Sunday 26 April 2020

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को सर्व श्रेष्ठ तिथि क्यो माना जाता है ?

जो कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षय फल मिलता है इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। स्कंदपुराण और भविष्य पुराण में यह उल्लेख कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी अक्षय तृतीया की इस तिथि को परम पुण्यमय बताया है। अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है। युगादि का शाब्दिक अर्थ है युग आदि अर्थात एक युग का आरंभ। इस दिन सूर्य पूर्ण बली होते है इसीलिए इस दिन सूर्य प्रधान त्रेता युग का आरंभ हुआ।
अक्षय तृतीया को विशेष तिथि इस लिए भी माना जाता है कि आज के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी और महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था। भगवान शिव ने आज के दिन ही माॅ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन का संरक्षक नियुक्त किया था। इसीलिए इस दिन सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का विशेष महत्व है।

पुराणो मे ऐसा उल्लेख है कि आज के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन गंगा स्नान करने से व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है और यदि यह तिथि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल अत्यधिक बढ़ जाता हैं। आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

आज के दिन ही ऋषि जमादग्नि तथा माँ रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का भी अवतार हुआ था जो आज भी अजर अमर है। इनके अलावा छः और लोगों को अमरत्व का वरदान है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:,कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
भगवान शिव के परम भक्त श्री परशुराम धर्म न्याय व वीरता के साक्षात उदाहरण है परशुराम जी की त्रेता युग के दौरान सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर क्रोधित होने का उल्लेख मिलता है और दापर युग महाभारत काल मे उन्होंने गंगा पुत्र भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या प्रदान किया।

श्रीबांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से किया जाता है ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके और बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं। श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही होता है जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था।


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