Friday 24 February 2023

महाशिवरात्रि सनातन संस्कृति का महापर्व आदि शिव का प्रकटोत्सव दिवस है

शिव आदि है अनंत है अविनाशी है निराकार है महायोगी है देवाधीदेव है महादेव है प्रकृति है अगोचर है
हम सबने सुना है ईश्वर एक है वो "शिव" ही है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में है शिव, शिव अनंत ऊर्जा है शिव के बिना ब्रह्माण्ड की संकल्पना ही नहीं की जा सकती है सूर्य चंद्र पृथ्वी जल आकाश नभ नव ग्रह सप्तर्षि, सप्त नदिया और ब्रह्माण्ड की समस्त दिव्य शक्तियां व ऊर्जा "शिव" के अंश मात्र है 

शिव अनंत ऊर्जा है शिव ही "शंकर" शिव ही "विष्णु" शिव ही "ब्रह्मा" है 
शिव ही रचनाकार पालनहार और संहारक है 
शिव "आदिपुरुष" और प्रकृति "आदिशक्ति" के संयोजन से निराकार शिव, शहस्त्राब्दी वर्ष पूर्व त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की इच्छा व प्रेम से वशीभूत होकर आदिशिव महादेव ने फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि की रात्रि, प्रदोष काल में मानव कल्याण के लिए अपने भक्तों में योग उपासना व भक्ति भाव जागृत करने के लिए "लिंग" आकार लिया ...............
वैसे तो सनातन संस्कृति में विक्रम संवत् के अनुसार प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है जो की अमावस्या तिथि के एक दिन पूर्व आता है चूंकि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मानव कल्याण हेतु स्वयं भू लिंग आकार में महादेव शिव ने त्रिदेव भक्तों को दर्शन दिया और इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग आकार महादेव का दिव्य दर्शन और पूजन किया इसी लिए फाल्गुन मास की शिवरात्रि "महा शिवरात्रि" कहलाती है। महाशिवरात्रि आदि शिव के प्रकटोत्सव का दिवस है आदि शिव व आदि शक्ति के प्राकृतिक संयोजन का दिन है। मान्यता है महाशिवरात्रि पर सभी देवतागण और दिव्य आत्माएं पृथ्वी पर स्वयं भू शिव लिंग का साक्षात दर्शन करने सूक्ष्म रुप में आते है इसीलिए महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण व मंत्र जाप का भी बहुत है।

शिवलिंग हमे यह संदेश भी देता है कि आदिशिव व आदिशक्ति एक ही है अलग अलग नहीं और यही महादेव और प्रकृति स्वरूपा आदिशक्ति के अर्धनारीश्वर रूप  का आधार भी है..............

महाशिवरात्रि महापर्व को लोग शंकर भगवान और पार्वती माता के विवाह वर्षगांठ के रूप भी में मनाते है इसमें कोई बुराई नही लोग अपने आराध्य देव महादेव और जगत जननी की भक्ति महाशिवरात्रि पर विवाह वर्षगांठ मनाकर करते है अच्छी बात है लेकिन "शिव  महापुराण" के  सती खण्ड के अनुसार सच्चाई यह है कि भगवान शंकर - माता सती का विवाह चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ था और पार्वती खण्ड के अनुसार माता पार्वती और शंकर का विवाह मार्गशीर्ष चतुर्दाशी को हुआ था। इस लिए महाशिवरात्रि को यदि हम योगसाधना ध्यान व मंत्र सिद्धि अथवा आत्म साक्षात्कार के माध्यम से ह्रदय में उपस्थित शिव के दिव्य अंश दिव्य आत्मा को जागृत करने और अध्यात्मिक चेतना के विकाश के लिए करे तो और अच्छा होगा.....

तीन पत्तो वाले बेलपत्र महादेव को प्रिय है क्यो कि बेल पत्र के तीन पत्तो वाली टहनियां ब्राह्म विष्णु महेश के प्रतीक रूप है जो मानव कल्याण के लिए प्रकृति की अमूल्य निधि है वैसे भी शिव पुराण में बेल वृक्ष को साक्षात शिव का व पीपल के वृक्ष में श्री हरि विष्णु का वास बताया गया है इसी लिए तीन पत्तो वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से शिव की कृपा प्राप्त होती है

महादेव यानि शिव जो निराकार है सर्वश्रेष्ठ है उनका एक ही आकार है वो है शिवलिंग और शिव के शरीर धारी रूप है ब्राह्म विष्णु महेश व सप्तऋषि है, महेश ही शंकर है शंकर योगी है संन्यासी है संत है साधु है त्यागी है दानी है अघोरी है विनाशक है मृत्युदाता और जीवन रक्षक भी है और यमराज इनके सेनापति, भूत प्रेत पिशाच डांकिनी शाकिनी निशाचर सब इनके सहयोगी है।

बेलपत्र के अलावा महादेव को जल धारा बहुत प्रिय हैं क्यों कि जल से महादेव को शीतलता प्राप्त होती है ऐसा इस लिए की जब समुद्र मंथन से निकले विष को महादेव ने मानव कल्याण हेतु ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं ग्रहण कर लिया था तब शिवशंकर का शरीर नीला पड़ गया और हिमालय के नीलकंठ पर्वत पर विश्राम करने गए तब श्री ब्रह्मा विष्णु के साथ सभी देवतागण उनका जलाभिषेक किया जिससे उनके शरीर को शीतलता प्राप्त हुई और महादेव को  नीलकंठ के नाम से पुकार गया। आज भी नीलकंठ महादेव का शिवलिंग ऋषिकेश के पास नीलकंठ पर्वत पर स्थित है जहां जलाभिषेक का बहुत महत्त्व है। महादेव के अभिषेक करने कई अन्य विधियां भी है जैसे दूध से अभिषेक लेकिन ऐसा विशेष उद्देश्य या कार्य के संकल्प के लिए प्रयोग करना चाहिए ना कि जब भी मंदिर जाए एक लीटर दूध ही चढ़ाके आ जाए।

हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय

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Saturday 11 February 2023

पुरानी पेंशन बहाली की मांग देशहित में तर्कसंगत है या केवल सत्ता वापसी की राजनीति?

हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के सहारे कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापसी के बाद से देश के अन्य हिस्सों में ये मुद्दा और गरम हो रहा है। कांग्रेस पार्टी की २०२३ में होने दस राज्यों विधान सभा चुनाओं में सफलता की उम्मीदें और बढ़ गई है यदि परिणाम कुछ सकारात्मक रहा तो २०२४ के आम चुनाव में भी इसको हवा दिया जाएगा। मजेदार बाद यह है कि इस मुद्दे को सबसे पहले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने २०१७ के विधान सभा चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया और २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी इसको मुद्दा बनाया लेकिन कांग्रेस ने इसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी पार्टी की सरकार द्वारा राज्य स्तर पर लागु करवाके हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी कर लिया ........ 
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो ये हैं कि यदि पेंशन बहाली जनहित में इतना आवश्यक था तो २००४ से लेकर २०१४ तक में यूपीए सरकार के सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं बहाल किया गया जबकि मनमोहन सिंह जी देश के बड़े अर्थशास्त्री के तौर पर प्रधामनंत्री की भुमिका निभा रहे थे और तब इसे बड़ी आसानी से किया जा सकता था क्यों कि पुरानी पैंशन योजना खत्म करने का कानून २००४ से ही लागू होना था ......
यदि मनमोहन सिंह जी ने उस समय पुरानी पैंशन योजना को बहाल नहीं किया इसका मतलब उनके दृष्टिकोणों से ये उचित नही रहा होगा और यदि तब कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के सहयोगी दलों ने मनमोहन सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो आज लगभग बीस साल बाद क्यो पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे है ......
इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि तब देश की आर्थिक स्थित इस लायक नही थी कि सरकार पेंशन का बोझ उठा पाए और मनमोहन जी को लगा होगा कि पेंशन के मद में जा रहे धन को देशहित जनहित के अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा जिस उद्देश्य से अटल बिहारी जी की सरकार ने २००० में पेंशन योजना खत्म करने का कानून सदन में पास किया था जिसमे यह व्यवस्था किया गया था कि २००४ के बाद से नई भर्तियों में पेंशन व्यवस्था का रूप बदल जाएगा और वो पूर्णतः कर्मचारियों के ऊपर निर्भर करेगा।
एक दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या २००० में जब पेंशन खत्म करने के कानून सदन में अटल बिहारी जी की सरकार द्वारा पास करवाया जा रहा था तो विपक्ष के नेता सदन में मौजूद नहीं थे या राहुल गांधी जी, सोनिया जी, अखिलेश यादव जी सांसद नही बने थे तब विरोध नही कर पाए और आज अचानक २०१९ आम चुनाव के बाद जागृत हो गए है कि कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ और फिर से पेंशन बहाली की जाए।

मुझे तो लगता है कि पेंशन बहाली और महंगाई का मुद्दा केवल सत्ता वापसी के लिए एक ढाल है और कुछ नही। अटल जी कि सरकार २००४ में महंगाई के मुद्दे पर ही चली गईं थी जब कि अटल जी राष्ट्रहित में देश के विकाश के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम कर रहे थे २००४-२०१४ तक महंगाई और बेरोजगारी का डाटा उठाके देख लिया जाए तो कुछ खास परिर्वतन नहीं कर पाई थीं यूपीए सरकार महंगाई और रोजगार सृजन के मामले में ......... ....
असलियत तो यह है कि भारत से महंगाई और बेरोजगारी की समस्या तब तक नही खत्म हो सकती जब तक कि जनसंख्या वृद्धि दर को संतुलित न किया जाए और कृषि उत्पादन को ना बढ़ाया जाए क्यों कि रोजगार सृजन की एक सीमित वार्षिक क्षमता है उससे अधिक सम्भव नही है लेकिन जनसंख्या वृद्धि की कोई निश्चित सीमा ही नहीं है । सीधी बात है कि मांग और उपलब्धता में संतुलन बनाए बगैर महंगाई बेरोजगारी की समस्या कभी नहीं खत्म हो सकती चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आ जाए या कोई भी देश का प्रधानमन्त्री बन जाए

हास्यास्पद बात यह है कि देश में नेशनल पेंशन स्कीम एनपीएस की व्यवस्था करचारियो के लिए उपलब्ध है जिस कर्मचारी को जितना पेंशन चाहिए उतना प्लान कर ले तो ऐसे में पुरानी पेंशन बहाली की क्या जरूरत है लेकिन नही कर्मचारियों के नेता किसी न किसी पार्टी के समर्थक होते है उन्हे अपना नंबर पार्टी मुखिया के दिमाग में बढ़ाना और वरदहस्त प्राप्त करना है तो मांग तो उठाएंगे ही, हर साल महगई भत्ता में बढ़ोत्तरी के लिए, प्रत्येक साल वेतन वृद्धि भी के लिए, वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुसार प्रत्येक पांच साल में एकमुश्त बड़ी वेतन वृद्धि के लिए, साल में १५० दिन से अधिक छुट्टियां, घर गाड़ी और बच्चों की शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी , सालाना एलटीए और सुबह केवल दस बजे से ३ बजे तक ही काम चाहिए और जब आम आदमी के हित में जिमेदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करने को कहा जाय तो उसमे में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि बिना कुछ जेब गरम हुए कदम व कलम आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकार ने एक पेंशन ख़त्म कर दिया तो उसके वापसी के लिए राजनीति हो रही है 
बेहतर होता कि देश के समस्त कर्मचारी राजनेताओं के पेंशन को देशहित में ख़त्म करने के लिए एकजुट होकर आवाज उठाते ना कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग के लिए। 
वैसे ईमानदारी से पूछा जाए तो पेंशन का वास्तविक अधिकारी केवल देश के आम वृद्धजन, विधवा महिलाएं और अनाथ बच्चे है जिन्होंने कभी सरकारी नौकरी नहीं किया व जिसके पास मासिक आय का कोई श्रोत नही है। इस लिए देश के वृद्धजनों और विधववाओ का मासिक पेंशन बढ़ाके सीधे ६००० से अधिक कर देना चाहिए। 
यदि देश की राजनितिक पार्टियां वास्त्विक रूप से जनहित की देशहित की सोचते है तो पुरानी पेंशन बहाली की मांग के जगह जनसंख्या नियंत्रण, वृद्ध व महिला पेंशन वृद्धि की मांग करे जो जनहित देशहित में है  अन्यथा सत्तानीति और जातिवाद क्षेत्रवाद की राजनीति बंद करे। 
वैसे भी देशहित जनहित और विकाशहित में बात करना  ही केवल राजनिति कहलाती है अन्यथा सत्तानित और स्वार्थनीत के अलावा और कुछ नही। 

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Tuesday 7 February 2023

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का संदेश क्या अब जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीति खत्म होनी चाहिए

संत रविदास जयंती के अवसर पर संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत जी महाराष्ट्र में रविदास जयंती कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए थे जहा उनके उद्बोधन के कुछ अंश को लेकर देश के राजनितिक गलियारे में बडी चर्चा का विषय बना है ...... 
राजनितिक गलियारा शब्द मैं इस लिए बोल रहा हूं क्यों कि आम जनता तो अपने रोजी रोटी और दैनिक जीवन के समस्याओं में इतना उलझी हुई है कि दिन भर मेहनत करके थका हारा शाम को आम आदमी जब घर लौटता है तो दो रोटी खाकर जल्दी सो जाता है कि सुबह उठकर उसे अगले दिन की तैयारी करनी होती है कौन कहा क्या बोल रहा है क्यों बोल रहा है ये तो उसे गली नुक्कड़ चौराहों पर पान चाय की दूकानों पर अपने अपने नेताओं की शेखी बखार रहे लोगो से पता चलता है और वही उन्हे समझाते भी है कि कौन नेता क्या बोला और उसका क्या मतलब है वो भी अपने पार्टी और नेता के हित के अनुसार ......... 
इस लिए आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोहन भागवत जी क्या बोल रहे हैं या कोई अन्य नेता क्या बोल रहा है.....
फिलहाल आइए बात करते है मोहन भागवत जी के व्यत्व्य की जिसकी चर्चा चल रही है मुझे लगता है भागवत जी जिस मंच से जिस महान व्यतित्व की जयंती पर बोल रहे थे और जो भी बोला उनका तात्पर्य सनातन समाज के विघटन को दूर करने की दूरदृष्टि का उदबोधन था न कि किसी वर्ग विशेष या समुदाय को नाराज करना या आरोपित करना.......... ..... 
वैसे इस बात में पुरी सत्यता है कि सनातन वैदिक व्यवस्था में जाति सूचक शब्द को कहीं भी ज्यादा महत्ता नही दिया गया है। ये तो समाज के कुछ मठाधीश लोगों ने समय समय पर अपने निहित स्वार्थ और अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए समाज में नाकारात्मक माहौल पैदा किया वैसे पंडित और ब्राह्मण दोनों शब्दों का अर्थ स्थान कर्म और परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है। जैसे पंडित शब्द आम बोल चाल में लोग बहुत जानकार अनुभवी व ज्ञानी व्यक्ति को भी बोलते है "चल बड़ा आई है पंडित बने आपन ज्ञान मत दा " ऐसे ही बहुत से अन्य शब्द है जिनका अर्थ संदर्भ बदल जाता है वाक्या अनुसार ........

वैसे भी जाति सूचक शब्द हमेशा से राजनितिक और व्यक्तिगत स्वार्थ साधने का माध्यम रहा है जिसका पिछले लगभग 1500 वर्षो से परंपरागत तरीके से भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकरियों ने अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया, संतानियो को जाति में विभाजित करके लाभ उठाया और हजारों वर्षों तक राज किया, भारत की समृद्धि लुटा, संस्कृति संस्कार को तोड़ा मडोड़ा तहस नहस कर दिया और भारतीय सनातनी हजारों वर्षो तक ये समझ ही नही पाया, अपनी  समृद्धि और श्रेष्ठता के अहंकार से अपने आपको बाहर ही नहीं निकाल पाया ....... जो देश की स्वतंत्रता के बाद भी लगातार जारी रहा, अलग अलग राजनितिक नेता और पार्टियां समय समय पर सनातन समाज को एकजुट करने की बजाए अपने स्वार्थ और सत्ता के लालच में विघटित बनाए रखा जो देश और समाज के विकाश को प्रभावती किया और कमज़ोर बनाया है ............ 
आज आजादी के 75वे वर्ष बाद भी भारत संघर्ष कर रहा है विकसित देश की श्रेणी में अपना स्थान बनाने के लिए जिसे विक्रमजीत मौर्य के समय में पूरा विश्व सोने की चिड़िया के नाम से जानता था। बड़ा दुर्भाग्य यह है भारत से एक दो साल पहले या बाद में आजाद हुए कई देश आजादी के ३०-४० वर्षो के ही आर्थिक विकाश की ऊंचाई छू लिए थे और उत्तरोत्तर प्रगति के साथ आज़ एक विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व में अपना परचम फहरा रहे है जिसका सबसे बड़ा उदहारण हमारा निकटम पड़ोसी चीन है ........... 
यदि भारत आज भी संघर्ष कर रहा है तो उसके पीछे एक मुख्य कारण भारत की जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीत है इसी जातिवादी क्षेत्रवादी राजनीत के गठबंधन को तोड़ने और सनातन समाज को जोड़कर एक छत के नीचे खड़ा करने का प्रयास संघ प्रमुख की सोच है ............. 
संघ प्रमुख की इसी सोच में सनातन समाज का और भारत देश का हित है जो भारत को विश्व के समृद्धशाली राष्ट्र की श्रेणी में पुनः खड़ा कर सकता है। इस लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपने दृष्टिकोण का दायरा बढ़ाना होगा अपनी सोच को बड़ा करना होगा जाति और क्षेत्रवाद की संकीर्णता से बहार आना होगा। पूरा सनातन समाज का एक ही जाति है, वो है, सनातनी भारतीय। बस यही एक ही परिचय है समस्त भारतवासियो का सनातनियो का और कुछ नही। ये भावना भारत के प्रत्येक नागरिक की होनी चाहिए तभी एक सशक्त और समृद्धिशाली राष्ट्र का विकाश संभव हो पाएगा ........ 
हालाकि मोहन भागवत जी ने जो बात कहीं वो निश्चय ही बड़ा आश्चर्य का विषय है की इतना विद्वान सुलझा हुआ परिपक्व व्यक्ति देश के एक सर्वश्रेष्ठ संगठन का प्रमुख इतना गैर जिम्मेदारीपूर्ण व्यक्तव्य कैसे दे सकते है जबकि वे स्वयं एक ब्राह्मण परिवार से है लेकिन इतना बड़ा व्यक्तित्व यदि ऐसा बोल दिए तो उन शब्दों के आगे पीछे के वक्तव्यों और विषय स्थान व परिस्थिति को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए और उन संदेशों का वास्तविक संदर्भ क्या है उसको भी समझना चाहिए .......
भागवत जी के व्यकव्यो का विस्ताविक संदर्भ यही है की जो सनातनी अपने धर्म को छोड़कर किसी और धर्म को अपना लिया है वो घर वापसी करे जाती धर्म के कीड़े से बाहर निकले अपने सनातन समाज व धर्म का सम्मान करे। जिन लोगों से पहले कुछ गलतियां हुईं उसको सुधारे और सनातन समाज की एकता अखंडता को मजबूत बनाएं रखने के लिए अपना सर्व श्रेष्ठ योगदान करे। वैसे भी जाती धर्म से ऊपर मानवता और इंसानियत हैं जिसका जीवन में अनुकरण करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है।

इसलिए हम सबको राष्ट्रहित में जाति क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल समाज में एकजुटता स्थापित करना चाहिए।
जय हिंद। जय भारत।। 

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Saturday 4 February 2023

रामचरित मानस पर टिप्पणी केवल एक तुच्छ वोटबैंक राजनीत के अलावा और कुछ नही है

आजकल भगवान श्री राम के अनन्य भक्त और श्री हनुमान जी स्वामी के प्रत्यक्ष दर्शन करने व उनकी ही प्रेरणा से ऋषि वाल्मीकि द्वार संस्कृत भाषा में लिखित रामायण का हिंदी या कहें की अवधी में अनुवाद करने वाले संत तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस पर कुछ मूढ राजनेताओं  द्वारा निम्नस्तर की टिप्पणी की जा रही है जो बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। 
वैसे आजकल के नेताओं को राजनेता कहना भी गलत होगा क्यों कि आजकल के नेता राजनीत नही करते है बल्कि स्वार्थनीति कूटनीति सत्तानिति वोटनिति करते हैं जो केवल सत्ता और समय के साथ चलते है ना कि जनता के साथ आज़ के नेताओं के लिए अपना स्वार्थ सर्व प्रथम और जनता व उनका हित सबसे अंत में ऐसे नेता तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस पर टिप्पणी करते है जो केवल हास्य उपहास  का विषय हो सकता इससे अधिक और कुछ नही ,.... .....
उत्तर प्रदेश के स्वामी प्रसाद मौर्य और बिहार के शिक्षा मंत्री द्वार हाल ही में की गई टिप्पणी केवल यह प्रणाम देती है कि ये कितने बड़े मूढ़ व अनपढ़ है इनकी पास केवल नाम मात्र की डिग्री है वास्तविक शिक्षा के नाम पर ये एकदम शून्य है मुझे तो संदेह है कि इन लोगो के घर में रामचरित मानस की एक प्रतिलिप भी रखी होगी और जब इनके घर में रामचरित मानस की प्रतिलिप नही तो इन्होंने ना तो कभी ध्यान से स्वयं पढ़ा होगा न ही परिवार के किसी सदस्य ने और बिना पढ़े व सही अर्थ समझे यदि ऐसी टिप्पणी स्वामी प्रसाद मौर्या ने किया तो यह केवल सत्ता नीति और वोटनिति से प्रेरित बयाना कहा जा सकता है ........... 
सामान्य रूप इसे पब्लिक और मीडिया स्टंट कह सकते है क्यों कि स्वामी प्रसाद मौर्या बसपा से भाजपा और फिर सपा में केवल उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनने के लालच में उछाल कूद कर रहे है और सफल नहीं हो पा रहे है और इनकी इसी तरह की गलत बयानबाज़ी अनर्गल आरोप प्रत्यारोप ने इनके असली चेहरे को जनता के सामने उजागीर कर दिया है तो जनता में भी इनका असर अब कम होता नजर आ रहा है अब चूकि महत्त्वाकांछा बड़ी है और जनता में प्रभाव कम होता जा रहा हैं तो आने वाले समय में सभी पार्टियों में इनका महत्त्व एकदम खत्म हो जाएगा इस बात इस भी दर सता रहा है ऊपर से आजकल सत्ता से बाहर है तो जनता में भी कहीं उतना महत्त्व नहीं मिल रहा है जिससे इनको तथा कथित अपना वोट बैंक भी धीरे धीरे भूल रही है तो इनकी बेचैनी बढ़नी स्वाभिक है, हो भी क्यों नही जो व्यक्ति 1996 से लेकर 2017 तक अधिकतम समय में उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट का हिस्सा रहा भरपूर दौलत कमाया वास्तविक हैसियत 200 करोड़ से अधिक ही होगा ऐसा अनुमान है, तो अब मंत्रिपरिषद का हिस्सा न होने की पीड़ा भी है, बावजूद इसके इतना बड़ा वोहदा रखते हुए 2017 विधान सभा का चुनाव भी हार गए ये तो अखिलेश यादव जी ने मान रखा और विधान परिषद में भेज दिया नहीं तो शायद अब तक राजनीत भूल चुके होते।
अब चूंकि लोकसभा नजदीक आ रहा है हो सकता है चुनाव लडने तैयारी कर रहे हो तो अपने वोटबैंक को याद दिलाना भी जरूरी था कि स्वामी प्रसाद मौर्या अभी प्रदेश की राजनीति में जीवित है तो इससे बड़ा गरम मुद्दा और कुछ हो ही नही सकता था तो इस मूढ़ ने बिना गहन अध्ययन किए अपने सलाहकारों के कहने पर इतना मूढ़ता भरा बयान दे दिया जबकि ये कई वर्षो पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुके है। 
सही ही कहा गया है अधिक महत्त्वाकांछ व्यक्ति को अक्सर अंधा बना देता है या ये कहें कि विनाश काले विपरीत बुद्धि यही हो रहा है स्वामी प्रसाद के साथ ..... यही कारण है कि 2017 विधानसभा से पहले मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देकर सपा में शामिल हुए और अब इतना बड़ा गलत बयानबाज़ी वो भी सनातन धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य रामचरित मानस पर टिप्पणी ..... 
इस मूढ़ ने रामचरित मानस के पंचम खंड सुंदरकांड के ५८ वें दोहा के अंतर्गत आने वाले ३ चौपाई 
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
पर अपनी टिप्पणी की है 

इन मूर्खो को शूद्र और ताड़ना शब्द का विरोध है तो सबसे पहले तो ये ऋषि वाल्मीकि का ही विरोध कर रहे है जो कि स्वयं शूद्र जाति से थे और इतने बड़े विद्वान थे कि भगवान श्री राम के जन्म से पहले से ही रामायण लिखना उन्होंने शुरु कर दिया था और लव कुश के जन्म और बाल्यकाल तक का पूरा विवरण लिख दिया था तो क्या रामायण का बहिष्कार इस लिए कर देना चाहिए की वो एक शुद्र कुल में जन्मे ऋषि ने लिखा था जिसका हिंदी अनुवाद रामचरित मानस है जिसके बारे ये कहा जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने एक तोता के रूप में तुलसीदास जी को सुनाया और उन्होंने लिखा प्रभू श्री राम का भी दर्शन प्राप्त किया था जो केवल ५०० वर्ष पुरानी घटना है। 
और दूसरी बात ताड़ना का अर्थ किसी को पीटने पीड़ा देने या प्रताड़ित करने से नही है बल्कि ताड़ना का वास्तविक अर्थ है 
गवार शुद्र पशु और स्त्री पर हमेशा ध्यान दृष्टि बनाए रखना सामान्य भाषा में कहे तो निगरानी रखना क्यों कि इस संसार में प्रत्येक प्राणी के अपने अपने कुछ नैसर्गिक गुण व संस्कार होते है जिसके अनुसार उनका व्यवहार होता है और कहीं उनसे कोई गलती न हों जिससे हमें पीड़ा हो इस लिए उनके ऊपर दृष्टि बनाए रखना और समय पर समय पर उचित शिक्षा देना आवश्यक होता है इस लिए ताड़न के अधिकारी शब्द का प्रयोग किया गया है । 

स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान से अधिक तो इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जी ने उनको इस बयान पर पुरस्कृत करते हुए पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया, इसी को कहते है वोटनीति  कूटनीति अब यदि सवर्ण समुदाय या भगवान राम भक्त स्वामी प्रसाद के बयान पर विरोध प्रदर्शन करे तो मौर्य जाति के व्यक्ति का अपमान मतलब की पूरे मौर्य समाज का अपमान जिसे मुद्दा बनाके मौर्या समाज के वोट बैंक को विभाजित करना और स्वामी प्रसाद को समाज का बड़ा नेता साबित करना जिसका कुछ फायदा सपा को मिले आगामी लोकसभा चुनाओ में संभवतः ..........
लेकिन इन मूढ़ को कौन समझाए की आज के डिजिटल सोशल मीडिया के जमाने में जनता या किसी समाज को बहलाना आसान नहीं रहा और वो भी सनातन धर्म की बखिया उखेड़ के तब जब ५०० सौ वर्ष पुराना राम मंदिर निर्माण शुरु हो गया है सनातन धर्म के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस बात को लेकर खुश है जो रामलला के दर्शन की राह देख रहे जो संभव है लोकसभा चुनावों से पहले शुरु हो जाएगा ऐसी स्थिति में सनातन समुदाय को तोड़ना आसान नहीं

वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधान सभा चुनाव से पहले राम भक्त श्री हनुमान जी के चालीसा पर गलत बयान देकर अखिलेश और स्वयं दोनो को चुनाव में पराजित कराया और अब श्री राम चरित मानस पर टिप्पणी करके पहले से ही लोकसभा चुनाव में सपा को हराने की तैयारी कर लिया उससे भी बड़ी संभावना है बेटी संघमित्रा की राह कठिन पिछली बार तो मोदी जी के नाम पर चुनाव जीत संसद में पहुंच गई थी इस बार तो लग रहा है स्वामी बेटी को भी हार की राह दिखा देंगे।
स्वामी प्रसाद जैसे नेताओं को आत्मिक शुद्धि की जरुरत है इन्हे किसी अध्यात्मिक गुरु के शरण में कुछ महीने व्यतीत करना चाहिए जिससे इनका सनातन धर्म के बारे में ज्ञान बढ़े और स्वयं से ये रामचरित मानस और इनसे जुड़े ग्रंथो का अध्यन करना चाहिए और यदि सही से न समझ आए तो किसी विद्वान व्यक्ति से रामचरित मानस के लिखे चौपाइयों का अर्थ समझना चाहिए। 

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Thursday 2 February 2023

बजट २०२३-२४ भारत को विश्व पटल पर वर्ष २०४७ में विकसित देश की श्रेणी में स्थापित करने का पहला कदम है

बजट २०२३- २४ मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट है क्यों कि अगले वर्ष देश में लोकसभा चुनाव होना है लोगो को बहुत उम्मीद थी सरकार जनता को लुभाने के लिए बहुत लोकलुभावन बजट पेश करेंगी लेकिन मोदी जी देश को स्वतंत्रता के १००वें वर्ष में विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए संकल्पित होकर कार्य कर रहे है जिसकी झलक बजट २०२३ - २४ साफ दिखाई दे रहा जो आने वाले समय में विकसित व आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला साबित होगा। इसका एक बड़ा उदहारण वित्त मंत्री ने सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम करते हुए ऐतिहासिक निचले स्तर पर ला दिया है।
देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा प्रस्तुत बजट २०२३-२४ भारत को स्वावलंबी आत्मनिर्भर नव भारत के निर्माण को सुनिश्चित करने वाला बजट है जो भारत को स्वतंत्रता वर्ष २०४७ में विश्वपटल पर एक विकसित और शसक्त राष्ट्र के रुप में स्थापित कर वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। बजट में समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को लाभ पहुंचाने से लेकर चहुंमुखी विकास को गांव देहात तक पहुंचने की भरपूर प्रयास किया गया है चाहे गरीब हो, मजदूर हो या किसान या मध्यमवर्गीय वर्ग से संबंध रखने वाला देश का कोई भी नागरिक हो सबका ध्यान रखा गया है युवाओं के लिए रोजगार सृजन से लेकर महिलाओं के लिए किसान विकास पत्र के तर्ज पर महिला बचत सम्मान पत्र की व्यवस्था जिसमें ७.५% व्याज के साथ पार्शियल विड्रवाल का प्रावधान किया गया है और बुजर्गो के लिए बचत इनकम को टैक्स फ्री करने के साथ ही देश को ग्रीन एनर्जी समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण व्यवस्था किया गया है जो भारत को विश्व में एक मजबूत पहचान दिलाने में अहम भूमिका अदा करेगा।
४५ लाख करोड़ रुपए के बजट में राजकोषीय घाटे को पिछले वर्ष की अपेक्षा ६.५ से घटाकर ५.९% करना एक महत्वपूर्ण दूरदृष्टि परक कदम है जो यह दर्शाता हैं की भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रहा है जिसे २०२५_२६ के बजट में ४.५% रखने की व्यवस्था अभी से किया गया है जो आने वाले समय में देश की अर्थव्यवथा को और मजबूत करने का मोदी सरकार का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है केवल इतना ही नहीं ७५ हजार करोड़ से एक नए फ्रेट कॉरिडोर बनाने व देश की परिवहन व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए ९ हजार करोड़, एमएसएमई सेक्टर को क्रेडिट गारंटी योजना और २० लाख करोड़ पशुपालन डेरी एवं मत्स्य उद्योग को मजबूत करने की व्यवस्था यह बताती है की मोदी सरकार देश के व्यापारियों को हर कदम पर सहयोग करने के लिए संकल्पित है।
देश की सीमा सुरक्षा हो या नागरिक सुरक्षा उसको मजबूत बनाए रखने के लिए रक्षा बजट में पिछले वर्ष की अपेक्षा १३% की बढ़ोत्तरी कर ५.९४ करोड़ कर दिया जिससे देश रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने और सीमा पर तैनात सैनिकों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बनाया जा सके साथ में गृह मंत्रालय को १.९४ लाख करोड़ के बजट का प्रावधान कर सरकार नागरिक सुरक्षा को भी और मजबूत करने के लिए संकल्पित है। 
सड़क परिवहन व राजमार्ग के नेटवर्क को और मजबूत करने के लिए २.७० लाख करोड़ का प्रावधान न केवल देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करेगा बल्कि बड़े पैमाने पर देश के कोने कोने में रोजगार का सृजन करेगा। फार्मा उद्योग में निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए १२५० करोड़ का प्रावधान, प्रधानमन्त्री गरीब आवास योजना में लगभग ६६% की बढ़ोत्तरी कर ७९ हजार करोड़ कर दिया गया जिससे अधिक से अधिक गरीबों को आवास मुहैया कराया जा सके। 
कार्बन एमिशन को कम करने के लिए संकल्पित मोदी सरकार फेम योजना को २२०० करोड़ से बढ़ाकर लगभग ५२०० करोड़ कर दिया जिससे इलेक्ट्रिक विहकल के उत्पादन को बढ़ावा मिले साथ ही इलेक्ट्रिक व्हीकल ने प्रयोग होने वाले उत्पादों जैसे लिथियम बैटरी पर टैक्स कम करके यह कोशिश किया है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदारों को सस्ते दामों पर गाडियां उपलब्ध हो पाए। नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन २०७० के लक्ष्य को पाने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ३५ हजार करोड़ का प्रावधान हरित भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है जो देश में हाईड्रोजन से चलने वाली पहली ट्रेन का परिवहन २०२४ तक शुरू करने का लक्ष्य प्राप्त करने में लाभदायी होगा।

मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चो की शिक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय स्थापित करने का प्रावधान किया है साथ ही साथ पंचायत स्तर पर पुस्तकालय को स्थापित करने के लिए ग्राम स्तर पर प्रोत्साहन करने की योजना बनाई गई है जो निःसंदेह कमजोर व मध्यम वर्गीय छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। ४७ लाख युवाओं को अगले तीन वर्षों में राष्ट्रिय अप्रेंटीशिप प्रोत्साहन योजना के तहत भत्ता का प्रवधान स्किल्ड बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ी सहायता साबित होगा।

जल ही जीवन है जल संरक्षण के लिए जनजीवन मिशन योजना के लिए ७० हजार करोड़ का प्रावधान कर घर घर नल से जल सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार का दृढ़ संकल्प स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। जनजातीय बच्चो के लिए एकलव्य आवासीय विद्यालय योजना के तहत २००० विद्यालयों की संख्या ५९४३ कर दिया गया जिसके तहत ३८००० नए शिक्षको के भर्ती का प्रावधान किया गया है जिससे पिछड़े जनजातीय समुदाय के बच्चो को देश के कोने कोने में अच्छी शिक्षा सुनिश्चित हो सके।  
इस प्रकार से यह बजट मोदी जी के सपनो का आत्मनिर्भर स्वावलंबी भारत की परिकल्पना को जमीनी स्तर पर स्थापित करने का एक सुदृढ़ बजट है जिसमे हर वर्ग के लिए लाभ को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है जिससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है और विकास की रफ्तार भी तेज होती दिखाई दे रही है।

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