Monday 12 September 2022

राजधानी दिल्ली का राजपथ मार्ग अब कर्त्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा

देश की राजधानी दिल्ली के लुटियन जोन में स्थित राजपथ मार्ग अब "कर्त्तव्य पथ" के नाम से जाना जाएगा। निःसंदेह नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार का यह एक अच्छा निर्णय है। जो मार्ग से गुजरने वाले सांसदों मंत्रियों अधिकारियों व अन्य नेताओं को उनके कर्तव्यों का कम से कम रोज एक बार एहसास तो कराएगा ....
क्योंकि मैंने अक्सर बड़े बुजुर्गो से सुना है नाम का असर उससे जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है इसका एक उदाहरण हम ऐसे ले सकते है विवेकानंद जी का नाम भी "नरेंद्र" था और उन्होंने भारत को विश्व में वैदिक सनातन धर्म के प्रचार के माध्यम से एक उच्चस्तरीय कीर्ति दिलाई और अब देश के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र मोदी जी है जो अपना पूरा प्रयास भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे है इसका एक बड़ा उदाहरण है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग दिवस 21जून को मान्यता देना और विश्व स्तर पर योगदिवस का आयोजन होना।

इसी प्रकार हो सकता है राजपथ का नाम अब कर्तव्य पथ होने पर उसके प्रभाव स्वरुप मार्ग से गुजरने वाले देश के जिम्मेदार व्यक्तियों की भी कर्व्यप्रणायता जागृत हो और भारत का विकास और जनकल्याणकारी कार्य और तेजी से संभव हो पाए ... हालाकि इसके लिए दृढ़ इस्छाशक्ति व सही नियति का भी होना बहुत जरूरी है ......
फिर भी हम उम्मीद तो कर ही सकते है शायद नाम का असर प्रभावकारी हो और ..... .......... कुछ नया परिर्वतन देखने को मिले आने वाले समय में .......
वैसे भी राजपथ तो राजाओं के लिए होता था आजादी के बाद जब राजशाही व्यवथा खत्म हो गई तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजपथ की क्या आवश्यकता रही। अब तो उस परिक्षेत्र में रहने वाले और उस मार्ग से गुजरने वाले लोगो को तो अपने कर्तव्यों का याद रहना ज्यादा आवश्यक है। ना कि राजशाही का एहसास होना .......
वैसे भी शायद राजपथ नाम का ही असर था की देश तो राजशाही व्यवस्था से आजाद तो हो गया था लेकिन आजादी के बाद के नेता संसद में पहुंचने के बाद अपने आपको किसी राजा से कम नहीं समझते है ........ और साउथ ब्लाक नॉर्थ ब्लॉक में तैनात अधिकारियों का भी अमूमन यही हाल है .... ......

काश देश के सदन में उपस्थित सभी प्रतिनिधि और मंत्रालय में उपस्थित सभी अधिकारीगण ये समझपाते की राजपथ पर चलने से वे राजशाही व्यवस्था के अंश नही बल्कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कर्मयोधा है ...... और देश का विकास व जनता का भविष्य उनके हाथ में है जिसे सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है लेकिन राजशाही व्यवस्था का आनंद लेने के आदि बने संसद प्रतिनिधियों व
अधिकारियों ने ईमानदार तरीके से कभी काम ही नहीं किया।

उम्मीद है कि शायद कर्तव्य पथ का सकारात्मक प्रभाव लोगो पर पड़ेगा और देश के नेताओ व अधिकारियों के अंदर कुछ नया परिर्वतन देखने को मिलेगा।।

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