Monday 6 March 2023

धर्म शब्द का प्रयोग किसी समुदाय समाज समूह के साथ जोड़कर करना तर्कसंगत नहीं है।

साधारणतः जब भी हम चर्चा में धर्म शब्द का उपयोग करते सुनते है हम इसे समुदाय विशेष जैसे हिन्दू धर्म या बौद्ध जैन सिख या मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म से ही जोड़कर देखते है जबकि धर्म शब्द को समुदाय विशेष से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ का बोलना कहीं से तर्कसंगत नहीं है क्योंकि धर्म का वास्ताविक संबंध कर्तव्य से, नैतिक मूल्यों से, मानवता से, परंपराओं का समायानुसार, नैतिक व मानवीय मूल्यों के समन्वय के साथ निर्वहन से है न की हिंदू मुस्लिम ईसाई समूह आदि से है ......... 
धर्म का संबंध केवल व्यक्ति व व्यक्तित्व से है ना कि हिन्दू मुस्लिम ईसाई समुदाय से, हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म आदि एक राजनैतिक शब्द है जो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा समाज को विभाजित कर सत्ता में बने रहने के लिए हजारों वर्षों तक किया गया और स्वतंत्रता के बाद इस शब्द का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीत के लिए किया जा रहा है जबकि वास्तविक रूप से समझने का प्रयास करे तो पाएंगे की हिन्दू धर्म नही बल्कि विश्व की एक विशिष्ट संस्कृति - संस्कार- परम्परा है जो ब्रह्माण्ड के देवपुरुषों ऋषियो मनीषियों महामानवों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन की गई स्मृतियों, परंपराओं, संस्कारों पर आधारित है जिसका निर्वहन त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, ऋषि वशिष्ठ, माता सीता, रुद्रावतार राम भक्त हनुमान और द्वापर युग में श्री कृष्ण, माता यशोदा, श्री राधा, मित्र सुदामा, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, विदुर आदि द्वारा किया गया और उन्ही स्मृतियों परंपराओं संस्कृतियों पर आधारित जीवन शैली को हिन्दू संस्कृति कहा गया। इस प्रकार हिन्दू एक संस्कृति है ना कि धर्म, इसे धर्म कहना अनुचित है ......... 
हिन्दू संस्कृति एक प्रकार से वैदिक संस्कृति है क्योंकि यह वैदिक श्रुति स्मृति परंपराओं पर आधारित है इसे हिन्दू संस्कृति इसलिए कहा गया क्योंकि इसका पालन हिंदू कुश पर्वत परिक्षेत्र में रहने वाले मानवीय समुदायों द्वारा किया जाता है और पौराणिक ग्रंथों से यह पता चलता है कि इसी क्षेत्र में देव पुरुषों द्वारा पृथ्वी पर अवतार लेकर मानवीय जीवन के धर्म कर्तव्यों का निर्वाहन किया गया.... कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध को श्री कृष्ण ने धर्मयुद्ध का नाम दिया क्यों कि वह लड़ाई अन्याय अनीति लोभ ईर्ष्या द्वेष अनाचार व अत्याचार के विरुद्ध धर्म की स्थापना की लड़ाई थी ना कि दो समुदायों या हिन्दू या मुस्लिम संस्कृति की ..... 

धर्म का संबंध सकारात्मक सोच और कर्म से है ना कि नकारात्मक विचारों व व्यवहार से या समुदाय विशेष से। तप त्याग क्षमा दया सेवा व कर्तव्य भाव धर्म निर्वहन के साधन है जिसका पालन व्यक्ति द्वारा संस्कार रूप में आदर्श जीवन के लिए किया जाता है चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंधित हो। जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथो में मिलता है। धर्म पालन हिन्दू संस्कार का अभिन्न हिस्सा है जीवन शैली है जिसकी शिक्षा गुरुकुलो में ऋषि मुनियों द्वारा नैतिक शिक्षा के रूप में प्रदान किया जाता था। इसी प्रकार मुस्लिम ईसाई समुदायों की संस्कृती है संस्कार है जो की उनके समाज के विद्वानों महापुरुषों गुरुओं द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन करने की शिक्षा दिया गया ना कि धर्म है। इसलिए किसी भी समुदाय या समाज के साथ धर्म शब्द जोड़कर प्रचारित करना या निर्दोष अशिक्षित जनता को गुमराह करके धर्म के नाम पर राजनिति करना एकदम गलत है।

वैसे भी हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म ईसाई धर्म शब्द का कोई पौराणिक प्रमाण नहीं मिलता है ये सब एक राजनैतिक शब्द है धर्म जीवन निर्वहन का एक संस्कार है जिसका उल्लेख सनातन वैदिक संस्कृति में संस्कार रूप में मिलता है।
मुझे लगता है कि हिंदू समाज सनातन अनुयायियो को सनातन या हिन्दू संस्कार या संस्कृति शब्द का प्रयोग व संबोधन करना चाहिए न कि सनातन या हिन्दू धर्म, अन्य समुदाय के लोगो को भी इस्लाम या मुस्लिम धर्म की जगह इस्लामिक संस्कृति या ईसाई यहुदी संस्कृति बोलना चाहिए न कि धर्म ।

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