन्धो को ही संदेह के घेरे मे खड़ा कर दिया अजितेश कितनी भी सफाई दे लेकिन उसके इस कदम से एकदम स्पष्ट है की उसकी नियति मे पहले से ही खोट था नहीं तो कोई भी समझदार व् विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने उम्र से १०-१२ साल छोटी लड़की से जिसको वो स्कूल के समय से जनता हो और उसके परिवार मे एक बेटे के सामान सम्मान पाता रहा हो, एक प्रकार से साक्षी उसके लिए बहन के सामान थी, ऐसा गलत कदम कभी नही उठाता। लेकिन यँहा हम लडके जितना दोषी मानते है साक्षी भी उतनी ही दोषी है क्योंकि २१ वर्ष की अवस्था तक बच्चो मे इतनी समझ तो आ ही की वो अपनी मान मर्यादा अच्छी तरह समझते है इसलिए लड़की को किसी भी स्थिति मे अपने माता पिता व् परिवार के सम्मान के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था स्वतंत्र विचार का होने से ये मतलब नहीं की कोई लड़की माता पिता के सपनो व् आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाये सामजिक मूल्यों व संस्कारो का हनन करे।
इस मुद्दे से समाज व परिवार के संरक्षकों को ये सीख लेनी चाहिए की नई पीढ़ी के साथ वैचारिक सामंजस्य व् समन्वय बैठाने की पूरी कोशिस करे उनसे खुलकर संवाद स्थापित करे और बच्चो को पर्याप्त समय दे, घर से सम्बंधित बाहरी लोगो पर, उनकी नियति पर पूरी नजर रखे व् समय रहते ही किसी भी विषम व विपरीत परिस्थिति का सामना करने से पहले ही उसका समाधान करे।


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