Wednesday 14 September 2022

गर्व से कहो हम हिंदी भाषी है और हिंदी हमारी आत्मीय भाषा है

आज हिंदी दिवस है तो सोचा कुछ हिन्दी पर ही लिख दिया जाए ......
सही पूछिए तो हिन्दी के बिना कोई भी भारतीय अपनी भावनाओं को सही मायने में नहीं व्यक्त कर पता है .... हम ये भी कह सकते है दिल की बात प्यार दुलार अपनेपन की बात जितना सरल और अच्छे तरीके से हम अपने क्षेत्रीय भाषा चाहे वो पंजाबी गुजराती मराठी हो या बंगला हो, या उड़िया या तमिल तेलगू या हो अवधी या मैथिली या हो मलयाली या कन्नड़ में व्यक्त कर सकते है उतना आंग्ल या अंग्रेज़ी भाषा में नहीं ........
हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में जो आत्मीयता या अपनापन है वो किसी और में नहीं उदाहरण के तौर पर देखे कि अंग्रेजी भाषा में केवल एक ही शब्द Uncle - Aunty से ही चाचा चाची मामा मामी फूफा बुआ मौसा मौसी सबको संबोधित कर दिया जाता है सब एक ही समान है चाहे बड़े हो या छोटे कोई सम्मान या प्यार या लगाव का भाव नहीं और मजेदार बात यह है की यदि सारे लोग एक साथ खड़े हो तो एक बड़ी फजीहत हो जाती है पांच बार बोलो और इशारे करो तब समझ आएगा की किस Uncle - Aunty को बुला रहे है आप .........
इसी प्रकार अन्य रिश्तों में है पिता जी माता जी कहने में जो आत्मीयता, प्यार व सम्मान का भाव हैं वो Daddy, Mummy कहने में नहीं है। वैसे भी Daddy Mummy दोनो शब्द मृत भाव को प्रेषित करते है कहने का अर्थ है की अंग्रेजी भाषा में हम माता पिता को ऐसे शब्दों से पुकार कर उनके सकारात्मक ऊर्जा को दूषित ही कर रहे होते है इससे उनकी आयु व स्वास्थ्य को प्राभावित कर रहे होते है आप...........
क्या अध्यापक को Teacher कहना और Teacher नाम का दारू पीना दोनों में कोई अपनापन लगाव व सम्मान है जो आचार्या जी या गुरु जी कहने में ..........

अब यदि बात करे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से प्रयोग होने वाले कुछ अन्य अंग्रेजी शब्दो का जैसे......
Congratulations, Best Wishes " हार्दिक बधाई मित्र, बहुत बहुत शुभकामनाएं "
Thank You को "आभार भाई साहब" / मित्र
Wish You Happy Birthday, God Bless You or Stay Blessed को " जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मित्र/ भाई, ईश्वर आपको दीर्घायु बनाए " कहते है।
आप महसूस करेंगे की ज्यादा अपनापन किस भाषा में लग रहा है।
इसी तरह किसी के मृत्यु पर दुःख प्रकट करने के लिए व्यवहारिकता निभाने के लिए लोग अक्सर RIP Rest in Peace बोल देते है या लिख देते है वैसे तो अब लोगों को social media के माध्यम से इस शब्द का सही अर्थ तो पता चल गया है फिर भी लोग यही शब्द प्रयोग करते है लेकिन जब यही हम अपने भाषा में बोले तो भाव बदल जाता है " बहुत दुखद घटना, ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करे" ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति।।
जरा पढ़ के देखिए कितनी आत्मीयता हिन्दी शब्दो में महसूस हो रहा हैं।
ऐसे बहुत उदाहरण है जिसकी हम यहां चर्चा कर सकते है लेकिन बहुत लंबा हो जायेगा
यहीं नहीं मैने स्वयं कई बार ऐसा महसूस किया है यहां facebook पर लिखते समय जब मैं अंग्रेज़ी में कुछ लिखता हूं तो वो भाव नहीं प्रेषित कर पता हूं जो हिन्दी भाषा में .......
मैं ही नही मैने बड़े बड़े पत्रकारों और अधिकारियो को देखा है वे अपने भाव हिंदी भाषा में ही व्यक्त करना ज्यादा सुगम समझते है जो स्वाभाविक ही है ......
यही नहीं आप संस्कृत के श्लोक को या हिन्दी गीत को सुनकर ज्यादा शांत और आनंदित महसूस करते है बजाय अंग्रेज़ी गीत के ..........
केवल यही नहीं मैने कई बार ऐसा देखा है जब job interview के लिए कोई उम्मीदवार HR Manager ya Team Manager के सामने ज्याता है वो कोशिश करता है की कितना जल्दी वह अंग्रेज़ी से हिंदी में संवाद शुरू कर सके क्यों कि हिंदी में वो अपने बातो कामों हुनर और उपलंधियो को ज्यादा सरलता से भावात्मक रूप से कह पता है और सामने वाले को प्रभिवित करने में उसे ज्यादा आसानी होती यही नहीं अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में वो ज्यादा संवाद स्थापित कर पता हैं साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति से,..........

वैसे भी आप अंग्रेजी में लिखकर या बोलकर कुछ लोगो को प्राभावित तो कर सकते है लेकिन संवाद स्थापित करने वाले व्यक्ति को अपना तभी बना पाएंगे जब आप उनसे हिन्दी में भाव व्यक्त करेंगे, संवाद करेंगे, क्यो कि अपनी भावनाओं को आप जितनी सहजता सुगमता सरलता से हिंदी में व्यक्त कर पाएंगे जो सामने वाले के दिल और दिमाग में आपकी एक अच्छी छवि बना सके वो अन्य भाषा में संभव नहीं है
इस लिए मेरा तो यही कहना है कि अंग्रेजी भाषा को केवल official भाषा तक ही सीमित रखें और व्यावहारिक ब वक्तिगत जीवन में हिन्दी भाषा या मातृ भाषा को ही उपयोग में लाए तो ज्यादा अच्छा है और ये केवल अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे बच्चो को भी समझाए की अंग्रेजी स्कूल और प्रतियोगिता तक ही सीमित रखें।
जय हिंद जय भारत ।।
आप सभी मित्रों को हम भारतीयों की मातृ भाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। 💐💐🙏

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Monday 12 September 2022

राजधानी दिल्ली का राजपथ मार्ग अब कर्त्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा

देश की राजधानी दिल्ली के लुटियन जोन में स्थित राजपथ मार्ग अब "कर्त्तव्य पथ" के नाम से जाना जाएगा। निःसंदेह नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार का यह एक अच्छा निर्णय है। जो मार्ग से गुजरने वाले सांसदों मंत्रियों अधिकारियों व अन्य नेताओं को उनके कर्तव्यों का कम से कम रोज एक बार एहसास तो कराएगा ....
क्योंकि मैंने अक्सर बड़े बुजुर्गो से सुना है नाम का असर उससे जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है इसका एक उदाहरण हम ऐसे ले सकते है विवेकानंद जी का नाम भी "नरेंद्र" था और उन्होंने भारत को विश्व में वैदिक सनातन धर्म के प्रचार के माध्यम से एक उच्चस्तरीय कीर्ति दिलाई और अब देश के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र मोदी जी है जो अपना पूरा प्रयास भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे है इसका एक बड़ा उदाहरण है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग दिवस 21जून को मान्यता देना और विश्व स्तर पर योगदिवस का आयोजन होना।

इसी प्रकार हो सकता है राजपथ का नाम अब कर्तव्य पथ होने पर उसके प्रभाव स्वरुप मार्ग से गुजरने वाले देश के जिम्मेदार व्यक्तियों की भी कर्व्यप्रणायता जागृत हो और भारत का विकास और जनकल्याणकारी कार्य और तेजी से संभव हो पाए ... हालाकि इसके लिए दृढ़ इस्छाशक्ति व सही नियति का भी होना बहुत जरूरी है ......
फिर भी हम उम्मीद तो कर ही सकते है शायद नाम का असर प्रभावकारी हो और ..... .......... कुछ नया परिर्वतन देखने को मिले आने वाले समय में .......
वैसे भी राजपथ तो राजाओं के लिए होता था आजादी के बाद जब राजशाही व्यवथा खत्म हो गई तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजपथ की क्या आवश्यकता रही। अब तो उस परिक्षेत्र में रहने वाले और उस मार्ग से गुजरने वाले लोगो को तो अपने कर्तव्यों का याद रहना ज्यादा आवश्यक है। ना कि राजशाही का एहसास होना .......
वैसे भी शायद राजपथ नाम का ही असर था की देश तो राजशाही व्यवस्था से आजाद तो हो गया था लेकिन आजादी के बाद के नेता संसद में पहुंचने के बाद अपने आपको किसी राजा से कम नहीं समझते है ........ और साउथ ब्लाक नॉर्थ ब्लॉक में तैनात अधिकारियों का भी अमूमन यही हाल है .... ......

काश देश के सदन में उपस्थित सभी प्रतिनिधि और मंत्रालय में उपस्थित सभी अधिकारीगण ये समझपाते की राजपथ पर चलने से वे राजशाही व्यवस्था के अंश नही बल्कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कर्मयोधा है ...... और देश का विकास व जनता का भविष्य उनके हाथ में है जिसे सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है लेकिन राजशाही व्यवस्था का आनंद लेने के आदि बने संसद प्रतिनिधियों व
अधिकारियों ने ईमानदार तरीके से कभी काम ही नहीं किया।

उम्मीद है कि शायद कर्तव्य पथ का सकारात्मक प्रभाव लोगो पर पड़ेगा और देश के नेताओ व अधिकारियों के अंदर कुछ नया परिर्वतन देखने को मिलेगा।।

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Wednesday 7 September 2022

कौन है ईश्वर ? क्या आपने कभी देखा

कौन चलाता है इस पूरे संसार को ? कहाँ है ईश्वर ? क्या कभी देखा, कभी महसूस किया ? नही ना 
आइए समझने की कोशिश करते है 

जब हम माँ के पेट में नौ महीने तक थे, कोई हाथ—पैर न थे कि हम भोजन कर ले। 
श्वास लेने का भी उपाय न था,
फिर भी जिए। 
न कोई दुकान चलाते, न कोई काम धंधा करते थे, फिर भी जिए।

नौ महीने माँ के पेट में हम थे, कैसे जिए ? 
किसकी मर्जी से जिए ?
तुम्हारी मर्जी क्या थी ?
कुछ नही पता ?
फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ , जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया, कैसे 
किसकी मर्जी से ?
अभी दूध को पीनेवाला
आने ही वाला है कि
पहले से ही दूध तैयार है,
किसकी मर्जी से ? कौन है वो ?
गर्भ से बाहर होते ही
तुमने सांस ली कभी इसके पहले
साँस नहीं ली थी 
जब माँ के पेट में
तो माँ की साँस से ही
काम चलता था—
लेकिन जैसे ही तुम्हें
माँ के पेट से बाहर होने का
अवसर आया,
तत्क्षण तुमने साँस ली,
किसने सिखाया ? कौन है वह 
जब की पहले कभी सांस नहीं लिया था
किसी पाठशाला में नहीं गए थे,
किसने सिखाया कि कैसे साँस लो ?
किसकी मर्जी से ?
जो तुम दूध पीते थे कौन पचाता था , तुम्हारे भोजन को ?
तुम्हारे ग्रहण किए हुए भोजन को हड्डी—मांस—मज्जा में कौन बदलता है ? कैसे तुम साल दर साल तुम बड़े होते जाते हो तुम्हारा शारीरिक सौष्ठव बनने लगता है।
किसने तुम्हें जीवन की
सारी प्रक्रियाएँ दी हैं ?
जब तुम थक जाते हो 
तो कौन तुम्हें सुला देता है?
और कौन जब तुम्हारी
नींद पूरी हो जाती है तो
तुम्हें उठा देता है?
कौन चलाता है चाँद—सूर्यों व अन्य ग्रह नक्षत्र को ? सूर्योदय से सूर्यास्त फिर सूर्योदय 
किसकी इच्छा से सब संभव हो रहा है सदियों से 
पौधों वृक्षों को हरा कौन रखता है ?
कौन खिलाता है पौधों वृक्षों में फूल फल को 
अनंत—अनंत रंगों के
और गंधों के ? 
कौन भरता उनमें सुगंध व स्वाद ?
संसार की प्राकृतिक गतिविधियों को कौन संचालित करता है 
कभी सोचा ? नहीं ना 
जिस स्रोत से ये पूरा ब्रह्माण्ड संचालित हो रहा है,
क्या उसके बिना सहारे के 
एक पल भी हमारी छोटी—सी जिंदगी चल सकेगी ?
कभी कार को ड्राइव करते सोचा है की थोड़े से अंदाज से गाड़ी कैसे निकल जाती है आगे 
कोई न कोई अदृश्य शक्ति ऊर्जा ड्राइवर को मार्गदर्शन कर रही होती है 
थोड़ा सोचो,
थोड़ा ध्यान करो।
अगर इस विराट संसार को
बिना किसी व्यवधान के 
चलते हुए हम देख रहे है,
सब सुंदर तरीके से चल रहा है,
कोई न कोई अदृश्य शक्ति तो है 
वो कौन है ? 
जिसे हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते है 
ईश्वर वही है जो 
ईश्वर दिखता नही देता बल्कि दिखाता है
ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है
ईश्वर बोलता नहीं है लेकिन जन्म के बाद बिना किसी गुरुकुल में गए बोलने की शक्ति देता है बोलना सीखता है 
इस संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है
जिसने इस सुंदर प्रकृति की रचना किया है 
वही तो ईश्वर है !!
इस संसार में हम तुक्ष्य मनुष्य पड़े पौधे नही उगा सकते
किसी को सांसे नही दे सकते इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम सबने कोरोना महामारी में देख और महसूस किया  
हम हमारे जैसे मनुष्य नहीं बना कर सकते न ही पुरुष के शरीर से महिलाओं की तरह प्रजनन की क्षमता उत्पन्न कर सकते है 
दूध तो गाय भैंस बकरी ऊट सब देते है लेकिन सभी की पौष्टिक क्षमता अलग अलग होता है क्यों कैसे कभी सोचा दूध का रंग तो लगभग समान सफेद ही होता है फिर स्वाद और तत्व सब में अगल अलग क्यों और कैसे 
कोई विज्ञान नहीं है इसमें 
विज्ञान से हमे केवल वही पता चल पा रहा है जो पहले से ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने रचना कर रखा है या जो उनकी इच्छा है और जब उनकी इच्छा है तभी विज्ञान कुछ खोज पता है अन्यथा वर्षो लग जाता है एक छोटी चीज भी खोजने में 
यही ईश्वर है मित्रों
इस लिए अपने आप को सनातन धर्म संस्कृति से जोड़े 
भगवान दिखाते नही , न हि दिखाते है वो तो केवल भाव देखते है भावना और प्रेम श्रद्धा व विश्वास को देखते है
स्वयं को भागवत भजन में लगाए जीवन सरल लगने लगेगा शांति मिलेगी लालच माया मोह से विशोभ होने लगेगा 
आप ईश्वर के नजदीक होने लगेंगे यही जीवन का मूल उद्देश्य है।।

जय श्री राम जय श्री सनातन धर्म।।


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