Saturday 11 February 2023

पुरानी पेंशन बहाली की मांग देशहित में तर्कसंगत है या केवल सत्ता वापसी की राजनीति?

हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के सहारे कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापसी के बाद से देश के अन्य हिस्सों में ये मुद्दा और गरम हो रहा है। कांग्रेस पार्टी की २०२३ में होने दस राज्यों विधान सभा चुनाओं में सफलता की उम्मीदें और बढ़ गई है यदि परिणाम कुछ सकारात्मक रहा तो २०२४ के आम चुनाव में भी इसको हवा दिया जाएगा। मजेदार बाद यह है कि इस मुद्दे को सबसे पहले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने २०१७ के विधान सभा चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया और २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी इसको मुद्दा बनाया लेकिन कांग्रेस ने इसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी पार्टी की सरकार द्वारा राज्य स्तर पर लागु करवाके हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी कर लिया ........ 
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो ये हैं कि यदि पेंशन बहाली जनहित में इतना आवश्यक था तो २००४ से लेकर २०१४ तक में यूपीए सरकार के सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं बहाल किया गया जबकि मनमोहन सिंह जी देश के बड़े अर्थशास्त्री के तौर पर प्रधामनंत्री की भुमिका निभा रहे थे और तब इसे बड़ी आसानी से किया जा सकता था क्यों कि पुरानी पैंशन योजना खत्म करने का कानून २००४ से ही लागू होना था ......
यदि मनमोहन सिंह जी ने उस समय पुरानी पैंशन योजना को बहाल नहीं किया इसका मतलब उनके दृष्टिकोणों से ये उचित नही रहा होगा और यदि तब कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के सहयोगी दलों ने मनमोहन सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो आज लगभग बीस साल बाद क्यो पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे है ......
इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि तब देश की आर्थिक स्थित इस लायक नही थी कि सरकार पेंशन का बोझ उठा पाए और मनमोहन जी को लगा होगा कि पेंशन के मद में जा रहे धन को देशहित जनहित के अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा जिस उद्देश्य से अटल बिहारी जी की सरकार ने २००० में पेंशन योजना खत्म करने का कानून सदन में पास किया था जिसमे यह व्यवस्था किया गया था कि २००४ के बाद से नई भर्तियों में पेंशन व्यवस्था का रूप बदल जाएगा और वो पूर्णतः कर्मचारियों के ऊपर निर्भर करेगा।
एक दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या २००० में जब पेंशन खत्म करने के कानून सदन में अटल बिहारी जी की सरकार द्वारा पास करवाया जा रहा था तो विपक्ष के नेता सदन में मौजूद नहीं थे या राहुल गांधी जी, सोनिया जी, अखिलेश यादव जी सांसद नही बने थे तब विरोध नही कर पाए और आज अचानक २०१९ आम चुनाव के बाद जागृत हो गए है कि कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ और फिर से पेंशन बहाली की जाए।

मुझे तो लगता है कि पेंशन बहाली और महंगाई का मुद्दा केवल सत्ता वापसी के लिए एक ढाल है और कुछ नही। अटल जी कि सरकार २००४ में महंगाई के मुद्दे पर ही चली गईं थी जब कि अटल जी राष्ट्रहित में देश के विकाश के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम कर रहे थे २००४-२०१४ तक महंगाई और बेरोजगारी का डाटा उठाके देख लिया जाए तो कुछ खास परिर्वतन नहीं कर पाई थीं यूपीए सरकार महंगाई और रोजगार सृजन के मामले में ......... ....
असलियत तो यह है कि भारत से महंगाई और बेरोजगारी की समस्या तब तक नही खत्म हो सकती जब तक कि जनसंख्या वृद्धि दर को संतुलित न किया जाए और कृषि उत्पादन को ना बढ़ाया जाए क्यों कि रोजगार सृजन की एक सीमित वार्षिक क्षमता है उससे अधिक सम्भव नही है लेकिन जनसंख्या वृद्धि की कोई निश्चित सीमा ही नहीं है । सीधी बात है कि मांग और उपलब्धता में संतुलन बनाए बगैर महंगाई बेरोजगारी की समस्या कभी नहीं खत्म हो सकती चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आ जाए या कोई भी देश का प्रधानमन्त्री बन जाए

हास्यास्पद बात यह है कि देश में नेशनल पेंशन स्कीम एनपीएस की व्यवस्था करचारियो के लिए उपलब्ध है जिस कर्मचारी को जितना पेंशन चाहिए उतना प्लान कर ले तो ऐसे में पुरानी पेंशन बहाली की क्या जरूरत है लेकिन नही कर्मचारियों के नेता किसी न किसी पार्टी के समर्थक होते है उन्हे अपना नंबर पार्टी मुखिया के दिमाग में बढ़ाना और वरदहस्त प्राप्त करना है तो मांग तो उठाएंगे ही, हर साल महगई भत्ता में बढ़ोत्तरी के लिए, प्रत्येक साल वेतन वृद्धि भी के लिए, वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुसार प्रत्येक पांच साल में एकमुश्त बड़ी वेतन वृद्धि के लिए, साल में १५० दिन से अधिक छुट्टियां, घर गाड़ी और बच्चों की शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी , सालाना एलटीए और सुबह केवल दस बजे से ३ बजे तक ही काम चाहिए और जब आम आदमी के हित में जिमेदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करने को कहा जाय तो उसमे में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि बिना कुछ जेब गरम हुए कदम व कलम आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकार ने एक पेंशन ख़त्म कर दिया तो उसके वापसी के लिए राजनीति हो रही है 
बेहतर होता कि देश के समस्त कर्मचारी राजनेताओं के पेंशन को देशहित में ख़त्म करने के लिए एकजुट होकर आवाज उठाते ना कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग के लिए। 
वैसे ईमानदारी से पूछा जाए तो पेंशन का वास्तविक अधिकारी केवल देश के आम वृद्धजन, विधवा महिलाएं और अनाथ बच्चे है जिन्होंने कभी सरकारी नौकरी नहीं किया व जिसके पास मासिक आय का कोई श्रोत नही है। इस लिए देश के वृद्धजनों और विधववाओ का मासिक पेंशन बढ़ाके सीधे ६००० से अधिक कर देना चाहिए। 
यदि देश की राजनितिक पार्टियां वास्त्विक रूप से जनहित की देशहित की सोचते है तो पुरानी पेंशन बहाली की मांग के जगह जनसंख्या नियंत्रण, वृद्ध व महिला पेंशन वृद्धि की मांग करे जो जनहित देशहित में है  अन्यथा सत्तानीति और जातिवाद क्षेत्रवाद की राजनीति बंद करे। 
वैसे भी देशहित जनहित और विकाशहित में बात करना  ही केवल राजनिति कहलाती है अन्यथा सत्तानित और स्वार्थनीत के अलावा और कुछ नही। 

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