Sunday, 15 October 2023

किसी देव स्थान में दर्शन के पश्चात मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ क्षण के लिए ज़रूर बैठे।

हमारी पीढ़ी और पहले की दो तीन पीढ़ियां या हम यह कह सकते है की ६० के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी की शुरूवात तक पिता पुत्र और परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों के बीच संवाद हीनता की वजह से दैनिक जीवन के सनातन संस्कारों को ना तो हमारे बड़े बुजुर्गो या माता पिता ने अपने बच्चो को बताया, न ही हमे देखने सुनने को मिला जिसका सबसे बड़ा कारण हजारों वर्षों के विदेशी सत्ता से आजादी के बाद भारतीय समाज इतना भ्रमित हों चुका था की अपनी वास्त्विक पहचान और संस्कृति भूलकर, मिश्रित संस्कार और संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहा था, भारत की मूल वैदिक शिक्षा तहस नहस हो चुकी थी जिसकी वजह से आजादी के बाद खासतौर पर ६० के दशक के बाद की पीढ़ी की परवरिश बहुत ही संकीर्ण व संयमित माहौल में हुआ, परिणाम यह हुआ की इस दौर में जन्म लेने वाले बच्चे कभी ऐसे प्रश्नों का किसी से संकोच वश जवाब ही नहीं  पूछ पाए। इस दौर में बच्चों का आपने समाज के बड़े बुजुर्गो से ज्यादा सवाल जवाब करना भी अच्छा नहीं माना जाता था जो बच्चे ज्यादा सवाल जवाब करते लोग ऐसे बच्चों को संस्कारहीन बताने लगते और ऐसा अक्सर ऐसे ही बुजुर्ग किया करते जिन्हे बच्चों के गुढ़ प्रश्नों का उत्तर नहीं पता होता। 

ऐसे बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मेरे पीढ़ी और बाद की पीढ़ी के लोगो को भी नही पता क्यों कि कभी सुना पढ़ा जाना ही नहीं। ऐसा इस लिए की हमारे समाज में लोगो का मानना है बच्चों का स्कूल में अच्छा मार्क्स जरुर आना चाहिए भले ही वह खेल या अन्य विषय में रुचि ना ले, दुर्भाग्य वश लोगो को यह नही समझ था कि खेल प्रतियोगिता में भाग ना लेने से बच्चा शारिरिक रूप से कमजोर होता है बच्चे का मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। मेरा मानना है कि ऐसे माहौल के पीछे एक बहुत प्रचलित लोककोक्ति का प्रभाव भी रहा है अक्सर घर के मुखिया या माता पिता को हम सबने अपने बच्चों को यह कहते सुना है कि"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब" कुछ हद तक यह लोककोक्ती तो सही है लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते की जीवन के हर पड़ाव पर संतुलन होना बहुत जरुरी होता है। यानी कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जरुरी होता है ना कि केवल स्कूल में अच्छे मार्क्स आना।

भारतीय सनातन समाज मोदी जी का ऋणी है जो उन्होंने सूचना तकनीकी तंत्र को गाँव गांव तक पहुंचकर डिजिटल शिक्षा के माध्यम से लोगो को इतना जागरुक करने का कार्य किया की आज डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के गुढ़ विषयों के बारे में जन जन तक जानकारी पहुंच रहीं है जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ऐसी जानकारियों से अनभिज्ञ नही रहेगी और हमारी भारतीय संस्कृति जड़ मजबूत होगी।  भारतीय संस्कृति में देव स्थान दर्शन से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या चौखट पर थोड़ी देर ज़रूर बैठे।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा के पीछे का गुढ़ रहस्य क्या है ?

आइए जानते है वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ करके हमें एक श्लोक को क्यों पढ़ना चाहिये और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह क्यों बताना चाहिये....

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-

अनायासेन मरणम्... 
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं !!

बिना देन्येन जीवनम्... 
अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो, ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके !!

देहांते तव सानिध्यम.. 
अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए, उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले !!

देहि में परमेशवरम्...
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना !!
यह प्रार्थना करें।

गाड़ी, घर, धन, नौकरी,लड़का, लड़की, अच्छा पति-पत्नी, यह मांगना नहीं पड़ता है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं इसीलिए जब भी कभी कही भी देव स्थान पर दर्शन करने जाए तो उपरोक्त श्लोक के अनुसार भाव लेकर जाए और मंदिर में दर्शन के बाद कुछ समय मंदिर की पैड़ी पर बैठकर उपरोक्त भाव की प्रार्थना करिएगा।

उपरोक्त श्लोक प्रार्थना है, याचना नहीं।
क्यों कि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
प्रार्थना का अर्थ विशिष्ट, श्रेष्ठ निवेदन से है न कि याचना से अर्थार्थ जब भी किसी शक्ति पीठ या देव स्थान पर जाए तो प्रभु से प्रार्थना करें ना की याचना सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना यही होगा की ऊपर लिखित श्लोक को मन ही मन दोहराएं। 

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजकल लोग यदि मंदिर की पैड़ी पर बैठते भी है तो वहा भी अपने घर, व्यापार व राजनीति की चर्चा करते हैं और केवल अपना थकान मिटाने के लिए ही बैठते है परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। को बार बार दोहराना। 

सब से जरूरी बात... जब भी मंदिर में दर्शन करने जाए तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं, आंखें बंद क्यों करना हम तो भगवान का दर्शन करने जाते हैं, तो भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें। आंखों में उस मोहक दृश्य भर ले भगवान के उस स्वरूप को और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें, नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें, यहीं शास्त्र और बड़े बुजुर्गो का कहना हैं ...

जय माता दी 💐🙏

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Friday, 5 May 2023

एक राजा जिसने बोधिसत्व प्राप्त कर स्वयं को चिरंजीव बना लिया।

हम सब बचपन से देखते आए है महात्मा गौतम बुद्ध की तस्वीरे और स्टैच्यू सर्वत्र विश्व में शांति और ध्यान की मुद्रा में ही उपलब्ध है। जो हमे यह सन्देश देती है की ज्ञान और ध्यान से ही जीवन में शांति व सद्भावना सम्भव है जहा इसकी कमी है वहा अशांति ही अशांति है। इस लिए ज्ञानार्जन और ध्यान का निरंतर अभ्यास जीवन में बहुत आवश्यक है। 
भारतीय पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र में ५६३ ईशा पूर्व में भगवान श्री राम के पुत्र कुश के कुल में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन की धर्मपत्नी महारानी महामाया देवी के पुत्र के रूप में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था जिनको उनके जन्म से लेकर सन्यास धारण करने से पहले तक सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था आगे चलकर इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से पहचान मिली। बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण संयोग यह है कि वैशाख पूर्णिमा के ही दिन ३५ वर्ष की आयु में ५२८ ईशा पूर्व मे बोध गया बिहार में वटवृक्ष के नीचे आपको आत्मज्ञान प्राप्त हुआ जो वटवृक्ष आज भी बोधगया में मौजूद है और इसी दिन ४८३ ईशा पूर्व ८० वर्ष की आयु में कुशीनगर उत्तर प्रदेश में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। 
देह छोड़ने के पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे 
'अप्प दिपो भव:...सम्मासती। 
अपने दीये खुद बनो...स्मरण रखो कि तुम भी एक बुद्ध हो।
आज के दिन का दैवीय महत्व है क्यों कि इसी दिन देवी छिन्नमस्तिका और श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। आज के ही दिन ब्रह्मदेव ने काले और सफ़ेद तिलों का निर्माण भी किया था इसी लिए आज के दिन तिलों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे। बुद्ध का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे महात्मा सन्यासी होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी। राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो लेकिन राजा शुद्धोदन की यही गलती सिद्धार्थ के मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। वैराग्य भाव उत्पन्न होने के बाद एक बार सिद्धार्थ शाक्यों के संघ में सम्मलित होने गए। जहां उनका संघ के गुरुवों से विचारिक मतभेद हो गया। क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे या तो वे फांसी पर चढ़ जाए या देश छोड़कर चले जाए। सिद्धार्थ ने कहा कि जो भी दंड उन्हें मिले स्वीकार है लेकिन शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और उन्हें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्यागकर 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर लिया। उस वक्त उनकी आयु 29 वर्ष थी। छः वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् सिद्धार्थ को बोधिसत्व 528 वर्ष पूर्व 35 वर्ष की आयु में बिहार प्रदेश के बोधगया में वटवृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था जो आज भी विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है। सम्राट अशोक इस वृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले जाकर स्थापित किया यह शाखा भी आज मौजूद है।

श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में भी शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए। इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे। राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। 

बुद्ध के प्रमुख गुरु गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त थे जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) थे और बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व या बोधिधर्मा, विमल मित्र, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि का नाम लिया जाता है।
बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति सम्पन्न हुआ था जिसमे संघ के दो हिस्से हो गए थे हीनयान और महायान। सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्घ संगती का आयोजन 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में कराया था उसके बाद भी सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के बहुत प्रयास किए गए किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव को रोक पाना सम्भव नहीं हो पाया।

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में लोगो को शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्तिव में संतुलन की धारणा को मजबूत बनाए रखने पर बहुत बल दिया और कहा की मनुष्यों को भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है क्यों कि भोग की अति से चेतना का बिखराव हो जाता है विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की पर विनाश का पहरा मदराने लगता है ठीक इसी प्रकार तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव नही हो पाती है क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्माण करने का स्वप्न संजोना।

गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं 
पहला यह कि दुःख है। 
दूसरा यह कि दुःख का कारण है। 
तीसरा यह कि दुःख का निदान है। 
चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।

गौतम बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है। अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेष्ठ जीवन के लिए श्रेयस्कर है।

गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है। वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता यह केवल मैत्री से ही बैर मिटता सकता है।

शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य यह कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो ‍कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध अनेक जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। जिनके आधार पर ही ईशा की कथाएं निर्मित हुई। यही कारण है कि पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी देशों के लोगो की तादाद बढ़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है क्योंकि बौद्ध धर्म, ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था। दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया के हर इलाके में खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्‍यान और ज्ञान पर बहुत से राष्ट्रों में आज भी शोध जारी है।
ऐसा प्रमाण मिलता है कि भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा। तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया। कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी। उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के कहीं। 


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Tuesday, 25 April 2023

अक्षय तृतीया सनातन संस्कृति की श्रेष्ठ तिथियों में से एक सर्वश्रेष्ठ तिथि है

चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को त्रेता और द्वापर युग का संधि काल कहा जाता है मान्यता है कि आज के दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का अक्षय फल प्राप्त होता है इसी लिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो, अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ आज के दिन किया जा सकता है.... आज के दिन शुरु किया गया कार्य हर प्रकार से सफलता देने वाला होता है। 

आज के ही दिन ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में श्री हरि विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर अवतरण लिया था। श्री परशुराम भगवान देवधिदेव महादेव के परम भक्त थे और उनकी निरंतर साधना किया करते थे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हे अपना परशु शस्त्र प्रदान किया था। परशुराम भगवान शस्त्र और शास्त्र से युक्त पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ पुरुषों में से एक है जिन्होंने अकेले स्व पुरुषार्थ के बल से २१ बार पृथ्वी पर व्याप्त कुरीतियों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोगो को विनष्ट कर दिया था।
महायोद्धा भीष्म पितामह, सूर्यपुत्र कर्ण और गुरू द्रोणाचार्य को दीक्षा भगवान परशुराम ने ही प्रदान किया था। प्रभु श्री राम को पिनाक धनुष और श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र श्री परशुराम ने ही दिया था। 
पृथ्वी पर आज भी विचरण करने वाले आठ दिव्य आत्माओं में से एक भगवान परशुराम जी चिरंजीवी है और आज भी महेंद्र पर्वत पर विचरण करते है। अन्य सात चिरंजीवी आत्माओं में श्री हनुमान जी पवनपुत्र के रूप में सर्वत्र विराजमान हैं, ऋषि वेदव्यास, गुरु कृपाचार्य, रामभक्त विभीषण, किष्किंधा के राजा बलि और द्रोणाचार्य पुत्र अस्वथामा है जिनके बारे में मान्यता है कि अस्वथमा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से २० किलोमीटर दूर असीरगढ़ किला में स्थित शिव मंदिर में आज भी ब्रह्म मुहूर्थ में पूजा करने आते है। ऋषि मार्कण्डेय पृथ्वी पर आठवें चिरंजीवी आत्मा है जिन्होंने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया है जिससे इन्हे अमरत्व प्राप्त हो गया है। 
आज के ही दिन पृथ्वी पर नर नारायण और ब्रह्मा विष्णु  अवतरित हुए थे। मां गंगा का भी आज के ही दिन भगवान विष्णु के चरणों से पृथ्वी पर आगमन हुआ था। 
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय भी आज के ही दिन जन्म लिए। 
सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की शुरुवात भी आज के ही दिन से हुआ था। 
माँ अन्नपूर्णा का जन्म और देवताओं के कोषाध्यक्ष श्री कुबेर भगवान को खजाना आज ही मिला था।

सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया और कनकधारा स्तोत्र की रचना भी श्री आदि शंकराचार्य ने आज के ही दिन किया था।

वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ शुरू किया था और महाभारत का युद्ध भी आज ही समाप्त हुआ था।

प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट भी आज के ही दिन खोले जाते है और वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन  वर्ष में केवल एक बार चैत्र शुक्ल तृतीया को होते है।

भगवान जगन्नाथ के सभी रथों को बनाना भी आज के दिन प्रारम्भ किया जाता है।

इस प्रकार अक्षय तृतीया की तिथि सनातन संस्कृति सभ्यता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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Friday, 14 April 2023

विवाह कार्यक्रम जीवन का एक श्रेष्ठ संस्कार है इसे आधुनिकता के प्रपंच में न बांधे।

"विवाह" मानव जीवन का एक पवित्र बंधन है जो ब्रह्मांड की दिव्य वातावरण में उपस्थिति ईश्वरीय शक्तियों, दिव्य आत्माओं, पितृ को साक्षी मानकर उनका आवाहन करके अग्नि के समक्ष सात फेरों या ये कहे की दो जागृत आत्माएं स्त्री व पुरुष एक दूसरे के सात वचनों से सहमति होकर संसार के रचनात्मक कार्यों में अपनी भुमिका अदा करने के उद्देश्य से नव जीवन की शुरुआत करते है। इस प्रकार विवाह कार्यक्रम प्रकृति द्वारा निर्धारित पृथ्वी पर एक सर्वश्रेठ दैविक आयोजन है जिसे मर्यादाओं मे रहकर ही संपन्न करना कराना  चाहिए जिससे हमारी सनातन संस्कृति सभ्यता का आधार और मजबूत हो न कि दूषित हो। इसलिए आधुनिक व्यवस्था के बढ़ते प्रचालन व दिखावे से हम सभी को बचाना चहिए।

अभी हाल ही में इसका एक बढ़िया उदाहरण राजस्थान के जयपुर शहर से प्राप्त हुआ जहां वर पक्ष के तरफ से लड़के ने बधू पक्ष के समक्ष कुछ शर्तें रखी जिसे सुनकर लोग आश्चर्यचकित हुए कि आज के आधुनिक व्यवस्था में जहां लड़के लड़की व उनके परिवार की तरफ से लग्जरी गाड़ियों, फाइव स्टार वेन्यू, ड्रोन कैमरों  प्री वेडिंग सूट,  रिवॉल्विंग स्टेज पर जयमाल कार्यक्रम और हेलीकॉप्टर से रोज लीव्स के बरसात कराने के शर्ते रखी जाती है। ऐसे में लड़के ने सनातन वैदिक व्यवस्था के तहत विवाह संपन्न कराने का शर्त रख दिया। विवाह पूर्व लड़के ने लड़की वाले से हैरान करने वाली अनोखी मांगे रखी जो देशभर चर्चा का विषय बना है। मजेदार बात यह है कि मांगें दहेज को लेकर नहीं बल्कि विवाह संपन्न कराने के तरीके और अनुचित परंपराओं के बढ़ते प्रचलन को लेकर हैं। लड़के ने मांग किया प्री

प्री वैडिंग शूट में वो नहीं शामिल होगा यानी उसे प्रेम का फिल्मों की तर्ज पर मजाक नहीं उड़ना क्यों कि प्रेम दो जीव आत्माओं के बीच का बहुत ही शुद्ध भाव है जिसे प्री वेडिंग शूट के माध्यम से दूषित करना अनुचित है।दु

ल्हन शादी में लहंगे की बजाय पारंपरिक पीले, लाल या गुलाबी रंग की साड़ी पहने !

मैरिज समारोह स्थल पर ऊलजुलूल, अश्लील, कानफोड़ू संगीत की बजाय केवल हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत ही बजे !
वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहें  !
वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को.. उठाकर उचकाने वालों को विवाह कार्यक्रम से दूर रखा जाए !
जब पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर दिया जाए और  उनका वैदिक मंत्रोचार व विवाह विधि सही है तो उन्हें कोई बीच में रोक टोक नही !
कैमरामैन फेरों आदि के चित्र दूर से ले न कि बार बार पंडितजी को टोक कर.. विवाह विधि में व्यवधान उत्पन्न करे क्यों कि विवाह कार्यक्रम देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में किया जाने वाला समारोह है.. ना की किसी फिल्म की शूटिंग !
दूल्हा दुल्हन द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाये जायेंगे क्यों कि बधु किसी के परिवार की इज्जत उसकी पैमाइश लोगो की भीड़ के समक्ष कराने की जरुरत नही !
विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो जाए जिससे किसी भी मेहमान को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान ना होना पड़े और मेहमानों को अपने घर पहुंचने में कोई असुविधा ना हो !
नवविवाहित को लोगो के समक्ष.. आलिंगन करने, डांस करने व एक दूसरे को खाना खिलाने के लिए ना कहा जाए !
विवाह कार्यक्रम में भोजन व्यवस्था में किसी प्रकार का मांस मदिरा वर्जित होगा क्यों कि विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है मांस मदिरा देखकर देवी देवता रूष्ट होकर  दूल्हा दुल्हन को बिना आशीर्वाद दिए चले जाते हैं !

अच्छी खबर यह है की लड़की वालों ने लड़के की सभी मांगे मानते हुए सनातन संस्कृति सभ्यता को मजबूती प्रदान करने के लिए  सहर्ष तैयार हो गए और विवाह समारोह वैदिक परंपरा से संपन्न हुआ..!

सनातन धर्म की जय हो।
#SayNoForDowry #NADA
Dowry is will It can't be demand 

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Tuesday, 11 April 2023

मोदी जी को सत्ता में वापस लाना हम भारतीयों के लिए क्यों अति आवश्यक है।

जैसा कि हम सभी जानते है अंग्रेजो के काले कानून से तो हमें 1947 में आजादी मिल गई थी लेकिन अंग्रेजो और भारत के शीर्ष नेताओं के बीच "ट्रांसफर ऑफ पावर" का जो समझौता पत्र हस्तांतरित हुआ था जिस पर नेहरू जी ने भारत के शीर्ष नेता के रूप के साइन किया था उसे आज तक हिन्दुस्तानियों से छिपाकर रखा गया, उसका कारण था कि अंग्रेजों ने शर्त रखा था की 1947 से 50 सालों तक भारत सरकार पेपर को सार्वजनिक नहीं करेगा और इसमें संसोधन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय संसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवम संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372, 395 के पास भी नहीं दिया गया। 
जिसके परीणाम स्वरूप, 1947 से लगातार देश के खजाने से प्रतिवर्ष 10 अरब रुपये पेंशन के रूप में ब्रिटेन की महारानी के कोष में उनके जीवन काल तक जा रहा था जो उनके मृत्यू के पश्चात अब कानूनी प्रक्रिया की वजह से रुका है और यदि मोदी जी वापस लौटते है तो निश्चाय ही इस व्यव्स्था को संविधान संशोधन कर हमेशा के लिए रोक दिया जाएगा।
समझौते के तहत भारत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-माँस भी ब्रिटेन को देने के लिए बाध्य है।
भारत अपना राजदूत (एम्बबेसड) अमेरिका, जापान, चीन, रूस, जर्मनी जैसे देशों में तो नियुक्त करता है… ..... लेकिन श्रीलंका, पाकिस्तान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंडोनेेशिया, सिंगापुर आदि देशों में राजदूत नही यहां केवल उच्चायुक्त ही नियुक्त कर सकता है।

आखिर ऐसा क्यों.? ऐसा इस लिए, क्यों कि
भारत समेत 54 देशों को कॉमनवेल्थ कंट्री के नाम से जाना जाता है, इंडिपेंडेंट नेशन के नाम से नहीं ? क्यों कि
ब्रिटिश नैशनैलिटी अधिनियम 1948 के अन्तर्गत कॉमनवेल्थ का अर्थ होता है "सयुंक्त सम्पत्ति" जिसके तहत हर भारतीय,आस्ट्रेलियाई, कनेडियन,चाहे हिन्दू हो मुसलमान या ईसाई, बौद्ध या सिक्ख आज भी कानूनन ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ के ग़ुलाम हैं और उनके मरने के बाद अब उनकी जगह किंग चार्ल्स 3 के गुलाम हैं।

सन् 1997 में "ट्रांसफर ऑफ पावर" सहमति पत्र ( जो एक गोपनीय समझौता ) के 50 साल पूरे होने से पहले ही इसको सार्वजनिक होने से रोकने हेतु सोनिया गांधी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्द्र कुमार गुजराल द्वारा इसकी अवधि 2024 तक बड़ा दी थी जिसे 2024 में पुन: सार्वजनिक होने के डर से भारत विरोधी शक्तियां मोदी जी का विरोध कर रही हैं ताकि 2024 में भी यह सार्वजनिक न हो पाये और देश के खजाने से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष ब्रिटेन जाता रहें।
इसके अलावा और भी बहुत रहस्य गोपनीय है जो पूर्वार्ति सरकारों ने छुपा रखा है जिसका पता चलना देश हित में बहुत आवश्यक है इसलिए मोदी जी का २०२४ में प्रधाममंत्री बनना अतिआवश्यक है।
स्वतन्त्र भारत का इतिहास गवाह है कि जब भी भारत में मजबूत नेताओं ने सत्ता संभाली जैसे लाल बहादुर शास्त्री जी तो उनकी हत्या करवाई गई यह सभी को पता है कि उन्हे कैसे ताशकंद में खाने में जहर दिया गया.. ,सुभाष चंद्र बोस की मौत आदि रहस्य बनकर रह गई........
इसी तरह हमारी स्वतंत्रता भी एक रहस्य बनी है
इस लिए राष्ट्रहित में सभी देश भक्तों का एकजुट होना बहुत आवश्यक है।
इसलिए सभी सनातनी भारतवासियों से अपील है कि अपना निज स्वार्थ, ऊंच नीच, जातिवाद, क्षेत्रवाद, प्रांतवाद के भेदभाव मिटाकर, देश धर्म और आनेवाली पीढ़ी की रक्षा, सुख शांति समृद्धि के लिए 2024 मे मोदी जी को भारी जनादेश देकर प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना १००% योगदान करे..,यह आज के समय की मांग समझिए और दूसरा कोई विकल्प ही नही है।
वरना देश के स्वार्थी, भ्रष्टाचारी नेताओ और टुकड़े टुकड़े गैंग के समर्थक भारत को बर्बाद कर देंगे। देश जो आज मोदी जी के दस साल के प्रयास से विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनकर  विश्व शक्ति बनने की राह पर चल रहा है उसे फिर से विपक्षी नेता और पार्टियां आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त होकर दसवीं पायदान पर पहुंच देंगे।
इसीलिए हमें सतर्क और सावधान भी रहने की जरुरत है नही तो स्वार्थी  विपक्षी दल और कुकुर मुत्ते की तरह फैले सोशल मीडिया न्यूज चैनल चंद रुपयों की लालच में जी जान लगाकर जनता को गुमराह करने की मुहिम में लगे है और मोदी जी को बदनाम करने की पूरी कोशिश कर रहे है जिससे मोदी जी दुबारा सत्ता में ना लौटे l...…

इस लिए हर भारतीय को अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन देने के उद्देश्य से मोदी जी को प्रचंड बहुमत से पुनः प्रधानमन्त्री बनाने के लिए सभी भारतीयों को.मोदी लाओ देश सुरक्षित बनाए रखो का नारा जन जन तक पहुंचना है।

#OnceMoreNAMO #VoteForNAMO 

जय हिन्द जय भारत।। जय हो सनातन संस्कृति की।।


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Thursday, 16 March 2023

राम कौन हैं राम मर्यादा पुरूषोत्तम है राम देवत्व जीवन के आदर्श है

राम" केवल एक शब्द या नाम नही बल्कि समस्त सनातानियो और अखंड भारत के लिए एक श्रेष्ठ आदर्श व्यक्तित्व है जो भारतीय समाज व परिवार के लिए आदर्श जीवन की मर्यादाओं के शिक्षक है। परिवार व समाज के प्रत्येक रिश्तों को निभाने के उच्च संस्कार का श्रेष्ठ उदाहरण राम है। वर्तमान युग में श्रेष्ठ नाम जाप में राम नाम है जो मनुष्य का तारणहार है।

राम..! नाम का मानव जीवन में दो निहतार्थ हैं, 

सुखी होना.. और स्थिर - शान्त हो जाना 

अर्थात राम नाम में ही सुख है और आत्मज्ञान का साक्षात्कार भी राम नाम में ही है 

जब व्यक्ति सांसारिक जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के देवत्व को अपनाने का प्रयास मात्र शुरु करता है तब अपने मार्ग से भटका हुआ तनाव से ग्रसित अशांत मन किसी शान्ति पूर्ण स्थान को देखकर ठहर जाता है जीवन के इस सुखद ठहराव को अर्थ देने वाले शब्दों में भी "राम" ही अंतर्निहित है....जैसे आराम.! विराम.! विश्राम.! अभिराम.! ग्राम.! प्रणाम ... ! अर्थात 

जो "रमने" के लिए विवश कर दे वह "राम..! ही है 

आजकल जीवन की भाग दौड़ में उलझा मन जिस आनंददायक गंतव्य की सतत तलाश में है वह गंतव्य भी राम.. नाम में ही निहित है।

राम नाम की महिमा इतनी है कि भारतीय सनातन संस्कृति में हर स्थिति में मनुष्य मन राम को साक्षी बनाने का आदी है जैसे दुःख और पीड़ा में " हे राम.! लज्जा में "हाय राम.! अशुभ स्थिति में "राम रे राम.! अभिवादन में जब दोनो हाथ जुड़ जाते है तब प्रणाम भी राम राम..! बन जाता है, यही शपथ के समय "राम कसम.! अज्ञानता में राम जाने.! अनिश्चितता में राम भरोसे..! अचूकता के लिए रामबाण इलाज..! मृत्यु के लिए "रामनाम सत्य...! वही सुशासन के लिए "रामराज्य...! और मनुष्य जीवन का अंतिम शब्द भी राम राम ... ही होता है जो जीवन की अन्तिम यात्रा में सद्गति का राह प्रशस्त करता है। महात्मा गांधी जी के अन्तिम शब्द "हे राम ... ही थे। रावण जैसा ज्ञानी पराक्रमी तपस्वी भी अंतिम समय में राम नाम लेने में देर नहीं किया उसको पता था राम के द्वारा और राम नाम से ही उसको मोक्ष प्राप्ति होगी।

भारतीय समाज में ऐसी अभिव्यक्तियाँ, दैनिक जीवन पथ में पग-पग पर राम को साथ खड़ा करतीं हैं और राम भी इतने सरल व सहज हैं की हर जगह अपने भक्तों के साथ खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है उनको अपना मानता है जिसका कोई नहीं उन सबके लिए राम ही राम..! है।

राम नाम का इतना प्रभाव है की हजारों बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी रामकथा की रोचकता कभी खत्म ही नहीं होती अभी कोरोना काल के दौरान जब मोदी जी ने रामायण सीरियल का प्रसारण दिन में तीन बार विभिन्न चैनलों पर करवाया तो रामायण का प्रसारण देखने का लोगो में इतना उत्साह था कि तीन महीने तक जनता सभी कार्य छोड़कर अपने आदर्श पुरूषोत्तम राम के देवत्व रूप को देखने सुनने के लिए तन्मयता के साथ टीवी के सामने समय से बैठे जाती है और राम के द्वारा बोले गए एक एक संवाद व व्यवहार को समझने का प्रयास करता जो साधारण मनुष्य में देवत्व के विकाश की राह प्रशस्त करता है। 

हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है वह राम.....ही है।

राम केवल एक शब्द ही नहीं राम सत्य निष्ठा, धर्म कर्तव्य, शुद्ध आचरण, आस्था, नैतिक मूल्यों, स्वाभिमान और श्रेष्ठ जीवन दर्शन का नाम है। राम भारतीय सनातन संस्कृति की आत्मा है राम शाश्वत है राम शिवांश है राम तपस्वी है।

राम एक श्रेष्ठ व आज्ञाकारी पुत्र है राम त्याग व पुरुषार्थ का नाम है।

राम एक आदर्श भाई है राम दया क्षमा के प्रतिरूप है।

राम धर्मनिष्ठ राजा है राम अनादि है अनंत है! 

राम नाम से ही जीवन के भ्रम भटकाव अंहकार मद मोह का अंत है।

राम सनातन आस्था के प्रतीक भारतीयों के आराध्य है।

जीवन में सब कुछ अंत हो जाने के बाद भी जो बचा रह जाता है वह भी राम ही है राम हमारी आत्मा है हम राम के है और राम हमारे है।

जब कोई व्यक्ति घोर निराशा से गुजरते हुए उठ खड़ा होता है तो वह आत्मबल भी राम ही है। अनन्त सीमाओं के बीच छुपे हुए गूढ़ को, जो समझ पाए वो भी राम ही है ..!

राम वह है जिसको ये पता है की जन्म का उद्देश्य क्या है और जो जीवन के धर्म पथ पर सुख का मोह नहीं रखता और दुख में किंचित विचलित नहीं होता है। राज्याभिषेक की खबर सुनकर बहुत खुश भी नही जाहिर करता और वनवास की ख़बर को बिना दुख के बिना किसी प्रतिक्रिया के स्वीकार कर लेता है। 

इसीलिए राम मर्यादा पुरूष पुरूषोत्तम राम है ।।

जय श्री राम..🌹🙏

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Monday, 6 March 2023

धर्म शब्द का प्रयोग किसी समुदाय समाज समूह के साथ जोड़कर करना तर्कसंगत नहीं है।

साधारणतः जब भी हम चर्चा में धर्म शब्द का उपयोग करते सुनते है हम इसे समुदाय विशेष जैसे हिन्दू धर्म या बौद्ध जैन सिख या मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म से ही जोड़कर देखते है जबकि धर्म शब्द को समुदाय विशेष से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ का बोलना कहीं से तर्कसंगत नहीं है क्योंकि धर्म का वास्ताविक संबंध कर्तव्य से, नैतिक मूल्यों से, मानवता से, परंपराओं का समायानुसार, नैतिक व मानवीय मूल्यों के समन्वय के साथ निर्वहन से है न की हिंदू मुस्लिम ईसाई समूह आदि से है ......... 
धर्म का संबंध केवल व्यक्ति व व्यक्तित्व से है ना कि हिन्दू मुस्लिम ईसाई समुदाय से, हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म आदि एक राजनैतिक शब्द है जो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा समाज को विभाजित कर सत्ता में बने रहने के लिए हजारों वर्षों तक किया गया और स्वतंत्रता के बाद इस शब्द का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीत के लिए किया जा रहा है जबकि वास्तविक रूप से समझने का प्रयास करे तो पाएंगे की हिन्दू धर्म नही बल्कि विश्व की एक विशिष्ट संस्कृति - संस्कार- परम्परा है जो ब्रह्माण्ड के देवपुरुषों ऋषियो मनीषियों महामानवों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन की गई स्मृतियों, परंपराओं, संस्कारों पर आधारित है जिसका निर्वहन त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, ऋषि वशिष्ठ, माता सीता, रुद्रावतार राम भक्त हनुमान और द्वापर युग में श्री कृष्ण, माता यशोदा, श्री राधा, मित्र सुदामा, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, विदुर आदि द्वारा किया गया और उन्ही स्मृतियों परंपराओं संस्कृतियों पर आधारित जीवन शैली को हिन्दू संस्कृति कहा गया। इस प्रकार हिन्दू एक संस्कृति है ना कि धर्म, इसे धर्म कहना अनुचित है ......... 
हिन्दू संस्कृति एक प्रकार से वैदिक संस्कृति है क्योंकि यह वैदिक श्रुति स्मृति परंपराओं पर आधारित है इसे हिन्दू संस्कृति इसलिए कहा गया क्योंकि इसका पालन हिंदू कुश पर्वत परिक्षेत्र में रहने वाले मानवीय समुदायों द्वारा किया जाता है और पौराणिक ग्रंथों से यह पता चलता है कि इसी क्षेत्र में देव पुरुषों द्वारा पृथ्वी पर अवतार लेकर मानवीय जीवन के धर्म कर्तव्यों का निर्वाहन किया गया.... कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध को श्री कृष्ण ने धर्मयुद्ध का नाम दिया क्यों कि वह लड़ाई अन्याय अनीति लोभ ईर्ष्या द्वेष अनाचार व अत्याचार के विरुद्ध धर्म की स्थापना की लड़ाई थी ना कि दो समुदायों या हिन्दू या मुस्लिम संस्कृति की ..... 

धर्म का संबंध सकारात्मक सोच और कर्म से है ना कि नकारात्मक विचारों व व्यवहार से या समुदाय विशेष से। तप त्याग क्षमा दया सेवा व कर्तव्य भाव धर्म निर्वहन के साधन है जिसका पालन व्यक्ति द्वारा संस्कार रूप में आदर्श जीवन के लिए किया जाता है चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंधित हो। जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथो में मिलता है। धर्म पालन हिन्दू संस्कार का अभिन्न हिस्सा है जीवन शैली है जिसकी शिक्षा गुरुकुलो में ऋषि मुनियों द्वारा नैतिक शिक्षा के रूप में प्रदान किया जाता था। इसी प्रकार मुस्लिम ईसाई समुदायों की संस्कृती है संस्कार है जो की उनके समाज के विद्वानों महापुरुषों गुरुओं द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन करने की शिक्षा दिया गया ना कि धर्म है। इसलिए किसी भी समुदाय या समाज के साथ धर्म शब्द जोड़कर प्रचारित करना या निर्दोष अशिक्षित जनता को गुमराह करके धर्म के नाम पर राजनिति करना एकदम गलत है।

वैसे भी हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म ईसाई धर्म शब्द का कोई पौराणिक प्रमाण नहीं मिलता है ये सब एक राजनैतिक शब्द है धर्म जीवन निर्वहन का एक संस्कार है जिसका उल्लेख सनातन वैदिक संस्कृति में संस्कार रूप में मिलता है।
मुझे लगता है कि हिंदू समाज सनातन अनुयायियो को सनातन या हिन्दू संस्कार या संस्कृति शब्द का प्रयोग व संबोधन करना चाहिए न कि सनातन या हिन्दू धर्म, अन्य समुदाय के लोगो को भी इस्लाम या मुस्लिम धर्म की जगह इस्लामिक संस्कृति या ईसाई यहुदी संस्कृति बोलना चाहिए न कि धर्म ।

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Friday, 24 February 2023

महाशिवरात्रि सनातन संस्कृति का महापर्व आदि शिव का प्रकटोत्सव दिवस है

शिव आदि है अनंत है अविनाशी है निराकार है महायोगी है देवाधीदेव है महादेव है प्रकृति है अगोचर है
हम सबने सुना है ईश्वर एक है वो "शिव" ही है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में है शिव, शिव अनंत ऊर्जा है शिव के बिना ब्रह्माण्ड की संकल्पना ही नहीं की जा सकती है सूर्य चंद्र पृथ्वी जल आकाश नभ नव ग्रह सप्तर्षि, सप्त नदिया और ब्रह्माण्ड की समस्त दिव्य शक्तियां व ऊर्जा "शिव" के अंश मात्र है 

शिव अनंत ऊर्जा है शिव ही "शंकर" शिव ही "विष्णु" शिव ही "ब्रह्मा" है 
शिव ही रचनाकार पालनहार और संहारक है 
शिव "आदिपुरुष" और प्रकृति "आदिशक्ति" के संयोजन से निराकार शिव, शहस्त्राब्दी वर्ष पूर्व त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की इच्छा व प्रेम से वशीभूत होकर आदिशिव महादेव ने फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि की रात्रि, प्रदोष काल में मानव कल्याण के लिए अपने भक्तों में योग उपासना व भक्ति भाव जागृत करने के लिए "लिंग" आकार लिया ...............
वैसे तो सनातन संस्कृति में विक्रम संवत् के अनुसार प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है जो की अमावस्या तिथि के एक दिन पूर्व आता है चूंकि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मानव कल्याण हेतु स्वयं भू लिंग आकार में महादेव शिव ने त्रिदेव भक्तों को दर्शन दिया और इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग आकार महादेव का दिव्य दर्शन और पूजन किया इसी लिए फाल्गुन मास की शिवरात्रि "महा शिवरात्रि" कहलाती है। महाशिवरात्रि आदि शिव के प्रकटोत्सव का दिवस है आदि शिव व आदि शक्ति के प्राकृतिक संयोजन का दिन है। मान्यता है महाशिवरात्रि पर सभी देवतागण और दिव्य आत्माएं पृथ्वी पर स्वयं भू शिव लिंग का साक्षात दर्शन करने सूक्ष्म रुप में आते है इसीलिए महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण व मंत्र जाप का भी बहुत है।

शिवलिंग हमे यह संदेश भी देता है कि आदिशिव व आदिशक्ति एक ही है अलग अलग नहीं और यही महादेव और प्रकृति स्वरूपा आदिशक्ति के अर्धनारीश्वर रूप  का आधार भी है..............

महाशिवरात्रि महापर्व को लोग शंकर भगवान और पार्वती माता के विवाह वर्षगांठ के रूप भी में मनाते है इसमें कोई बुराई नही लोग अपने आराध्य देव महादेव और जगत जननी की भक्ति महाशिवरात्रि पर विवाह वर्षगांठ मनाकर करते है अच्छी बात है लेकिन "शिव  महापुराण" के  सती खण्ड के अनुसार सच्चाई यह है कि भगवान शंकर - माता सती का विवाह चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ था और पार्वती खण्ड के अनुसार माता पार्वती और शंकर का विवाह मार्गशीर्ष चतुर्दाशी को हुआ था। इस लिए महाशिवरात्रि को यदि हम योगसाधना ध्यान व मंत्र सिद्धि अथवा आत्म साक्षात्कार के माध्यम से ह्रदय में उपस्थित शिव के दिव्य अंश दिव्य आत्मा को जागृत करने और अध्यात्मिक चेतना के विकाश के लिए करे तो और अच्छा होगा.....

तीन पत्तो वाले बेलपत्र महादेव को प्रिय है क्यो कि बेल पत्र के तीन पत्तो वाली टहनियां ब्राह्म विष्णु महेश के प्रतीक रूप है जो मानव कल्याण के लिए प्रकृति की अमूल्य निधि है वैसे भी शिव पुराण में बेल वृक्ष को साक्षात शिव का व पीपल के वृक्ष में श्री हरि विष्णु का वास बताया गया है इसी लिए तीन पत्तो वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से शिव की कृपा प्राप्त होती है

महादेव यानि शिव जो निराकार है सर्वश्रेष्ठ है उनका एक ही आकार है वो है शिवलिंग और शिव के शरीर धारी रूप है ब्राह्म विष्णु महेश व सप्तऋषि है, महेश ही शंकर है शंकर योगी है संन्यासी है संत है साधु है त्यागी है दानी है अघोरी है विनाशक है मृत्युदाता और जीवन रक्षक भी है और यमराज इनके सेनापति, भूत प्रेत पिशाच डांकिनी शाकिनी निशाचर सब इनके सहयोगी है।

बेलपत्र के अलावा महादेव को जल धारा बहुत प्रिय हैं क्यों कि जल से महादेव को शीतलता प्राप्त होती है ऐसा इस लिए की जब समुद्र मंथन से निकले विष को महादेव ने मानव कल्याण हेतु ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं ग्रहण कर लिया था तब शिवशंकर का शरीर नीला पड़ गया और हिमालय के नीलकंठ पर्वत पर विश्राम करने गए तब श्री ब्रह्मा विष्णु के साथ सभी देवतागण उनका जलाभिषेक किया जिससे उनके शरीर को शीतलता प्राप्त हुई और महादेव को  नीलकंठ के नाम से पुकार गया। आज भी नीलकंठ महादेव का शिवलिंग ऋषिकेश के पास नीलकंठ पर्वत पर स्थित है जहां जलाभिषेक का बहुत महत्त्व है। महादेव के अभिषेक करने कई अन्य विधियां भी है जैसे दूध से अभिषेक लेकिन ऐसा विशेष उद्देश्य या कार्य के संकल्प के लिए प्रयोग करना चाहिए ना कि जब भी मंदिर जाए एक लीटर दूध ही चढ़ाके आ जाए।

हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय

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Saturday, 11 February 2023

पुरानी पेंशन बहाली की मांग देशहित में तर्कसंगत है या केवल सत्ता वापसी की राजनीति?

हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के सहारे कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापसी के बाद से देश के अन्य हिस्सों में ये मुद्दा और गरम हो रहा है। कांग्रेस पार्टी की २०२३ में होने दस राज्यों विधान सभा चुनाओं में सफलता की उम्मीदें और बढ़ गई है यदि परिणाम कुछ सकारात्मक रहा तो २०२४ के आम चुनाव में भी इसको हवा दिया जाएगा। मजेदार बाद यह है कि इस मुद्दे को सबसे पहले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने २०१७ के विधान सभा चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया और २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी इसको मुद्दा बनाया लेकिन कांग्रेस ने इसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी पार्टी की सरकार द्वारा राज्य स्तर पर लागु करवाके हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी कर लिया ........ 
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो ये हैं कि यदि पेंशन बहाली जनहित में इतना आवश्यक था तो २००४ से लेकर २०१४ तक में यूपीए सरकार के सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं बहाल किया गया जबकि मनमोहन सिंह जी देश के बड़े अर्थशास्त्री के तौर पर प्रधामनंत्री की भुमिका निभा रहे थे और तब इसे बड़ी आसानी से किया जा सकता था क्यों कि पुरानी पैंशन योजना खत्म करने का कानून २००४ से ही लागू होना था ......
यदि मनमोहन सिंह जी ने उस समय पुरानी पैंशन योजना को बहाल नहीं किया इसका मतलब उनके दृष्टिकोणों से ये उचित नही रहा होगा और यदि तब कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के सहयोगी दलों ने मनमोहन सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो आज लगभग बीस साल बाद क्यो पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे है ......
इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि तब देश की आर्थिक स्थित इस लायक नही थी कि सरकार पेंशन का बोझ उठा पाए और मनमोहन जी को लगा होगा कि पेंशन के मद में जा रहे धन को देशहित जनहित के अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा जिस उद्देश्य से अटल बिहारी जी की सरकार ने २००० में पेंशन योजना खत्म करने का कानून सदन में पास किया था जिसमे यह व्यवस्था किया गया था कि २००४ के बाद से नई भर्तियों में पेंशन व्यवस्था का रूप बदल जाएगा और वो पूर्णतः कर्मचारियों के ऊपर निर्भर करेगा।
एक दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या २००० में जब पेंशन खत्म करने के कानून सदन में अटल बिहारी जी की सरकार द्वारा पास करवाया जा रहा था तो विपक्ष के नेता सदन में मौजूद नहीं थे या राहुल गांधी जी, सोनिया जी, अखिलेश यादव जी सांसद नही बने थे तब विरोध नही कर पाए और आज अचानक २०१९ आम चुनाव के बाद जागृत हो गए है कि कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ और फिर से पेंशन बहाली की जाए।

मुझे तो लगता है कि पेंशन बहाली और महंगाई का मुद्दा केवल सत्ता वापसी के लिए एक ढाल है और कुछ नही। अटल जी कि सरकार २००४ में महंगाई के मुद्दे पर ही चली गईं थी जब कि अटल जी राष्ट्रहित में देश के विकाश के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम कर रहे थे २००४-२०१४ तक महंगाई और बेरोजगारी का डाटा उठाके देख लिया जाए तो कुछ खास परिर्वतन नहीं कर पाई थीं यूपीए सरकार महंगाई और रोजगार सृजन के मामले में ......... ....
असलियत तो यह है कि भारत से महंगाई और बेरोजगारी की समस्या तब तक नही खत्म हो सकती जब तक कि जनसंख्या वृद्धि दर को संतुलित न किया जाए और कृषि उत्पादन को ना बढ़ाया जाए क्यों कि रोजगार सृजन की एक सीमित वार्षिक क्षमता है उससे अधिक सम्भव नही है लेकिन जनसंख्या वृद्धि की कोई निश्चित सीमा ही नहीं है । सीधी बात है कि मांग और उपलब्धता में संतुलन बनाए बगैर महंगाई बेरोजगारी की समस्या कभी नहीं खत्म हो सकती चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आ जाए या कोई भी देश का प्रधानमन्त्री बन जाए

हास्यास्पद बात यह है कि देश में नेशनल पेंशन स्कीम एनपीएस की व्यवस्था करचारियो के लिए उपलब्ध है जिस कर्मचारी को जितना पेंशन चाहिए उतना प्लान कर ले तो ऐसे में पुरानी पेंशन बहाली की क्या जरूरत है लेकिन नही कर्मचारियों के नेता किसी न किसी पार्टी के समर्थक होते है उन्हे अपना नंबर पार्टी मुखिया के दिमाग में बढ़ाना और वरदहस्त प्राप्त करना है तो मांग तो उठाएंगे ही, हर साल महगई भत्ता में बढ़ोत्तरी के लिए, प्रत्येक साल वेतन वृद्धि भी के लिए, वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुसार प्रत्येक पांच साल में एकमुश्त बड़ी वेतन वृद्धि के लिए, साल में १५० दिन से अधिक छुट्टियां, घर गाड़ी और बच्चों की शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी , सालाना एलटीए और सुबह केवल दस बजे से ३ बजे तक ही काम चाहिए और जब आम आदमी के हित में जिमेदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करने को कहा जाय तो उसमे में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि बिना कुछ जेब गरम हुए कदम व कलम आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकार ने एक पेंशन ख़त्म कर दिया तो उसके वापसी के लिए राजनीति हो रही है 
बेहतर होता कि देश के समस्त कर्मचारी राजनेताओं के पेंशन को देशहित में ख़त्म करने के लिए एकजुट होकर आवाज उठाते ना कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग के लिए। 
वैसे ईमानदारी से पूछा जाए तो पेंशन का वास्तविक अधिकारी केवल देश के आम वृद्धजन, विधवा महिलाएं और अनाथ बच्चे है जिन्होंने कभी सरकारी नौकरी नहीं किया व जिसके पास मासिक आय का कोई श्रोत नही है। इस लिए देश के वृद्धजनों और विधववाओ का मासिक पेंशन बढ़ाके सीधे ६००० से अधिक कर देना चाहिए। 
यदि देश की राजनितिक पार्टियां वास्त्विक रूप से जनहित की देशहित की सोचते है तो पुरानी पेंशन बहाली की मांग के जगह जनसंख्या नियंत्रण, वृद्ध व महिला पेंशन वृद्धि की मांग करे जो जनहित देशहित में है  अन्यथा सत्तानीति और जातिवाद क्षेत्रवाद की राजनीति बंद करे। 
वैसे भी देशहित जनहित और विकाशहित में बात करना  ही केवल राजनिति कहलाती है अन्यथा सत्तानित और स्वार्थनीत के अलावा और कुछ नही। 

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Tuesday, 7 February 2023

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का संदेश क्या अब जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीति खत्म होनी चाहिए

संत रविदास जयंती के अवसर पर संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत जी महाराष्ट्र में रविदास जयंती कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए थे जहा उनके उद्बोधन के कुछ अंश को लेकर देश के राजनितिक गलियारे में बडी चर्चा का विषय बना है ...... 
राजनितिक गलियारा शब्द मैं इस लिए बोल रहा हूं क्यों कि आम जनता तो अपने रोजी रोटी और दैनिक जीवन के समस्याओं में इतना उलझी हुई है कि दिन भर मेहनत करके थका हारा शाम को आम आदमी जब घर लौटता है तो दो रोटी खाकर जल्दी सो जाता है कि सुबह उठकर उसे अगले दिन की तैयारी करनी होती है कौन कहा क्या बोल रहा है क्यों बोल रहा है ये तो उसे गली नुक्कड़ चौराहों पर पान चाय की दूकानों पर अपने अपने नेताओं की शेखी बखार रहे लोगो से पता चलता है और वही उन्हे समझाते भी है कि कौन नेता क्या बोला और उसका क्या मतलब है वो भी अपने पार्टी और नेता के हित के अनुसार ......... 
इस लिए आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोहन भागवत जी क्या बोल रहे हैं या कोई अन्य नेता क्या बोल रहा है.....
फिलहाल आइए बात करते है मोहन भागवत जी के व्यत्व्य की जिसकी चर्चा चल रही है मुझे लगता है भागवत जी जिस मंच से जिस महान व्यतित्व की जयंती पर बोल रहे थे और जो भी बोला उनका तात्पर्य सनातन समाज के विघटन को दूर करने की दूरदृष्टि का उदबोधन था न कि किसी वर्ग विशेष या समुदाय को नाराज करना या आरोपित करना.......... ..... 
वैसे इस बात में पुरी सत्यता है कि सनातन वैदिक व्यवस्था में जाति सूचक शब्द को कहीं भी ज्यादा महत्ता नही दिया गया है। ये तो समाज के कुछ मठाधीश लोगों ने समय समय पर अपने निहित स्वार्थ और अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए समाज में नाकारात्मक माहौल पैदा किया वैसे पंडित और ब्राह्मण दोनों शब्दों का अर्थ स्थान कर्म और परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है। जैसे पंडित शब्द आम बोल चाल में लोग बहुत जानकार अनुभवी व ज्ञानी व्यक्ति को भी बोलते है "चल बड़ा आई है पंडित बने आपन ज्ञान मत दा " ऐसे ही बहुत से अन्य शब्द है जिनका अर्थ संदर्भ बदल जाता है वाक्या अनुसार ........

वैसे भी जाति सूचक शब्द हमेशा से राजनितिक और व्यक्तिगत स्वार्थ साधने का माध्यम रहा है जिसका पिछले लगभग 1500 वर्षो से परंपरागत तरीके से भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकरियों ने अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया, संतानियो को जाति में विभाजित करके लाभ उठाया और हजारों वर्षों तक राज किया, भारत की समृद्धि लुटा, संस्कृति संस्कार को तोड़ा मडोड़ा तहस नहस कर दिया और भारतीय सनातनी हजारों वर्षो तक ये समझ ही नही पाया, अपनी  समृद्धि और श्रेष्ठता के अहंकार से अपने आपको बाहर ही नहीं निकाल पाया ....... जो देश की स्वतंत्रता के बाद भी लगातार जारी रहा, अलग अलग राजनितिक नेता और पार्टियां समय समय पर सनातन समाज को एकजुट करने की बजाए अपने स्वार्थ और सत्ता के लालच में विघटित बनाए रखा जो देश और समाज के विकाश को प्रभावती किया और कमज़ोर बनाया है ............ 
आज आजादी के 75वे वर्ष बाद भी भारत संघर्ष कर रहा है विकसित देश की श्रेणी में अपना स्थान बनाने के लिए जिसे विक्रमजीत मौर्य के समय में पूरा विश्व सोने की चिड़िया के नाम से जानता था। बड़ा दुर्भाग्य यह है भारत से एक दो साल पहले या बाद में आजाद हुए कई देश आजादी के ३०-४० वर्षो के ही आर्थिक विकाश की ऊंचाई छू लिए थे और उत्तरोत्तर प्रगति के साथ आज़ एक विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व में अपना परचम फहरा रहे है जिसका सबसे बड़ा उदहारण हमारा निकटम पड़ोसी चीन है ........... 
यदि भारत आज भी संघर्ष कर रहा है तो उसके पीछे एक मुख्य कारण भारत की जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीत है इसी जातिवादी क्षेत्रवादी राजनीत के गठबंधन को तोड़ने और सनातन समाज को जोड़कर एक छत के नीचे खड़ा करने का प्रयास संघ प्रमुख की सोच है ............. 
संघ प्रमुख की इसी सोच में सनातन समाज का और भारत देश का हित है जो भारत को विश्व के समृद्धशाली राष्ट्र की श्रेणी में पुनः खड़ा कर सकता है। इस लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपने दृष्टिकोण का दायरा बढ़ाना होगा अपनी सोच को बड़ा करना होगा जाति और क्षेत्रवाद की संकीर्णता से बहार आना होगा। पूरा सनातन समाज का एक ही जाति है, वो है, सनातनी भारतीय। बस यही एक ही परिचय है समस्त भारतवासियो का सनातनियो का और कुछ नही। ये भावना भारत के प्रत्येक नागरिक की होनी चाहिए तभी एक सशक्त और समृद्धिशाली राष्ट्र का विकाश संभव हो पाएगा ........ 
हालाकि मोहन भागवत जी ने जो बात कहीं वो निश्चय ही बड़ा आश्चर्य का विषय है की इतना विद्वान सुलझा हुआ परिपक्व व्यक्ति देश के एक सर्वश्रेष्ठ संगठन का प्रमुख इतना गैर जिम्मेदारीपूर्ण व्यक्तव्य कैसे दे सकते है जबकि वे स्वयं एक ब्राह्मण परिवार से है लेकिन इतना बड़ा व्यक्तित्व यदि ऐसा बोल दिए तो उन शब्दों के आगे पीछे के वक्तव्यों और विषय स्थान व परिस्थिति को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए और उन संदेशों का वास्तविक संदर्भ क्या है उसको भी समझना चाहिए .......
भागवत जी के व्यकव्यो का विस्ताविक संदर्भ यही है की जो सनातनी अपने धर्म को छोड़कर किसी और धर्म को अपना लिया है वो घर वापसी करे जाती धर्म के कीड़े से बाहर निकले अपने सनातन समाज व धर्म का सम्मान करे। जिन लोगों से पहले कुछ गलतियां हुईं उसको सुधारे और सनातन समाज की एकता अखंडता को मजबूत बनाएं रखने के लिए अपना सर्व श्रेष्ठ योगदान करे। वैसे भी जाती धर्म से ऊपर मानवता और इंसानियत हैं जिसका जीवन में अनुकरण करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है।

इसलिए हम सबको राष्ट्रहित में जाति क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल समाज में एकजुटता स्थापित करना चाहिए।
जय हिंद। जय भारत।। 

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Saturday, 4 February 2023

रामचरित मानस पर टिप्पणी केवल एक तुच्छ वोटबैंक राजनीत के अलावा और कुछ नही है

आजकल भगवान श्री राम के अनन्य भक्त और श्री हनुमान जी स्वामी के प्रत्यक्ष दर्शन करने व उनकी ही प्रेरणा से ऋषि वाल्मीकि द्वार संस्कृत भाषा में लिखित रामायण का हिंदी या कहें की अवधी में अनुवाद करने वाले संत तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस पर कुछ मूढ राजनेताओं  द्वारा निम्नस्तर की टिप्पणी की जा रही है जो बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। 
वैसे आजकल के नेताओं को राजनेता कहना भी गलत होगा क्यों कि आजकल के नेता राजनीत नही करते है बल्कि स्वार्थनीति कूटनीति सत्तानिति वोटनिति करते हैं जो केवल सत्ता और समय के साथ चलते है ना कि जनता के साथ आज़ के नेताओं के लिए अपना स्वार्थ सर्व प्रथम और जनता व उनका हित सबसे अंत में ऐसे नेता तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस पर टिप्पणी करते है जो केवल हास्य उपहास  का विषय हो सकता इससे अधिक और कुछ नही ,.... .....
उत्तर प्रदेश के स्वामी प्रसाद मौर्य और बिहार के शिक्षा मंत्री द्वार हाल ही में की गई टिप्पणी केवल यह प्रणाम देती है कि ये कितने बड़े मूढ़ व अनपढ़ है इनकी पास केवल नाम मात्र की डिग्री है वास्तविक शिक्षा के नाम पर ये एकदम शून्य है मुझे तो संदेह है कि इन लोगो के घर में रामचरित मानस की एक प्रतिलिप भी रखी होगी और जब इनके घर में रामचरित मानस की प्रतिलिप नही तो इन्होंने ना तो कभी ध्यान से स्वयं पढ़ा होगा न ही परिवार के किसी सदस्य ने और बिना पढ़े व सही अर्थ समझे यदि ऐसी टिप्पणी स्वामी प्रसाद मौर्या ने किया तो यह केवल सत्ता नीति और वोटनिति से प्रेरित बयाना कहा जा सकता है ........... 
सामान्य रूप इसे पब्लिक और मीडिया स्टंट कह सकते है क्यों कि स्वामी प्रसाद मौर्या बसपा से भाजपा और फिर सपा में केवल उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनने के लालच में उछाल कूद कर रहे है और सफल नहीं हो पा रहे है और इनकी इसी तरह की गलत बयानबाज़ी अनर्गल आरोप प्रत्यारोप ने इनके असली चेहरे को जनता के सामने उजागीर कर दिया है तो जनता में भी इनका असर अब कम होता नजर आ रहा है अब चूकि महत्त्वाकांछा बड़ी है और जनता में प्रभाव कम होता जा रहा हैं तो आने वाले समय में सभी पार्टियों में इनका महत्त्व एकदम खत्म हो जाएगा इस बात इस भी दर सता रहा है ऊपर से आजकल सत्ता से बाहर है तो जनता में भी कहीं उतना महत्त्व नहीं मिल रहा है जिससे इनको तथा कथित अपना वोट बैंक भी धीरे धीरे भूल रही है तो इनकी बेचैनी बढ़नी स्वाभिक है, हो भी क्यों नही जो व्यक्ति 1996 से लेकर 2017 तक अधिकतम समय में उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट का हिस्सा रहा भरपूर दौलत कमाया वास्तविक हैसियत 200 करोड़ से अधिक ही होगा ऐसा अनुमान है, तो अब मंत्रिपरिषद का हिस्सा न होने की पीड़ा भी है, बावजूद इसके इतना बड़ा वोहदा रखते हुए 2017 विधान सभा का चुनाव भी हार गए ये तो अखिलेश यादव जी ने मान रखा और विधान परिषद में भेज दिया नहीं तो शायद अब तक राजनीत भूल चुके होते।
अब चूंकि लोकसभा नजदीक आ रहा है हो सकता है चुनाव लडने तैयारी कर रहे हो तो अपने वोटबैंक को याद दिलाना भी जरूरी था कि स्वामी प्रसाद मौर्या अभी प्रदेश की राजनीति में जीवित है तो इससे बड़ा गरम मुद्दा और कुछ हो ही नही सकता था तो इस मूढ़ ने बिना गहन अध्ययन किए अपने सलाहकारों के कहने पर इतना मूढ़ता भरा बयान दे दिया जबकि ये कई वर्षो पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुके है। 
सही ही कहा गया है अधिक महत्त्वाकांछ व्यक्ति को अक्सर अंधा बना देता है या ये कहें कि विनाश काले विपरीत बुद्धि यही हो रहा है स्वामी प्रसाद के साथ ..... यही कारण है कि 2017 विधानसभा से पहले मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देकर सपा में शामिल हुए और अब इतना बड़ा गलत बयानबाज़ी वो भी सनातन धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य रामचरित मानस पर टिप्पणी ..... 
इस मूढ़ ने रामचरित मानस के पंचम खंड सुंदरकांड के ५८ वें दोहा के अंतर्गत आने वाले ३ चौपाई 
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
पर अपनी टिप्पणी की है 

इन मूर्खो को शूद्र और ताड़ना शब्द का विरोध है तो सबसे पहले तो ये ऋषि वाल्मीकि का ही विरोध कर रहे है जो कि स्वयं शूद्र जाति से थे और इतने बड़े विद्वान थे कि भगवान श्री राम के जन्म से पहले से ही रामायण लिखना उन्होंने शुरु कर दिया था और लव कुश के जन्म और बाल्यकाल तक का पूरा विवरण लिख दिया था तो क्या रामायण का बहिष्कार इस लिए कर देना चाहिए की वो एक शुद्र कुल में जन्मे ऋषि ने लिखा था जिसका हिंदी अनुवाद रामचरित मानस है जिसके बारे ये कहा जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने एक तोता के रूप में तुलसीदास जी को सुनाया और उन्होंने लिखा प्रभू श्री राम का भी दर्शन प्राप्त किया था जो केवल ५०० वर्ष पुरानी घटना है। 
और दूसरी बात ताड़ना का अर्थ किसी को पीटने पीड़ा देने या प्रताड़ित करने से नही है बल्कि ताड़ना का वास्तविक अर्थ है 
गवार शुद्र पशु और स्त्री पर हमेशा ध्यान दृष्टि बनाए रखना सामान्य भाषा में कहे तो निगरानी रखना क्यों कि इस संसार में प्रत्येक प्राणी के अपने अपने कुछ नैसर्गिक गुण व संस्कार होते है जिसके अनुसार उनका व्यवहार होता है और कहीं उनसे कोई गलती न हों जिससे हमें पीड़ा हो इस लिए उनके ऊपर दृष्टि बनाए रखना और समय पर समय पर उचित शिक्षा देना आवश्यक होता है इस लिए ताड़न के अधिकारी शब्द का प्रयोग किया गया है । 

स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान से अधिक तो इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जी ने उनको इस बयान पर पुरस्कृत करते हुए पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया, इसी को कहते है वोटनीति  कूटनीति अब यदि सवर्ण समुदाय या भगवान राम भक्त स्वामी प्रसाद के बयान पर विरोध प्रदर्शन करे तो मौर्य जाति के व्यक्ति का अपमान मतलब की पूरे मौर्य समाज का अपमान जिसे मुद्दा बनाके मौर्या समाज के वोट बैंक को विभाजित करना और स्वामी प्रसाद को समाज का बड़ा नेता साबित करना जिसका कुछ फायदा सपा को मिले आगामी लोकसभा चुनाओ में संभवतः ..........
लेकिन इन मूढ़ को कौन समझाए की आज के डिजिटल सोशल मीडिया के जमाने में जनता या किसी समाज को बहलाना आसान नहीं रहा और वो भी सनातन धर्म की बखिया उखेड़ के तब जब ५०० सौ वर्ष पुराना राम मंदिर निर्माण शुरु हो गया है सनातन धर्म के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस बात को लेकर खुश है जो रामलला के दर्शन की राह देख रहे जो संभव है लोकसभा चुनावों से पहले शुरु हो जाएगा ऐसी स्थिति में सनातन समुदाय को तोड़ना आसान नहीं

वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधान सभा चुनाव से पहले राम भक्त श्री हनुमान जी के चालीसा पर गलत बयान देकर अखिलेश और स्वयं दोनो को चुनाव में पराजित कराया और अब श्री राम चरित मानस पर टिप्पणी करके पहले से ही लोकसभा चुनाव में सपा को हराने की तैयारी कर लिया उससे भी बड़ी संभावना है बेटी संघमित्रा की राह कठिन पिछली बार तो मोदी जी के नाम पर चुनाव जीत संसद में पहुंच गई थी इस बार तो लग रहा है स्वामी बेटी को भी हार की राह दिखा देंगे।
स्वामी प्रसाद जैसे नेताओं को आत्मिक शुद्धि की जरुरत है इन्हे किसी अध्यात्मिक गुरु के शरण में कुछ महीने व्यतीत करना चाहिए जिससे इनका सनातन धर्म के बारे में ज्ञान बढ़े और स्वयं से ये रामचरित मानस और इनसे जुड़े ग्रंथो का अध्यन करना चाहिए और यदि सही से न समझ आए तो किसी विद्वान व्यक्ति से रामचरित मानस के लिखे चौपाइयों का अर्थ समझना चाहिए। 

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Thursday, 2 February 2023

बजट २०२३-२४ भारत को विश्व पटल पर वर्ष २०४७ में विकसित देश की श्रेणी में स्थापित करने का पहला कदम है

बजट २०२३- २४ मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट है क्यों कि अगले वर्ष देश में लोकसभा चुनाव होना है लोगो को बहुत उम्मीद थी सरकार जनता को लुभाने के लिए बहुत लोकलुभावन बजट पेश करेंगी लेकिन मोदी जी देश को स्वतंत्रता के १००वें वर्ष में विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए संकल्पित होकर कार्य कर रहे है जिसकी झलक बजट २०२३ - २४ साफ दिखाई दे रहा जो आने वाले समय में विकसित व आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला साबित होगा। इसका एक बड़ा उदहारण वित्त मंत्री ने सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम करते हुए ऐतिहासिक निचले स्तर पर ला दिया है।
देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा प्रस्तुत बजट २०२३-२४ भारत को स्वावलंबी आत्मनिर्भर नव भारत के निर्माण को सुनिश्चित करने वाला बजट है जो भारत को स्वतंत्रता वर्ष २०४७ में विश्वपटल पर एक विकसित और शसक्त राष्ट्र के रुप में स्थापित कर वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। बजट में समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति को लाभ पहुंचाने से लेकर चहुंमुखी विकास को गांव देहात तक पहुंचने की भरपूर प्रयास किया गया है चाहे गरीब हो, मजदूर हो या किसान या मध्यमवर्गीय वर्ग से संबंध रखने वाला देश का कोई भी नागरिक हो सबका ध्यान रखा गया है युवाओं के लिए रोजगार सृजन से लेकर महिलाओं के लिए किसान विकास पत्र के तर्ज पर महिला बचत सम्मान पत्र की व्यवस्था जिसमें ७.५% व्याज के साथ पार्शियल विड्रवाल का प्रावधान किया गया है और बुजर्गो के लिए बचत इनकम को टैक्स फ्री करने के साथ ही देश को ग्रीन एनर्जी समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण व्यवस्था किया गया है जो भारत को विश्व में एक मजबूत पहचान दिलाने में अहम भूमिका अदा करेगा।
४५ लाख करोड़ रुपए के बजट में राजकोषीय घाटे को पिछले वर्ष की अपेक्षा ६.५ से घटाकर ५.९% करना एक महत्वपूर्ण दूरदृष्टि परक कदम है जो यह दर्शाता हैं की भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रहा है जिसे २०२५_२६ के बजट में ४.५% रखने की व्यवस्था अभी से किया गया है जो आने वाले समय में देश की अर्थव्यवथा को और मजबूत करने का मोदी सरकार का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है केवल इतना ही नहीं ७५ हजार करोड़ से एक नए फ्रेट कॉरिडोर बनाने व देश की परिवहन व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए ९ हजार करोड़, एमएसएमई सेक्टर को क्रेडिट गारंटी योजना और २० लाख करोड़ पशुपालन डेरी एवं मत्स्य उद्योग को मजबूत करने की व्यवस्था यह बताती है की मोदी सरकार देश के व्यापारियों को हर कदम पर सहयोग करने के लिए संकल्पित है।
देश की सीमा सुरक्षा हो या नागरिक सुरक्षा उसको मजबूत बनाए रखने के लिए रक्षा बजट में पिछले वर्ष की अपेक्षा १३% की बढ़ोत्तरी कर ५.९४ करोड़ कर दिया जिससे देश रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने और सीमा पर तैनात सैनिकों को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बनाया जा सके साथ में गृह मंत्रालय को १.९४ लाख करोड़ के बजट का प्रावधान कर सरकार नागरिक सुरक्षा को भी और मजबूत करने के लिए संकल्पित है। 
सड़क परिवहन व राजमार्ग के नेटवर्क को और मजबूत करने के लिए २.७० लाख करोड़ का प्रावधान न केवल देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करेगा बल्कि बड़े पैमाने पर देश के कोने कोने में रोजगार का सृजन करेगा। फार्मा उद्योग में निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए १२५० करोड़ का प्रावधान, प्रधानमन्त्री गरीब आवास योजना में लगभग ६६% की बढ़ोत्तरी कर ७९ हजार करोड़ कर दिया गया जिससे अधिक से अधिक गरीबों को आवास मुहैया कराया जा सके। 
कार्बन एमिशन को कम करने के लिए संकल्पित मोदी सरकार फेम योजना को २२०० करोड़ से बढ़ाकर लगभग ५२०० करोड़ कर दिया जिससे इलेक्ट्रिक विहकल के उत्पादन को बढ़ावा मिले साथ ही इलेक्ट्रिक व्हीकल ने प्रयोग होने वाले उत्पादों जैसे लिथियम बैटरी पर टैक्स कम करके यह कोशिश किया है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदारों को सस्ते दामों पर गाडियां उपलब्ध हो पाए। नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन २०७० के लक्ष्य को पाने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ३५ हजार करोड़ का प्रावधान हरित भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है जो देश में हाईड्रोजन से चलने वाली पहली ट्रेन का परिवहन २०२४ तक शुरू करने का लक्ष्य प्राप्त करने में लाभदायी होगा।

मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चो की शिक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय स्थापित करने का प्रावधान किया है साथ ही साथ पंचायत स्तर पर पुस्तकालय को स्थापित करने के लिए ग्राम स्तर पर प्रोत्साहन करने की योजना बनाई गई है जो निःसंदेह कमजोर व मध्यम वर्गीय छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। ४७ लाख युवाओं को अगले तीन वर्षों में राष्ट्रिय अप्रेंटीशिप प्रोत्साहन योजना के तहत भत्ता का प्रवधान स्किल्ड बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ी सहायता साबित होगा।

जल ही जीवन है जल संरक्षण के लिए जनजीवन मिशन योजना के लिए ७० हजार करोड़ का प्रावधान कर घर घर नल से जल सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार का दृढ़ संकल्प स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। जनजातीय बच्चो के लिए एकलव्य आवासीय विद्यालय योजना के तहत २००० विद्यालयों की संख्या ५९४३ कर दिया गया जिसके तहत ३८००० नए शिक्षको के भर्ती का प्रावधान किया गया है जिससे पिछड़े जनजातीय समुदाय के बच्चो को देश के कोने कोने में अच्छी शिक्षा सुनिश्चित हो सके।  
इस प्रकार से यह बजट मोदी जी के सपनो का आत्मनिर्भर स्वावलंबी भारत की परिकल्पना को जमीनी स्तर पर स्थापित करने का एक सुदृढ़ बजट है जिसमे हर वर्ग के लिए लाभ को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है जिससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो रही है और विकास की रफ्तार भी तेज होती दिखाई दे रही है।

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Saturday, 14 January 2023

क्या भारत जोड़ो यात्रा के सहारे सत्ता वापसी का राहुल गांधी का जीवट प्रयास सफल होगा

भारत जोड़ो यात्रा अब लगभग अपने अन्तिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है वर्तमान में देश के पंजाब राज्य से गुजर रही है जहां सत्ता में पुनः लौटने के उद्देश्य से कांग्रेस ने 2019 में एक बड़ा किसान आंदोलन किसान बिल वापसी को लेकर किया था लेकिन उड़ता पंजाब के प्रभाव में वह निष्प्रभावी रहा और जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया लेकिन दुर्भाग्यवश मदहोश व्यक्तित्व को सत्ता मिल गईं जो पंजाब को और तीव्र गति से उड़ा रहा है फिलहाल यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव जम्मू काश्मीर में पहुंचने वाली है जहां अनुच्छेद 370 का प्रभाव खत्म हो चुका है और अब यह क्षेत्र दो हिस्सों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बंट चुका है तो निश्चय ही राहुल जी कुछ बड़ा उद्बोधन जम्मू कश्मीर की धरती से लाल चौक पर झण्डा फहराने के समय करने वाले होंगे जिसे सुनने को देश बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.........

निःसंदेह राहुल जी की यह यात्रा सुषुप्त अवस्था में पड़ी ए ओ हुम द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसे इंदिरा जी के नेतृत्व में एक नया नाम कांग्रेस (आई ) मिला, के कार्यकताओं को नई ऊर्जा और उम्मीद की किरण देगा लेकिन राहुल जी और उनके मेंटोर जयराम रमेश, रघुराम राजन व शुभचिंतकों का यह प्रयास 2023 में होने वाले 10 राज्यों मध्य प्रदेश राजस्थान छत्तीसगढ़ कर्नाटक तेलांगना मेघालय मिजोरम त्रिपुरा सिक्किम और जम्मू काश्मीर लद्दाख के चुनाव और 2024 के आम चुनाव में कितना लाभ दिला पाएगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा .............. 

जो भी हो 2012 से लगातार लगभग 40 से अधिक चुनावी शिकस्त खाने के बाद भी राहुल जी भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे है यह उनके मजबूत इरादे, इच्छाशक्ति, संघर्षशीलता और जीवटता का एक अनूठा उदाहरण है जो लगभग हासिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस पार्टी को केंद्रीय सत्ता में पुनः लौटाने में महत्वपूर्ण योगदान साबित हो सकती है लेकिन राहुल जी की यह यात्रा कितनी सकारात्मक परिणाम देंगी यह तो आगामी महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम से ही पता चल पाएगा और तभी यह तय हों पाएगा की कांग्रेस 2024 में केंद्रीय सदन में कितनी मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा पायेगी ........ 
फिलहाल कांग्रेस का केंद्रीय सत्ता में लौटाने की उम्मीद तो कम ही लग रही है क्योंकि जनता जनार्दन उतनी उत्सुकता और भारी मात्रा में भारत जोड़ो यात्रा से नही जुड़ पाई जितना आवश्यकता थी ......

वैसे मुझे लगता है यात्रा का नाम "भारत जोड़ों यात्रा" रखने की बजाए यदि केवल "भारत यात्रा" रखा होता तो ज्यादा अच्छा रहता क्योंकि "जोड़ो" शब्द ने जनता में नकारात्मक राजनीति का संदेश दिया और भारत के कई राज्य उत्तराखंड उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड पश्चिम बंगाल उड़ीसा नॉर्थ ईस्ट और गुजरात तमिलनाडु गोवा जैसे राज्यों में यात्रा का एक भी पड़ाव नहीं रहा जो राहुल जी के यात्रा रूट मैप से बाहर रह गए इस प्रकार भारत का लगभग आधा राज्य तो यात्रा से अछूता रह गया तो भारत जोड़ो का सकारात्मक निहतार्थ ही ख़त्म हो गया ....... और एक बड़ा प्रश्न यह कि भारत जोड़ो नाम का तात्पर्य देश जोड़ना था या जाति धर्म व विभिन्न सम्प्रदाय को, जो भी रहा हो जब देश के सभी राज्यों में राहुल जी अपना पड़ाव नहीं लगा सके तो भारत जोड़ो का कार्य कहा पूरा हो पाया और यदि कांग्रेस को लगता है की पूरा हुआ है तो दूसरा बड़ा प्रश्न यह कि सरदार पटेल जी ने 1947 में क्या अधूरा छोड़ा था जो कि अब पूरा करने की जरूरत पड़ी राहुल जी को जिसे नेहरु इंदिरा और राजीव जी नही कर पाए। यदि कुछ छूट भी गया था तो मनमोहन जी के नेतृत्व में यूपीए सरकार के दौरान 2004 से 2014 में क्यों पूरा नहीं कर पाए जबकि मनमोहन जी तो सोनिया और राहुल जी के नेतृत्व में ही कार्य कर रहे थे। फिर भी यदि भारत जोड़ने का कार्य करना ही था तो यात्रा का रूट मैप पूर्व में पश्चिम बंगाल से शुरू करके पश्चिम में गुजरात होते हुए महाराष्ट्र गोवा कर्नाटका केरल तमिलनाडु तेलंगाना आंध्र छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश राजस्थान हरियाणा पंजाब हिमाचल होते हुए अंतिम पड़ाव जम्मू रखना था जिसमे भारत के लगभग 90% हिस्से की यात्रा सुनिश्चित हो जाती और जनता में एक सकारात्मक संदेश जाता कि देश का एक जुझारू नेता देश की अधिकतम आबादी तक अपनी पहुंच बनाने का संभव प्रयास कर रहा है  जिससे अधिक से अधिक जनता जुड़ पाती .... ...... 
खैर यात्रा रूट मैप से उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड पश्चिम बंगाल उड़ीसा जैसे बड़े आबादी वाले भूभाग को बाहर रखकर देश की 65% आबादी से सम्पर्क न कर पाना कहा से भारत जोड़ो अभियान पूरा कर पा रहा है जहां से लोकसभा में लगभग 200 से अधिक सांसद सदस्य सदन का प्रतिनिधि करते है ....... .... 
वैसे राहुल जी ने यात्रा के दौरान महत्मा गांधी जी के रियल उत्तराधिकारी की भुमिका निश्चित तौर पर अदा की है राहुल जी के हर पड़ाव पर उनके मुख्य सहयात्रियों में अक्सर महिला सहयात्री ही ज्यादा रही जैसे गांधी जी अपने यात्रा में हमेशा दो चार महिला सह यात्रियों के कंधो पर हांथ रखकर चलते थे जो राहुल जी के विरोधियों के लिए एक अच्छा मसाला बन गया ....... इसके अलावा यात्रा के दौरान ठंड के मौसम में राहुल जी का एक पतले t-shirt में यात्रा करना जनता के लिए एक अच्छा मजाक बन गया है ठंड न लगने के कारण पर भी बहुत सारी चर्चाएं जनता में हो रही है .... .

जो भी हो यात्रा का निर्णय तो अच्छा था लेकिन यात्रा का नामकरण, यात्रा की शुरुवात स्थान, रूट मैप, महिला सहयात्रियों की संख्या, एक बड़े भूभाग को अधूरा छोड़ना, यात्रा का ड्रेस कोड, सब कुछ नकारत्मक रहा है जिससे मुझे लगता है यात्रा की सफ़लता अधूरी रही है ..............
फिर भी ईश्वर से प्रार्थना है की वो राहुल जी संघर्ष जारी रखने आत्मबल प्रदान करते रहे और राहुल जी का संघर्ष सफल हो। 


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Friday, 30 December 2022

इक्कीसवीं सदी में मां शब्द और मातृत्व के आस्तित्व को चरितार्थ करने वाली हीराबेन बा और नरेन्द्र मोदी

देश के यशश्वी प्रधानमंत्री की देवतुल्य माता हीराबेन मोदी जी की दिव्य आत्मा पंचतत्व से बने दैहिक जैविक शरीर में 100 वर्ष तक एक सशक्त महिला पत्नी और मां के रुप में समाज में एक मजबूत छवि स्थापित करने के पश्चात आज ब्रह्ममुहूर्त में गोलोक की यात्रा पर निकल गई जिनके मातृत्व प्रेम की चर्चा हम सब लोग जब से नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए है तब अक्सर सुनते रहें है खास तौर पर जब मोदी जी अपने जन्मदिवस पर उनसे आशीर्वाद लेने जाते या माता जी के जन्मदिवस पर उनसे मिलने उनका कुशलक्षेम पूछने जाते......
जो भी हो मोदी जी ने पिछले आठ सालों में पूरे देश की युवा पीढ़ी और समस्त जनमानस को मातृत्व प्रेम आशीर्वाद व अस्तित्व का जो संस्कार देश के प्रधानमंत्री के रूप प्रेषित किया है वो  निःसंदेह सराहनीय है और मैंने ऐसा महसूस किया है कि देश में मातृशक्ति के प्रति लोगो का दृष्टि पिछले कुछ वर्षों में बदला और सम्मान भी बढ़ा है। हीराबेन के सांसारिक जीवन के अंतिम यात्रा में एक प्रधानमंत्री के रुप में उनके अर्थी को कांधा देकर मोदी जी ने देश वासियों को अपने कर्तव्य निर्वहन का बहुत बड़ा संदेश दिया है।

वैसे तो सनातन संस्कृति में मातृत्व का बहुत आदर सत्कार और सम्मान एक जननी के रूप में वैदिक काल से ही बताया गया है लेकिन मोदी जी ने आज इक्कीसवीं सदी में मातृत्व के सम्मान में अपने व्यवहार से देश व समाज को जो सन्देश दिया है वह निःसंदेह प्रेरणादायक है।
मोदी के अनुसार हीराबेन ने अपने अंतिम मुलाकात में मोदी से "अपने कर्तव्यों को बौद्धिक क्षमता से और जीवन को शुद्धता से जीने का मंत्र दिया "

ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करे।
ॐ शांति। ॐ शांति। ॐ शांति।। 


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Wednesday, 14 September 2022

गर्व से कहो हम हिंदी भाषी है और हिंदी हमारी आत्मीय भाषा है

आज हिंदी दिवस है तो सोचा कुछ हिन्दी पर ही लिख दिया जाए ......
सही पूछिए तो हिन्दी के बिना कोई भी भारतीय अपनी भावनाओं को सही मायने में नहीं व्यक्त कर पता है .... हम ये भी कह सकते है दिल की बात प्यार दुलार अपनेपन की बात जितना सरल और अच्छे तरीके से हम अपने क्षेत्रीय भाषा चाहे वो पंजाबी गुजराती मराठी हो या बंगला हो, या उड़िया या तमिल तेलगू या हो अवधी या मैथिली या हो मलयाली या कन्नड़ में व्यक्त कर सकते है उतना आंग्ल या अंग्रेज़ी भाषा में नहीं ........
हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा में जो आत्मीयता या अपनापन है वो किसी और में नहीं उदाहरण के तौर पर देखे कि अंग्रेजी भाषा में केवल एक ही शब्द Uncle - Aunty से ही चाचा चाची मामा मामी फूफा बुआ मौसा मौसी सबको संबोधित कर दिया जाता है सब एक ही समान है चाहे बड़े हो या छोटे कोई सम्मान या प्यार या लगाव का भाव नहीं और मजेदार बात यह है की यदि सारे लोग एक साथ खड़े हो तो एक बड़ी फजीहत हो जाती है पांच बार बोलो और इशारे करो तब समझ आएगा की किस Uncle - Aunty को बुला रहे है आप .........
इसी प्रकार अन्य रिश्तों में है पिता जी माता जी कहने में जो आत्मीयता, प्यार व सम्मान का भाव हैं वो Daddy, Mummy कहने में नहीं है। वैसे भी Daddy Mummy दोनो शब्द मृत भाव को प्रेषित करते है कहने का अर्थ है की अंग्रेजी भाषा में हम माता पिता को ऐसे शब्दों से पुकार कर उनके सकारात्मक ऊर्जा को दूषित ही कर रहे होते है इससे उनकी आयु व स्वास्थ्य को प्राभावित कर रहे होते है आप...........
क्या अध्यापक को Teacher कहना और Teacher नाम का दारू पीना दोनों में कोई अपनापन लगाव व सम्मान है जो आचार्या जी या गुरु जी कहने में ..........

अब यदि बात करे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से प्रयोग होने वाले कुछ अन्य अंग्रेजी शब्दो का जैसे......
Congratulations, Best Wishes " हार्दिक बधाई मित्र, बहुत बहुत शुभकामनाएं "
Thank You को "आभार भाई साहब" / मित्र
Wish You Happy Birthday, God Bless You or Stay Blessed को " जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मित्र/ भाई, ईश्वर आपको दीर्घायु बनाए " कहते है।
आप महसूस करेंगे की ज्यादा अपनापन किस भाषा में लग रहा है।
इसी तरह किसी के मृत्यु पर दुःख प्रकट करने के लिए व्यवहारिकता निभाने के लिए लोग अक्सर RIP Rest in Peace बोल देते है या लिख देते है वैसे तो अब लोगों को social media के माध्यम से इस शब्द का सही अर्थ तो पता चल गया है फिर भी लोग यही शब्द प्रयोग करते है लेकिन जब यही हम अपने भाषा में बोले तो भाव बदल जाता है " बहुत दुखद घटना, ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करे" ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति।।
जरा पढ़ के देखिए कितनी आत्मीयता हिन्दी शब्दो में महसूस हो रहा हैं।
ऐसे बहुत उदाहरण है जिसकी हम यहां चर्चा कर सकते है लेकिन बहुत लंबा हो जायेगा
यहीं नहीं मैने स्वयं कई बार ऐसा महसूस किया है यहां facebook पर लिखते समय जब मैं अंग्रेज़ी में कुछ लिखता हूं तो वो भाव नहीं प्रेषित कर पता हूं जो हिन्दी भाषा में .......
मैं ही नही मैने बड़े बड़े पत्रकारों और अधिकारियो को देखा है वे अपने भाव हिंदी भाषा में ही व्यक्त करना ज्यादा सुगम समझते है जो स्वाभाविक ही है ......
यही नहीं आप संस्कृत के श्लोक को या हिन्दी गीत को सुनकर ज्यादा शांत और आनंदित महसूस करते है बजाय अंग्रेज़ी गीत के ..........
केवल यही नहीं मैने कई बार ऐसा देखा है जब job interview के लिए कोई उम्मीदवार HR Manager ya Team Manager के सामने ज्याता है वो कोशिश करता है की कितना जल्दी वह अंग्रेज़ी से हिंदी में संवाद शुरू कर सके क्यों कि हिंदी में वो अपने बातो कामों हुनर और उपलंधियो को ज्यादा सरलता से भावात्मक रूप से कह पता है और सामने वाले को प्रभिवित करने में उसे ज्यादा आसानी होती यही नहीं अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी में वो ज्यादा संवाद स्थापित कर पता हैं साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति से,..........

वैसे भी आप अंग्रेजी में लिखकर या बोलकर कुछ लोगो को प्राभावित तो कर सकते है लेकिन संवाद स्थापित करने वाले व्यक्ति को अपना तभी बना पाएंगे जब आप उनसे हिन्दी में भाव व्यक्त करेंगे, संवाद करेंगे, क्यो कि अपनी भावनाओं को आप जितनी सहजता सुगमता सरलता से हिंदी में व्यक्त कर पाएंगे जो सामने वाले के दिल और दिमाग में आपकी एक अच्छी छवि बना सके वो अन्य भाषा में संभव नहीं है
इस लिए मेरा तो यही कहना है कि अंग्रेजी भाषा को केवल official भाषा तक ही सीमित रखें और व्यावहारिक ब वक्तिगत जीवन में हिन्दी भाषा या मातृ भाषा को ही उपयोग में लाए तो ज्यादा अच्छा है और ये केवल अपने तक ही सीमित ना रखें बल्कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे बच्चो को भी समझाए की अंग्रेजी स्कूल और प्रतियोगिता तक ही सीमित रखें।
जय हिंद जय भारत ।।
आप सभी मित्रों को हम भारतीयों की मातृ भाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। 💐💐🙏

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Monday, 12 September 2022

राजधानी दिल्ली का राजपथ मार्ग अब कर्त्तव्य पथ के नाम से जाना जाएगा

देश की राजधानी दिल्ली के लुटियन जोन में स्थित राजपथ मार्ग अब "कर्त्तव्य पथ" के नाम से जाना जाएगा। निःसंदेह नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार का यह एक अच्छा निर्णय है। जो मार्ग से गुजरने वाले सांसदों मंत्रियों अधिकारियों व अन्य नेताओं को उनके कर्तव्यों का कम से कम रोज एक बार एहसास तो कराएगा ....
क्योंकि मैंने अक्सर बड़े बुजुर्गो से सुना है नाम का असर उससे जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है इसका एक उदाहरण हम ऐसे ले सकते है विवेकानंद जी का नाम भी "नरेंद्र" था और उन्होंने भारत को विश्व में वैदिक सनातन धर्म के प्रचार के माध्यम से एक उच्चस्तरीय कीर्ति दिलाई और अब देश के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र मोदी जी है जो अपना पूरा प्रयास भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे है इसका एक बड़ा उदाहरण है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग दिवस 21जून को मान्यता देना और विश्व स्तर पर योगदिवस का आयोजन होना।

इसी प्रकार हो सकता है राजपथ का नाम अब कर्तव्य पथ होने पर उसके प्रभाव स्वरुप मार्ग से गुजरने वाले देश के जिम्मेदार व्यक्तियों की भी कर्व्यप्रणायता जागृत हो और भारत का विकास और जनकल्याणकारी कार्य और तेजी से संभव हो पाए ... हालाकि इसके लिए दृढ़ इस्छाशक्ति व सही नियति का भी होना बहुत जरूरी है ......
फिर भी हम उम्मीद तो कर ही सकते है शायद नाम का असर प्रभावकारी हो और ..... .......... कुछ नया परिर्वतन देखने को मिले आने वाले समय में .......
वैसे भी राजपथ तो राजाओं के लिए होता था आजादी के बाद जब राजशाही व्यवथा खत्म हो गई तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजपथ की क्या आवश्यकता रही। अब तो उस परिक्षेत्र में रहने वाले और उस मार्ग से गुजरने वाले लोगो को तो अपने कर्तव्यों का याद रहना ज्यादा आवश्यक है। ना कि राजशाही का एहसास होना .......
वैसे भी शायद राजपथ नाम का ही असर था की देश तो राजशाही व्यवस्था से आजाद तो हो गया था लेकिन आजादी के बाद के नेता संसद में पहुंचने के बाद अपने आपको किसी राजा से कम नहीं समझते है ........ और साउथ ब्लाक नॉर्थ ब्लॉक में तैनात अधिकारियों का भी अमूमन यही हाल है .... ......

काश देश के सदन में उपस्थित सभी प्रतिनिधि और मंत्रालय में उपस्थित सभी अधिकारीगण ये समझपाते की राजपथ पर चलने से वे राजशाही व्यवस्था के अंश नही बल्कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कर्मयोधा है ...... और देश का विकास व जनता का भविष्य उनके हाथ में है जिसे सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है लेकिन राजशाही व्यवस्था का आनंद लेने के आदि बने संसद प्रतिनिधियों व
अधिकारियों ने ईमानदार तरीके से कभी काम ही नहीं किया।

उम्मीद है कि शायद कर्तव्य पथ का सकारात्मक प्रभाव लोगो पर पड़ेगा और देश के नेताओ व अधिकारियों के अंदर कुछ नया परिर्वतन देखने को मिलेगा।।

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Wednesday, 7 September 2022

कौन है ईश्वर ? क्या आपने कभी देखा

कौन चलाता है इस पूरे संसार को ? कहाँ है ईश्वर ? क्या कभी देखा, कभी महसूस किया ? नही ना 
आइए समझने की कोशिश करते है 

जब हम माँ के पेट में नौ महीने तक थे, कोई हाथ—पैर न थे कि हम भोजन कर ले। 
श्वास लेने का भी उपाय न था,
फिर भी जिए। 
न कोई दुकान चलाते, न कोई काम धंधा करते थे, फिर भी जिए।

नौ महीने माँ के पेट में हम थे, कैसे जिए ? 
किसकी मर्जी से जिए ?
तुम्हारी मर्जी क्या थी ?
कुछ नही पता ?
फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ , जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया, कैसे 
किसकी मर्जी से ?
अभी दूध को पीनेवाला
आने ही वाला है कि
पहले से ही दूध तैयार है,
किसकी मर्जी से ? कौन है वो ?
गर्भ से बाहर होते ही
तुमने सांस ली कभी इसके पहले
साँस नहीं ली थी 
जब माँ के पेट में
तो माँ की साँस से ही
काम चलता था—
लेकिन जैसे ही तुम्हें
माँ के पेट से बाहर होने का
अवसर आया,
तत्क्षण तुमने साँस ली,
किसने सिखाया ? कौन है वह 
जब की पहले कभी सांस नहीं लिया था
किसी पाठशाला में नहीं गए थे,
किसने सिखाया कि कैसे साँस लो ?
किसकी मर्जी से ?
जो तुम दूध पीते थे कौन पचाता था , तुम्हारे भोजन को ?
तुम्हारे ग्रहण किए हुए भोजन को हड्डी—मांस—मज्जा में कौन बदलता है ? कैसे तुम साल दर साल तुम बड़े होते जाते हो तुम्हारा शारीरिक सौष्ठव बनने लगता है।
किसने तुम्हें जीवन की
सारी प्रक्रियाएँ दी हैं ?
जब तुम थक जाते हो 
तो कौन तुम्हें सुला देता है?
और कौन जब तुम्हारी
नींद पूरी हो जाती है तो
तुम्हें उठा देता है?
कौन चलाता है चाँद—सूर्यों व अन्य ग्रह नक्षत्र को ? सूर्योदय से सूर्यास्त फिर सूर्योदय 
किसकी इच्छा से सब संभव हो रहा है सदियों से 
पौधों वृक्षों को हरा कौन रखता है ?
कौन खिलाता है पौधों वृक्षों में फूल फल को 
अनंत—अनंत रंगों के
और गंधों के ? 
कौन भरता उनमें सुगंध व स्वाद ?
संसार की प्राकृतिक गतिविधियों को कौन संचालित करता है 
कभी सोचा ? नहीं ना 
जिस स्रोत से ये पूरा ब्रह्माण्ड संचालित हो रहा है,
क्या उसके बिना सहारे के 
एक पल भी हमारी छोटी—सी जिंदगी चल सकेगी ?
कभी कार को ड्राइव करते सोचा है की थोड़े से अंदाज से गाड़ी कैसे निकल जाती है आगे 
कोई न कोई अदृश्य शक्ति ऊर्जा ड्राइवर को मार्गदर्शन कर रही होती है 
थोड़ा सोचो,
थोड़ा ध्यान करो।
अगर इस विराट संसार को
बिना किसी व्यवधान के 
चलते हुए हम देख रहे है,
सब सुंदर तरीके से चल रहा है,
कोई न कोई अदृश्य शक्ति तो है 
वो कौन है ? 
जिसे हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते है 
ईश्वर वही है जो 
ईश्वर दिखता नही देता बल्कि दिखाता है
ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है
ईश्वर बोलता नहीं है लेकिन जन्म के बाद बिना किसी गुरुकुल में गए बोलने की शक्ति देता है बोलना सीखता है 
इस संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है
जिसने इस सुंदर प्रकृति की रचना किया है 
वही तो ईश्वर है !!
इस संसार में हम तुक्ष्य मनुष्य पड़े पौधे नही उगा सकते
किसी को सांसे नही दे सकते इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम सबने कोरोना महामारी में देख और महसूस किया  
हम हमारे जैसे मनुष्य नहीं बना कर सकते न ही पुरुष के शरीर से महिलाओं की तरह प्रजनन की क्षमता उत्पन्न कर सकते है 
दूध तो गाय भैंस बकरी ऊट सब देते है लेकिन सभी की पौष्टिक क्षमता अलग अलग होता है क्यों कैसे कभी सोचा दूध का रंग तो लगभग समान सफेद ही होता है फिर स्वाद और तत्व सब में अगल अलग क्यों और कैसे 
कोई विज्ञान नहीं है इसमें 
विज्ञान से हमे केवल वही पता चल पा रहा है जो पहले से ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने रचना कर रखा है या जो उनकी इच्छा है और जब उनकी इच्छा है तभी विज्ञान कुछ खोज पता है अन्यथा वर्षो लग जाता है एक छोटी चीज भी खोजने में 
यही ईश्वर है मित्रों
इस लिए अपने आप को सनातन धर्म संस्कृति से जोड़े 
भगवान दिखाते नही , न हि दिखाते है वो तो केवल भाव देखते है भावना और प्रेम श्रद्धा व विश्वास को देखते है
स्वयं को भागवत भजन में लगाए जीवन सरल लगने लगेगा शांति मिलेगी लालच माया मोह से विशोभ होने लगेगा 
आप ईश्वर के नजदीक होने लगेंगे यही जीवन का मूल उद्देश्य है।।

जय श्री राम जय श्री सनातन धर्म।।


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Wednesday, 15 June 2022

युवा भारत के भविष्य को संवारने के लिए अग्निपथ के अग्निवीर योजना

अपने बच्चों को IAS, IPS, PCS, Bank Manager बाद में बनाइयेगा पहले उन्हे सशक्त संवेदनशील जुझारू व्व्यक्ति बनाए जिसके लिए भारत सरकार द्वारा आयोजित अग्निपथ के अग्निवीर नियुक्ति प्रक्रिया मे युवाओ की भागीदारी सुनिश्चित कराए।

कल रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने देश के तीनो सेनाओं के अध्यक्षों के साथ भारतीय सेना मे भर्ती के लिए #AgnipathKeAgniveer योजना की घोषणा किया है जिसके अंतर्गत साढ़े 17 वर्ष से लेकर 21 वर्ष तक के युवक युवतियों को सेना के तीनो अंग थलसेना, वायुसेना और नौसेना में 4 वर्ष के लिए भर्ती की जाएगी, जिन्हे #Agniveer के नाम दिया गया है। 

इस भर्ती प्रक्रिया के प्रथम चरण में आगामी 90 दिनों में, 40000 युवा व युवतियों को चुना जाएगा जिसके लिए शैक्षणिक योग्यता किसी भी विषय से केवल 10वी व 12वी पास रखा गया है । सभी चयनित अभ्यर्थियों को प्रथम वर्ष में 30000, द्वितीय वर्ष में 33000 तृतीय वर्ष में 36000 और चतुर्थ वर्ष में 40000 रुपए मासिक वेतन व अन्य भत्ता मिलेंगे। जिसमें से पूरे चार वर्ष मे 5.02 लाख फंड के रूप मे कटेगा और 4 वर्ष बाद जब इनको सेवा मुक्त किया जायेगा तब उन्हे कुल 10.04 लाख + 8% चक्रविधि व्याज जोड कर मिलेंगे क्योंकि कटे फंड के बराबर का योगदान भारत की सरकार भी उसे देगी जो लगभग 15 लाख के बराबर होगा। भारतीय सैन्य विभाग इन चुने हुए अभ्यर्थीयो मे से ही 25% लोगो को  सीधे भर्ती के माध्यम से चार साल के Performance के आधार पर Permanent नियुक्ति देगा बाकि शेष बचे लोग जब 4 वर्ष बाद भारतीय सेना छोड़ेंगे तब उनके पास योग्यता अनुसार शैक्षिक शिक्षा का सर्टिफिकेट तो मिलेगा ही जो सभी जगह मान्य होगा, साथ में जिस हुनर में वे प्रशिक्षित होंगे या अपनाया होगा उसका स्किल डेवलपमेंट का प्रमाणपत्र भी मिलेगा। भारत सरकार इतना करने के साथ ही उन्हें स्वयं का उद्यम शुरू करने के लिए बैंक से ऋण देने की संतुति देगी और उनके पास अपना खुद का 15-20 लाख बचत पूँजी होगी जिसके सहयोग से एक अच्छे नागरिक के रूप मे जीवन यापन कर सकेंगे और संभवतः कुछ लोगो को रोजगार भी उपलब्ध करा पायेंगे, साथ मे समाज मे गुमराह युवा पीढ़ी को प्रशिक्षण भी दे सकेंगे जो अच्छे सामाजिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।

मैं समझता हूँ यह घोषित योजना देश व समाज के लिए आने वाले वर्षो मे अभूतपूर्व सामाजिक बदलाव लाएगी व विकास परक सिद्ध होगी । यदि प्रत्यक्ष लाभों को देखे तो 10वी, 12वी या फिर भेड़िया धसान की तरह नकल के सहारे डिग्री पाए लोगो के लिए अपने स्किलों को पहचानने और उसमे भारतीय सेना के अनुरूप अनुशासन सीखने का यह स्वर्णिम अवसर है। जो भटके हुए युवाओ को एक तरफ आत्मविश्वास व स्वाभिमान देगा एवं स्वालम्बी बनाएगा वहीं जब ये युवा सेवामुक्त होगे तो कम ही उम्र में स्वतः लोगो को रोजगार देने वाला उद्यमी बनने का सुअवसर भी प्रदान करेगा।

अब इससे हट कर एक गंभीर विचार की तरफ बढ़ते है। इस योजना के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण भारतीय सेना में बढ़ते हुए पेंशन व सेना के स्थायित्व को बनाए रखने में बढ़ रहे खर्चों के दबाव को कम करने का भी है, लेकिन यह भारत सरकार की केवल एक समस्या के लिए निकला गया हल नहीं है बल्कि मोदी सरकार द्वारा आने वाले भविष्य की मजबूत सैन्य तैयारी का भी संकेत है। मेरा मानना है की भारत को क्षितिज पर आसन्न संकट के बादल दिखने लगे है। भारत एक लंबे अंतराल तक चलने वाले, भविष्य के एक बड़े महायुद्ध की पूर्व तैयारी कर रहा है। जो युद्ध सिर्फ भारत की सीमाओं या बाहर ही नहीं होगा बल्कि आंतरिक भी होने की संभावनाए है।

भारत इसीलिए कम समय में, भारतीय युवाओं की एक शृंखला तैयार कर रही है जो भारतीय सेना की छत्रछाया में अनुशासन व उद्यम में प्रशिक्षित होंगे। वे 75% युवा,  युवती जो सेना में समायोजित न हो कर भारतीय समाज में जायेंगे, वे आपातकालीन स्थिति में भारत के लिए एक प्रशिक्षित व रक्षित बल के रूप में उपलब्ध होंगे जो भारत को एक लंबे उथलपथल के काल में या फिर खिंचते हुए युद्ध की परिस्थित मे सरकार को अक्समिक भर्तियों के दोराहे पर नही खड़ा होना होगा क्योंकि उसके पास स्वयं में एक प्रशिक्षित वा अनुशासित मानव संसाधन उपलब्ध होगा। 

मैं समझता हूँ की भारत की जनता को आने वाले समय मे एक लंबे संघर्ष के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए क्योकि आने वाला समय विध्वंस से पुनर्निर्माण और स्थापित मूल्यों व व्यवस्थाओं के बदलाव का होगा। मेरा दृढ़ विश्वास है की इसमें भारत सफलतापूर्वक अवश्य निकल जायेगा लेकिन इसके लिए हमे मन, तन व धन तीनो ही स्पतर पर सरकार का सहयोग के लिए तैयार रहना चाहिए।

इसलिए मेरा देश के सभी प्रबुद्ध नागरिको मित्रो व महिलाओ से निवेदन है कि इस योजना मे स्वयं अपने परिवार के बच्चो को लाभ लेने लिए तो प्रोत्साहित करे ही साथ मे मित्रो रिश्तेदारो व आसपास के लोगो के बच्चो को भी इस भर्ती प्रक्रिया मे भाग लेने के लिए बोले।

आभार धन्यवाद 🙏🏻
जय हिंद, जय भारत।।

 #RatneshMishra #GlobalYouthAwardee2016

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Friday, 17 December 2021

विवाह एक संस्कार है जो पारिवार सामाज व परम्पराओ के अनुसार सम्पादित होता है ना कि कानून के मुताबिक।

देश के उच्च सदन मे महिलाओ के विवाह के संदर्भ मे शादी के लिए उम्र सीमा को निर्धारित करने का कानून पास हुआ जिसके अनुसार अब लडकियो की शादियाँ  21 वर्ष से पहले कानूनन अवैध मानी जाएगी। मेरे समझ से आज के समय मे ऐसे कानून का कोई औचित्य ही नही है क्योकि शादी विवाह एक व्यक्तिगत, पारिवारिक व विशेषकर सामाजिक विषय है जो कि परिवार की सामाजिक आर्थिक व परम्परागत व्यवस्थाओ पर निर्भर करता है। इसके भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि विवाह जैसी सामाजिक परंपरा का प्रावधान मनुष्य जीवन मे होने वाली शारिरीक विकास व प्राकृतिक आवश्यकता के अनुरूप किया गया है जो कि सनातन धर्म का एक प्रमुख संस्कार भी है और भारत जैसा देश, जो विश्व मे सबसे अधिक विभिन्नताओ भाषाओ व सांस्कृतिक परम्पराओ से भरा देश है जहाँ हर दस किलोमीटर पर बोली भाषा, बात व्यवहार बदल जाता जहाँ वैवाहिक रिश्ते दादा - दादी, बुआ- फूफा व अन्य सगे - संबंधियो, गुरुजनो के आशीर्वाद, ग्रह नक्षत्रो, कुटुंब के रीति-रिवाजो, परम्पराओ और भावनाओ से तय होता है वहाँ पर उम्र सीमा का बंधन सामाजिक संबंधो मे कवल असहजता ही उत्पन्न करेगा न कि कोई सुगमता होगी लोगो को इससे।

मेरा मानना है कि जब पहले से ही महिलाओ के लिए 18 वर्ष व पुरुषो के लिए 21 वर्ष की सीमा विवाह के लिए निर्धारित है और आजकल तो लडकियो की शादियाँ चाहे गरीब हो या अमीर सबके घर, समाज मे सामान्यतः देर से ही हो रही तो ऐसे मे समाज को कानून के बंधन मे बाधने की कोई आवश्यकता नही है ऐसे कानून का लोगो लाभ तो कुछ नही होगा बल्कि दुष्प्रभाव यह होगा कि समाज के दुष्टप्रवृत्ति के लोग समाज मे कई अन्य तरह की समस्याए पैदा करेगे इससे सभ्य व कमजोर लोगो के लिए जीवन मे असहजता ही उत्पन्न होगा। निस्संदेह आज भी समाज मे 5-10% ऐसे परिवार है जो अपनी लड़की की शादी 18-20 साल से कम उम्र मे कर रहे है लेकिन इसके पीछे उनकी अपनी परिवारिक सामाजिक व आर्थिक मजबूरियाँ भी है अन्यथा आज तो लगभग हर परिवार मे चाहे वो अमीर है या गरीब लड़की की शादी 22-23 साल मे और लड़के की शादी 25-27 साल मे ही हो रहा है तो ऐसे मे जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया है वो अपने आप पुरा हो रहा है। रही बात लडकिया के परिपक्वता की तो उन्हे ईश्वर व प्रकृति का ऐसा वरदान है कि वे लडको से कम ऊम्र मे ज्यादा समझदार व परिपक्व हो जाती है बाकि वास्तविक परिपक्वता तो मनुष्य जीवन मे अनुभव व समय से ही आती है इसके लिए किसी कानून की आवश्यक नही है।। 

वैसे अत्यधिक कानून से समाज मे असंतुष्टि व विषमताए ही पैदा होती है लोग अपनी स्वतन्त्रता को बाधित होने पर उसे तोडने का प्रयास करते है जिससे कानून व्यवस्थाओ पर असर पडता है। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को इस कानून को लागू करने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए। ।

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हम सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है

अक्सर हम लोगो को हिन्दुधर्म के अस्तित्व को लेकर चर्चा करते सुना व बहस करते देखा, खास तौर पर विपक्षी राजनीतिक पार्टी के नेताओ व समर्थको के द्वारा, कुछ लोग कहते है कि हिन्दु कोई धर्म ही नही है जो लोग ऐसा कहते मै ऐसे लोगो को हृदय से धन्यवाद देता हूँ कम से कम इसी वजह से सनातन धर्म पर लोग चर्चा तो शुरु किए और जो ऐसा कहते है वो बिल्कुल सही बोल रहे है हिन्दुधर्म तो केवल एक जीवन शैली है और अपने मूल सनातन धर्म का एक परिष्कृत रूप है जो पूरे भारतवर्ष ( हिन्द महासागर ) के परिक्षेत्र मे फैला था ना कि केवल भारत या हिन्दुस्तान की सीमा तक ही सीमित था बल्कि लगभग पुरे एशियाई परिक्षेत्र तक सनातन धर्म वृहदता लिए हुए था जिसे विदेशी आक्रान्ताओ ने नया नाम हिन्दुधर्म दे दिया जिससे की सनातन धर्म का अस्तित्व और वास्तविक पहचान धीरे धीरे समाप्त हो जाए  और संभवतः यह नाम इस परिक्षेत्र मे रहने वाले लोगो के जीवन शैली के आधार पर तय हुआ होगा लेकिन जो जीवन शैली इस परिक्षेत्र के लोगो का है वह पूर्णतः सनातन धर्म यानि वैदिक ज्ञान पर आधारित है जो एक प्रकार से प्राकृतिक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है।
मुझे लगता है सनातन धर्म को हिन्दुधर्म का नाम मुगल शासन के दौरान एक राजनीतिक कुचक्र के तहत प्रचारित प्रसारित किया गया और जैसे जैसे मुस्लिम आक्रंताओ ने हिन्द महासागर के परिक्षेत्र पर अपना कब्जा कर सनातन धर्म मानने वालो की संख्या कम करते गए वैसे वैसे सनातन धर्म मानने वाले लोग एक निश्चित सीमा मे ही सीमित हो गये तब यह धर्म केवल हिन्दुधर्म बनकर रह गया जो कि वास्तविक सनातन धर्म का ही एक जीवन शैली है।

वैसे भी मुगलो का यह उद्देश्य ही था कि सनातन धर्म को समाप्त कर दिया जाए जिसे उन्होने हिन्दुधर्म का नाम देकर बहुत हद तक सफलता भी हासिल कर लिया था और जो बचा रहा उसे काग्रेस पार्टी के लोगो ने समाप्त करने की कोशिश किया क्योंकि मुगलो को सनातन धर्म व संस्कृति की श्रेष्ठता एवं वैज्ञानिक महत्ता अपाच्चय था जबकि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो आदिकाल से मनुष्य जीवन क लिए ज्ञान व संस्कार का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है बाकि सब तो बस एक सम्प्रदाय है एक विचार धारा है एक जीवन शैली है इससे अधिक और कुछ भी नही। यह हम भारतीयो का दुर्भाग्य है कि जो गलतफहमी मुगल व ब्रिटिश फैला गए उसी को सभी विपक्षी पार्टी आज सह दे रही है उसी पर राजनीति कर रही है और हम है कि उनके खेल का हिस्सा बनकर हो हल्ला कर रहे है आनंद ले रहे है और हमारा मूल धर्म- सनातन धर्म विलुप्त हो रहा है जिसे अब एक बार फिर से जिंदा करने का प्रयास किया जा रहा है तो कुछ समुह के लोग धर्म की राजनीति का नाम दे रहे है। 
मेरा अनुरोध है सभी सनातनियो से अब तो जागिये नही तो हमारी आने वाली पीढ़ी अपने मूल धर्म को जान ही नही पाएगी और सब लोग अपने को हिन्दु की जगह सनातनी कहना शुरू करिए क्योंकि हम सब सनातनी है हिन्दु तो हमे बनाया गया है । सरकार से मांग करिए की सरकारी कार्यो व पहचान पत्रो मे प्रत्येक जगह धर्म के कालम मे हिन्दुधर्म हटाकर सनातन धर्म करे इसके लिए यदि बड़ा आन्दोलन करने की जरूरत हो तो उसके लिए माहौल तैयार करिए जातिवाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठिए सबको इकठ्ठा करिए जिससे हम सनातनी अपनी वास्तविक पहचान को विश्व से परिचित करवाए जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ये गर्व से कह सके की हम सनातनी है ।।
जय हो सत्य सनातन धर्म की ।। 

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