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Monday, 23 November 2020
कर्म फल का एक अद्भुत उदाहरण महाभारत के एक मुख्य पात्र धृतराष्ट्र से मिलता है
Sunday, 22 November 2020
मौन मानव जीवन के लिए अध्यात्मिक ज्ञान व चिंतन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है जिससे जीवन की बहुत समस्याओं का समाधान संभव है।
घर में बहू चुनते समय संस्कार को वरीयता दे ना कि दहेज़
एक ऐसा सच जिसे बहुत कम लोग ही आज तक समझ पाये है कि - बुढापे की लाठी-"बहु" होती है न कि "बेटा"
हम लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है। इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कट जाए परन्तु ये बात केवल इतना ही सच है कि बेटे ही माध्यम होते है बहु को घर लाने के लिए बुढापे की लाठी तो बहू ही बनती है। बहु के आ जाने के बाद बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में डाल देता है और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी, जी हाँ ये लगभग सत्य है कि वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर या माॅ-बाप अपना जीवन व्यतीत करते हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती कि वे कब और कैसी चाय पीते है, उनके लिए क्या खाना बनाना है, शाम में उन्हे नाश्ता क्या देना है, रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है ये बहु को ही पता होता है न कि बेटे को। अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो अक्सर पूरे मन या बेमन से कहे बहु ही देखभाल करती है, अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चली जाएं, बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो। वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे उन्हे कोई पूछेगा नही, उनका अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटे को फुर्सत नही है और अगर बेटे को फुरसत मिल भी जाये तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है क्योंकि बेटो के तो केवल कुछ निश्चित सवाल है जैसे कि माँ-बाबूजी खाना खाएं,चाय नाश्ता किये या बीमार होने पर हास्पीटल तक छोड़ने तक ही वे अपनी जिम्मेदारी समझते है या ये कहे कि इससे ज्यादा उनके पास समय ही नही है लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं और ऐसा तभी संभव है जब वे उनके पास बैठे बाते करे लेकिन दुर्भाग्य से हमारे समाज मे माता पिता भी अपने बच्चों के साथ कभी इतना समय नही दिये होते है कि बच्चे उनके पास बैठकर कुछ समय व्यतीत करे या बात चीत करे जिससे उन्हे अपने बूढ़े माता पिता की दिनचर्या पता रहे ऐसा इसलिए भी है कि बहुत से माता पिता अपने बच्चों से खुलना पसंद नहीं करते है लगभग हर घर की यही कहानी है। हम सब अपने आस-पास अक्सर देखते सुनते होंगे कि बहुएं या बेटियां ही अंत समय मे अपनी सास ससुर की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी बिल्कुल एक बच्चे की तरह, जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी, बेटा तो बचकर निकल जाता था किसी न किसी बहाने। ऐसे बहुत से बहुओ के उदाहरण हम सबको मिल जायेंगे। मैंने अपनी माँ व चाची को दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है वो बोलेंगी गुस्सा भी करेगी लेकिन आवश्यकता अनुरूप देखभाल भी करेगी। आपलोग में से ही कईयों ने अपने घर परिवार व समाज में बहुत सी बहुओं को अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा करते देखा होगा या कर रही होगी। कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है तब बहु ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत पड़ने पर नौकरी करती है लेकिन अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है। इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही बुढ़ापे की असली लाठी लेकिन अफसोस "बहु" की त्याग और सेवा उन्हे भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है। बहु के बाद यदि कोई और सास ससुर की सेवा करता तो वे पोते -पोती ही करते है लेकिन ये तभी संभव है जब बहू संस्कारी हो और सास ससुर ने उन्हें अपने घर लाने के बाद अच्छा सम्मान दिया हो क्यो कि घर का कोई नया सदस्य चाहे वो बहू हो या पोता पोती संस्कार तो अपने बड़ो से ही सीखते है।
इस लिए मेरा एक विनम्र निवेदन है आप सब लोगों से की बहू को #दहेज की तराजू में तौल कर मत लाइये बल्कि संस्कार शिक्षा व व्यवहार के तराजू पर तौल के लाइये क्योंकि बुढापे की लाठी बहू व उसके बच्चे ही बनेंगे न कि बेटा और भ्रूण हत्या का विचार भी मन से निकालिए खुशी मन से बेटियों का आगमन, जीवन मे ईश्वर का आशीर्वाद समझकर करें क्यो कि बेटियों का महत्व केवल बहू के रूप में लाने तक ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक महत्व है इस सृष्टि की संरचना को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए।
आप सबसे प्रार्थना है कि मेरे इस विचार को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं शायद कुछ लोग इस सत्यता को समझ सके और #दहेज रूपी दानव का अपने जीवन परिवार व समाज से बहिष्कार करने मे आगे आए।
Sunday, 26 April 2020
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को सर्व श्रेष्ठ तिथि क्यो माना जाता है ?
अक्षय तृतीया को विशेष तिथि इस लिए भी माना जाता है कि आज के दिन से ही महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना आरंभ की थी और महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई थी जिसके बारे में यह किंवदंती प्रचलित है कि उसमें रखा गया भोजन समाप्त नहीं होता था। भगवान शिव ने आज के दिन ही माॅ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन का संरक्षक नियुक्त किया था। इसीलिए इस दिन सोना, चांदी और अन्य मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का विशेष महत्व है।
पुराणो मे ऐसा उल्लेख है कि आज के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन गंगा स्नान करने से व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है और यदि यह तिथि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल अत्यधिक बढ़ जाता हैं। आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं। अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।
आज के दिन ही ऋषि जमादग्नि तथा माँ रेणुका के पुत्र भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम जी का भी अवतार हुआ था जो आज भी अजर अमर है। इनके अलावा छः और लोगों को अमरत्व का वरदान है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:,कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।
भगवान शिव के परम भक्त श्री परशुराम धर्म न्याय व वीरता के साक्षात उदाहरण है परशुराम जी की त्रेता युग के दौरान सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर क्रोधित होने का उल्लेख मिलता है और दापर युग महाभारत काल मे उन्होंने गंगा पुत्र भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या प्रदान किया।
श्रीबांकेबिहारी जी के चरणों के दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन ही मिलते है। वृंदावन के मंदिरों में ठाकुर जी का शृंगार चंदन से किया जाता है ताकि प्रभु को चंदन से शीतलता प्राप्त हो सके और बाद में इसी चंदन की गोलियां बनाकर भक्तों के बीच प्रसाद रूप में वितरित कर दी जाती हैं। श्री बद्रीनारायण की दर्शन यात्रा का शुभारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही होता है जो प्रमुख चार धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि नर-नारायण का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था।
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Sunday, 12 April 2020
मोदी जी के नेतृत्व में भारत का विश्वगुरु बनने की ओर बड़ता कदम।।
आज प्रकृति, भारतीय संस्कृति सभ्यता का मजाक उड़ाने वालो को सीख दे रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और कर्म फल भोगना ही पड़ता है। कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म का उपदेश देते समय कहा कि वत्स पुरा ब्रहमांड मेरे मे ही समाहित है सब कुछ मै ही हूँ और संसार में घटित होने वाली सभी घटनाएं मेरे इच्छा के अनुरूप ही होती है फिर भी मेरा वस तो केवल कर्मफल तक ही निहित है मनुष्य तो सुख दुःख अपने कर्मो के फलस्वरूप भोगता है। भगवद्गीता में उल्लेखित यह सम्वाद आज रूस जैसे बड़े ताकतवर देश में प्राइमरी स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल है। सच ही कहा गया है सनातन धर्म केवल एक धम॔ ही नहीं अपितु एक जीवन पद्धति है इसको दैनिक जीवन में अपनाने वालों को सामान्य विषाणु प्रभावित नहीं कर पाते हैं।
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Tuesday, 24 March 2020
जब भारतीय परिवारों की हजारों साल पुरानी शंख व घंट ध्वनि की दैनिक परंपरा जीवंत हो गयी
हाल में ही आयोजित ऐतिहासिक जनता कर्फ्यू का लगभग 100% सफल होना यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि भारतवासी मानवता व वैदिक परंपरा की रक्षा के लिए कभी भी एक आवाज पर संगठित हो सकते है सिर्फ आवाज देने वाले का उद्देश्य सही होना चाहिए। लोग इसको अलग-अलग तरह से परिभाषित कर रहे हैं कुछ लोगो का कहना है कि, ये जनता का सुरक्षित जीवन के प्रति डर या भारतीय सामाज की सवेंदनशील सोच या शायद देश प्रेम की वजह से संभव हुआ, लोग चाहे जो भी कहे लेकिन जिस तरह से रविवार 22 माच॔ की शाम को ठीक 5 बजे देश के हर गाँव, शहर, गली-मोहल्ले, में अमीर से अमीर जैसे देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक व गरीब से गरीब परिवार के प्रत्येक व्यक्तियों का एक साथ खड़े होकर शंखनाद नाद करना, तालियों की गडगडाहट व घंटो की आवाज, महिलाओं बुजुर्गों व बच्चों की उत्साहित भागीदारी ने ये सिद्ध कर दिया कि भारतीयों का युगों पुरानी वैदिक व्यवस्था पर आज भी अटूट विश्वास है। जिस का नजारा आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला, जब देश का हर घर मंदिर प्रतीत हो रहा था। जो भारतीय संस्कृति सभ्यता को जीवंत बनाए रखने का मोदी जी का एक अद्भुत प्रयोग और अगली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का एक बड़ा सदेंश भी था।
कोरोना महामारी के वजह से ही सही लेकिन देश की जनता ने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, संवेदनशीलता व जिम्मेदारी के भाव, लोकतांत्रिक सोच और राष्ट्र के प्रति नागरिक सम्मान के भाव का जो सदेंश जनता कर्फ्यू को सफल बनाकर दिया है ये अतुलनीय है। यह विजय नाद देश को कोरोना वायरस जैसे दानव से आगे लड़ने में संयम प्रदान करेगा और भारत के नागरिक सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नवदुर्गा की कृपा से कोरोना महामारी को परास्त करेंगे। देश का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभारी है जिन्होंने कोरोना वायरस के खौफ के इस माहौल में भी बिना त्यौहार के, त्योहार जैसी स्थिति पैदा कर लोगों को भयमुक्त बना दिया तथा पूरे देश में एक साथ एक नियत समय पर शंखनाद करवाकर भारतीय संस्कृति सभ्यता को गौरवान्वित कर दिया। अब जनता साहस व विश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला सावधानी व संयम से करने के तैयार हो गयी है।
जय हिंद जय भारत। ।
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Saturday, 21 March 2020
कहीं कोरोना वायरस का कहर मानवता की रक्षा व प्रकृति के संरक्षण का सदेंश तो नहीं
मंदिर चर्च दरगाह मस्जिद बंद कर दिया गया है सारे आडंबर, दर्शन -प्रदर्शन सब बंद । मांसाहारी भोजन बंद शाकाहारी जीवन शैली को लोग अपनाने को आतुर है। पुरा विश्व आज भारतीय संस्कृति व परंपरा को अपनाने को तैयार हैं।धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी परिवार में लौट आया, पर संपर्क दुःखदायी और निज संपर्क सुखदाई हो गया है। चहुँ ओर केवल कोरोना वायरस से जीवन रक्षा कैसे की जाएँ बस यही चर्चा चल रही है।
कोरोना वायरस का अद्भुत असर जरा देखिये आज एक बार फिर से बुजुर्गों व अनुभवी लोगों की प्रचलित लोकोकति "जो होता है अच्छा होता है" को चरितार्थ कर दिया। कम से कम इसी बहाने ही सही लोग बहुत कुछ समझने सोचने व जीवन शैली में बदलाल लाने का प्रयास तो करेंगे। आज ये वायरस प्रकोप हमे यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि मानवता से बड़ा कोई धर्म संप्रदाय या देश नहीं होता।
इस लिए जीवन के प्रति दृढ़संकल्प और संयमित रहते हुए सदैव मानवता व प्रकृति के रक्षा संरक्षण के लिए तत्पर रहे । जीवन में सावधानी और सतर्कता रखें,लपारवाह न बनें। यही कोरोना का संदेश है।
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Monday, 15 July 2019
अन्तर्जातीय प्रेम विवाह कोई मुद्दा नहीं, बड़ा विषय है विश्वास आत्मसम्मान व् पारिवारिक संस्था के अस्तित्व व संस्कार का
प्रेम एक नैसर्गिक क्रिया व पवित्रबंधन है जो उम्र व् जाति के बंधन से मुक्त है और किसी भी लडके लड़की या स्त्री पुरुष के बीच आत्मीय शारीरिक रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप आगे बढ़ता है बाद मे पारिवारिक और सामाजिक सहमति से वैवाहिक सम्बन्ध में बदलता है। यंहा पर प्रेम दो विपरीत लिंग के व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है लेकिन विवाह एक सामजिक व पारिवारिक संस्था है जिससे सामाजिक परम्परा, पारिवारिक संस्कार, नैतिक मूल्य, माता - पिता व रिश्तेदारों का मानसम्मान जुड़ा होता है ऐसे में किसी भी लड़की या लड़के को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आधार बताकर पारिवारिक संस्कारो व सामाजिक मूल्यो का हनन नही करना चाहिए क्योंकि ऐसे अन्तर्जातीय व् बेमेल प्रेमविवाह कुछ समय के लिए लडके लड़की के स्वहितो खुशियों सुखो की पूर्ति तो करते है लेकिन जीवनपर्यन्त के लिये माता पिता भाई बंधुओ रिश्तेदारों के लिए दुःख अपमान व् हजारो सवाल खड़े कर देते है। जिसका जवाब देना बहुत कठिन होता है।
आज पूरा देश इस विषय पर चर्चा कर रहा है क्योंकि बरेली उत्तर प्रदेश के एक सम्मानित परिवार की लड़की परिवार की असहमति से अपने पसंद के लडके से घर से भागकर शादी कर लेती है फिर उसे अपने जीवन का ही डर सताने लगता है और वो पिता भाई व घरेलु सम्बन्धियों के द्वारा हत्या कराये जाने का आरोप लगते हुए सोशल मीडिया माध्यम से एक वीडियो जारी कर देती है और पूरे देश मे साक्षी मिश्रा ( २१ वर्ष ) व अजितेश ( लगभग ३२ - ३४ वर्ष ) चर्चा के विषय बन जाते है क्योंकि लड़की के पिता विधायक है और लड़का दलित वर्ग से है इसलिए पिता जी को शादी मंजूर नही है ऐसा लड़की वीडियो सन्देश मे कहती है। देश की मीडिया को मसाला मिल जाता है क्योंकि ये एक ब्राह्मण विधायक की बेटी का दलित लडके से प्रेमविवाह का मामला है और प्रदेश मे सवर्ण समर्थक पार्टी की सरकार है। लडके लड़की को मीडिया नेशनल सेलिब्रिटी बना देती है प्राइम टाइम में सवर्ण व् दलित विवाह के मुद्दे पर चर्चा करवाती है लेकिन अपने नैतिक जिम्मदारी से किंकर्त्तव्यविमूढ़ ये भूल जाती है की मीडिया का एक महत्वपूर्ण कार्य देश व् समाज मे समरसता का माहौल बनाना, संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा कर सामाजिक व् राजनितिक सहमति से सही हल निकलना है न कि समाज, परिवार या विभिन्न वर्ग समूहों मे कटुता पैदा करना। यदि इस विषय पर ईमानदारी से मीडिया की भूमिका का आकलन करे तो पायेंगे की मीडिया ने देशभर को अपना दोहरा चरित्र दिखाते हुए दलित समुदाय के चरित्र पर ही एक बड़ा धब्बा मढ़ दिया की दलित समुदाय के लोगो को मित्र बनाना, घर में बैठाना खतरे से खाली नही है ये किसी के साथ विश्वासघात कर सकते है। मीडिया की सही भूमिका तो तब होती जब अन्तर्जातीय विवाह के बजाय ये लोग इस विषय को समाज में गिरते नैतिक मूल्यो, व्यावहारिक, सामजिक व् मित्रवत सम्बन्धो मे बढ़ती स्वार्थपरकता, पारिवारिक संस्था के कमजोर होते अस्तित्व, धर्म व् संस्कृति से विमुख होती नई पीढ़ी मे संस्कारो का हनन, माता पिता भाई बंधुओ के बीच वैचारिक मतभेद व संवादहीनता कैसे घरेलु छोटी समस्याओं को बड़ा रूप दे रहे है ? कैसे लोग अपने व्यक्तिगत अहम् व् स्वाभिमान मे स्वयं को सही साबित करने लिए गलत कदम उठा ले रहे है जिसके फलस्वरूप पूरा परिवार मानसिक तनाव मे लम्बे समय तक तनाव मे जीने को मजबूर हो जाता है।
जैसा की हम सब पिछले दस दिनों से नवविवाहित जोड़ी का साक्षत्कार विभिन्न टीवी चैनेलो पर सुन रहे है और साक्षी द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से दिए वीडियो सन्देश को भी सुना जिससे स्पष्ट हो रहा है कि ये अन्तर्जातीय विवाह से ज्यादा बड़ा विषय आपसी व पारिवारिक रिश्तो मे बढ़ती दूरियों, वैचारिक मतभेदो,आपसी विश्वास आत्मसम्मान व संस्कार का है। लड़की के बातो से लग रहा है एक पिता को अपने बेटी बेटो के साथ एक उम्र के बाद प्रत्येक मुद्दों पर खुलकर संवाद स्थापित करना चाहिए व प्रतिदिन एक निश्चित समय बैठकर अपने बच्चो से वार्तलाप करना चाहिए अपने अनुभव साझा करने चाहिए उनकी बातो को ध्यान से सुनना समझाना और संयम व विवेकपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, अपरिपक्क्व बच्चो की जिम्मेदारियां घर से बाहर के व्यक्तियों को नहीं देना चाहिए, गंभीर परिस्थितियों मे क्रोध से नहीं विवेक से काम लेना चाहिए जो की साक्षी के भाई ने नहीं किया क्योंकि भाई द्वार क्रोध मे अव्यवहारिक व असम्मानजनक शब्दो का प्रयोग अजितेश व् साक्षी दोनों को बुरा लगा परिवार के इसी कमजोरी का फायदा अजितेश ने उठाया और दोनो ने इसे अपने स्वाभिमान व् अहम् से जोड़कर क्रोध और जल्दीबाजी मे शादी कर लिया जबकि साक्षी के बातो से ऐसा लग रहा है कि उसकी अपने पिता जी से वैचारिक मतभेद जरूर थे लेकिन यदि वे स्वयं से मामले को संभालते उससे बात करते समझाते तो शायद साक्षी शादी के लिए अजितेश की बात अभी नही मानती और विधायक जी को समय मिल जाता उपयुक्त निर्णय लेने का। इस पुरे मामले में अजितेश की भूमिका एकदम गलत है एक तरफ तो उसने अपने मित्र के साथ विश्वासघात किया दूसरी तरफ पारिवारिक सामाजिक सम्बन्धो को ही संदेह के घेरे मे खड़ा कर दिया अजितेश कितनी भी सफाई दे लेकिन उसके इस कदम से एकदम स्पष्ट है की उसकी नियति मे पहले से ही खोट था नहीं तो कोई भी समझदार व् विवेकपूर्ण व्यक्ति अपने उम्र से १०-१२ साल छोटी लड़की से जिसको वो स्कूल के समय से जनता हो और उसके परिवार मे एक बेटे के सामान सम्मान पाता रहा हो, एक प्रकार से साक्षी उसके लिए बहन के सामान थी, ऐसा गलत कदम कभी नही उठाता। लेकिन यँहा हम लडके जितना दोषी मानते है साक्षी भी उतनी ही दोषी है क्योंकि २१ वर्ष की अवस्था तक बच्चो मे इतनी समझ तो आ ही की वो अपनी मान मर्यादा अच्छी तरह समझते है इसलिए लड़की को किसी भी स्थिति मे अपने माता पिता व् परिवार के सम्मान के खिलाफ नहीं जाना चाहिए था स्वतंत्र विचार का होने से ये मतलब नहीं की कोई लड़की माता पिता के सपनो व् आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाये सामजिक मूल्यों व संस्कारो का हनन करे।
इस मुद्दे से समाज व परिवार के संरक्षकों को ये सीख लेनी चाहिए की नई पीढ़ी के साथ वैचारिक सामंजस्य व् समन्वय बैठाने की पूरी कोशिस करे उनसे खुलकर संवाद स्थापित करे और बच्चो को पर्याप्त समय दे, घर से सम्बंधित बाहरी लोगो पर, उनकी नियति पर पूरी नजर रखे व् समय रहते ही किसी भी विषम व विपरीत परिस्थिति का सामना करने से पहले ही उसका समाधान करे।
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Monday, 24 July 2017
नये राष्ट्रपति का चुनाव जातीय राजनीति का खेल था या आम आदमी से खास आदमी बनाने का सन्देश !!
इस बार का राष्ट्रपति चुनाव इस लिए भी और ज्यादा दिलचस्प था की सत्ता पक्ष ने भावी लोकसभा चुनाव २०१९ को ध्यान में रखते हुए जातिय समीकरण को साधने के लिए पार्टी के सबसे प्रबल और सबसे वरिष्ठ नेता व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दरकिनार करते हुए अनसूचित जाति से श्री कोविंद जी को उम्मीदवार बनाया जबकि पुरे देश को ये उम्मीद था की आडवाणी जी ही देश के अगले राष्ट्रपति होंगे, इसी के साथ २०१७ का राष्ट्रपति चुनाव जातीय राजनीति का मैदान बन गया और विपक्ष को मजबूरन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को विपक्ष का उम्मीदवार बनाना पड़ा ये जानते हुए भी की बहुमत सत्ता पक्ष के साथ है।
जैसा की हम सब ये जानते है कि संवैधानिक रूप से हमारे देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव में जनता का प्रत्यक्ष रूप से कोई योगदान नहीं होता और न ही राष्ट्रपति अपने स्व विवेक से जनता के पक्ष में कोई निर्णय सकता है क्योकि हमारे संविधान का अनुक्षेद ७८ ये कहता है कि राष्ट्रपति अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह से करेंगे। वैसे तो सभी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की ही है लेकिन वे लगभग सभी नियुक्तियां मंत्रिमंडल की संस्तुति के अनुरूप ही करते है। यदि जनता के सीधे हित की बात करे तो केवल एक ही मुद्दे मृत्युदंड की सजा में माफ़ी के सन्दर्भ में ही राष्ट्रपति मुख्य भूमिका निभाते है लेकिन वे भी तब जब मंत्रिमंडल राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजेंगे तभी। सविंधान के अनुसार केवल एक ही वीटो पावर राष्ट्रपति को प्राप्त है वो अनुक्षेद १११ के तहत राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा संस्तुति किसी भी बिल को अपने पास रोक सकते है लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसको मंत्रिमण्डलके पास पुनः विचार करने के लिए भेजना ही पड़ेगा और यदि दुबारा मंत्रिमंडल उसी बिल को राष्ट्रपति के पास भेजती है तो उन्हें संस्तुति देना ही पड़ेगा।
यँहा समझने वाली बात तो ये है की जब राष्ट्रपति को जनता के हित में कोई निर्णय लेना का अधिकार ही नहीं है और न ही राष्ट्रपति जनता द्वारा सीधे चुना जाता है तो देश के सर्वोच्च पद पर चुनाव के लिए जातीय राजनीत खेलने का औचित्य क्या था ? इस पर सत्ता पक्ष का कहना है वो तो देश के एक योग्य व् आम नागरिक को देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर देश को ये सन्देश देना चाहती है की कोई भी आम आदमी या पार्टी कार्यकर्त्ता हमारे पार्टी में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकता है। तो प्रश्न ये उठता है की यदि ऐसा ही सोच थी तो किसी अन्य जाती या धर्म के आम आदमी को क्यों नहीं बनाया उम्मीदवार जिनका वोट प्रतिशत काम होता ? यु पी से ही उम्मीदवार क्यों चुना पंडीचेरी गोवा या नार्थ ईस्ट से भी किसी को उम्मीदवार बना सकते थे लेकिन चुकी कोविंद जी उत्तर प्रदेश के मूल नागरिक और वर्तमान में बिहार के राज्ज्यापल थे और अनुसूचित जाती से थे इसलिए उन्हें उम्मीदवार बनाया जिससे दोनों राज्यों के अधिकतर वोटर को सन्देश दे सके। जँहा से लोकसभा के सबसे ज्यादा लगभग १२0 सदस्य सदन का प्रतिनिधित्व करते है और यदि उत्तराखण्ड की ५ और झारखण्ड की १४ लोकसभा सीट को यदि और जोड़ दे तो कुल १३९ सीट पर राजनीतिक सन्देश देने के लिए इस बार राष्ट्पति चुनाव को जातीय रंग में रंग दिया गया। क्यों कि अब तक का ये इतिहास भी रहा है जो पार्टी इन दो राज्यों में सबसे ज्यादा सीट जीतती वही सरकार बनाती है।
इसका निष्कर्ष ये निकलता है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टिया सत्ता पाने के लिए केवल जातीय राजनीत के खेल में उलझी हुयी है सत्ता पाना और सत्ता में बने रहना उनका प्राथमिकता है न की देश का विकास। देश का विकाश तो तभी संभव हो पायेगा जब चुनाव पार्टी केंद्रित न होकर क्षेत्र के विकाश पर केंद्रित हो जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिए सही व् योग्य प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करे न कि किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष को ध्यान में रखकर। पार्टिया जातीय राजनीत का खेल इस भी खेलती है क्यों कि जनता भी बहुत हद तक इस खेल को समर्थन करती है जब जनता जाति को महत्व देना काम कर क्षेत्र के विकास को महत्व देना शुरू कर देगी तब राजनीतिक पार्टिया और क्षेत्र का प्रतिनिध दोनो विकाश के प्रति संकल्पित हो जायेंगे। इस लिए खासकर युवाओ को अब पार्टी केंद्रित होकर वोट नहीं देना चाहिए बल्कि प्रतिनिधि व् क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखकर प्रतिनिधि चुनना चाहिए। युवाओ को चाहिए की वे #वोट फॉर राइट कैंडिडेट !!के नारे को मजबूती से जनता के बीच में पहुँचाये जिससे आने वाले समय में जनता सही प्रतिनिधि को चुन सके जो किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए बहुत जरुरी हैऔर पार्टी केंद्रित चुनाव व्यवस्था का बहिस्कार कर प्रतिनिधि केंद्रित वोटिंग प्रणाली को प्रचलित करने की मांग तेज करे।
RATNESH MISHRA mob. 09453503100 www.theindianyouths.blogspots.com tCafe - "Sup For The Soul"Visit to stimulate mind and body with the new flavor of tea on the basis of occasion,season,time and environment.
Saturday, 9 July 2016
Youth must stand with UNITED NATION to achieve Sustainable Development Goal by 2030 !!
If we go in depth of the above mentioned SDG Goals We find that Inequality, Injustice, Gender Equality ( these 3 problem can be solve by realizing and accepting the importance of each n every community cast creed n genders in society ) , Decent Work Atmosphere ( It can be achieve by developing respect for each others Values n Ethics ), Good Health ( Yoga Practice can play major role to find healthy life ), Climate ( Population n Pollution are two major cause for changing climate it can be solve up to some extant by understanding important of clean environment for sustainable life for coming generation it require to teach society about Positive n Negative impact of modern life styles) , Sustainable Cities n Communities ( its also matter to generating better understanding of public about sustainability specially for traffic and cleanliness ), Peace n Justice ( Its the matter of developing value patience n sacrifices for them self and society ), Strong Institution n Partnership ( its also the matter of devotion respect and accountability about the institution people belongs ) these 9 goals can be achieve by creating awareness and setting stander Values to live better life in society. therefore Youths are in very important role for Society Not only for these 9 goal but for others also with creativity and innovations they can solve employment problem that will help in curbing poverty n hunger etc.
I would like to give call to Youth they must understand own responsibility towards society and country and come forwards with his/her own solutions and contribution to achieve United Nation SDG 2030 cause to find better livelihood society we first make it better .
RATNESH MISHRA mob. 09453503100 Cafe Nutri Club - "Sup For The Soul" Visit to stimulate mind and body with the flavor of Indian Home Food on the basis of occasion,season,time and environment.
Monday, 4 July 2016
युवाओं को आगे आना होगा देश को जातिवादी राजवाडों व क्षत्रपो से आजाद कराने के लिए !
यदि हम पुरे देश के क्षेत्रीय राजनीत का सही से अवलोकन करे तो पाएंगे की पुनः देश में लगभग उतने ही जातिवादी राजवाड़े पैदा हो गए है जितने सरदार पटेल ने आजादी के बाद हिंदुस्तान में शामिल करवाए थे। यदि हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का अवलोकन करे तो यंहा अजीत सिंह चौधरी रजवाड़ा , मुलायम सिंह यादव रजवाड़ा , मायावती दलित राजकुमारी, अमर सिंह राजा भैया क्षत्रिय राजवाड़ा , मुख़्तार अंसारी मुग़ल राजवाडा कई अन्य और भी है। अब बिहार को देखिए लालू यादव रजवाड़ा , रामविलास पासवान रजवाड़ा , नितीश कुमार कुर्मी राजवाड़ा , जीतनराम मंझिदलित राजवाड़ा, सहाबुदीन अंसारी राजवाड़ा इत्यादि। मध्य प्रदेश में ब्रिटिश समय से चला आ रहा सिंधिया राजवाड़ा, दिग्विजय सिंह राजपूत राजवाड़ा , चौहान राजवाड़ा , इसी तरह से पुरे देश में अलग अलग जातिवादी क्षत्रपो ने अपना अपना राजवाड़ा स्थापित कर लिया है। एक प्रकार से देश पुनः आजादी से पूर्व वाली राजशाही व्यवस्था की और बढ़ चुका है और इन जातिवादी राजाओ को अपने विकास के आलावा केवल उतना दिखता है जितने से केवल वे अपने जाती विशेष के विश्वास को जीतते रहे। जरा सोचिये जिस राजशाही व्यवस्था से निजात पाने के लिए हम सब लोगो ने १५० सालो तक आजादी की लड़ाई लड़ी और लाखो नवजवानों व महिलाओं ने अपनी कुर्बानी दी। पुनः आज ६८ साल बाद फिर उसी जाल में ये जातिवादी मसीहा कहे जाने वाले नेताओं, जो अब रजवाड़ो में बदल चुके है, के चक्कर में बुरी तरह से उलझ गए है जो केवल अपने कुनबे के विकाश में लगे है क्षेत्र, राज्य व देश का विकाश केवल एक दिखावा बन कर रह गया है।
आजादी के बाद जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी गयी थी उन्ही खामियों का फायदा उठाकर कुछ नेता केवल अपने स्वार्थ मे देश को जाती के आधार पर बांट दिया है। मजे की बात तो ये है की तब हमारी साक्षरता बहुत कम थी और बुजुर्गो की जनसंख्या ज्यादा क्यों की सही स्वस्थ सुविधा व पौष्टिक आहार की कम उपलब्धता की वजह से और जानकारी के आभाव मे ज्यादातर बच्चे मर जाते थे परन्तु आज जब कि देश मे युवाओं की संख्या विश्व मे सबसे अधिक है और वैज्ञानिक व शैक्षिक रूप से अच्छा विकाश हुआ है फिर भी देश मे जातिवादी रजवाड़ो व् क्षत्रपों का विकाश बहुत तेज हुआ है और कुछ गिने चुने नेताओं के बरगलाये मे देश के पढ़े लिखें युवा उनका साथ दे रहे है ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। आज चीन व अन्य यूरोपीय देश जो भारत के बाद आजाद हुए ज्यादा विकाश किये और भारत उनसे बहुत पीछे है क्योंकि मध्यकालीन समय से ही भारत को जातिवादी व्यवस्था बुरी तरह से जकड़े हुए है जो अब जादिवादी रजवाड़ो का रूप ले लिए है और ये केवल अपने लिए राजशाही हवेलिया, विदेशो मे हजारो एकड़ जमीन, पांच सितारा होटल और उद्दोग लगा रहे है उन्हें केवल अपने विकाश का ध्यान है जनता का विकाश तो केवल पेपरों पर है इन जातिवादी रजवाड़ो के साथ केवल उनका विकाश हो रहा है जो इनके चापलूस है या इनके लिए कारक, जैसे ब्रिटिश समय मे चापलूस धोखेबाज गद्दार देश के जमींदारों ने अंग्रेज अफसरों की चापलूसी कर कमाई उसी तरह आजके अधिकारी भी इन जातिवादी रजवाड़ो की गुलामी कर रहे है और अपने को मजबूत बना रहे है, आम जनता तो आजादी के पहले भी गुलाम थी आज भी गुलाम है अंतर तो बस इतना है की पहले विदेशियों के गुलाम थे और आज अपने जातिवादी क्षत्रपों के गुलाम।
आज देश के युवाओं को इस बात को बहुत गहराई से समझने की आवश्य्कता है यदि आप वास्तव मे भारत को एक विकसित देश व विश्व मे सबसे ताकतवर देश बनने देखना चाहते हो तो जातिवादी राजनीत से बहार निकलना होगा और राष्ट्र शक्ति व् विकाश के नाम पर एकजुट होना होगा। देश को इन जातिवादी रजवाड़ो के चंगुल से मुक्त कराना है तो अपना नेता जाती के आधार पर न चुनकर उसे चुनना होगा जो विकाश की बात करता हो जो देश की बात करता हो ना कि जाति कि या स्वार्थ कि। अपना नेता उसे चुने जो क्षेत्र के विकाश के लिए दृंढ संकल्पित हो पढ़ा लिखा राष्ट्रवादी हो न कि जातिवादी। जिसके लिए पार्टी से ऊपर क्षेत्र का विकाश व देशहित हो।
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Wednesday, 20 January 2016
अच्छे भविष्य के लिए युवाओ को जातिगत राजनीत से बहार निकल एकत्रित होना होगा !
आज जो हमारी आर्थिक विकाश दर विश्व मे तीसरी पायदान पर है उस पर देश का हर युवा गौरवान्वित महसूस कर रहा है और देश को विश्व शक्ति के रूप में देखने के लिए हर संभव योगदान देने को तैयार है। आज जंहा देश मे युवाओ द्वारा स्थापित और संचालित ४४०० संस्थाए देश मे दस लाख से अधिक लोगो को रोजगार मुहैया करा रहे है जो कि अमेरिका व् ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ आने वाले सालो मे करोडो लोगो को रोजगार मुहैया कराते हुए देश को विश्वशक्ति बनाने मे आगे बढ़ने को तैयार है, ऐसे मे कुछ स्वहित से स्थापित संस्थाए व संगठन युवाओ को भ्रमित कर, उनकी एकता को विखंडित कर देश मे गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकते है जो वे अपने स्वहित के सामने या तो समझ नहीं पा रहे या इतना आगे बढ़ चुके है की अब उनके पास ये समझने का विकल्प ही नहीं है ऐसे में सरकार को आगे बढ़कर ऐसे संस्थाओ को चिंहित कर दिशा देने की जरुरत है।
आज जब हमारे देश की युवा पीढ़ी जागरूक है ऐसे मे विश्वविद्यालय व अन्य सभी शैक्षणिक संस्थाओ को छात्र राजनीत से मुक्त कर, नकारात्मक विचार से संचालित गैर सरकारी संस्थाओ व् संगठनो को शैक्षणिक परिसर मे प्रतिबंधित करना समय की आवश्यकता है क्यों कि छात्रों मे अब नेतृत्व की क्षमता विकसित करने के कई अन्य माध्यम भी प्रचलित हो रहे है जो उनमे सकारत्मक भाव को विकसित कर रहे है जैसे की - "युथ पार्लियामेंट" के तहत सदनीय कार्यवाही का अनुभव कराना, "युथ कांग्रेस" के तहत गंभीर मुद्दो पर चर्चा से समाधान निकालना व युवाओ के विचार और रचनात्मकता को समझाना, "युथ समिट" के माध्यम उनके द्वारा किये जा रहे कार्यो को प्रोत्साहन देकर विभिन्न समस्याओं पर उनसे ही वार्षिक प्रोग्राम तैयार करवाकर उनकी ऊर्जा व रचनात्मकता को उपयोग में लाना, इससे उनमे आत्मविश्वास की वृद्धि होगी व् उनको प्रोत्साहन मिलेगा, न की उनको छात्र जीवन में ही राजनीत मे झोककर उनके अंदर जाति -धर्म -सम्प्रदाय- आरक्षण जैसी नकारात्मक भाव को बढ़ावा देना।
युवाओ को ये सोचनाहोगा की आखिर हमारा देश आज भी पीछे क्यों है ? जब कि हमारे साथ आजाद अन्य देश विकसित देश की श्रेणी मे शामिल है। उसके पीछे मुख्य कारण, देश के कुछ नेताओ ने अपने फायदे के लिए देश की जनता को "जाति -धर्म- आरक्षण" के जाल मे भ्रमित कर रखा है, जिसे, आज देश के युवाओ को समझाना होगा और ऐसी भावनाओ व नेताओ के चाल से बाहर निकलकर, देश के विकास व राष्ट्रहित मे सोचना होगा तभी हमारा और देश का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। हम युवाओ को ये सोचना होगा की, हम देश को विश्वशक्ति बनाने मे क्या योगदान दे सकते है अपनी ऊर्जा को उसमे लगाना चाहिए, न की जाति धर्म व आरक्षण के भाव को भड़काने वाले संगठनो के बहकावे में आकर अपनी ऊर्जा का दुरूप्रयोग क्योंकि जैसे जैसे समाज शिक्षित व विकसित हो रहा है वैसे वैसे ये जाति धर्म की बाते गौड़ हो रही है, ऐसे में आने वाली पीढ़ी इन मुद्दो पर साथ नहीं देगी इस लिए जो युवा भ्रम में आकर ऐसे मुद्दो पर अपना राजनैतिक भविष्य भी देख रहे है वो बेवकूफ है जैसे की #रोहितवुमेला जो अपने अंतर्मन को भी नही पहचान पाया और अंत मे कुछ जाति धर्म के ठेकेदारो के जाल मे फस कर अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर लिया उनका क्या गया जिन लोगो ने उसे बरगलाया था कुछ भी नही बल्कि उनको तो अपनी राजनीति चमकाने और दलितों का मशीहा बनने का एक और मौका दे गया वो । इसलिए नवजवानों पहचानो अपने मन को की तुम्हारा मन क्या कहता है बहकावे में मत आओ।
देश मे कोई दूसरा #रोहितवुमेला न बन पाये, इस लिए युवाओ तुम जाति धर्म व आरक्षण के भ्रम से बाहर आओ एकत्रित हो और नकारात्मक भावनाओ को भड़काने वाले संगठनो व नेताओ को सीख दो की, हम एक है विखंडित नहीं होगे। राष्ट्र का विकास व राष्ट्रहित हमारी प्राथमिकता है न कि घृणत राजनीत।
जय हिन्द जय भारत !!
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Friday, 1 May 2015
An overlook About Gender Inequality Problem in India
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Tuesday, 3 February 2015
दिल्ली विधान सभा का चुनाव परिणाम तय करेगा देश में आगे की चुनावी राजनीत !
आगामी १० फरवरी को आने वाला चुनाव परिणाम जंहा मोदी, बीजेपी व संघ के लिए आगामी २ सालो में विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनाव में विजयपताका फहराने के लिए आवश्यक है वही कांग्रेस के नेताओ के लिए बीजेपी की हार उनको मोदी सरकार के विरोध में मुखर होने में सहायक होगा जबकि दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस लड़ाई में ही नहीं है यही कारण है की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दिक्षित जी ने चुनावी रणनीत के तहत चुनाव पूर्व ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आप पार्टी को समर्थन करने की घोषणा कर दी जिससे की मुस्लिम समुदाय अपना वोट व्यर्थ ना कर विजयी हो रहे आप पार्टी के उम्मीदवार को वोट कर दे और इसी रणनीत के तहत ओवैसी ने अपने उम्मीदवार ही नहीं खड़े किये जबकि हाल ही में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाओ में इनके ३ उम्मीद्वार विजयी हुए थे। लालू - नितीश ने जंहा चुनाव से महीने भर पहले दिल्ली में सयुंक्त सम्मलेन कर एक मंच पे आने की घोषणा की वंही दिल्ली चुनाव में पार्टी उम्मीदवार उतारने से दूर रहे केवल इस वजह से की आप पार्टी का वोट ना बटे और बीजेपी की हार सुनिश्चित हो।
विपक्षियो के रणनीत को भांपते हुए बीजेपी ने भी पार्टी मुख्यमंत्री पद के कमजोर उम्मीदवार की कमी को दूर करते हुए चुनाव घोषणा के ३ दिन पहले ही पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी को पार्टी की सदस्यता दिला विपक्ष जनता व् आप पार्टी को सत्ता में ना लौटने का संदेश दिए साथ ही बेदी जी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीद्वार घोषित कर पार्टी के कार्यकर्ताओ को हर हाल में दिल्ली में सरकार बनाने का संदेश दे दिया। दिल्ली के चुनाव में असली राजनीत की शुरूवात यही से होती है। एक तरफ जँहा बीजेपी द्धार बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीद्वार घोषित करना दिल्ली बीजेपी के ही कुछ पुराने नेताओ को सही नहीं लगा वही पार्टी के अंदर लोकसभा चुनाव से खार खाए कुछ राष्ट्रीय नेता भी मोदी और अमित शाह जी को उनकी हैशियत का अहशास करने की चुप चाप तरीके से पुरजोर कोशिश कर रहे है ऐसे में बीजेपी पार्टी अध्यक्ष व् मोदी जी के संकटहरण के लिए दिल्ली में सरकार बनाना उनकी काबिलियत सिद्ध करना है।
बेदी को चुनावी चेहरा बनाने से जँहा बीजेपी को चुनाव में महिलाओ व् युवाओ को रुझान में सफलता मिली और चुनाव में जीत की उम्मीद बढ़ गयी वही आप पार्टी व् अन्य विपक्षी पार्टियो ने बेदी पर "अवसरवादी राजनीत" का ठप्पा लगा बीजेपी के डैमेज कंट्रोल को कम करने का प्रयाश किया। अब यहीसे शुरू हुआ राजनीत का नीचतम प्रयोग आरोप प्रत्यरोप का शिलशिला जो से शुरू हुआ उससे दोनों पार्टियो की असलियत सामने आने लगी कँही आप के कार्यकर्ता के यँहा शराब की बोरियां पकड़ी जाने लगी तो कँही बीजेपी उम्मीद्वार द्वारा झुग्गी झोपड़ियों में पैसा बाटने का प्रमाण इसी बीच दिल्ली में पूर्व सत्ताधारी पार्टी ने चुप रहते हुए अपना काम दिखाया और बसन्तकुंज इलाके के एक चर्च पे हमला करा बीजेपी व् संघ को शक के घेरे में लाकर साम्प्रदायिक राजनीत करने का आरोप लगाया। अगले ही दिन बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चुनाव कार्यालय पर तोड़फोड़ करा माहौल को नया मोड़ देने की कोशिश से भी राजनीतिक बू आती है ये सिलशिला आगे बढ़ाते हुए आप पार्टी के ही एक अनुषांगिक संगठन " आवाम " ने आप पार्टी पर दो करोड़ रुपये काले धनराशि का पार्टी फण्ड में आने का विवरण पेश कर देती है और शाजिया इल्मी व् बिन्नी जैसी आप पार्टी की पूर्व नेता ही केजरीवाल को कटघरे में खड़े करना शुरू कर दिये जो बीजेपी को सत्ता में आने की राह आसान कर दिए लेकिन दिल्ली के कमजोर वर्ग के वोटर यानी झुग्गी झोपड़ी फुटपात पे रहने वाले ठेलेवाले रिक्शाचालक सरकारी तंत्र से त्रस्त होकर केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है यही आप पार्टी की सबसे बड़ी मजबूती है जो की बसपा के वोट बैंक की तरह कँही और वोट नहीं करेगी ऐसे में बीजेपी के लिए राह आसान तो नहीं है लेकिन एक बात तय है इस बार दिल्ली की जनता पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना चाहती है ऐसे में ७ फरवरी के दिन वोट पड़ने का रुझान जिस पार्टी के पक्ष में सुबह ज्यादा होगा शाम होते होते जनता उसी के पक्ष में एकतरफा वोटिंग भी कर सकती है जिससे पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना सुनिश्चित हो जाये क्योंकि दिल्ली जैसे राज्य में जँहा पढ़े लिखी व् व्यापारी मतदाता ज्यादा है वे बार बार चुनाव नहीं देखना चाहते।
कुछ बुद्धिजीवी व् समझदार लोगो का ये भी कहना है की मोदी सरकार को अलर्ट करने और देश में एक तीसरा विकल्प खड़ा करने के लिए आप पार्टी को एक बार जीता देना चाहिए जिससे "मोदी सरकार" शतर्क हो जाये और बोल वचन बंदकर लोकसभा चुनाव में जनता को किये वादे को पूरा करने में ध्यान लगाये। ऐसे में देखना है की जनता क्या करती है आप पार्टी को जीता कर केजरीवाल का भविष्य मजबूतकर देश को एक "तीसरा विकल्प" देती है या बीजेपी के विजयरथ को आगे बढ़ाते हुए आनेवाले दिनों में देश के अन्य राज्यों में कमल के फूल खिलने का राह प्रसस्त करते हुए मोदी सरकार के पिछले ८ महीनो में किये कार्य को प्रमाणित करती है।
परिणाम जो भी हो ये चुनाव देश की आगामी राजनीतिक दिशा तय करेगी कुछ लोगो का भविष्य सुरक्षित होगा और कुछ लोगो को सीख मिलेगी।
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Saturday, 22 March 2014
युवा देंगे अपराधियों को करारा जवाब, दिखाएंगे इस बार सदन से बहार का रास्ता !
वर्तमान लोकसभा में कुल १६२ सांसदो पर आपराधिक मामले दर्ज है जिसमे ७६ सांसदो पर गम्भीर आरोप है। बावजूद इसके बीजेपी ने अबतक कुल १०७ ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया है जिनपर आपराधिक मामले चलरहे है जिनमे २६ पर गम्भीर आरोप है। कांग्रेस इनसे एक कदम आगे ३३ गम्भीर आरोप वाले उम्मीदवार मैदान में उतारे है अमूमन यहीहाल क्षेत्रीय पार्टियो का है इनके भी ६०% उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि से है। सत्ता कि भूख और जोड़ तोड़ के इस चुनावी समर में बीजेपी ने हाल में कई आपराधिक पृष्ठभूमि के वर्तमान और पूर्व सांसदो को पार्टी में शामिल किया इसी कड़ी में झारखण्ड के पलामू से सांसद कामेश्वर बइठा है जिनके ऊपर ४६ गम्भीर अपराधो के मुकदमे चल रहे है। केवल इतना ही नहीं बीजेपी सत्ता के लालच में तो भ्रष्टाचार के मूल की संज्ञा दे चुकी कांग्रेस पार्टी के ऐसे नेताओ को भी शामिल कर रही है, जिनके भ्रष्टाचार का राग पिछले २ वर्षो से अलाप रही थी। जिसमे जगदम्बिका पाल और सतपाल महराज मुख्य है जो वर्षो से उसी जड़ को सींच रहे थे। सोचनीय प्रश्न ये है कि कोई व्यक्ति जो कांग्रेस व अन्य पार्टी में भ्रष्ट रहा हो बीजेपी में आने पर स्वछ सोच का कैसे हो जाएगा। ऐसे में हम युवाओ को सोचना होगा कि हमे क्षेत्र के विकास के नाम पर वोट करना है या एक व्यक्ति जो प्रधानमंत्री के नाम पर वोट मांग रहा हो।
चुनाव आयोग के आकड़े के अनुसार इस बार कुल ३९ करोड़ युवा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे जिसमे ४९ % युवा महिला मतदाता है और १८ - २३ आयु के कुल ७.५ करोड़ मतदाता है। १८ -१९ आयु के २.३ करोड़ युवा पहली बार मतदान करेंगे जिनकी संख्या प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में लगभग ९२००० है जो २२६ सीटों पर जीत के अंतर से अधिक है। सोशल मीडिया के इस दौर में ९.१ करोड़ शहरी युवा मतदाता आयु १८ - २५ सीधे देश के २८७ संसदीय सीटो पर जीत को प्रभावित करेंगे जिसमे १६० शहरी सीट सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। चुनाओ आयोग के इस आकड़े से लगता है इस बार युवा ही देश के ५४३ लोकसभा सांसदो का भविष्य तय करेंगे।
पिछले दो सालो में हम युवाओ ने अपनी ताकत का अहसास सरकार, प्रशासन व अपराधियों को कराया है। अन्ना के नेतृत्व में सड़क पर उतरकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की लड़ाई ( प्रशासन के खिलाफ ), निर्भया के समर्थन में महिलाओ के सुरक्षा की लड़ाई ( अपराधियों के खिलाफ ) और केजरीवाल के साथ खड़े होकर दिल्ली की सरकार परिवर्तन की लड़ाई लड़ी। अब बारी है देश की संसद से अपराधियो को बाहर रखने की लड़ाई। तो सोचिये मत आगे आइये लोगो को जागरूक करिये, देश के साथ- साथ क्षेत्र का विकास भी प्राथमिक है इसलिए वोट उसे करिये, जो हमारे बीच का हो, जो हमारी सुनता हो, जिससे हम मिल सकते हो, जो विकास कि बात करता हो अपराध की नहीं। दोस्तों अबकी बार चुक हुयी तो पाँच साल इंतज़ार करना पड़ेगा। इस बार अपराधियो को सदन तक पहुचने मत दो।
दोस्तों यदि आप सब देश की संस्कृति, सम्प्रभुता व गरिमा को सुरक्षित करना चाहते है तो इस बार अपराधी व भ्रस्ट मनोवृत्ति के उम्मीदवार को वोट न करे। वोट करे क्षेत्र के विकास, अपराधमुक्त वातावरण, महिलाओ की सुरक्षा, मुफ्त शिक्षा, बिजली व रोजगार के नाम पर।
उम्मीदवार वही चुने जो क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करे , हमारी आवाज को सदन में मजबूती के साथ उठाये, अपराधिक पृष्ठभूमि ना हो, शिक्षित व अनुभवी हो।
उम्मीद के साथ इस बार हमारा संसद अपराधियो से मुक्त होगा।
जय हिन्द ! जय हिन्द ! जय जय जय जय हिन्द !
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Sunday, 12 January 2014
बिकाऊ हुई नौकरिया उ प्र लोक सेवा आयोग बना भ्रस्टाचार का केंद्र !
अलाहाबाद विश्वविद्यालय व् छात्र राजनीत के इतिहास में ये कालादिन था जब सारकार ने छात्रो के विरोध प्रदर्शन पे कोई संज्ञान नहीं लिया। इसे हम उ प्र सरकार का अन्धापन ही कह सकते है। जंहा एक ओर मुज़फ्फरनगर में दन्गा पीड़ित, कड़ाके की ठंढ में कैम्पों में पीड़ित पड़े है , इल्लाहाबाद में छात्र आयोग में व्याप्त भ्रस्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे है वँही दूसरी ओर सरकार जनता के गाढ़ी कमाई से भरे टैक्स से मंत्रियों और विधायको को विदेश भ्रमड पे भेज दी और सैफई महोत्सव में प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अपने मुखिया मुलायम के साथ नाच देखने में मशगूल थे। कहने को तो ये समाजवादी है परन्तु इनके शौख और विलाशिता किसी मुगलकालीन राजा से कम नहीं वैसे भी प्रदेश में मुलायम के मुगलिया शौख किसी से छुपे नहीं है। प्रदेश सरकार केवल वोटबैंक कि राजनीत करना जानती है इनको विकाश का मायने पता ही नहीं दुर्भाग्य तो प्रदेश कि जनता का है कि एक को हटाने के लिए उसने दूसरे भ्रस्ट समूह को वोट स्वार्थवश कर इनको पूर्ण बहुमत में लाई जिसके लिए आज अपने हित कि लड़ाई लड़ रहे छात्र भी जिमेदार है जिन्होने मायावती सरकार को हटाने के लिए बढ़चढ़ के इनके चुनाव में हिस्सा लिए थे और आज फिर उन्ही के भ्रस्टाचार से त्रस्त होकर सड़क पर उतरचुके है। ऐसे में सरकार और छात्रो दोनों को सिख लेने कि जरुरत है। समाजवादी सरकार को ये समझाना होगा कि यदि ये नवजवान सत्ता में ला सकते है तो सत्ता से बहार भी कर सकते है और छात्रो को स्वार्थहित में नहीं बल्कि तर्कशक्ति के आधार पर देशहित में वोट करना चाहिए क्योंकि यदि पड़े लिखे नवजवान ये नहीं समझ पाएंगे, तो ये मजदूरो से उम्मीद नहीं कि जा सकती है। यदि हम नवजवानो के आँख कि पट्टी अब भी नहीं खुली तो ये आयोग कि नौकरी के लायक ही नहीं है क्योंकि जब ये सही व्यक्ति को चुनकर सदन में नहीं भेज सकते तो ये सही प्रशासक भी नहीं बन सकते।
हमे तो आश्चर्य हो रहा है कि समाजवादी सरकार सत्ता में आते ही सारे नियमो को ताकपर रखकर आयोग के अध्यक्ष व् सचिव कि नियुक्ति केवल वोट बैंक कि राजनीत के लिए कराती है जिनपर उनके गृह जनपद में कई आपराधिक मामले दर्ज है और हमारा युवा सो रहा था। हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि लोग तबतक नहीं बोलते जबतक कि गाज अपने पे नहीं गिरती और यही हमारे प्रतियोगी छात्रो ने किया, जब अपने पे आयी तो सड़क पे आ गए। यंहा पर एक कहावत याद आती है " जब जागो तभी सवेरा " .
मित्रो ये लड़ाई केवल अपना हक़ पाने भर से नहीं ख़त्म होगी, ये लड़ाई तब पूरी होगी, जब आम चुनाव में समाजवादी चोंगा पहने इस सरकार को हमारे यही युवा इनके विपक्ष वोटकर सबक सिखायेंगे और वर्ग विशेष को मिल रहे आरक्षड की निति को समाप्तकर आर्थिक रूप से कमजोर छात्रो को इसका लाभ सुनिष्चित कराने के शर्त पर ही वोट सुनिश्चित करेंगे।
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Tuesday, 9 July 2013
ELECTION 2014 ! Require to Show the Power of Youth Votes .
Friends Country total Population dominate by Youth, We need to understand our duty toward Country n Constituency Development and to insure better Infrastructure for coming generation . To realize our duty, First we need to make sure our VOTE for right Candidate, Second Be the Human Being, ignore the thought of Cast, Religion and Regionalism . We youth only, can eliminate this thought from society, come forward and fight with this EVIL cause Shrewd Politician use this thought to divide us and make weak to continue with power. In Ancient Era They divide us on the basis of Profession and In Modern Era develop the propaganda of Reservation. In reality they manipulate the Article 15, 16, 243, 334, 341 of the Constitution on specific interval to get advantage in Election to return in Power only not for our Welfare and unfortunately we get advantage of this propaganda.
Reservation can never be the real advantage for us, it make us weak only not strengthen for long time . We can benefited in long term only if Government will focus to insure better Infrastructure , Electricity, World class Education campus, Skilled labor, modern Police System etc. So Support Equality for All and Reservation for those who really deserve for ( Economic Reservation ) .
Dnt go for CAST n RELIGION base Vote.
Corporate Guys Dnt be relaxed on Voting days, Understand the power of Voting Right, Make sure your Vote and spare few hr to ignite your neighbor slums, poor people to avoid voting in favor of just 500 Rs n Quarter Whisky or Saree, realize them make Vote for those candidate who can hear his Voice, give hand when they require more and fight with them on road to insure justice & basic amenity .
VOTE FOR RIGHT CANDIDATE NOT FOR PARTY/ CAST/ RELIGION.
VOTE FOR DEVELOPMENT NOT TO FOR CORRUPT PRACTICES.
SELECT RIGHT REPRESENTATIVE FOR YOUR CONSTITUENCY WHO CAN FIGHT WITH CORRUPT ADMINISTRATOR AND RAISE YOUR VOICE IN PARLIAMENT.
Friends be Intelligent Voter in Welfare of Country, Constituency, Society not for Self benefit . Realize the Citizen responsibility, Show the Power of Youth to Shrewd Politician .
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Sunday, 11 November 2012
Library Chain at Panchayat Level could be Key Information Center for Villagers
Surprise is that Country Policy Maker, Politician, Social Activist and Village Panchayat, no one realize the importance of Library at Panchayat, which could be major Information and Guidance Center for Rural Youth and Villagers. More important, it will help to develop reading hobbit and change the thought process of villagers, definition of Literacy also be change, to provoked rational thought in Rural Youth. From here Govt. can deliver all information related New Change in Laws and Programs in terms Rural Development and People Empowerment. Lawyers, Educationist, Psychologist should associate here to give solution in daily life to villagers. Library can be center for Vocational Courses for Youth to organize Sports Activity and many more things....... Even it will help to train member of Gram Sabha.
At present 2.4 lac's Gram Panchayat are acting cover 6.3 lac village's therefore By Establishing Library Govt. can generate approx 10 lac's Employment at Village level cause to manage Library there are 5 key people require.
To develop World Class Library at Panchayat level, Ministry of Panchayatiraj Rural Development, Sports & Youth Welfare and Information Technology can give major fund contribution, for better management n establishment, also we can invite Corporate NGO's .
Library could also establish through the help of NGO and Self help Group by the help of Volunteer's like Retired Govt. Teachers and Officials. To Run Library we could acquire place at Pachayat Bhawan of village or Primary Schools with the coordination of Gram Sabha.
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Friday, 2 November 2012
Weapon Licencing Law for Citizen have to be modified !
Licensed weapon become status symbol for today Youth, they prefer outing with these but miss use of these weapons increased due to pressure on social life. Now days an small argument resultant in death cause it insure easy death with out any pain in second.......... So The Arms Act 1956 and 1986 must be modified and made strict for Citizen to get weapon licence for self defense/safety cause many of them applied just for status symbol not for safety, many of them i know they do not have any threat or raivallary but they are very keen to take or buy weapons. As easy licencing become one of the major reason for short tempered death act or suicide cause it insure easy death with out any pain in second.. So it must be Control to reduce suicide cases.
Most of high profile suicide happen with licensed weapon So IPC Act 1860 also be modified in terms of keeping and use Weapons.
Humble request to all my Bureaucrat friends - IAS/ IPS be careful before giving final consideration for weapon licence, there must be insure security reason not the status and Political leaders kindly stop Nepotism for Weapon licence .
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Friday, 21 September 2012
Finally Action has been taken in favor of FDI in Retail !
Now time for 2 tier cities and Rural India, for which FDI in retail could play crucial role in development, I am dam sure this will not effect Kiraana stores cause MNCs are niether going to open store in every Chauraha, Tiraha or Nukkad of the city's / town nor every person will go to buy daily basis small requirement from MNCs stores. Students,Batchlors and Rikshawpuller requirement are very small, generally they prefer credit so they will always prefer to buy goods from Nukkad Kiraana store. FDI in retail will create compitition in market result of that consumer get better deal and local Kirana Store will improve the service and quality in fear of survival in market.
The existing FDI policy of the country ensure maximum benefit to our Govt, Citizens and Corporate houses, result we are seeing in different sectors. In addition of this FDI in Retail policy have many things in favor of Farmers like - MNCs will not allowed to open store in less then 10 lac population cities, 100 % manufacturing should be insure inside the country, of which 30% will be out source to Framers and 50 % fund raise from FDI will be use in Rural Infrastructure Development. According to Population condition, only 80 cities having population 10 lac above, in which 8 metros - having population more then 5 millions retails business are in boom there fore FDI in retail will not effect Kiraana stores in near future even result of that Middle Man role will end and Former will get better price from the buyer.
MNCs will promote Contract forming also introduce New forming technology, Supply chain management will improve, wastage of vegetables and goods will control etc. Downfall of Agriculture contribution in GDP will increase, better return in forming will motivate former even youths participation in Agribusiness increase. Job out sourcing by Retail MNC's will promote entrepreneurship in forming sector by which most of traders will get benefited - those are today shouting slogan against govt, lifestyle of rural India will improve. Overall millions of job will shape the life of Rural Youth and Infrastructure and real development of country will realize.