Friday 17 December 2021

विवाह एक संस्कार है जो पारिवार सामाज व परम्पराओ के अनुसार सम्पादित होता है ना कि कानून के मुताबिक।

देश के उच्च सदन मे महिलाओ के विवाह के संदर्भ मे शादी के लिए उम्र सीमा को निर्धारित करने का कानून पास हुआ जिसके अनुसार अब लडकियो की शादियाँ  21 वर्ष से पहले कानूनन अवैध मानी जाएगी। मेरे समझ से आज के समय मे ऐसे कानून का कोई औचित्य ही नही है क्योकि शादी विवाह एक व्यक्तिगत, पारिवारिक व विशेषकर सामाजिक विषय है जो कि परिवार की सामाजिक आर्थिक व परम्परागत व्यवस्थाओ पर निर्भर करता है। इसके भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि विवाह जैसी सामाजिक परंपरा का प्रावधान मनुष्य जीवन मे होने वाली शारिरीक विकास व प्राकृतिक आवश्यकता के अनुरूप किया गया है जो कि सनातन धर्म का एक प्रमुख संस्कार भी है और भारत जैसा देश, जो विश्व मे सबसे अधिक विभिन्नताओ भाषाओ व सांस्कृतिक परम्पराओ से भरा देश है जहाँ हर दस किलोमीटर पर बोली भाषा, बात व्यवहार बदल जाता जहाँ वैवाहिक रिश्ते दादा - दादी, बुआ- फूफा व अन्य सगे - संबंधियो, गुरुजनो के आशीर्वाद, ग्रह नक्षत्रो, कुटुंब के रीति-रिवाजो, परम्पराओ और भावनाओ से तय होता है वहाँ पर उम्र सीमा का बंधन सामाजिक संबंधो मे कवल असहजता ही उत्पन्न करेगा न कि कोई सुगमता होगी लोगो को इससे।

मेरा मानना है कि जब पहले से ही महिलाओ के लिए 18 वर्ष व पुरुषो के लिए 21 वर्ष की सीमा विवाह के लिए निर्धारित है और आजकल तो लडकियो की शादियाँ चाहे गरीब हो या अमीर सबके घर, समाज मे सामान्यतः देर से ही हो रही तो ऐसे मे समाज को कानून के बंधन मे बाधने की कोई आवश्यकता नही है ऐसे कानून का लोगो लाभ तो कुछ नही होगा बल्कि दुष्प्रभाव यह होगा कि समाज के दुष्टप्रवृत्ति के लोग समाज मे कई अन्य तरह की समस्याए पैदा करेगे इससे सभ्य व कमजोर लोगो के लिए जीवन मे असहजता ही उत्पन्न होगा। निस्संदेह आज भी समाज मे 5-10% ऐसे परिवार है जो अपनी लड़की की शादी 18-20 साल से कम उम्र मे कर रहे है लेकिन इसके पीछे उनकी अपनी परिवारिक सामाजिक व आर्थिक मजबूरियाँ भी है अन्यथा आज तो लगभग हर परिवार मे चाहे वो अमीर है या गरीब लड़की की शादी 22-23 साल मे और लड़के की शादी 25-27 साल मे ही हो रहा है तो ऐसे मे जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है वो अपने आप पुरा हो रहा है। रही बात लडकिया के परिपक्वता की तो उन्हे ईश्वर व प्रकृति का ऐसा वरदान है कि वे लडको से कम ऊम्र मे ज्यादा समझदार व परिपक्व हो जाती है बाकि वास्तविक परिपक्वता तो मनुष्य जीवन मे अनुभव व समय से ही आती है इसके लिए किसी कानून की आवश्यक नही है।। 

वैसे अत्यधिक कानून से समाज मे असंतुष्टि व विषमताए ही पैदा होती है लोग अपनी स्वतन्त्रता को बाधित होने पर उसे तोडने का प्रयास करते है जिससे कानून व्यवस्थाओ पर असर पडता है। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को इस कानून को लागू करने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए। ।

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हम सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है

अक्सर हम लोगो को हिन्दुधर्म के अस्तित्व को लेकर चर्चा करते सुना व बहस करते देखा, खास तौर पर विपक्षी राजनीतिक पार्टी के नेताओ व समर्थको के द्वारा, कुछ लोग कहते है कि हिन्दु कोई धर्म ही नही है जो लोग ऐसा कहते मै ऐसे लोगो को हृदय से धन्यवाद देता हूँ कम से कम इसी वजह से सनातन धर्म पर लोग चर्चा तो शुरु किए और जो ऐसा कहते है वो बिल्कुल सही बोल रहे है हिन्दुधर्म तो केवल एक जीवन शैली है और अपने मूल सनातन धर्म का एक परिष्कृत रूप है जो पूरे भारतवर्ष ( हिन्द महासागर ) के परिक्षेत्र मे फैला था ना कि केवल भारत या हिन्दुस्तान की सीमा तक ही सीमित था बल्कि लगभग पुरे एशियाई परिक्षेत्र तक सनातन धर्म वृहदता लिए हुए था जिसे विदेशी आक्रान्ताओ ने नया नाम हिन्दुधर्म दे दिया जिससे की सनातन धर्म का अस्तित्व और वास्तविक पहचान धीरे धीरे समाप्त हो जाए  और संभवतः यह नाम इस परिक्षेत्र मे रहने वाले लोगो के जीवन शैली के आधार पर तय हुआ होगा लेकिन जो जीवन शैली इस परिक्षेत्र के लोगो का है वह पूर्णतः सनातन धर्म यानि वैदिक ज्ञान पर आधारित है जो एक प्रकार से प्राकृतिक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है।
मुझे लगता है सनातन धर्म को हिन्दुधर्म का नाम मुगल शासन के दौरान एक राजनीतिक कुचक्र के तहत प्रचारित प्रसारित किया गया और जैसे जैसे मुस्लिम आक्रंताओ ने हिन्द महासागर के परिक्षेत्र पर अपना कब्जा कर सनातन धर्म मानने वालो की संख्या कम करते गए वैसे वैसे सनातन धर्म मानने वाले लोग एक निश्चित सीमा मे ही सीमित हो गये तब यह धर्म केवल हिन्दुधर्म बनकर रह गया जो कि वास्तविक सनातन धर्म का ही एक जीवन शैली है।

वैसे भी मुगलो का यह उद्देश्य ही था कि सनातन धर्म को समाप्त कर दिया जाए जिसे उन्होने हिन्दुधर्म का नाम देकर बहुत हद तक सफलता भी हासिल कर लिया था और जो बचा रहा उसे काग्रेस पार्टी के लोगो ने समाप्त करने की कोशिश किया क्योंकि मुगलो को सनातन धर्म व संस्कृति की श्रेष्ठता एवं वैज्ञानिक महत्ता अपाच्चय था जबकि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो आदिकाल से मनुष्य जीवन क लिए ज्ञान व संस्कार का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है बाकि सब तो बस एक सम्प्रदाय है एक विचार धारा है एक जीवन शैली है इससे अधिक और कुछ भी नही। यह हम भारतीयो का दुर्भाग्य है कि जो गलतफहमी मुगल व ब्रिटिश फैला गए उसी को सभी विपक्षी पार्टी आज सह दे रही है उसी पर राजनीति कर रही है और हम है कि उनके खेल का हिस्सा बनकर हो हल्ला कर रहे है आनंद ले रहे है और हमारा मूल धर्म- सनातन धर्म विलुप्त हो रहा है जिसे अब एक बार फिर से जिंदा करने का प्रयास किया जा रहा है तो कुछ समुह के लोग धर्म की राजनीति का नाम दे रहे है। 
मेरा अनुरोध है सभी सनातनियो से अब तो जागिये नही तो हमारी आने वाली पीढ़ी अपने मूल धर्म को जान ही नही पाएगी और सब लोग अपने को हिन्दु की जगह सनातनी कहना शुरू करिए क्योंकि हम सब सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है । सरकार से मांग करिए की सरकारी कार्यो व पहचान पत्रो मे प्रत्येक जगह धर्म के कालम मे हिन्दुधर्म हटाकर सनातन धर्म करे इसके लिए यदि बड़ा आन्दोलन करने की जरूरत हो तो उसके लिए माहौल तैयार करिए जातिवाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठिए सबको इकठ्ठा करिए जिससे हम सनातनी अपनी वास्तविक पहचान को विश्व से परिचित करवाए जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ये गर्व से कह सके की हम सनातनी है ।।
जय हो सत्य सनातन धर्म की ।। 

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