Tuesday, 4 February 2025

देश की राजधानी दिल्ली में वर्तमान सरकार की छुट्टी लगभग निश्चित कर चुकी है जनता

देश के राजधानी क्षेत्र दिल्ली में विधान सभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान होना है। आज 3 फरवरी को सभी प्रत्याशी अपने पक्ष में प्रचार अभियान को रोक मतदान कराने की तैयारी में जुट गए है। 
पिछले लगभग 11 वर्षों से दिल्ली में आप पार्टी की सरकार है और अरविंद केजरीवाल जी 3 बार मुख्यमंत्री पद का शपथ ले चुके हैं लेकिन दिल्ली के मतदाता केजरीवाल जी के कथनी और करनी में अंतर से अब स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं............
इसका सबसे बड़ा कारण है केजरीवाल जी ने जिन मुद्दों को आधार बनाकर आंदोलन किया जिस पर देश और दिल्ली की करोड़ों जनता ने इन पर विश्वास करके इनको मतदान किया उन मुद्दों पर इन्होंने कोई काम ही नहीं किया। दिल्ली में इनका सबसे बड़ा मुद्दा था दिल्ली के पूर्व सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार को उजागर कर उनको जेल भेजना, जमुना नदी की सफाई करवाकर उसे स्नान करने और पीने लायक बनाना और दिल्ली को स्वछ बनाकर विश्वस्तरीय शहर बनाना लेकिन पिछले दस सालों में इन तीनों मुख्य मुद्दों पर इन्होंने कोई कार्य ही नहीं किया और हमेशा हर समस्या को लेकर केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और दिल्ली नगर निगम को दोषी ठहराने का काम करते रहे। जबकि पिछले तीन सालों से दिल्ली नगर निगम पर आप पार्टी का ही मुखिया है इसके बावजूद भी दिल्ली के सीवर लाइन की कोई सफाई नहीं हुई और बारिश के दिनों में दिल्ली में भारी जलजमाव हो जाता है। वर्तमान में तो ये स्थिती है कि लोगों को पीने के लिए स्वछ जल भी सही समय पर नहीं मिल पा रहा है...............
जनता को अब ऐसा महसूस होने लगा है की केजरीवाल जी ने फ्री बिजली और पानी के नाम पर केवल बेवकूफ बनाया। देश से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए केजरीवाल जी ने आप पार्टी बनाया, भ्रष्टाचारी व्यवस्था को देश से समाप्त करने के लिए देश में लोकपाल कानून बनाने के लिए जनता का विश्वास जीता चुनाव लड़े लेकिन स्वयं और अपने सहयोगी मंत्रीयो के साथ खुद भ्रष्टाचार के मामले में जेल यात्रा किए। 
कोई सरकारी सुख सुविधा न लेने की कसमें खाए लेकिन स्वयं के लिए करोड़ों रुपए सरकारी धन खर्च करके महल बनवाया और Y श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था लेकर आम आदमी से खास आदमी बनकर जनता के बीच में दिल्ली के मुखिया कहलाने लगे। 
जनता अब केजरीवाल के दोगले चरित्र को पहचान गई है जिसका परिणाम यह होगा की इस बार आप सरकार दिल्ली की सत्ता से बाहर हो जाएगी। 
संभवतः बीजेपी इस बार दिल्ली में सरकार बना लेगी उसके कई कारण है ............
यदि हम दिल्ली की आधी आबादी यानी की महिला मतदाताओं की बात करे तो जो उच्च वर्ग की पढ़ी लिखी मतदाताएं है वे कजरीवाल जी के झूठी बातों और कर्मों को अच्छी तरह समझ चुकी है और मोदी जी के व्यक्तित्व से अधिक प्रभावित है तो उनका वोट इस बार केजरीवाल जी को मिलना नहीं है। कमजोर वर्ग और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली महिलाएं आप सरकार की शराब नीति से इतना दुखी है कि अपना घर बर्बाद होता देख कसम ले रखा है कि केजरीवाल को दिल्ली सरकार से हटाना है। 
युवा मतदाताओं की बात करे तो दिल्ली का युवा वर्ग भी केजरीवाल के झूठे वादों और दोगले चरित्र की मिमिक्री हर गली चौराहों पर कर रहा है तो ऐसे में युवा केजरीवाल के नाम पर वोट कैसे कर सकता है। 
दिल्ली सरकार के कर्मचारियों का सही समय पर वेतन न मिलने से कर्मचारी वर्ग भी नाराज है।
दिल्ली के व्यापारी वर्ग को दिल्ली सरकार से कोई खास लेनदेना है नहीं उसके लिए केंद्र सरकार के बजट का प्रभाव ज्यादा होता है जो कि उनके पक्ष में ही है तो व्यापारी वर्ग भी केजरीवाल को इस वोट करने वाली नहीं है।

जातीय समीकरण की बात करे तो ...........
जाट मतदाता जब इनको हरियाणा चुनाव में एकदम से बहिष्कृत कर दिया तो दिल्ली में कैसे वोट करेंगे इनके लिए
पंजाबी मतदाता पंजाब में आप पार्टी की सरकार बनाकर पश्चाताप कर रहे है तो दिल्ली में फिर से कैसे वोट करेंगे जब की केजरीवाल जी का पिछले दस सालों में चरित्र उजागर हो चुका है की इन्होंने दिल्ली की जनता को केवल बेवकूफ बनाया है
पूर्वांचल यानी उत्तर प्रदेश बिहार उत्तराखंड के मतदाताओं को भी अब केजरीवाल से ज्यादा विश्वसनीय और चरित्रवान नेता मोदी जी नजर आते है ऐसे में इनका मत भी इनको नहीं मिलने वाला है। 

उपरोक्त बातों से यह तो तय है कि आप पार्टी दिल्ली में पिछले दो चुनावों की अपेक्षा इस बार कम सीटें जीतेंगी इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि आप पार्टी के ही कई पूर्व विधायक और बड़ी संख्या में समर्थक अरविंद केजरीवाल और इनके सहयोगी मंत्रियों से बहुत नाराज है यानी कि आप पार्टी वर्तमान समय में समर्पित कार्यकर्ताओं के स्तर पर भी कमजोर नजर आ रही है। आप पार्टी के आठ वर्तमान विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर लिया है। 
बीते लोक सभा चुनाव 2024 में भी दिल्ली में आप प्रत्याशियों को 2020 के विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कम मतदान हुआ जब कि केजरीवाल जी के जेल जाने से मतदाताओं में भावनात्मक रुझान था। इसके बावजूद आप दिल्ली में एक भी लोक सभा सीट नहीं जीत पाई। 
केजरीवाल मनीष सिसोदिया से लेकर वर्तमान आप सरकार के अधिकतर मंत्री अपने विधान सभा क्षेत्र में  अपनी झूठी बातों से बहुत कमजोर नजर आ रहे है।
ऐसे में यह तो निश्चित है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में आप पार्टी अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करने जा रही है। पिछली बार की अपेक्षा आधी सीट भी जीतना मुश्किल दिखाई दे रहा है।
आइए अब बात करते है कि दिल्ली में बीजेपी सरकार बनने की संभावना कैसे अधिक दिखाई दे रहीं हैं ........
इसका सबसे बड़ा कारण है वर्तमान में जातीय और क्षेत्रीय समीकरण बीजेपी के पक्ष में है। महिला मतदाताओं का पूर्ण समर्थन इस बार बीजेपी को मिलेगा। पूर्वांचल के मतदाता इस बार केजरीवाल के झूठे वादे में नहीं फंसने वाले है। 
पिछली बार 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लगभग 15- 20 प्रत्याशी केवल 500 से 2000 मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे जो इस बार जीत जाएंगे। 
जनता का रुझान बीजेपी के पक्ष में होने से बीजेपी का मत प्रतिशत भी इस बार बढ़ेगा तो सीटों की संख्या भी बढ़ेगी। 
जिसके प्रभाव से बीजेपी इस बार दिल्ली विधानसभा में लगभग 35- 40 सीटें जीत जाएगी.....
हो सकता है त्रिकोणीय लडाई में कुछ और अधिक सीटें बीजेपी जीत जाए। 
कांग्रेस का पिछले चुनाव में खाता भी नहीं खुला था लेकिन इस बार कांग्रेस दिल्ली विधानसभा में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर लेगी त्रिकोणीय लडाई और आप सरकार के प्रति जनता की नाराजगी का लाभ कांग्रेस को भी होगा और कांग्रेस इस बार दिल्ली में 3- 5 सीटें जीत सकती है। 
अन्य और निर्दलीय को भी कांग्रेस की तरह लाभ मिल सकता है 1 या 2 सीट का 

इस प्रकार आप पार्टी को इस बार दिल्ली चुनाव में 25- 30 सीट से अधिक मिलने की संभावनाएं नहीं दिखाई दे रही है। 
ऐसा मेरा आकलन है बाकी .... 
5 फरवरी की शाम को मतदान के बाद बड़े बड़े राजनितिक विश्लेषकों का रुझान TV Channel पर हम सभी को देखने सुनने को मिलने लगेगा और 8 फरवरी को दिल्ली में अगली सरकार और मुखिया का पता भी चल जाएगा लेकिन मेरा आकलन नोट कर लीजिए परिणाम लगभग ऐसा ही होना चाहिए। 

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Thursday, 18 July 2024

किसी व्यक्ति का सोच और संस्कार उसे वास्तविक रूप से अमीर बनाता है न की ब्रांडेड पहनावा और लग्जरी गाड़ी

आज कल सोशल मीडिया पर अनंत अंबानी और राधिका के विवाह के चर्चे से भरा पड़ा है, हो भी क्यों न भारत के सबसे अमीर व्यक्ति के लड़के का विवाह हुआ है जो कई महीनों तक चला मेरी जानकारी में तो पूरे विश्व में अब तक किसी परिवार ने इस तरह इतने लंबे समय तक चलने वाले विवाह कार्यक्रम का आयोजन अंबानी परिवार से पहले तो नही ही किया था .........

विश्व का कोई जाना माना व्यक्ति नहीं बचा जो अनंत राधिका की शादी का हिस्सा न बना हो, देश का कोई भी ऐसा राजनीतिक परिवार, खिलाड़ी, व्यापारी, फिल्मी कलाकार या साधु संत नहीं बचा जो अंबानी परिवार के इस भव्य कार्यक्रम में न शामिल हुआ हो जो लोग इतने भव्य कार्यक्रम का हिस्सा बने वे अपने को सौभाग्यशाली समझ रहे है और जो किसी वजह से नहीं शामिल हो पाए वो स्वयं का अपमान समझ रहें होंगे, पता चला की आज के सबसे युवा संत हनुमान जी के उपासक बागेश्वर बाबा ऑस्ट्रेलिया में कथा करने गए थे उन्हें मुकेश और नीता अंबानी जी ने व्यक्तिगत चार्टर प्लेन भेजकर बुलाया अनंत राधिका को आर्शीवाद देने के लिए......... 

विवाह कार्यक्रम में जो पैसे खर्च हुए उसकी चर्चा तो हर गली कूचे सड़क पर रिक्शा चलाने वाले से लेकर ठेले पर सब्जी बेचने वाले और चाय की दुकानों पर चल रही है, खेत में धान की रोपाई कर रही महिला हो या रसोई में रोटी बनाने वाली सब जगह आजकल एक यही चर्चा चल रही है मुकेश अंबानी के बेटे की शादी में बहुत खर्च हुए ......... 
ज्यादातर लोगों  ने यह तो नोटिस कर लिया की जियो का रिचार्ज बढ़ाकर अंबानी ने शादी के खर्चे वसूल लिए लेकिन एयरटेल वोडाफोन ने भी उतना ही टैरिफ प्लान अपने उपभोक्ताओं का बढ़ा दिया यह बात किसी ने नोटिस नही किया, दुसरी ओर अंबानी परिवार ने इतने लंबे समय तक चले कार्यक्रम में हजारों करोड़ खर्च खरने के साथ साथ भारतीय संस्कृति परंपरा, खान पान और पहनावे से कोई समझौता नहीं किया ...... इस बात को बहुत ही कम लोगो ने समझने की कोशिश किया होगा ....... 

देश के सबसे प्रतिष्ठित परिवार के इस कार्यक्रम से आज के युवा पीढ़ी को सीखने के लिए जो सबसे बड़ी बात रही वह यह की अनन्त के बड़े भाई आकाश जो जियो के CEO है उनकी पत्नी श्लोका के संस्कार पहनावे और व्यवहार पूरे कार्यक्रम के दौरान एकदम सामान्य दिखाई दे रहे थे कोई दिखावा नहीं कोई बनावटीपन नही, श्लोका के दो बच्चे है बड़ा पृथ्वी जो चार साल का है लोगो का अभिवादन "जय श्री कृष्णा" बोलकर करता है यहां अपने आस पास के साधारण परिवार और सामान्य स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता Good Morning और Hello करने को सिखाते है यदि उनका बच्चा नमस्ते या प्रणाम कर ले तो अपनी बेज्जती समझते है ...... घर में सैकड़ों हेल्पर होने के बावजूद श्लोका अपने छोटे बच्चे को लगातार अपने गोद में ही लेकर नजर आ रही थी, सामान्य परिवारों में कोई महिला यदि पचास हजार की नौकरी कर रही हो या कोई सरकारी पद पर हो या उसका पति अच्छा व्यापार करता हो या अधिकारी हो तो एक पल भी वो अपने बच्चे को अपनी गोदी में नही उठाएगी, उनका ध्यान केवल लोगो को अपने महंगे कपड़े पर्स और मोबाइल दिखाने पर ही केंद्रित रहेगा ......... मैंने तो यहां तक देखा है कि कुछ अधिकारी गण की पत्नियां तो अपने बच्चों की हगिस भी सरकारी हेल्पर से साफ करवाती है क्यों कि उनको बदबू आती है।
अनंत की बहन ईशा अंबानी पीरामल ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक अजय पीरामल की बहु और आनंद पीरामल की पत्नी है जो पीरामल रियल एस्टेट और पीरामल फाइनेंस के CEO है आनंद पीरामल पूरे कार्यक्रम के दौरान इतने साधारण और समान्य दिखाई दे रहे थे कोई दिखावा नहीं कोई तामझाम नही और हमारे छोटे शहरों में एक साधारण सरकारी अधिकारी, व्यापारी या नेता के बच्चे ऐसा शो करते है जैसे उनके शहर में उनसे बडा व ताकतवर कोई और है ही नही ......

मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी जो आजकल भले ही आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे है लेकिन फिर भी उनकी व्यक्तिगत हैसीयत हजार करोड़ से उपर ही होगी लेकिन इनके बड़े बेटे अनमोल अंबानी जो आजकल Reliance Caipital के CEO है लेकिन शादी में ऐसे शामिल हुए जैसे कोई साधारण परिवार का लड़का हो जब कि अनमोल अंबानी अपनी बौद्धिक क्षमता और चतुराई से अनिल अंबानी की डूबी हुई कंपनीज को अब सवार रहे है जिसके परिणाम स्वरूप रिलायंस कैपिटल और रिलायंस पॉवर अब मंदी से उबर रही है 

मुझे तो लगता है अंबानी परिवार के इस विवाह समारोह से यदि कुछ सीखने लायक है तो वह है भारतीय संस्कार परंपरा का निर्वहन, मेहमानों व साधु संतो का सम्मान कैसे किया जाता है यह सीखना चाहिए क्यों की कोई व्यक्ति वास्त्विक अमीर दिखावे से नही संस्कारों से होता है परंपराओं के निर्वहन से होता है .......
इसका एक बडा उदाहरण यह देखिए हजारों विदेशों मेहमान शादी में शामिल हुए, पूरे कार्यक्रम के दौरान हजारों प्रकार के व्यंजन परोसे गए लेकिन मांसाहार और शराब को पूर्णरूप से वर्जित किया गया था..... 

परिवार का प्रत्येक सदस्य भारतीय परिधानों को ही पहना था महिलाओं के पहनावे में शरीर के अंगो का कोई प्रदर्शन नहीं था यहां सामान्य शादियों में दिसंबर और जनवरी के महीनों में भी महिलाएं कम से कम और भडकीले परिधानों को ही धारण करना पसंद करती है जिससे लोगो को पता चले की वो बहुत मॉडर्न और अमीर परिवार से है नही तो लोग गवार समझेंगे ........ 
पूरे शादी कार्यक्रम में ज्यादातर मौके पर केवल धार्मिक और सभ्य शब्दों वाले गाने ही बज रहे थे फूहड़ गानों का प्रयोग न के बराबर ही सुनाई दिया..... हमारे आपके सामान्य परिवारों में जब तक "शीला की जवानी" अंगूरी बदन, जलेबी बाई.... जैसे फूहड़ से फूहड़ शब्दों वाले भोजपुरी गानों पर घर की महिलाएं समाज के पुरुषों के सामने सड़क पर डीजे वाले के साथ नाचेंगी नहीं तब तक उनको लगेगा की कही लोग उन्हें गवार न समझ ले........

मुकेश और नीता अंबानी ने अनंत राधिका के भव्य विवाह समारोह से पूरे भारतीय समाज को यह संदेश दिया है की चाहें आप कितने भी अमीर क्यों न हो जाएं अमीरी गरीबी से व्यवहार पर फर्क नहीं पढ़ना चाहिए, संस्कारों और परंपराओं का सम्मान सर्वोपरी होना चाहिए। दोनो ने देश को बताया की आप गरीब है या अमीर, आपके सोच और संस्कार की श्रेष्ठता आपके व्यवहार में दिखाई देना चाहिए क्यों कि अमीर व्यक्ति के सोच और संस्कार यदि नीच है तो वह भी व्यवहार में दिख जाता है इसी प्रकार गरीब व्यक्ती यदि उच्च सोच और संस्कार का है तो वह भी उसके भाषा और व्यवहार में दिख जाता है। मतलब यह अमीरी के साथ साथ ऊंची सोच और संस्कार भी उच्च होने चाहिए नही तो केवल ब्रांडेड पहनावे और लग्जरी गाड़ी दिखाने से कोई अमीर नही होता।

यदि कोई व्यक्ति वास्तव में किसी अमीर परिवार से है तो उसके सोच और संस्कार भी उच्च होने ही चाहिए लेकिन यह सब घर के आध्यात्मिक माहौल के बिना संभव नही है जिस घर परिवार का आध्यात्मिक माहौल और खान पान उच्च कोटि का होगा वहा संस्कार और सोच भी उच्च ही होंगे जो अंबानी परिवार ने देश को प्रमाणित रूप से दिखा दिया।
दुर्भाग्यवश आजकल तो ज्यादातर घरों का खान पान ही  एकदम से बिगड़ गया है अच्छे अच्छे ब्राह्मण घरों के लड़के लड़कियां आजकल मांस  मदिरा और शबाब के शौकीन हो गए है, नेटफ्लिक्स पर थर्ड कैटेगरी के फिल्म देखने में व्यस्त है तो अध्यात्म और संस्कार कहा से आएगा....... 
अंबानी परिवार में शायद ही कोई शराब मांसाहार और शबाब का शौकिन होगा आध्यात्मिकता तो इतनी है की बिना भगवान को भोग लगाए घर में कोई भोजन भी नही ग्रहण करता है। 
हमारे साधु संत और वेद पुराण भी यही कहते है जिस परिवार में भागवत प्रेम होगा वही वास्त्विक रूप में संस्कार बसेगा अन्यथा केवल दिखावा के सिवाय और कुछ नही।

अफसोस यह है की आज की दुनिया केवल दिखावे की दुनियां है जितना अधिक दिखवा उतना अधिक वाहवाही और सम्मान।

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Monday, 29 April 2024

दो विचारधारा की लड़ाई में लोकसभा चुनाव २०२४ का परिणाम बीजेपी के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है

देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व लोकसभा चुनाव की चर्चा आजकाल हर गली मोहल्लों, नुक्कड़ों, गांव के चौपालों, चाय की गुमटियों और पार्कों में सुबह के सैर सपाटो से लेकर शाम के खाने के हाजमे के समय चहल कदमी करते हुए हर जुबान पर चल रहीं है। अभी तक दो चरणों के चुनाव हों चुके है विपक्षी पार्टियां पहले दो चरणों में हुए मतदान प्रतिशत को २०१९ की अपेक्षा कुछ कम  होने पर अपने विजय रथ को आगे बढ़ता देख रहे हैं लेकिन वह यह भूल जाते है की २००४, २००९ और २०१४ का समय कुछ और हुआ करता था तब सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया का बोलबाला न के बराबर था और आज सोशल मीडिया डिजिटल मीडिया की पहुंच जन जन घर घर तक युवा हो या घर में खाना पका रही महिला या बुर्जुग, हर हाथ में एंड्रॉयड मोबाइल, हर वर्ग के मतदाताओं को इतना जागरुक बना दिया है की अब किसी परिवार या गांव को प्रत्याशियों द्वारा अपनी झुठी बातों में फसाना बहुत कठिन हो गया है आज प्रत्येक मतदाता गूगल पर केवल एक वायस कमांड देकर प्रत्याशी और उनके नेता साथ में पूर्व के जनप्रतिनिधियों का सारा कच्चा चिट्ठा पता कर  प्रत्यासियों द्वारा खेल जा रहें सह मात के खेल को अब अच्छे से समझते है। आज प्रत्येक जागरूक मतदाता क्षेत्रीय उम्मीदवारों के व्यक्तिव से लेकर प्रधानमत्री पद तक के उम्मीदवार की चर्चा कर रहा है की कौन सबसे उपयुक्त व्यक्ति होगा क्षेत्र व देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए लेकिन इन सभी चर्चाओं के बीच इस बार लगभग ३० - ४० वर्षो बाद लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात यह देखने को मिल रही है की जनता - मतदाता, क्षेत्रवाद जातिवाद से ऊपर उठकर देशहित में राष्ट्र की गरिमा, भारतीय संस्कृति सभ्यता के संरक्षण, आर्थिक विकास, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को मतदान के लिए सर्वोपरि मान रहा है। यहीं कारण है की क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व अब धीरे धीरे कमजोर होता दिख रहा है। जो पार्टियां पिछले कई चुनावों से जातीय समीकरण बनाकर कई दशक से राष्ट्रीय राजनीत में अपना वर्चस्व बनाए हुए थे और केंद्रीय सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बाधा पहुंचाते थे जिनके परिणाम स्वरूप केंद्रीय सरकार को कई पंच वर्षीय में सही नेतृत्व न मिलने से देश आर्थिक रूप कमजोर होता चला गया लेकिन पिछले १५ सालों में युवा मतदाताओ की संख्या में हुई लगभग ४०% तक की वृद्धि से, सुझबुझ के साथ मतदान करने वालो की संख्या बढ़ गई हैं जिसकी वजह से अब क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद कमजोर हो रहा है जो एक मजबूत राष्ट्र के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इन बदलाव के कारण अब जनता केवल यह देख रही है की देश की मजबूती किस हाथ में सुनिश्चित हो सकतीं है। 
चूंकि देश की डेमोग्राफी पिछले २० वर्षो में इतनी बदल गई की अब चुनाव परिणाम युवाओं, महिलाओं और दो समुदायों के वोट की संख्या पर निर्भर हो गया जिसे देखते हुए राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को गुमराह करने के लिए २०२४ के आम चुनाव को क्षेत्रवाद व जातिवाद से अलग हटकर चुनाव का विषय दो समुदायों  की विचारधारा पर केंद्रित कर दिया है। जिससे वोटों का धुव्रीकरण किया जा सके। जहां ....
एक विचारधारा वर्तमान सत्ताधारी गठबंधन समर्थित है जो राष्ट्रीय अस्मिता ब सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुऐ हजारों वर्षों की गुलामी के धब्बों को मिटाने के संकल्प के साथ भारत की प्राचीन पहचान और गरिमा को आर्थिक प्रगति के साथ पुनः वापस लौटाने और भारत को विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्थ बनाने के लिए जनता से मतदान करने की बात कर रही है जिससे सबका साथ सबके विकास के नारे को सच साबित करते हुए भारत को २०४७ तक आज़ादी के सौवीं वर्षगांठ पर विकसित राष्ट्र के रुप में विश्व पटल पर मान्यता दिलाकर विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बना सके। 
और दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का गठबंधन अपने पार्टी की अस्मिता की रक्षा की लडाई में देश के एक समुदाय को अपना कोर मतदाता मानते हुए उनको गुमराह कर केवल उनके वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास कर अधिक से अधिक सीट जितना चाहता है जिससे पारिवारिक सत्ता की चाभी उनके हाथ में पुनः वापस लौट सके और देश की आज़ादी के समय से एक समुदाय विशेष के लिए निर्धारीत लक्ष्य को परीणाम तक पहुंचा सके इसके लिए मतदाताओं को लोक लुभावने वायदे किए जा रहे है हो सकता है इनके लुभावने वादे से प्रभावित होकर कुछ साधारण श्रेणी के मतदाता पैसे के लालच और क्षेत्रीय नेताओ के नाम पर वोट कर दे जिससे इनके पार्टी का वजूद तो बना रहेगा लेकिन सत्ता वापसी की संभावना बहुत ही कम ही नजर आ रही है।

आइए अब हम समझते है कि २०२४ का लोकसभा चुनाव परिणाम बीजेपी के पक्ष में कैसे संभव दिखाई दे रहा है। अब तक देश के विभिन्न राज्यों में दो चरणों में लगभग प्रत्येक राज्यों के ५ से १५ सीटों पर मतदान हो चुका है जिसमे कई राज्यों में २०१९ चुनाव की अपेक्षा मतदान प्रतिशत कम रहा जिसमे  मुख्यरुप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य है जहां  पिछले वर्ष की तुलना में लगभग २% मतदान कम हुआ है लेकिन कई राज्यों में मतदान प्रतिशत अधिक भी हुआ जैसे त्रिपुरा, असम, बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक। जिसका पिछले चुनाव परिणामों के आधार पर तुलना करते हुए विपक्षी पार्टियां और उनके समर्थक अनुमान लगा रहे है की इसका लाभ विपक्ष को मिलेगा। हो सकता है कुछ सीटों पर कम वोटिंग प्रतिशत का कुछ लाभ विपक्षी पार्टियों को मिल जाए लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकलता की विपक्ष वर्तमान सरकार को बदलने में सफल हो पाएगा। जिसके तीन कारण है पहला यह कि २०२४ का चुनाव पिछले चुनावों से भिन्न है यह चुनाव दो विचार धाराओं और राष्ट्रीय अस्मिता के मुद्दे पर हो रहा है न कि क्षेत्रवाद और जातिवाद पर, दूसरा कारण यह की वर्तमान चुनाव में युवा ब महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे जो यह अच्छी तरह समझते है की देश किस हाथ में सुरक्षित रहेगा और तीसरा कारण है विपक्षी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का दावेदार कौन है यह अभी तक निश्चित ही नहीं हो पाया है कांग्रेस के तरफ से कोई  हो ही नही सकता क्यों कि कांग्रेस अभी पार्टी के अस्तित्व की रक्षा में उलझा है जो केवल २३५ सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि पूर्ण बहुमत के लिए कम से कम २७५ सीटों की आवश्यकता है और इनके सहयोगियों में भी मोदी जी जैसा कोई बेदाग चेहरा है कोई नही जिसे जनता प्रधानमन्त्री पद के लिए पसंद करे। इस लिए जनता स्पष्ट रूप से यह समझ रही है की प्रधनमंत्री पद का श्रेष्ठ दावेदार कौन है और  कौन सी पार्टी सरकार बनाने में समर्थ है। वर्तमान समय में बच्चा हो या जवान, महिला हो या बुर्जुग सबके दिमाग में केवल एक ही चेहरा है प्रधानमत्री पद का वह है नरेंद्र मोदी जिसका चुनाव चिन्ह है कमल निशान और जनता प्रधानमन्त्री चुनने के लिए वोट कर रही है तो उसको पहला चेहरा मोदी ही नजर आता है। 

अब २०१९ चुनाव के चुनाव परिणाम और देश के विभिन्न राज्यों में हुए मतदान प्रतिशत को आधार मानते हुए आकलन करते है की सत्ता पक्ष और विपक्ष कौन बढ़त बना रहा है। 
शुरुवात करते है देश के मुकुट राज्य जम्मू कश्मीर से, २०१९ के चुनाव में यहां ३ सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और तीन ही सीटों पर विपक्ष को जब कि २०१९ की सरकार बनने के बाद पहला निर्णय मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा ३७० हटाने का बड़ा निर्णय लिया था और पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों नेताओ की कमर तोड़कर बहुत सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया सारे पत्थरबाज या तो घर में घुस गए या किसी काम धंधे में लग गए है पर्यटकों की राज्य में वृद्धि से रोजगार और आय के साधन में वृद्धि हुई है जिससे वहा के लोग अब बहुत खुश है और शान्ति महसूस कर रहे है इसके परिणाम स्वरूप बीजेपी अपनी तीन सीट बरकार रखते हुए हो सकता है एक दो सीट अधिक जीत ले यानी यहां बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम दिखाई दे रहा है हो सकता है एक दो सीट का फायदा ही मिल जाए। 
अब बात करते है हिमाचल, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली की 
हिमाचल में पिछली बार राज्य में बीजेपी सरकार थी और बीजेपी ने लोकसभा की चारो सीटें जीती थी अब राज्य सरकार बदल गईं है लेकिन कांग्रेस पार्टी के क्षेत्रीय नेताओ में वर्चस्व की लड़ाई और हिमाचल में विकास कार्यों की राह डगमगाने से जनता सीख लेते हुए सम्भवतः फिर से चारो सीटें बीजेपी कोटे में डाल सकती यदि बहुत अंतर आया भी तो एक या दो सीट का इससे ज्यादा नहीं जिसकी सम्भावना कम ही है तो यहां भी बीजेपी को बहुत नुकसान नहीं हो रहा हैं। 
पंजाब में बीजेपी को पिछली बार केवल दो ही सीट मिले थी और कांग्रेस को ९ सीटें क्यों की वहा तब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर के सम्मान का सवाल था लेकिन अब पंजाब में आप की सरकार है और मुख्यमंत्री भगवंत मान जिनका चरित्र बहुत अच्छा नही है और कार्यशैली भी जनता को समझ नही आ रही है फिर भी आप को पिछली बार की अपेक्षा कम से कम २- ३ सीट का लाभ मिल सकता है यानी आप यहां ५- ६ सीट जीत सकती है। कैप्टन अमरिंदर अब यहां बीजेपी में शामिल हो चुके है तो कांग्रेस को पंजाब में सबसे ज्यादा लगभग ५-६ सीटों का नुकसान होगा इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा जिससे बीजेपी को कम से कम २ सीटों का फायदा हो सकता है। इस तरह सम्भवतः इस बार बीजेपी यहां ३-५ सीट जीत सकती है। 
हरियाणा में पिछली बार बीजेपी दस की दसों सीटें जीती थी लेकिन इस बार २-३ सीटों का नुकसान हो सकता है और कांग्रेस अपना खाता खोल लेगी राज्य में और हो सकता है एक सीट हरियाणा जनहित पार्टी के खाते में चला जाय।
अब यदि दिल्ली की बात करे तो दिल्ली में विपक्ष के पास कोई मजबूत उम्मीदवार न होने से नरेंद्र मोदी के सामने कोई लोक लुभावन जुमला काम नही करेगा यहां भी बीजेपी को सात में से ५ सीटें मिलना तय है हो सकता है फिर से सातों सीट बीजेपी ही जीते।

इस प्रकार पूरे नॉर्थ क्षेत्र में बीजेपी को बहुत ज्यादा नुकसान की सम्भावना नहीं दिख रही है और ना ही कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा। ज्यादा सम्भावना है की बीजेपी इस क्षेत्र में पिछली बार की अपेक्षा एक दो सीट अधिक जीत ले।

अब देखते है उत्तर मध्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ 
वर्तमान में चारो राज्यो के बीजेपी की सरकार है जिसमे उत्तर प्रदेश में पिछली बार बीजेपी को ६२ सीट मिली थी इस बार यहां बीजेपी ३- ५ सीटें अधिक जीत सकती है और कुल मिलाकर अपने सहयोगियों के साथ ६८- ७० सीटों का आंकड़ा पहुंच सकती हैं। सपा को ७- १० सीटें मिल सकती है, कांग्रेस हो सकता है अपनी दोनो परंपरागत सीटें अमेठी व रायबरेली खो दे लेकिन वोटों के धुव्रीकरण और कुछ सीटों पर उम्मीदवार की छवि व त्रिकोणीय लड़ाई में एक दो सीट पा सकती है लगभग यही हाल बीएसपी का होगा जो पिछली बार दस सीटें जीती थी इस बार सीधे ८ सीटों का नुकसान हो सकता है सम्भावना है की बीएसपी का खाता भी नहीं खुले जिसका सीधा लाभ बीजेपी और सपा को मिलेगा। लेकिन कांग्रेस की तरह बीएसपी को भी हो सकता है १-२ सीट मिल जाए।

उत्तराखंड में सम्भवतः बीजेपी इस बार फ़िर से पांचों सीटें जीत जाएंगी क्यों की कांग्रेस के उम्मीदवार कमजोर है और पुष्कर धामी व मोदी जी द्वारा किए जा रहे कार्यों से पहाड़ की जनता संतुष्ट दिख रही है। 
मध्य प्रदेश में पिछली बार बीजेपी लगभग सभी 29 में से 28 सीटें जीत ली थी कांग्रेस केवल एक ही सीट जीत पाई थी इस बार भी लगभग यही परिणाम रहेगा क्यों की यहां केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच लडाई है यदि त्रिकोणीय लडाई होती तो शायद कांग्रेस को एक दो सीट का फायदा मिल जाता और कांग्रेस में यहां बड़े नेताओं कमलनाथ व दिग्विजय की टीम में आपसी मतभेद का लाभ भी बीजेपी को मिलेगा और इस बार भी बीजेपी मध्य प्रदेश की लगभग सभी सीटें जीत लेगी। 
छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा एक दो सीट का फायदा मिलेगा हो सकता है यहां भी बीजेपी सभी सीटों को जीत ले क्यों की इस बार यहां बीजेपी की सरकार है और कांग्रेसी नेताओं में ऊर्जा व उत्साह की कमी नजर आती है तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सम्भवतः अपनी राजनांदगांव की सीट भी न जीत पाए।

इस प्रकार इस क्षेत्र में भी बीजेपी को बहुत नुकसान होता नही दिखाई दे रहा है बल्कि बीजेपी इस क्षेत्र से २०१९ चुनाव की अपेक्षा कम से कम ७- १० सीटे अधिक जीतेगी। 

अब बात करते है पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों की 
बिहार झारखंड ओरिसा बंगाल असम  त्रिपुरा अरूणांचल मणिपुर मेघालय नागालैंड सिक्किम की ..... 
यदि हम बिहार की बात करे तो यहां परिणाम पिछली बार की अपेक्षा एकदम अलग हो सकता है यहां बीजेपी और एनडीए गठबंधन दोनो को नुकसान होगा जिसका लाभ राजद व कांग्रेस को मिलेगा। जिसके तीन कारण है पहला यहां पीएफआई और कांग्रेस की रणनीति काम कर सकती है क्यों की बिहार की कई सीटों पर समुदाय विशेय के मतदाता अधिक संख्या में है दूसरा नीतीश कुमार की पलटू राम वाली छवि से यादव और कुछ ओबीसी समाज भी नाराज है तीसरा कुछ सीटों पर बीजेपी और एनडीए गठबंधन का सही प्रत्याशी न मिलने से जनता नाराज है जिसका सीधा लाभ आरजेडी उम्मीदवारों को मिलेगा। पिछली बार बिहार की लगभग सभी सीटें एनडीए को मिली थी केवल एक सीट कांग्रेस को लेकिन इस बार यहां एनडीए २५ - ३० सीट के आस पास रहेंगी, यहां  इस बार ६- ८ सीट राजद को जाने की सम्भावना लग रही है, कांग्रेस २ सीट पा सकती है और दो सीटें पर निर्दलियों का भाग्य खुल सकता है। इस प्रकार बिहार में बीजेपी को लगभग ३ सीट और एनडीए गठबंधन को १० -१२ सीट का नुकसान निश्चित है। 
झारखंड में बीजेपी को न बहुत ज्यादा नुकसान होगा और न ही बहुत फायदा यहां भी बीजेपी २०१९ के परिणाम को दोहराएगी। 
ओरिसा में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा इस बार २- ३ सीट अधिक मिल सकती है हालंकि यहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की जनता पर बहुत गहरी पकड़ है और ओरिसा के विकास के लिए काम भी करते है फिर भी मोदी का काम जनता को वहा भी अच्छा लग रहा है और मोदी जी ने देश को जनजातीय महिला राष्ट्रपति देकर जन जातियों का बहुत मान बढ़ाया है इस लिए ओरिसा की जनता भी मोदी को बड़े पैमाने पर वोट कर सकती है। यहां कांग्रेस का जनाधार और पार्टी की जड़े लगभग कमज़ोर हो चुकी है इस लिए यहां बीजू जनता दल और बीजेपी का ही बोलबाला रहेगा। यहां बीजेपी पिछली बार 8 सीटें जीती थी और बीजेडी 12 हो सकता है इस बार यह परिणाम उल्टा हो जाय।
बंगाल का परिणाम भी इस बार एक दम बदल सकता है हो सकता है यहां बीजेपी २२- २५ सीट जीत जाए और ममता दीदी २० के अंदर आ जाए क्यों कि यहां भी केवल बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही लडाई है। यहां भी ममता दीदी का विशेष समुदाय के प्रति प्रेम की वजह से वोटों का धुव्रीकरण हो चुका है जिससे हो सकता था बीजेपी क्लीन स्वीप कर जाती लेकिन ममता दीदी के सत्ता में होने से तृणमूल के कार्यकर्ताओ का मनोबल बहुत मजबूत है और प्रशासन की भी कुछ मजबूरियां है जिससे ममता दीदी अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में है  फिर भी परिणाम बदलने की पूरी सम्भावना है। हों सकता है कांग्रेस भी अपनी यहां अपनी पिछली तीनों सीट बरकार रखें। 
यदि असम की बात करें तो यहां बीजेपी पिछली बार ९ सीटें जीती थी और कांग्रेस ३ सीटें और दो सीट अन्य को गया था। चूंकि यहां हेमंता विस्वास मुख्यमंत्री है और जनता के बीच में अच्छी पकड़ रखते है कुछ क्षेत्रों के मुस्लिम मतदताओ पर भी इनका अच्छा प्रभाव है इस लिए यहां भी बीजेपी को नुकसान कम दिखाई दे रहा है बल्कि हो सकता बीजेपी इस बार असम की सभी सीटें जीत ले क्यों की NRC और CAA लागू होने से वहा के मूल निवासियों को इसका बड़ा फायदा होगा और मतदान प्रतिशत भी बहुत अच्छा है।

पूर्वोत्तर राज्यों के लगभग ११ सीटों में ५ - ६ सीट बीजेपी को मिलना तय है। त्रिपुरा, सिक्किम और अरूणांचल की सभी सीटें बीजेपी जीतेगी हो सकता है इस बार मणिपुर में बीजेपी को एक सीट का नुकसान हो जाए। 
इस प्रकार इन क्षेत्रों में भी बीजेपी को नुकसान की सम्भावना बहुत कम है बल्कि बंगाल और ओरिसा और अन्य क्षेत्रों से कुल मिलाकर २०१९ की अपेक्षा १० सीटें अधिक मिल सकती है। 

अब बात करते है दक्षिण भारत की 
तेलंगाना आंध्र तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरला और कर्नाटका की तो इन राज्यों में पिछले पांच सालों में मोदी जी ने अपने प्रभाव को बहुत तेजी से बढ़ाया है और इस बार बीजेपी ने आंध्र में अपने गठबंधन को और मजबूत किया है जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता दिख रहा है। हालांकि तेलंगाना और कर्नाटका में इस बार सरकार कांग्रेस की है जिससे बीजेपी को कर्नाटका में थोड़ा नुकसान होगा क्यों कि यहां भी कांग्रेस विधान सभा चुनाव से ही वोटों का धुव्रीकरण करने का प्रयास कर रही है हालांकि इसका लाभ कुछ सीटों पर बीजेपी को भी मिल सकता हैं। 
तेलांगना में बीजेपी को पिछली बार की अपेक्षा २ सीट अधिक मिल सकती है कुल लगभग ६ सीटे बीजेपी को मिलेगी। यहां टीआरएस को सबसे अधिक नुकसान और कांग्रेस को सबसे अधिक फायदा दिखाई दे रहा है क्यों दक्षिण राज्यों में वोटरों को पैसे के दम पर बड़े पैमाने पर प्राभावित किया जाता है चुंकि इस बार तेलांगना में कांग्रेस की सरकार है तो कांग्रेस इसका लाभ उठाएगी। जिससे सबसे अधिक सीट यहां कांग्रेस को ही मिलेगा। 

आंध्र में इस बार बीजेपी पिछली बार की गलती को सुधारते हुए टीडीपी और पवन कल्याण के जन सेना से गठबंधन किया है, वर्तमान में जगन रेड्डी की भ्रष्टाचारी सरकार से यहां की जनता बुरी तरह त्रस्त है, सड़के बदहाल हो चुकी है, सरकारी दफ्तरों में भ्रटाचार चरम पर है, सरकारी कर्मचारियों को ५-६ महीनों तक सैलरी का इंतजार करना पड़ रहा है, हालंकि जगन निचले तबके के लोगों को अच्छा खासा पैसे हर महीने सरकारी खजाने से बाट रही है फिर भी यहां की भी शिक्षित जनता जगन को बदलना चाह रही है इस लिए जहां पिछली बार जगन रेड्डी की पार्टी को २६ सीटों पर जीत मिली थी और चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी को केवल ३ सीटे, बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था लेकिन इस बार यहां भी मोदी जी, पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू का प्रभाव काम करेगा और जगन रेड्डी की पार्टी १०-१५ सीटों पर सिमट जाएगी जिसका सीधा १० सीटों का लाभ टीडीपी को मिलेगा पवन कल्याण की जनसेना भी यहां २ सीट पा सकती है और बीजेपी भी ३-४ सीटे जीत लेंगी।
तमिलनाडु में इस बार जनता बड़ा बदलाव के मूड में है मोदी के राष्ट्रभक्ति व सनातन भक्ति से यहां की जनता बहुत खुश हैं इस लिए यहां डीएमके को बड़ा नुकसान हो सकता है और बीजेपी इस बार यहां लगभग ५ से अधिक सीटें जीत सकती है।
पुडुचेरी में में केवल एक ही सीट पिछली बार बीजेपी को मिली थी इस बार भी बीजेपी यहां फिर से जीत लेंगी। 
कर्नाटका में इस बार बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा क्यों कि यहां कांग्रेस सत्ता में है मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट कर अधिक सीटें जीतना चाह रही है। हो सकता है यह २०१९ की अपेक्षा बीजेपी को ३-५ सीटों का नुकसान हों जाए।
केरल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और यहां भी सीधे सीधे हिंदु और मुस्लिम वोटरों का धुव्रीकरण किया जा रहा है फिर भी बीजेपी यहां भी इस बार अधिक सीटें जीतेंगे। यहां पिछली बार बीजेपी केवल २ सीट ही जीत पाई थी लेकिन इस बार मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी लगभग ५ सीटे जीत सकती है क्यों कि राज्य के कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओ में आपसी समन्वय कम है जिसका प्रभाव राहुल गांधी की वायनाड सीट पर भी देखने को मिल रहा है और कांग्रेस के दमदार नेता ए  के एंटोनी का बेटा खुद बीजेपी के सिंबल पर केरल में चुनाव लड़ रहा है जिसकी वजह से बीजेपी उम्मीदवारो को बढ़त मिलेगी।

इस प्रकार दक्षिण भारत में इस बार बीजेपी क्षेत्रीय पार्टियां को कमजोर करते हुए अब तक का सबसे बड़ा लाभ लेगी और पिछली बार की अपेक्षा लगभग १०-१२ सीटे अधिक जीत सकती है हालांकि कांग्रेस को भी दक्षिण में पिछली बार की अपेक्षा ५ - ७ सीट अधिक मिल सकती है खास तौर पर जहां जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा होंगे।

आइए अब बात करते है पश्चिम क्षेत्र, महाराष्ट्र गोवा गुजरात और राजस्थान की 
यहां चारों राज्यों में बीजेपी की सरकार है जहां पिछली बार राजस्थान और गुजरात में बीजेपी लगभग सभी सीटें जीत गई थी, महाराष्ट्र में लगभग २२ सीटे अकेले बीजेपी जीती थी और गोवा में एक सीट बीजेपी को मिली थी एक कांग्रेस के पक्ष में चली गई थी।
इस क्षेत्र में भी लगभग २०१९ के समान ही परिणाम आने की संभावना है बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं होगा लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी २ या ३ सीटे अधिक ला सकती है क्यों की महाराष्ट्र में विपक्ष लगभग ख़त्म हो चुका है कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के कई बड़े बड़े धुरंधर नेता बीजेपी का दामन थाम चुके है।
हो सकता है यहां पर शिवसेना शिंदे गुट को उतना सीट न मिल पाएं जीतना पिछली बार शिवसेना उद्धव को मिला था क्यों की शिवसेना के पुराने कार्यकर्त्ता शिंदे गुट के मूल शिवसेना से विरोध की वजह से नाराज़ है। 

अब यदि पूरे देश के चुनाव परिणाम की बात करे तो बीजेपी को केवल हरियाणा बिहार कर्नाटका में स्पष्ट रुप से कुछ सीटों का नुकसान होता दिखाई दे रहा है लेकिन दक्षिण भारत में तमिलनाडु आंध्रा, बंगाल ऑरिसा और उत्तर प्रदेश में निश्चित रूप से बीजेपी को लाभ होता दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी को २०१९ की अपेक्षा पूरे देश से यदि कुछ क्षेत्रों में १५ - २० सीटों का नुकसान होता दिख रहा है तो कुछ क्षेत्रों से जहां पिछली बार कम सीटें आए थे वहा से लगभग २०- ३० सीटों का लाभ भी दिख रहा है क्यों की वोटिंग प्रतिशत में पिछली बार की अपेक्षा इस बार बहुत ज्यादा अंतर नही दिख रहा है बस इतना है की कुछ राज्यों में कम मतदान हो रहा है तो कुछ राज्यों में अधिक मतदान भी हो रहा है। इस लिए मतदान प्रतिशत बीजेपी के सीटों पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगा। कम ज्यादा मतदान का लाभ हानि केवल उन्हीं सीटों पर प्रभाव डाल पायेगा जहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा है और हिंदू मतदाता घरों से बाहर नहीं निकले। इस प्रकार बीजेपी इस बार भी लगभग २०१९ के परिणाम के आसपास ही ३०० या ३१० सीटें जीतकर फिर से मोदी जी के नेतृत्व में सरकार बनाएगी और एनडीए गठबंधन कुल मिलाकर ३७५+ सीटों का आंकड़ा पार कर जाएगी
लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व कमजोर होगा जिसका फायदा सीधे सीधे कांग्रेस को मिलेगा और मुस्लिम मतदाता पूरे देश में सीधे सीधे कांग्रेस को वोट करेंगे जिससे कांग्रेस की सीटे भी इस बार कुछ बढ़ सकती है और पिछली बार की अपेक्षा ५- १० सीटों का लाभ मिल सकता है लेकिन कांग्रेस को इस बार भी ६० - ७० सीटों का अकड़ा पार करना बड़ा कठिन होगा। 

यह रहा चुनाव का रुझान लेकिन जिस तरह से पूरे देश में मोदी जी से जनता का व्यक्तिगत लगाव बढ़ा है हर वर्ग में, खासतौर पर महिलाओं, युवाओं में, दक्षिण भारत राज्यों में तो ऐसा लगता जैसे उनको कोई देव पुरुष मिल गया हो जो देश को विश्व में सबसे मजबूत राष्ट्र बना देगा यदि यह फैक्टर काम कर गया और बाकी चरणों वोटिंग प्रतिशत अच्छा रहा तो कोई बड़ी बात नहीं की मोदी जी का नारा अबकी बार ४०० सौ पर सत्य हो जाएगा। 

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Friday, 23 February 2024

विकसित भारत के लिए युवाओं की भूमिका

आईए हम बात करते है अपने देश भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने में यूवाओ की भूमिका पर, विषय पर आगे बढ़ने से पहले हम देश की आर्थिक स्थिति पर थोड़ा नजर डाल लेते है क्या देश की वर्तमान स्थिति ऐसी है की भारत विकसित राष्ट्र बन पाएगा। भारत निश्चित रूप से एक विकसित राष्ट्र बन सकता है क्यों की आज देश में एक मजबूत एवम पूर्ण बहुमत की सरकार है। इसका सबसे बड़ा प्रणाम इस बात से मिलता है कि कोरोना काल के बाद से जहां विश्व के लगभग सभी यूरोपीय, पश्चिमी और एशियन देशों की अर्थव्यव्स्था लगातार नीचे की तरफ जा रही है अमेरिका ब्रिटेन चीन जापान जैसे आर्थिक रूप से मजबूत देशों की सालाना आर्थिक विकास वर्तमान में केवल 2-3 % की दर से आगे बढ़ रही है वही हमारे देश भारत की अर्थव्यवस्था 6-7% की दर से बढ़ रही है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेषज्ञों का मानना है की आने वाले वर्षो में भारत की अर्थ व्यवस्था लगातार इसी गति से आगे बढ़ती रहेगी। इसके ठीक विपरीत पूरे विश्व में सालाना महंगाई दर जहां 7-8% की दर से बढ़ी है वहीं भारत में मंहगाई दर संतुलित होकर 3-4% पर आ गई है। वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन डॉलर पहुंच गया है और लगातार तेज गति से प्रति वर्ष वृद्धि कर रहा है। आज भारत, रूस, यूएई, मॉरिशस, श्रीलंका बांग्लादेश, फिजी,कतार, इजरायल, मलेशिया जैसे लगभग 15 महत्वपूर्ण देशों के साथ भारत अपना व्यापार अपनी मुद्रा रूपए में करने की सहमति बना चुका है और कई अन्य देशों से बातचीत का दौर जारी है भारत की प्रगति और मजबूत भविष्य को देखते हुए बहुत सारे देश भारत के साथ रुपए में व्यापार करने के लिए इच्छुक है। 
आज हम आत्मनिर्भर, स्वच्छ और ग्रीन भारत के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे है जिससे देश में लगातार रोज़गार की बढ़ोतरी हो रहीं है हमारा आयात निर्यात सुदृढ़ और संयमित तरीके से आगे बढ़ रहा है देश में स्वास्थ्य सड़क और सुरक्षा सुदृढ़ हो रहा है क्रूड ऑयल के आयात पर निर्भरता कम हो रहा है आज भारत सौर व वायु ऊर्जा का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व का सबसे बड़ा स्टार्टअप वाला देश बन गया है। यही कारण है की आज भारत ब्रिटेन को चौथे स्थान से छठे स्थान पर ढकेलते हुए 4 ट्रिलियन क्षमता के साथ विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया और भारत सरकार नीति आयोग का लक्ष्य है की 2027 तक देश की आर्थिक व्यापारिक क्षमता को छः ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाना है। जिस गति से वर्तमान सरकार कार्य कर रही है यदि यही गति जारी रही तो निःसंदेह आने वाले वर्षो में भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। 

आईए अब हम समझते है कौन विकसित राष्ट्र है और कौन विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ सकता है। 
सामान्य तौर पर विकसित राष्ट्र उसे कहते है जिस देश का औद्यौगिक प्रगति उच्च स्तर का हो साथ में तकनीकी व सेवा क्षेत्र भी उन्नति कर रहा हो, प्रति व्यक्ति मासिक आय उच्चतर होने के साथ लोगो का जीवन स्तर बेहतर हो, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास ऐसा हो की उद्योग और आम जनता के लिए परिवहन व्यवस्था बहुत सुलभ और उच्च स्तर का हो, वित्तीय व्यापारिक लेन देन सुगम सरल हो, स्वास्थ्य और शिक्षा देश के प्रत्येक नागरिक को आसानी से सुलभ हो जिससे देश के नागरिकों की आयु सीमा अधिकतम सुनिश्चित हो सके। 
इस प्रकार यदि विकसित राष्ट्र की परिभाषा को आधार माने तो भारत विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बनते ही ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विकासशील राष्ट्र की श्रेणी से ऊपर आ चुका है लेकिन विकसित राष्ट्र बनने से अभी बहुत पीछे हैं क्यों कि वर्तमान में देश की जनसंख्या चीन की जनसंख्या को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है जो भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी से बाहर कर देता है जब की ब्रिटेन की वार्षिक अर्थव्यवस्था भारत से कम होने बावजूद आज भी विकसित राष्ट्र की श्रेणी में है क्यों की ब्रिटेन के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय 52 हजार डालर है और भारत की जनसंख्या के अनुसार देश का प्रति व्यक्ति आय केवल लगभग 3 हजार डालर है जिसे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिए वार्षिक अर्थव्यवस्था वर्तमान 4 ट्रिलियन से पांच गुना अधिक होना चाहिए यानी जब भारत की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन से अधिक और प्रति व्यक्ती आय 12000 डॉलर से अधिक हो जायेगा तब भारत विकसित राष्ट्र कहलाएगा और अमरीका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनने के लिए भारत की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होना चाहिए जो सम्भवतः 2045 तक हासिल किया जा सकता है यदि भारत की विकास गति बिना रुके लगातार वर्तमान गति से चलता रहे। 

अब हम बात करते है युवा भारत देश को कैसे विश्व गुरू बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है आज भारत में 35 वर्ष की आयु की जनसंख्या लगभग 65% है जो भारत को विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश बनाता है और देश की आर्थिक प्रगति का एक बड़ा मज़बूत आधार भी आज युवा ही है क्यों कि युवाओं की जनसंख्या अधिक होने से देश में उपभोक्ताओं की संख्या के साथ ही सस्ते कामगारों की उपलब्धता भी बढ़ी है जिसकी वजह से विश्व के लगभग सभी बड़े ब्रांड आईफोन हो या टेस्ला या सिट्रोएन भारत में अपना उत्पादन शुरु कर रहे है। ऐसी सकारात्मक स्थिति में जब पूरा विश्व भारत की तरफ देख रहा है तब तो निश्चित ही भारत के युवाओं को भी भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। 
भारत विष्व गुरु कैसे बने इस बात को समझने के लिए हम सबको चीन की आर्थिक विकास की नीति को भी समझनी होगी जिसको आधार बनाके आज चीन विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद 18 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और 13000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति बना है। जब हम चीन की आर्थिक प्रगति का गहन अध्यन करते है तो हमें पता चलता है चीन की सरकार ने घर घर गांव गांव उद्योग की स्थापना करके प्रति व्यक्ति आय को 13000 डॉलर तक पहुंचा दिया चीन की इसी नीति को अपनाते हुए भारत सरकार नीति आयोग ने भी आत्मनिर्भर भारत make in India का नारा देते हुए युवाओं को उद्योग स्थापित कर स्व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए Startup India Mudra loan, MSME loan जैसी बहुत सी योजनाओं के तहत पीछले 8 सालो में बड़े पैमाने पर लोन दिया है जिसमे युवा उद्योग को प्राथमिकता दिया जा रहा है जिसका परिणाम यह हुआ की आज भारत में प्रति व्यक्ति आय लगभग 3 हजार डॉलर पहुंच गया जो की 2014 में पगभग 1200 डॉलर था।
जब भारत सरकार देश को विश्व की महाशक्ति बनाने की दिशा में प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है ऐसी स्थिति में देश की युवा आबादी को भी अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए सरकार को नीतियों का सहयोगी बनकर Make in India Start-up India योजनाओं को जमीन स्तर लागु करने पर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। 

वैसे केवल आर्थिक विकास से ही कोई देश विश्व गुरु नही बन सकता इस लिए भारत जैसे युवा देश में युवाओं की जिम्मेदारी केवल रोज़गार पाने या उद्योग तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि युवाओं को भारत का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए भारत के सामाजिक एवम राजनीतिक विकास,  वैज्ञानिक अन्वेषण एवम तकनीकी विकास, ( SPST - Social Political Scientific Research and Technical Development) में महत्तवपूर्ण भूमिका निभानी होगी.

जब हम सामाजिक विकास की बात करते है तो युवाओं को अपने धर्म, संस्कृति, कला, परंपरा को संरक्षित करने अपनाने पर जोर देना चाहिए और पश्चिमी संस्कृति की जीवन शैली के नाकारात्मक प्रभाव से लोगो को जागरूक करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा की सीमा से बाहर निकलकर एक स्वच्छ हरित वातावरण विकसित करना चाहिए जिसमे हम युवा महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।

राजनीतिक विकास की बात करे तो युवाओं को राजनीतिक कार्यों में सक्रियता निभानी चाहिए जिससे भारत जैसे युवा देश के सदन में पढ़े लिखे ईमानदार छवि के युवा प्रतिनिधि सदन में अधिक संख्या में पहुंच सके यह इस लिए भी जरूरी है की हम सदन से बाहर रहकर भ्रष्टाचार के विषय में केवल चर्चा कर सकते है लेकिन यदि सच में हम भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना चाहते है और देश को विकसित राष्ट्र बनाना है तो युवाओं को आर्थिक विकास के साथ साथ राजनीतिक हिस्सेदार भी बनाना पड़ेगा अपने गांव समाज के लोगो को अधिक संख्या में जातिवाद क्षेत्रवाद की सीमा से बहार रहकर क्षेत्र व देश के विकास के लिए वोट करने के लिए लोगो को जागरूक करना होगा।

वैज्ञानिक विकाश की बात करे तो हम युवाओं को चंद्रयान, कोरॉना वैक्सीन और नैनो यूरिया जैसी वैज्ञानिक अन्वेषण के विकास में अपनी भागीदारी बढ़ानी चहिए जिससे की देश की जनता को शुद्ध और उच्च गुणवत्ता की खाद्य सामग्री सुलभ हो सके एवम देश के नागरिको की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि सुनिश्चित हो। 

तकनीकी विकास की बात करे तो डिजिटल,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक तकनीकी के विकास में भी युवाओं को अपनी भागीदारी निभानी चाहिए जिससे देश में बैंकिंग सुविधाओ को सरल बनाया जा सके और सामाजिक दूरी कम कर ग्लोबल स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों को और गति प्रदान किया जा सके।

इस प्रकार देश के युवा सरकार के साथ स्वयं सेवक बनकर भारत को सांस्कृतिक सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक समृद्ध विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
 
इस लिए युवा देश के नौजवानों केवल रोजगार पाने की उम्मीद में मत बैठे रहो बल्कि उद्यमी बनो रोजगारों पैदा करो सभी समस्यायों के लिए केवल सरकार को दोष मत दो बल्कि स्वयं से समाधान खोजो और लोगो को समाधान दो। 

जय हिंद जय भारत जय युवा ।। 


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Sunday, 31 December 2023

दैनिक दिनचर्या के कार्यकारी नववर्ष 2024 की आप सभी को मंगल शुभकामनाएं।

आज 31 दिसंबर 2023 कार्यकारी संवैधानिक दैनिक दिनचर्या वर्ष का अंतिम दिन है हममें से बहुत सारे लोग आज की रात धूम धड़ाका करने की तैयारी में हैं अच्छी बात है जीवन के हर पल को खुशियों के साथ व्यतीत करना चाहिए।
श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण जी भी यही कहते है दुःख हो या किसी बात की निराशा या हो असफलता या किसी भी प्रकार के हानि से तनाव, हमेशा खुश रहना चाहिए क्यों कि अच्छा बुरा सब कुछ श्री कृष्ण की इच्छा है। 

लेकिन आज 31 दिसंबर के दिन नए वर्ष के स्वागत के साथ बीते दिनों का चिंतन - आत्म समीक्षा भी होना चाहिए की हमारा जाने वाला वर्ष कैसा रहा ? क्या गलतियां हुई हमसे, किसी भी कार्य को पुर्ण करने में कहा कमियां रह गईं ? क्या उपलब्धियां हासिल किया, दूसरो के जीवन उत्थान के लिए क्या करना चाहिए था कितना कर पाए, क्या बाकी रह गया, व्यक्तिगत जीवन में क्या नया सीखा और क्या सिखाना रह गया ? हम अपने विचारो और कार्य व्यवहार से कितने लोगो सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर पाए और कल की सुबह से शुरू होने वाले नए वर्ष 2024 में हमें क्या करना है ? 

हममें से बहुत लोगो को 2023 में ऐतिहासिक स्मृतियां और  उपलब्धियां मिली होगी तो कुछ को बहुत निराशा, अपमान, पीड़ा व नुकसान भी झेलना पड़ा होगा। बहुत से लोग सुख के सागर में गोते लगाए होंगे तो कई लोगों ने दु:खों के तूफान भी झेले होंगे। कभी बसंत तो कभी पतझड़ यही जीवन का मर्म है जिसमे कितने ऐसे बदनसीब भी होंगे जिनके लिए 2023 का अंतिम महीना कड़ाके की ठंड में ठिटूरन में गुजर रहा होगा जो अपने परिवारों के साथ रोते बिलखते आज की रात व्यतीत कर रहे होंगे। बहुत से बच्चो ने 2023 में ही भारत की धारा पर जन्म लिया होंगा जिनको कुछ पता ही नही चला होगा की उन्होंने इस धरा पर एक वर्ष व्यतीत कर लिया। वर्ष 2023 का 365 दिन कुछ लोगो के लिए सुरम्य-घाटियों से होकर गुजरा होगा तो कुछ लोगो का ऊबड़-खाबड़ दुर्गम रास्तों से भी गुजारा होगा, पूरे वर्ष सुखद संभावनाओं के साथ दु:खद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ा। 
इस लिए यदि आज के दिन हम धूम धड़ाका करने के बजाय अपने बीते 364 दिन की समीक्षा करें तो शायद हम बीते दिनों से बहुत कुछ सीखकर आने वाले नए वर्ष को बहुत सुखमय और उपलब्धियों से भरा बना सकेंगे। 

इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने सम्पर्क में रहे लोगो से बीते 364 दिनों में हुए किसी भी प्रकार की गलत व्यवहार, अपशब्द और अपमान के लिए क्षमा मांगता हूं जिससे किसी की आत्मा को ठेस पहुंचा हो या दुःख महसूस हुआ हो।

इसी के साथ बीते वर्ष 2023 को नमस्कार 
और आगामी नववर्ष 2024 की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं यह नववर्ष भारत धारा पर राम राज्य की स्थापना का वर्ष बने भारत प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की अस्मिता और गरिमा को स्वर्णिम बनाने के लिए हर संभव प्रयास करे और प्रत्येक परिवार खुशियों के साथ जीवन यापन करे।।
जय श्री राम 💐💐🙏

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Sunday, 15 October 2023

किसी देव स्थान में दर्शन के पश्चात मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ क्षण के लिए ज़रूर बैठे।

हमारी पीढ़ी और पहले की दो तीन पीढ़ियां या हम यह कह सकते है की ६० के दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी की शुरूवात तक पिता पुत्र और परिवार के अन्य बड़े बुजुर्गों के बीच संवाद हीनता की वजह से दैनिक जीवन के सनातन संस्कारों को ना तो हमारे बड़े बुजुर्गो या माता पिता ने अपने बच्चो को बताया, न ही हमे देखने सुनने को मिला जिसका सबसे बड़ा कारण हजारों वर्षों के विदेशी सत्ता से आजादी के बाद भारतीय समाज इतना भ्रमित हों चुका था की अपनी वास्त्विक पहचान और संस्कृति भूलकर, मिश्रित संस्कार और संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहा था, भारत की मूल वैदिक शिक्षा तहस नहस हो चुकी थी जिसकी वजह से आजादी के बाद खासतौर पर ६० के दशक के बाद की पीढ़ी की परवरिश बहुत ही संकीर्ण व संयमित माहौल में हुआ, परिणाम यह हुआ की इस दौर में जन्म लेने वाले बच्चे कभी ऐसे प्रश्नों का किसी से संकोच वश जवाब ही नहीं  पूछ पाए। इस दौर में बच्चों का आपने समाज के बड़े बुजुर्गो से ज्यादा सवाल जवाब करना भी अच्छा नहीं माना जाता था जो बच्चे ज्यादा सवाल जवाब करते लोग ऐसे बच्चों को संस्कारहीन बताने लगते और ऐसा अक्सर ऐसे ही बुजुर्ग किया करते जिन्हे बच्चों के गुढ़ प्रश्नों का उत्तर नहीं पता होता। 

ऐसे बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मेरे पीढ़ी और बाद की पीढ़ी के लोगो को भी नही पता क्यों कि कभी सुना पढ़ा जाना ही नहीं। ऐसा इस लिए की हमारे समाज में लोगो का मानना है बच्चों का स्कूल में अच्छा मार्क्स जरुर आना चाहिए भले ही वह खेल या अन्य विषय में रुचि ना ले, दुर्भाग्य वश लोगो को यह नही समझ था कि खेल प्रतियोगिता में भाग ना लेने से बच्चा शारिरिक रूप से कमजोर होता है बच्चे का मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। मेरा मानना है कि ऐसे माहौल के पीछे एक बहुत प्रचलित लोककोक्ति का प्रभाव भी रहा है अक्सर घर के मुखिया या माता पिता को हम सबने अपने बच्चों को यह कहते सुना है कि"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब" कुछ हद तक यह लोककोक्ती तो सही है लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते की जीवन के हर पड़ाव पर संतुलन होना बहुत जरुरी होता है। यानी कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जरुरी होता है ना कि केवल स्कूल में अच्छे मार्क्स आना।

भारतीय सनातन समाज मोदी जी का ऋणी है जो उन्होंने सूचना तकनीकी तंत्र को गाँव गांव तक पहुंचकर डिजिटल शिक्षा के माध्यम से लोगो को इतना जागरुक करने का कार्य किया की आज डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के गुढ़ विषयों के बारे में जन जन तक जानकारी पहुंच रहीं है जिससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी ऐसी जानकारियों से अनभिज्ञ नही रहेगी और हमारी भारतीय संस्कृति जड़ मजबूत होगी।  भारतीय संस्कृति में देव स्थान दर्शन से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह है कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या चौखट पर थोड़ी देर ज़रूर बैठे।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा के पीछे का गुढ़ रहस्य क्या है ?

आइए जानते है वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ करके हमें एक श्लोक को क्यों पढ़ना चाहिये और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यह क्यों बताना चाहिये....

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-

अनायासेन मरणम्... 
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं !!

बिना देन्येन जीवनम्... 
अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो, ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके !!

देहांते तव सानिध्यम.. 
अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए, उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले !!

देहि में परमेशवरम्...
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना !!
यह प्रार्थना करें।

गाड़ी, घर, धन, नौकरी,लड़का, लड़की, अच्छा पति-पत्नी, यह मांगना नहीं पड़ता है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं इसीलिए जब भी कभी कही भी देव स्थान पर दर्शन करने जाए तो उपरोक्त श्लोक के अनुसार भाव लेकर जाए और मंदिर में दर्शन के बाद कुछ समय मंदिर की पैड़ी पर बैठकर उपरोक्त भाव की प्रार्थना करिएगा।

उपरोक्त श्लोक प्रार्थना है, याचना नहीं।
क्यों कि याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
प्रार्थना का अर्थ विशिष्ट, श्रेष्ठ निवेदन से है न कि याचना से अर्थार्थ जब भी किसी शक्ति पीठ या देव स्थान पर जाए तो प्रभु से प्रार्थना करें ना की याचना सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना यही होगा की ऊपर लिखित श्लोक को मन ही मन दोहराएं। 

लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजकल लोग यदि मंदिर की पैड़ी पर बैठते भी है तो वहा भी अपने घर, व्यापार व राजनीति की चर्चा करते हैं और केवल अपना थकान मिटाने के लिए ही बैठते है परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। को बार बार दोहराना। 

सब से जरूरी बात... जब भी मंदिर में दर्शन करने जाए तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं, आंखें बंद क्यों करना हम तो भगवान का दर्शन करने जाते हैं, तो भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें। आंखों में उस मोहक दृश्य भर ले भगवान के उस स्वरूप को और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें, नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें, यहीं शास्त्र और बड़े बुजुर्गो का कहना हैं ...

जय माता दी 💐🙏

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Friday, 5 May 2023

एक राजा जिसने बोधिसत्व प्राप्त कर स्वयं को चिरंजीव बना लिया।

हम सब बचपन से देखते आए है महात्मा गौतम बुद्ध की तस्वीरे और स्टैच्यू सर्वत्र विश्व में शांति और ध्यान की मुद्रा में ही उपलब्ध है। जो हमे यह सन्देश देती है की ज्ञान और ध्यान से ही जीवन में शांति व सद्भावना सम्भव है जहा इसकी कमी है वहा अशांति ही अशांति है। इस लिए ज्ञानार्जन और ध्यान का निरंतर अभ्यास जीवन में बहुत आवश्यक है। 
भारतीय पंचांग के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र में ५६३ ईशा पूर्व में भगवान श्री राम के पुत्र कुश के कुल में कपिलवस्तु के महाराजा शुद्धोदन की धर्मपत्नी महारानी महामाया देवी के पुत्र के रूप में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था जिनको उनके जन्म से लेकर सन्यास धारण करने से पहले तक सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था आगे चलकर इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से पहचान मिली। बुद्ध के जन्म, बोध और निर्वाण के संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण संयोग यह है कि वैशाख पूर्णिमा के ही दिन ३५ वर्ष की आयु में ५२८ ईशा पूर्व मे बोध गया बिहार में वटवृक्ष के नीचे आपको आत्मज्ञान प्राप्त हुआ जो वटवृक्ष आज भी बोधगया में मौजूद है और इसी दिन ४८३ ईशा पूर्व ८० वर्ष की आयु में कुशीनगर उत्तर प्रदेश में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। 
देह छोड़ने के पूर्व बुद्ध के अंतिम वचन थे 
'अप्प दिपो भव:...सम्मासती। 
अपने दीये खुद बनो...स्मरण रखो कि तुम भी एक बुद्ध हो।
आज के दिन का दैवीय महत्व है क्यों कि इसी दिन देवी छिन्नमस्तिका और श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। आज के ही दिन ब्रह्मदेव ने काले और सफ़ेद तिलों का निर्माण भी किया था इसी लिए आज के दिन तिलों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे। बुद्ध का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे महात्मा सन्यासी होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी। राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो लेकिन राजा शुद्धोदन की यही गलती सिद्धार्थ के मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। वैराग्य भाव उत्पन्न होने के बाद एक बार सिद्धार्थ शाक्यों के संघ में सम्मलित होने गए। जहां उनका संघ के गुरुवों से विचारिक मतभेद हो गया। क्षत्रिय शाक्य संघ से वैचारिक मतभेद के चलते संघ ने उनके समक्ष दो प्रस्ताव रखे थे या तो वे फांसी पर चढ़ जाए या देश छोड़कर चले जाए। सिद्धार्थ ने कहा कि जो भी दंड उन्हें मिले स्वीकार है लेकिन शाक्यों के सेनापति ने सोचा कि दोनों ही स्थिति में कौशल नरेश को सिद्धार्थ से हुए विवाद का पता चल जाएगा और उन्हें दंड भुगतना होगा तब सिद्धार्थ ने कहा कि आप निश्चिंत रहें मैं संन्यास लेकिन चुपचाप ही देश से दूर चला जाऊंगा आपकी इच्छा भी पूरी होगी और मेरी भी आधी रात को सिद्धार्थ अपना महल त्यागकर 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर लिया। उस वक्त उनकी आयु 29 वर्ष थी। छः वर्षो की कठिन तपस्या के पश्चात् सिद्धार्थ को बोधिसत्व 528 वर्ष पूर्व 35 वर्ष की आयु में बिहार प्रदेश के बोधगया में वटवृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था जो आज भी विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है। सम्राट अशोक इस वृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले जाकर स्थापित किया यह शाखा भी आज मौजूद है।

श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में भी शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए। इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे। राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। 

बुद्ध के प्रमुख गुरु गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त थे जबकि बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) थे और बौद्ध धर्म के प्रचारकों में प्रमुख रूप से अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व या बोधिधर्मा, विमल मित्र, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि का नाम लिया जाता है।
बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति सम्पन्न हुआ था जिसमे संघ के दो हिस्से हो गए थे हीनयान और महायान। सम्राट अशोक ने तृतीय बौद्घ संगती का आयोजन 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में कराया था उसके बाद भी सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के बहुत प्रयास किए गए किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव को रोक पाना सम्भव नहीं हो पाया।

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में लोगो को शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्तिव में संतुलन की धारणा को मजबूत बनाए रखने पर बहुत बल दिया और कहा की मनुष्यों को भोग की अति से बचना जितना आवश्यक है उतना ही योग की अति अर्थात तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है क्यों कि भोग की अति से चेतना का बिखराव हो जाता है विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की पर विनाश का पहरा मदराने लगता है ठीक इसी प्रकार तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है परिणामस्वरूप आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव नही हो पाती है क्योंकि कमजोर और मूर्च्छित मनोबल के आधार पर आत्मज्ञान प्राप्त करना वैसा ही है जैसा कि रेत की बुनियाद पर भव्य भवन निर्माण करने का स्वप्न संजोना।

गौतम बुद्ध का कहना है कि चार आर्य सत्य हैं 
पहला यह कि दुःख है। 
दूसरा यह कि दुःख का कारण है। 
तीसरा यह कि दुःख का निदान है। 
चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।

गौतम बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग ही वह मध्यम मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है। अष्टांगिक मार्ग चूंकि ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्मांत, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के संदर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है, अतः मध्यम मार्ग है। मध्यम मार्ग ज्ञान देने वाला है, शांति देने वाला है, निर्वाण देने वाला है अतः कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही श्रेष्ठ जीवन के लिए श्रेयस्कर है।

गौतम बुद्ध विश्वकल्याण के लिए मैत्री भावना पर बल देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे महावीर स्वामी ने मित्रता के प्रसार की बात कही थी। गौतम बुद्ध मानते हैं कि मैत्री की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है। वे कहते हैं कि बैर से बैर कभी नहीं मिटता यह केवल मैत्री से ही बैर मिटता सकता है।

शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य यह कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो ‍कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध अनेक जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। जिनके आधार पर ही ईशा की कथाएं निर्मित हुई। यही कारण है कि पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी देशों के लोगो की तादाद बढ़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है क्योंकि बौद्ध धर्म, ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था। दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया के हर इलाके में खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्‍यान और ज्ञान पर बहुत से राष्ट्रों में आज भी शोध जारी है।
ऐसा प्रमाण मिलता है कि भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा। तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया। कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी। उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो के कहीं। 


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Tuesday, 25 April 2023

अक्षय तृतीया सनातन संस्कृति की श्रेष्ठ तिथियों में से एक सर्वश्रेष्ठ तिथि है

चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को त्रेता और द्वापर युग का संधि काल कहा जाता है मान्यता है कि आज के दिन किए गए सभी शुभ कर्मों का अक्षय फल प्राप्त होता है इसी लिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो, अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ आज के दिन किया जा सकता है.... आज के दिन शुरु किया गया कार्य हर प्रकार से सफलता देने वाला होता है। 

आज के ही दिन ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में श्री हरि विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर अवतरण लिया था। श्री परशुराम भगवान देवधिदेव महादेव के परम भक्त थे और उनकी निरंतर साधना किया करते थे जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हे अपना परशु शस्त्र प्रदान किया था। परशुराम भगवान शस्त्र और शास्त्र से युक्त पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ पुरुषों में से एक है जिन्होंने अकेले स्व पुरुषार्थ के बल से २१ बार पृथ्वी पर व्याप्त कुरीतियों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोगो को विनष्ट कर दिया था।
महायोद्धा भीष्म पितामह, सूर्यपुत्र कर्ण और गुरू द्रोणाचार्य को दीक्षा भगवान परशुराम ने ही प्रदान किया था। प्रभु श्री राम को पिनाक धनुष और श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र श्री परशुराम ने ही दिया था। 
पृथ्वी पर आज भी विचरण करने वाले आठ दिव्य आत्माओं में से एक भगवान परशुराम जी चिरंजीवी है और आज भी महेंद्र पर्वत पर विचरण करते है। अन्य सात चिरंजीवी आत्माओं में श्री हनुमान जी पवनपुत्र के रूप में सर्वत्र विराजमान हैं, ऋषि वेदव्यास, गुरु कृपाचार्य, रामभक्त विभीषण, किष्किंधा के राजा बलि और द्रोणाचार्य पुत्र अस्वथामा है जिनके बारे में मान्यता है कि अस्वथमा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से २० किलोमीटर दूर असीरगढ़ किला में स्थित शिव मंदिर में आज भी ब्रह्म मुहूर्थ में पूजा करने आते है। ऋषि मार्कण्डेय पृथ्वी पर आठवें चिरंजीवी आत्मा है जिन्होंने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया है जिससे इन्हे अमरत्व प्राप्त हो गया है। 
आज के ही दिन पृथ्वी पर नर नारायण और ब्रह्मा विष्णु  अवतरित हुए थे। मां गंगा का भी आज के ही दिन भगवान विष्णु के चरणों से पृथ्वी पर आगमन हुआ था। 
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय भी आज के ही दिन जन्म लिए। 
सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की शुरुवात भी आज के ही दिन से हुआ था। 
माँ अन्नपूर्णा का जन्म और देवताओं के कोषाध्यक्ष श्री कुबेर भगवान को खजाना आज ही मिला था।

सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया और कनकधारा स्तोत्र की रचना भी श्री आदि शंकराचार्य ने आज के ही दिन किया था।

वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ शुरू किया था और महाभारत का युद्ध भी आज ही समाप्त हुआ था।

प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट भी आज के ही दिन खोले जाते है और वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन  वर्ष में केवल एक बार चैत्र शुक्ल तृतीया को होते है।

भगवान जगन्नाथ के सभी रथों को बनाना भी आज के दिन प्रारम्भ किया जाता है।

इस प्रकार अक्षय तृतीया की तिथि सनातन संस्कृति सभ्यता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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Friday, 14 April 2023

विवाह कार्यक्रम जीवन का एक श्रेष्ठ संस्कार है इसे आधुनिकता के प्रपंच में न बांधे।

"विवाह" मानव जीवन का एक पवित्र बंधन है जो ब्रह्मांड की दिव्य वातावरण में उपस्थिति ईश्वरीय शक्तियों, दिव्य आत्माओं, पितृ को साक्षी मानकर उनका आवाहन करके अग्नि के समक्ष सात फेरों या ये कहे की दो जागृत आत्माएं स्त्री व पुरुष एक दूसरे के सात वचनों से सहमति होकर संसार के रचनात्मक कार्यों में अपनी भुमिका अदा करने के उद्देश्य से नव जीवन की शुरुआत करते है। इस प्रकार विवाह कार्यक्रम प्रकृति द्वारा निर्धारित पृथ्वी पर एक सर्वश्रेठ दैविक आयोजन है जिसे मर्यादाओं मे रहकर ही संपन्न करना कराना  चाहिए जिससे हमारी सनातन संस्कृति सभ्यता का आधार और मजबूत हो न कि दूषित हो। इसलिए आधुनिक व्यवस्था के बढ़ते प्रचालन व दिखावे से हम सभी को बचाना चहिए।

अभी हाल ही में इसका एक बढ़िया उदाहरण राजस्थान के जयपुर शहर से प्राप्त हुआ जहां वर पक्ष के तरफ से लड़के ने बधू पक्ष के समक्ष कुछ शर्तें रखी जिसे सुनकर लोग आश्चर्यचकित हुए कि आज के आधुनिक व्यवस्था में जहां लड़के लड़की व उनके परिवार की तरफ से लग्जरी गाड़ियों, फाइव स्टार वेन्यू, ड्रोन कैमरों  प्री वेडिंग सूट,  रिवॉल्विंग स्टेज पर जयमाल कार्यक्रम और हेलीकॉप्टर से रोज लीव्स के बरसात कराने के शर्ते रखी जाती है। ऐसे में लड़के ने सनातन वैदिक व्यवस्था के तहत विवाह संपन्न कराने का शर्त रख दिया। विवाह पूर्व लड़के ने लड़की वाले से हैरान करने वाली अनोखी मांगे रखी जो देशभर चर्चा का विषय बना है। मजेदार बात यह है कि मांगें दहेज को लेकर नहीं बल्कि विवाह संपन्न कराने के तरीके और अनुचित परंपराओं के बढ़ते प्रचलन को लेकर हैं। लड़के ने मांग किया प्री

प्री वैडिंग शूट में वो नहीं शामिल होगा यानी उसे प्रेम का फिल्मों की तर्ज पर मजाक नहीं उड़ना क्यों कि प्रेम दो जीव आत्माओं के बीच का बहुत ही शुद्ध भाव है जिसे प्री वेडिंग शूट के माध्यम से दूषित करना अनुचित है।दु

ल्हन शादी में लहंगे की बजाय पारंपरिक पीले, लाल या गुलाबी रंग की साड़ी पहने !

मैरिज समारोह स्थल पर ऊलजुलूल, अश्लील, कानफोड़ू संगीत की बजाय केवल हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत ही बजे !
वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहें  !
वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को.. उठाकर उचकाने वालों को विवाह कार्यक्रम से दूर रखा जाए !
जब पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर दिया जाए और  उनका वैदिक मंत्रोचार व विवाह विधि सही है तो उन्हें कोई बीच में रोक टोक नही !
कैमरामैन फेरों आदि के चित्र दूर से ले न कि बार बार पंडितजी को टोक कर.. विवाह विधि में व्यवधान उत्पन्न करे क्यों कि विवाह कार्यक्रम देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में किया जाने वाला समारोह है.. ना की किसी फिल्म की शूटिंग !
दूल्हा दुल्हन द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाये जायेंगे क्यों कि बधु किसी के परिवार की इज्जत उसकी पैमाइश लोगो की भीड़ के समक्ष कराने की जरुरत नही !
विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो जाए जिससे किसी भी मेहमान को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान ना होना पड़े और मेहमानों को अपने घर पहुंचने में कोई असुविधा ना हो !
नवविवाहित को लोगो के समक्ष.. आलिंगन करने, डांस करने व एक दूसरे को खाना खिलाने के लिए ना कहा जाए !
विवाह कार्यक्रम में भोजन व्यवस्था में किसी प्रकार का मांस मदिरा वर्जित होगा क्यों कि विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है मांस मदिरा देखकर देवी देवता रूष्ट होकर  दूल्हा दुल्हन को बिना आशीर्वाद दिए चले जाते हैं !

अच्छी खबर यह है की लड़की वालों ने लड़के की सभी मांगे मानते हुए सनातन संस्कृति सभ्यता को मजबूती प्रदान करने के लिए  सहर्ष तैयार हो गए और विवाह समारोह वैदिक परंपरा से संपन्न हुआ..!

सनातन धर्म की जय हो।
#SayNoForDowry #NADA
Dowry is will It can't be demand 

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Tuesday, 11 April 2023

मोदी जी को सत्ता में वापस लाना हम भारतीयों के लिए क्यों अति आवश्यक है।

जैसा कि हम सभी जानते है अंग्रेजो के काले कानून से तो हमें 1947 में आजादी मिल गई थी लेकिन अंग्रेजो और भारत के शीर्ष नेताओं के बीच "ट्रांसफर ऑफ पावर" का जो समझौता पत्र हस्तांतरित हुआ था जिस पर नेहरू जी ने भारत के शीर्ष नेता के रूप के साइन किया था उसे आज तक हिन्दुस्तानियों से छिपाकर रखा गया, उसका कारण था कि अंग्रेजों ने शर्त रखा था की 1947 से 50 सालों तक भारत सरकार पेपर को सार्वजनिक नहीं करेगा और इसमें संसोधन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय संसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवम संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372, 395 के पास भी नहीं दिया गया। 
जिसके परीणाम स्वरूप, 1947 से लगातार देश के खजाने से प्रतिवर्ष 10 अरब रुपये पेंशन के रूप में ब्रिटेन की महारानी के कोष में उनके जीवन काल तक जा रहा था जो उनके मृत्यू के पश्चात अब कानूनी प्रक्रिया की वजह से रुका है और यदि मोदी जी वापस लौटते है तो निश्चाय ही इस व्यव्स्था को संविधान संशोधन कर हमेशा के लिए रोक दिया जाएगा।
समझौते के तहत भारत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-माँस भी ब्रिटेन को देने के लिए बाध्य है।
भारत अपना राजदूत (एम्बबेसड) अमेरिका, जापान, चीन, रूस, जर्मनी जैसे देशों में तो नियुक्त करता है… ..... लेकिन श्रीलंका, पाकिस्तान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंडोनेेशिया, सिंगापुर आदि देशों में राजदूत नही यहां केवल उच्चायुक्त ही नियुक्त कर सकता है।

आखिर ऐसा क्यों.? ऐसा इस लिए, क्यों कि
भारत समेत 54 देशों को कॉमनवेल्थ कंट्री के नाम से जाना जाता है, इंडिपेंडेंट नेशन के नाम से नहीं ? क्यों कि
ब्रिटिश नैशनैलिटी अधिनियम 1948 के अन्तर्गत कॉमनवेल्थ का अर्थ होता है "सयुंक्त सम्पत्ति" जिसके तहत हर भारतीय,आस्ट्रेलियाई, कनेडियन,चाहे हिन्दू हो मुसलमान या ईसाई, बौद्ध या सिक्ख आज भी कानूनन ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ के ग़ुलाम हैं और उनके मरने के बाद अब उनकी जगह किंग चार्ल्स 3 के गुलाम हैं।

सन् 1997 में "ट्रांसफर ऑफ पावर" सहमति पत्र ( जो एक गोपनीय समझौता ) के 50 साल पूरे होने से पहले ही इसको सार्वजनिक होने से रोकने हेतु सोनिया गांधी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्द्र कुमार गुजराल द्वारा इसकी अवधि 2024 तक बड़ा दी थी जिसे 2024 में पुन: सार्वजनिक होने के डर से भारत विरोधी शक्तियां मोदी जी का विरोध कर रही हैं ताकि 2024 में भी यह सार्वजनिक न हो पाये और देश के खजाने से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष ब्रिटेन जाता रहें।
इसके अलावा और भी बहुत रहस्य गोपनीय है जो पूर्वार्ति सरकारों ने छुपा रखा है जिसका पता चलना देश हित में बहुत आवश्यक है इसलिए मोदी जी का २०२४ में प्रधाममंत्री बनना अतिआवश्यक है।
स्वतन्त्र भारत का इतिहास गवाह है कि जब भी भारत में मजबूत नेताओं ने सत्ता संभाली जैसे लाल बहादुर शास्त्री जी तो उनकी हत्या करवाई गई यह सभी को पता है कि उन्हे कैसे ताशकंद में खाने में जहर दिया गया.. ,सुभाष चंद्र बोस की मौत आदि रहस्य बनकर रह गई........
इसी तरह हमारी स्वतंत्रता भी एक रहस्य बनी है
इस लिए राष्ट्रहित में सभी देश भक्तों का एकजुट होना बहुत आवश्यक है।
इसलिए सभी सनातनी भारतवासियों से अपील है कि अपना निज स्वार्थ, ऊंच नीच, जातिवाद, क्षेत्रवाद, प्रांतवाद के भेदभाव मिटाकर, देश धर्म और आनेवाली पीढ़ी की रक्षा, सुख शांति समृद्धि के लिए 2024 मे मोदी जी को भारी जनादेश देकर प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना १००% योगदान करे..,यह आज के समय की मांग समझिए और दूसरा कोई विकल्प ही नही है।
वरना देश के स्वार्थी, भ्रष्टाचारी नेताओ और टुकड़े टुकड़े गैंग के समर्थक भारत को बर्बाद कर देंगे। देश जो आज मोदी जी के दस साल के प्रयास से विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनकर  विश्व शक्ति बनने की राह पर चल रहा है उसे फिर से विपक्षी नेता और पार्टियां आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त होकर दसवीं पायदान पर पहुंच देंगे।
इसीलिए हमें सतर्क और सावधान भी रहने की जरुरत है नही तो स्वार्थी  विपक्षी दल और कुकुर मुत्ते की तरह फैले सोशल मीडिया न्यूज चैनल चंद रुपयों की लालच में जी जान लगाकर जनता को गुमराह करने की मुहिम में लगे है और मोदी जी को बदनाम करने की पूरी कोशिश कर रहे है जिससे मोदी जी दुबारा सत्ता में ना लौटे l...…

इस लिए हर भारतीय को अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन देने के उद्देश्य से मोदी जी को प्रचंड बहुमत से पुनः प्रधानमन्त्री बनाने के लिए सभी भारतीयों को.मोदी लाओ देश सुरक्षित बनाए रखो का नारा जन जन तक पहुंचना है।

#OnceMoreNAMO #VoteForNAMO 

जय हिन्द जय भारत।। जय हो सनातन संस्कृति की।।


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Thursday, 16 March 2023

राम कौन हैं राम मर्यादा पुरूषोत्तम है राम देवत्व जीवन के आदर्श है

राम" केवल एक शब्द या नाम नही बल्कि समस्त सनातानियो और अखंड भारत के लिए एक श्रेष्ठ आदर्श व्यक्तित्व है जो भारतीय समाज व परिवार के लिए आदर्श जीवन की मर्यादाओं के शिक्षक है। परिवार व समाज के प्रत्येक रिश्तों को निभाने के उच्च संस्कार का श्रेष्ठ उदाहरण राम है। वर्तमान युग में श्रेष्ठ नाम जाप में राम नाम है जो मनुष्य का तारणहार है।

राम..! नाम का मानव जीवन में दो निहतार्थ हैं, 

सुखी होना.. और स्थिर - शान्त हो जाना 

अर्थात राम नाम में ही सुख है और आत्मज्ञान का साक्षात्कार भी राम नाम में ही है 

जब व्यक्ति सांसारिक जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के देवत्व को अपनाने का प्रयास मात्र शुरु करता है तब अपने मार्ग से भटका हुआ तनाव से ग्रसित अशांत मन किसी शान्ति पूर्ण स्थान को देखकर ठहर जाता है जीवन के इस सुखद ठहराव को अर्थ देने वाले शब्दों में भी "राम" ही अंतर्निहित है....जैसे आराम.! विराम.! विश्राम.! अभिराम.! ग्राम.! प्रणाम ... ! अर्थात 

जो "रमने" के लिए विवश कर दे वह "राम..! ही है 

आजकल जीवन की भाग दौड़ में उलझा मन जिस आनंददायक गंतव्य की सतत तलाश में है वह गंतव्य भी राम.. नाम में ही निहित है।

राम नाम की महिमा इतनी है कि भारतीय सनातन संस्कृति में हर स्थिति में मनुष्य मन राम को साक्षी बनाने का आदी है जैसे दुःख और पीड़ा में " हे राम.! लज्जा में "हाय राम.! अशुभ स्थिति में "राम रे राम.! अभिवादन में जब दोनो हाथ जुड़ जाते है तब प्रणाम भी राम राम..! बन जाता है, यही शपथ के समय "राम कसम.! अज्ञानता में राम जाने.! अनिश्चितता में राम भरोसे..! अचूकता के लिए रामबाण इलाज..! मृत्यु के लिए "रामनाम सत्य...! वही सुशासन के लिए "रामराज्य...! और मनुष्य जीवन का अंतिम शब्द भी राम राम ... ही होता है जो जीवन की अन्तिम यात्रा में सद्गति का राह प्रशस्त करता है। महात्मा गांधी जी के अन्तिम शब्द "हे राम ... ही थे। रावण जैसा ज्ञानी पराक्रमी तपस्वी भी अंतिम समय में राम नाम लेने में देर नहीं किया उसको पता था राम के द्वारा और राम नाम से ही उसको मोक्ष प्राप्ति होगी।

भारतीय समाज में ऐसी अभिव्यक्तियाँ, दैनिक जीवन पथ में पग-पग पर राम को साथ खड़ा करतीं हैं और राम भी इतने सरल व सहज हैं की हर जगह अपने भक्तों के साथ खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है उनको अपना मानता है जिसका कोई नहीं उन सबके लिए राम ही राम..! है।

राम नाम का इतना प्रभाव है की हजारों बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी रामकथा की रोचकता कभी खत्म ही नहीं होती अभी कोरोना काल के दौरान जब मोदी जी ने रामायण सीरियल का प्रसारण दिन में तीन बार विभिन्न चैनलों पर करवाया तो रामायण का प्रसारण देखने का लोगो में इतना उत्साह था कि तीन महीने तक जनता सभी कार्य छोड़कर अपने आदर्श पुरूषोत्तम राम के देवत्व रूप को देखने सुनने के लिए तन्मयता के साथ टीवी के सामने समय से बैठे जाती है और राम के द्वारा बोले गए एक एक संवाद व व्यवहार को समझने का प्रयास करता जो साधारण मनुष्य में देवत्व के विकाश की राह प्रशस्त करता है। 

हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है वह राम.....ही है।

राम केवल एक शब्द ही नहीं राम सत्य निष्ठा, धर्म कर्तव्य, शुद्ध आचरण, आस्था, नैतिक मूल्यों, स्वाभिमान और श्रेष्ठ जीवन दर्शन का नाम है। राम भारतीय सनातन संस्कृति की आत्मा है राम शाश्वत है राम शिवांश है राम तपस्वी है।

राम एक श्रेष्ठ व आज्ञाकारी पुत्र है राम त्याग व पुरुषार्थ का नाम है।

राम एक आदर्श भाई है राम दया क्षमा के प्रतिरूप है।

राम धर्मनिष्ठ राजा है राम अनादि है अनंत है! 

राम नाम से ही जीवन के भ्रम भटकाव अंहकार मद मोह का अंत है।

राम सनातन आस्था के प्रतीक भारतीयों के आराध्य है।

जीवन में सब कुछ अंत हो जाने के बाद भी जो बचा रह जाता है वह भी राम ही है राम हमारी आत्मा है हम राम के है और राम हमारे है।

जब कोई व्यक्ति घोर निराशा से गुजरते हुए उठ खड़ा होता है तो वह आत्मबल भी राम ही है। अनन्त सीमाओं के बीच छुपे हुए गूढ़ को, जो समझ पाए वो भी राम ही है ..!

राम वह है जिसको ये पता है की जन्म का उद्देश्य क्या है और जो जीवन के धर्म पथ पर सुख का मोह नहीं रखता और दुख में किंचित विचलित नहीं होता है। राज्याभिषेक की खबर सुनकर बहुत खुश भी नही जाहिर करता और वनवास की ख़बर को बिना दुख के बिना किसी प्रतिक्रिया के स्वीकार कर लेता है। 

इसीलिए राम मर्यादा पुरूष पुरूषोत्तम राम है ।।

जय श्री राम..🌹🙏

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Monday, 6 March 2023

धर्म शब्द का प्रयोग किसी समुदाय समाज समूह के साथ जोड़कर करना तर्कसंगत नहीं है।

साधारणतः जब भी हम चर्चा में धर्म शब्द का उपयोग करते सुनते है हम इसे समुदाय विशेष जैसे हिन्दू धर्म या बौद्ध जैन सिख या मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म से ही जोड़कर देखते है जबकि धर्म शब्द को समुदाय विशेष से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ का बोलना कहीं से तर्कसंगत नहीं है क्योंकि धर्म का वास्ताविक संबंध कर्तव्य से, नैतिक मूल्यों से, मानवता से, परंपराओं का समायानुसार, नैतिक व मानवीय मूल्यों के समन्वय के साथ निर्वहन से है न की हिंदू मुस्लिम ईसाई समूह आदि से है ......... 
धर्म का संबंध केवल व्यक्ति व व्यक्तित्व से है ना कि हिन्दू मुस्लिम ईसाई समुदाय से, हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म आदि एक राजनैतिक शब्द है जो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा समाज को विभाजित कर सत्ता में बने रहने के लिए हजारों वर्षों तक किया गया और स्वतंत्रता के बाद इस शब्द का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीत के लिए किया जा रहा है जबकि वास्तविक रूप से समझने का प्रयास करे तो पाएंगे की हिन्दू धर्म नही बल्कि विश्व की एक विशिष्ट संस्कृति - संस्कार- परम्परा है जो ब्रह्माण्ड के देवपुरुषों ऋषियो मनीषियों महामानवों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन की गई स्मृतियों, परंपराओं, संस्कारों पर आधारित है जिसका निर्वहन त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, ऋषि वशिष्ठ, माता सीता, रुद्रावतार राम भक्त हनुमान और द्वापर युग में श्री कृष्ण, माता यशोदा, श्री राधा, मित्र सुदामा, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, विदुर आदि द्वारा किया गया और उन्ही स्मृतियों परंपराओं संस्कृतियों पर आधारित जीवन शैली को हिन्दू संस्कृति कहा गया। इस प्रकार हिन्दू एक संस्कृति है ना कि धर्म, इसे धर्म कहना अनुचित है ......... 
हिन्दू संस्कृति एक प्रकार से वैदिक संस्कृति है क्योंकि यह वैदिक श्रुति स्मृति परंपराओं पर आधारित है इसे हिन्दू संस्कृति इसलिए कहा गया क्योंकि इसका पालन हिंदू कुश पर्वत परिक्षेत्र में रहने वाले मानवीय समुदायों द्वारा किया जाता है और पौराणिक ग्रंथों से यह पता चलता है कि इसी क्षेत्र में देव पुरुषों द्वारा पृथ्वी पर अवतार लेकर मानवीय जीवन के धर्म कर्तव्यों का निर्वाहन किया गया.... कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध को श्री कृष्ण ने धर्मयुद्ध का नाम दिया क्यों कि वह लड़ाई अन्याय अनीति लोभ ईर्ष्या द्वेष अनाचार व अत्याचार के विरुद्ध धर्म की स्थापना की लड़ाई थी ना कि दो समुदायों या हिन्दू या मुस्लिम संस्कृति की ..... 

धर्म का संबंध सकारात्मक सोच और कर्म से है ना कि नकारात्मक विचारों व व्यवहार से या समुदाय विशेष से। तप त्याग क्षमा दया सेवा व कर्तव्य भाव धर्म निर्वहन के साधन है जिसका पालन व्यक्ति द्वारा संस्कार रूप में आदर्श जीवन के लिए किया जाता है चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंधित हो। जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथो में मिलता है। धर्म पालन हिन्दू संस्कार का अभिन्न हिस्सा है जीवन शैली है जिसकी शिक्षा गुरुकुलो में ऋषि मुनियों द्वारा नैतिक शिक्षा के रूप में प्रदान किया जाता था। इसी प्रकार मुस्लिम ईसाई समुदायों की संस्कृती है संस्कार है जो की उनके समाज के विद्वानों महापुरुषों गुरुओं द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी पालन करने की शिक्षा दिया गया ना कि धर्म है। इसलिए किसी भी समुदाय या समाज के साथ धर्म शब्द जोड़कर प्रचारित करना या निर्दोष अशिक्षित जनता को गुमराह करके धर्म के नाम पर राजनिति करना एकदम गलत है।

वैसे भी हिन्दू धर्म मुस्लिम धर्म ईसाई धर्म शब्द का कोई पौराणिक प्रमाण नहीं मिलता है ये सब एक राजनैतिक शब्द है धर्म जीवन निर्वहन का एक संस्कार है जिसका उल्लेख सनातन वैदिक संस्कृति में संस्कार रूप में मिलता है।
मुझे लगता है कि हिंदू समाज सनातन अनुयायियो को सनातन या हिन्दू संस्कार या संस्कृति शब्द का प्रयोग व संबोधन करना चाहिए न कि सनातन या हिन्दू धर्म, अन्य समुदाय के लोगो को भी इस्लाम या मुस्लिम धर्म की जगह इस्लामिक संस्कृति या ईसाई यहुदी संस्कृति बोलना चाहिए न कि धर्म ।

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Friday, 24 February 2023

महाशिवरात्रि सनातन संस्कृति का महापर्व आदि शिव का प्रकटोत्सव दिवस है

शिव आदि है अनंत है अविनाशी है निराकार है महायोगी है देवाधीदेव है महादेव है प्रकृति है अगोचर है
हम सबने सुना है ईश्वर एक है वो "शिव" ही है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण में है शिव, शिव अनंत ऊर्जा है शिव के बिना ब्रह्माण्ड की संकल्पना ही नहीं की जा सकती है सूर्य चंद्र पृथ्वी जल आकाश नभ नव ग्रह सप्तर्षि, सप्त नदिया और ब्रह्माण्ड की समस्त दिव्य शक्तियां व ऊर्जा "शिव" के अंश मात्र है 

शिव अनंत ऊर्जा है शिव ही "शंकर" शिव ही "विष्णु" शिव ही "ब्रह्मा" है 
शिव ही रचनाकार पालनहार और संहारक है 
शिव "आदिपुरुष" और प्रकृति "आदिशक्ति" के संयोजन से निराकार शिव, शहस्त्राब्दी वर्ष पूर्व त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की इच्छा व प्रेम से वशीभूत होकर आदिशिव महादेव ने फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि की रात्रि, प्रदोष काल में मानव कल्याण के लिए अपने भक्तों में योग उपासना व भक्ति भाव जागृत करने के लिए "लिंग" आकार लिया ...............
वैसे तो सनातन संस्कृति में विक्रम संवत् के अनुसार प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है जो की अमावस्या तिथि के एक दिन पूर्व आता है चूंकि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मानव कल्याण हेतु स्वयं भू लिंग आकार में महादेव शिव ने त्रिदेव भक्तों को दर्शन दिया और इस ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग आकार महादेव का दिव्य दर्शन और पूजन किया इसी लिए फाल्गुन मास की शिवरात्रि "महा शिवरात्रि" कहलाती है। महाशिवरात्रि आदि शिव के प्रकटोत्सव का दिवस है आदि शिव व आदि शक्ति के प्राकृतिक संयोजन का दिन है। मान्यता है महाशिवरात्रि पर सभी देवतागण और दिव्य आत्माएं पृथ्वी पर स्वयं भू शिव लिंग का साक्षात दर्शन करने सूक्ष्म रुप में आते है इसीलिए महाशिवरात्रि पर रात्रि जागरण व मंत्र जाप का भी बहुत है।

शिवलिंग हमे यह संदेश भी देता है कि आदिशिव व आदिशक्ति एक ही है अलग अलग नहीं और यही महादेव और प्रकृति स्वरूपा आदिशक्ति के अर्धनारीश्वर रूप  का आधार भी है..............

महाशिवरात्रि महापर्व को लोग शंकर भगवान और पार्वती माता के विवाह वर्षगांठ के रूप भी में मनाते है इसमें कोई बुराई नही लोग अपने आराध्य देव महादेव और जगत जननी की भक्ति महाशिवरात्रि पर विवाह वर्षगांठ मनाकर करते है अच्छी बात है लेकिन "शिव  महापुराण" के  सती खण्ड के अनुसार सच्चाई यह है कि भगवान शंकर - माता सती का विवाह चैत्र मास की त्रयोदशी तिथि को हुआ था और पार्वती खण्ड के अनुसार माता पार्वती और शंकर का विवाह मार्गशीर्ष चतुर्दाशी को हुआ था। इस लिए महाशिवरात्रि को यदि हम योगसाधना ध्यान व मंत्र सिद्धि अथवा आत्म साक्षात्कार के माध्यम से ह्रदय में उपस्थित शिव के दिव्य अंश दिव्य आत्मा को जागृत करने और अध्यात्मिक चेतना के विकाश के लिए करे तो और अच्छा होगा.....

तीन पत्तो वाले बेलपत्र महादेव को प्रिय है क्यो कि बेल पत्र के तीन पत्तो वाली टहनियां ब्राह्म विष्णु महेश के प्रतीक रूप है जो मानव कल्याण के लिए प्रकृति की अमूल्य निधि है वैसे भी शिव पुराण में बेल वृक्ष को साक्षात शिव का व पीपल के वृक्ष में श्री हरि विष्णु का वास बताया गया है इसी लिए तीन पत्तो वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने से शिव की कृपा प्राप्त होती है

महादेव यानि शिव जो निराकार है सर्वश्रेष्ठ है उनका एक ही आकार है वो है शिवलिंग और शिव के शरीर धारी रूप है ब्राह्म विष्णु महेश व सप्तऋषि है, महेश ही शंकर है शंकर योगी है संन्यासी है संत है साधु है त्यागी है दानी है अघोरी है विनाशक है मृत्युदाता और जीवन रक्षक भी है और यमराज इनके सेनापति, भूत प्रेत पिशाच डांकिनी शाकिनी निशाचर सब इनके सहयोगी है।

बेलपत्र के अलावा महादेव को जल धारा बहुत प्रिय हैं क्यों कि जल से महादेव को शीतलता प्राप्त होती है ऐसा इस लिए की जब समुद्र मंथन से निकले विष को महादेव ने मानव कल्याण हेतु ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं ग्रहण कर लिया था तब शिवशंकर का शरीर नीला पड़ गया और हिमालय के नीलकंठ पर्वत पर विश्राम करने गए तब श्री ब्रह्मा विष्णु के साथ सभी देवतागण उनका जलाभिषेक किया जिससे उनके शरीर को शीतलता प्राप्त हुई और महादेव को  नीलकंठ के नाम से पुकार गया। आज भी नीलकंठ महादेव का शिवलिंग ऋषिकेश के पास नीलकंठ पर्वत पर स्थित है जहां जलाभिषेक का बहुत महत्त्व है। महादेव के अभिषेक करने कई अन्य विधियां भी है जैसे दूध से अभिषेक लेकिन ऐसा विशेष उद्देश्य या कार्य के संकल्प के लिए प्रयोग करना चाहिए ना कि जब भी मंदिर जाए एक लीटर दूध ही चढ़ाके आ जाए।

हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय

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Saturday, 11 February 2023

पुरानी पेंशन बहाली की मांग देशहित में तर्कसंगत है या केवल सत्ता वापसी की राजनीति?

हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के सहारे कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापसी के बाद से देश के अन्य हिस्सों में ये मुद्दा और गरम हो रहा है। कांग्रेस पार्टी की २०२३ में होने दस राज्यों विधान सभा चुनाओं में सफलता की उम्मीदें और बढ़ गई है यदि परिणाम कुछ सकारात्मक रहा तो २०२४ के आम चुनाव में भी इसको हवा दिया जाएगा। मजेदार बाद यह है कि इस मुद्दे को सबसे पहले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने २०१७ के विधान सभा चुनाव के घोषणा पत्र में शामिल किया और २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी इसको मुद्दा बनाया लेकिन कांग्रेस ने इसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी पार्टी की सरकार द्वारा राज्य स्तर पर लागु करवाके हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी कर लिया ........ 
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो ये हैं कि यदि पेंशन बहाली जनहित में इतना आवश्यक था तो २००४ से लेकर २०१४ तक में यूपीए सरकार के सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं बहाल किया गया जबकि मनमोहन सिंह जी देश के बड़े अर्थशास्त्री के तौर पर प्रधामनंत्री की भुमिका निभा रहे थे और तब इसे बड़ी आसानी से किया जा सकता था क्यों कि पुरानी पैंशन योजना खत्म करने का कानून २००४ से ही लागू होना था ......
यदि मनमोहन सिंह जी ने उस समय पुरानी पैंशन योजना को बहाल नहीं किया इसका मतलब उनके दृष्टिकोणों से ये उचित नही रहा होगा और यदि तब कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के सहयोगी दलों ने मनमोहन सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो आज लगभग बीस साल बाद क्यो पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे है ......
इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि तब देश की आर्थिक स्थित इस लायक नही थी कि सरकार पेंशन का बोझ उठा पाए और मनमोहन जी को लगा होगा कि पेंशन के मद में जा रहे धन को देशहित जनहित के अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा जिस उद्देश्य से अटल बिहारी जी की सरकार ने २००० में पेंशन योजना खत्म करने का कानून सदन में पास किया था जिसमे यह व्यवस्था किया गया था कि २००४ के बाद से नई भर्तियों में पेंशन व्यवस्था का रूप बदल जाएगा और वो पूर्णतः कर्मचारियों के ऊपर निर्भर करेगा।
एक दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या २००० में जब पेंशन खत्म करने के कानून सदन में अटल बिहारी जी की सरकार द्वारा पास करवाया जा रहा था तो विपक्ष के नेता सदन में मौजूद नहीं थे या राहुल गांधी जी, सोनिया जी, अखिलेश यादव जी सांसद नही बने थे तब विरोध नही कर पाए और आज अचानक २०१९ आम चुनाव के बाद जागृत हो गए है कि कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ और फिर से पेंशन बहाली की जाए।

मुझे तो लगता है कि पेंशन बहाली और महंगाई का मुद्दा केवल सत्ता वापसी के लिए एक ढाल है और कुछ नही। अटल जी कि सरकार २००४ में महंगाई के मुद्दे पर ही चली गईं थी जब कि अटल जी राष्ट्रहित में देश के विकाश के लिए दृढ़ संकल्प के साथ काम कर रहे थे २००४-२०१४ तक महंगाई और बेरोजगारी का डाटा उठाके देख लिया जाए तो कुछ खास परिर्वतन नहीं कर पाई थीं यूपीए सरकार महंगाई और रोजगार सृजन के मामले में ......... ....
असलियत तो यह है कि भारत से महंगाई और बेरोजगारी की समस्या तब तक नही खत्म हो सकती जब तक कि जनसंख्या वृद्धि दर को संतुलित न किया जाए और कृषि उत्पादन को ना बढ़ाया जाए क्यों कि रोजगार सृजन की एक सीमित वार्षिक क्षमता है उससे अधिक सम्भव नही है लेकिन जनसंख्या वृद्धि की कोई निश्चित सीमा ही नहीं है । सीधी बात है कि मांग और उपलब्धता में संतुलन बनाए बगैर महंगाई बेरोजगारी की समस्या कभी नहीं खत्म हो सकती चाहे किसी भी पार्टी की सरकार आ जाए या कोई भी देश का प्रधानमन्त्री बन जाए

हास्यास्पद बात यह है कि देश में नेशनल पेंशन स्कीम एनपीएस की व्यवस्था करचारियो के लिए उपलब्ध है जिस कर्मचारी को जितना पेंशन चाहिए उतना प्लान कर ले तो ऐसे में पुरानी पेंशन बहाली की क्या जरूरत है लेकिन नही कर्मचारियों के नेता किसी न किसी पार्टी के समर्थक होते है उन्हे अपना नंबर पार्टी मुखिया के दिमाग में बढ़ाना और वरदहस्त प्राप्त करना है तो मांग तो उठाएंगे ही, हर साल महगई भत्ता में बढ़ोत्तरी के लिए, प्रत्येक साल वेतन वृद्धि भी के लिए, वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुसार प्रत्येक पांच साल में एकमुश्त बड़ी वेतन वृद्धि के लिए, साल में १५० दिन से अधिक छुट्टियां, घर गाड़ी और बच्चों की शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी , सालाना एलटीए और सुबह केवल दस बजे से ३ बजे तक ही काम चाहिए और जब आम आदमी के हित में जिमेदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करने को कहा जाय तो उसमे में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि बिना कुछ जेब गरम हुए कदम व कलम आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकार ने एक पेंशन ख़त्म कर दिया तो उसके वापसी के लिए राजनीति हो रही है 
बेहतर होता कि देश के समस्त कर्मचारी राजनेताओं के पेंशन को देशहित में ख़त्म करने के लिए एकजुट होकर आवाज उठाते ना कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग के लिए। 
वैसे ईमानदारी से पूछा जाए तो पेंशन का वास्तविक अधिकारी केवल देश के आम वृद्धजन, विधवा महिलाएं और अनाथ बच्चे है जिन्होंने कभी सरकारी नौकरी नहीं किया व जिसके पास मासिक आय का कोई श्रोत नही है। इस लिए देश के वृद्धजनों और विधववाओ का मासिक पेंशन बढ़ाके सीधे ६००० से अधिक कर देना चाहिए। 
यदि देश की राजनितिक पार्टियां वास्त्विक रूप से जनहित की देशहित की सोचते है तो पुरानी पेंशन बहाली की मांग के जगह जनसंख्या नियंत्रण, वृद्ध व महिला पेंशन वृद्धि की मांग करे जो जनहित देशहित में है  अन्यथा सत्तानीति और जातिवाद क्षेत्रवाद की राजनीति बंद करे। 
वैसे भी देशहित जनहित और विकाशहित में बात करना  ही केवल राजनिति कहलाती है अन्यथा सत्तानित और स्वार्थनीत के अलावा और कुछ नही। 

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Tuesday, 7 February 2023

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का संदेश क्या अब जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीति खत्म होनी चाहिए

संत रविदास जयंती के अवसर पर संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत जी महाराष्ट्र में रविदास जयंती कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुए थे जहा उनके उद्बोधन के कुछ अंश को लेकर देश के राजनितिक गलियारे में बडी चर्चा का विषय बना है ...... 
राजनितिक गलियारा शब्द मैं इस लिए बोल रहा हूं क्यों कि आम जनता तो अपने रोजी रोटी और दैनिक जीवन के समस्याओं में इतना उलझी हुई है कि दिन भर मेहनत करके थका हारा शाम को आम आदमी जब घर लौटता है तो दो रोटी खाकर जल्दी सो जाता है कि सुबह उठकर उसे अगले दिन की तैयारी करनी होती है कौन कहा क्या बोल रहा है क्यों बोल रहा है ये तो उसे गली नुक्कड़ चौराहों पर पान चाय की दूकानों पर अपने अपने नेताओं की शेखी बखार रहे लोगो से पता चलता है और वही उन्हे समझाते भी है कि कौन नेता क्या बोला और उसका क्या मतलब है वो भी अपने पार्टी और नेता के हित के अनुसार ......... 
इस लिए आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोहन भागवत जी क्या बोल रहे हैं या कोई अन्य नेता क्या बोल रहा है.....
फिलहाल आइए बात करते है मोहन भागवत जी के व्यत्व्य की जिसकी चर्चा चल रही है मुझे लगता है भागवत जी जिस मंच से जिस महान व्यतित्व की जयंती पर बोल रहे थे और जो भी बोला उनका तात्पर्य सनातन समाज के विघटन को दूर करने की दूरदृष्टि का उदबोधन था न कि किसी वर्ग विशेष या समुदाय को नाराज करना या आरोपित करना.......... ..... 
वैसे इस बात में पुरी सत्यता है कि सनातन वैदिक व्यवस्था में जाति सूचक शब्द को कहीं भी ज्यादा महत्ता नही दिया गया है। ये तो समाज के कुछ मठाधीश लोगों ने समय समय पर अपने निहित स्वार्थ और अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए समाज में नाकारात्मक माहौल पैदा किया वैसे पंडित और ब्राह्मण दोनों शब्दों का अर्थ स्थान कर्म और परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है। जैसे पंडित शब्द आम बोल चाल में लोग बहुत जानकार अनुभवी व ज्ञानी व्यक्ति को भी बोलते है "चल बड़ा आई है पंडित बने आपन ज्ञान मत दा " ऐसे ही बहुत से अन्य शब्द है जिनका अर्थ संदर्भ बदल जाता है वाक्या अनुसार ........

वैसे भी जाति सूचक शब्द हमेशा से राजनितिक और व्यक्तिगत स्वार्थ साधने का माध्यम रहा है जिसका पिछले लगभग 1500 वर्षो से परंपरागत तरीके से भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकरियों ने अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया, संतानियो को जाति में विभाजित करके लाभ उठाया और हजारों वर्षों तक राज किया, भारत की समृद्धि लुटा, संस्कृति संस्कार को तोड़ा मडोड़ा तहस नहस कर दिया और भारतीय सनातनी हजारों वर्षो तक ये समझ ही नही पाया, अपनी  समृद्धि और श्रेष्ठता के अहंकार से अपने आपको बाहर ही नहीं निकाल पाया ....... जो देश की स्वतंत्रता के बाद भी लगातार जारी रहा, अलग अलग राजनितिक नेता और पार्टियां समय समय पर सनातन समाज को एकजुट करने की बजाए अपने स्वार्थ और सत्ता के लालच में विघटित बनाए रखा जो देश और समाज के विकाश को प्रभावती किया और कमज़ोर बनाया है ............ 
आज आजादी के 75वे वर्ष बाद भी भारत संघर्ष कर रहा है विकसित देश की श्रेणी में अपना स्थान बनाने के लिए जिसे विक्रमजीत मौर्य के समय में पूरा विश्व सोने की चिड़िया के नाम से जानता था। बड़ा दुर्भाग्य यह है भारत से एक दो साल पहले या बाद में आजाद हुए कई देश आजादी के ३०-४० वर्षो के ही आर्थिक विकाश की ऊंचाई छू लिए थे और उत्तरोत्तर प्रगति के साथ आज़ एक विकसित राष्ट्र के रूप में विश्व में अपना परचम फहरा रहे है जिसका सबसे बड़ा उदहारण हमारा निकटम पड़ोसी चीन है ........... 
यदि भारत आज भी संघर्ष कर रहा है तो उसके पीछे एक मुख्य कारण भारत की जातिवादी और क्षेत्रवादी राजनीत है इसी जातिवादी क्षेत्रवादी राजनीत के गठबंधन को तोड़ने और सनातन समाज को जोड़कर एक छत के नीचे खड़ा करने का प्रयास संघ प्रमुख की सोच है ............. 
संघ प्रमुख की इसी सोच में सनातन समाज का और भारत देश का हित है जो भारत को विश्व के समृद्धशाली राष्ट्र की श्रेणी में पुनः खड़ा कर सकता है। इस लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपने दृष्टिकोण का दायरा बढ़ाना होगा अपनी सोच को बड़ा करना होगा जाति और क्षेत्रवाद की संकीर्णता से बहार आना होगा। पूरा सनातन समाज का एक ही जाति है, वो है, सनातनी भारतीय। बस यही एक ही परिचय है समस्त भारतवासियो का सनातनियो का और कुछ नही। ये भावना भारत के प्रत्येक नागरिक की होनी चाहिए तभी एक सशक्त और समृद्धिशाली राष्ट्र का विकाश संभव हो पाएगा ........ 
हालाकि मोहन भागवत जी ने जो बात कहीं वो निश्चय ही बड़ा आश्चर्य का विषय है की इतना विद्वान सुलझा हुआ परिपक्व व्यक्ति देश के एक सर्वश्रेष्ठ संगठन का प्रमुख इतना गैर जिम्मेदारीपूर्ण व्यक्तव्य कैसे दे सकते है जबकि वे स्वयं एक ब्राह्मण परिवार से है लेकिन इतना बड़ा व्यक्तित्व यदि ऐसा बोल दिए तो उन शब्दों के आगे पीछे के वक्तव्यों और विषय स्थान व परिस्थिति को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए और उन संदेशों का वास्तविक संदर्भ क्या है उसको भी समझना चाहिए .......
भागवत जी के व्यकव्यो का विस्ताविक संदर्भ यही है की जो सनातनी अपने धर्म को छोड़कर किसी और धर्म को अपना लिया है वो घर वापसी करे जाती धर्म के कीड़े से बाहर निकले अपने सनातन समाज व धर्म का सम्मान करे। जिन लोगों से पहले कुछ गलतियां हुईं उसको सुधारे और सनातन समाज की एकता अखंडता को मजबूत बनाएं रखने के लिए अपना सर्व श्रेष्ठ योगदान करे। वैसे भी जाती धर्म से ऊपर मानवता और इंसानियत हैं जिसका जीवन में अनुकरण करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है।

इसलिए हम सबको राष्ट्रहित में जाति क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल समाज में एकजुटता स्थापित करना चाहिए।
जय हिंद। जय भारत।। 

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Saturday, 4 February 2023

रामचरित मानस पर टिप्पणी केवल एक तुच्छ वोटबैंक राजनीत के अलावा और कुछ नही है

आजकल भगवान श्री राम के अनन्य भक्त और श्री हनुमान जी स्वामी के प्रत्यक्ष दर्शन करने व उनकी ही प्रेरणा से ऋषि वाल्मीकि द्वार संस्कृत भाषा में लिखित रामायण का हिंदी या कहें की अवधी में अनुवाद करने वाले संत तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस पर कुछ मूढ राजनेताओं  द्वारा निम्नस्तर की टिप्पणी की जा रही है जो बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। 
वैसे आजकल के नेताओं को राजनेता कहना भी गलत होगा क्यों कि आजकल के नेता राजनीत नही करते है बल्कि स्वार्थनीति कूटनीति सत्तानिति वोटनिति करते हैं जो केवल सत्ता और समय के साथ चलते है ना कि जनता के साथ आज़ के नेताओं के लिए अपना स्वार्थ सर्व प्रथम और जनता व उनका हित सबसे अंत में ऐसे नेता तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस पर टिप्पणी करते है जो केवल हास्य उपहास  का विषय हो सकता इससे अधिक और कुछ नही ,.... .....
उत्तर प्रदेश के स्वामी प्रसाद मौर्य और बिहार के शिक्षा मंत्री द्वार हाल ही में की गई टिप्पणी केवल यह प्रणाम देती है कि ये कितने बड़े मूढ़ व अनपढ़ है इनकी पास केवल नाम मात्र की डिग्री है वास्तविक शिक्षा के नाम पर ये एकदम शून्य है मुझे तो संदेह है कि इन लोगो के घर में रामचरित मानस की एक प्रतिलिप भी रखी होगी और जब इनके घर में रामचरित मानस की प्रतिलिप नही तो इन्होंने ना तो कभी ध्यान से स्वयं पढ़ा होगा न ही परिवार के किसी सदस्य ने और बिना पढ़े व सही अर्थ समझे यदि ऐसी टिप्पणी स्वामी प्रसाद मौर्या ने किया तो यह केवल सत्ता नीति और वोटनिति से प्रेरित बयाना कहा जा सकता है ........... 
सामान्य रूप इसे पब्लिक और मीडिया स्टंट कह सकते है क्यों कि स्वामी प्रसाद मौर्या बसपा से भाजपा और फिर सपा में केवल उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री बनने के लालच में उछाल कूद कर रहे है और सफल नहीं हो पा रहे है और इनकी इसी तरह की गलत बयानबाज़ी अनर्गल आरोप प्रत्यारोप ने इनके असली चेहरे को जनता के सामने उजागीर कर दिया है तो जनता में भी इनका असर अब कम होता नजर आ रहा है अब चूकि महत्त्वाकांछा बड़ी है और जनता में प्रभाव कम होता जा रहा हैं तो आने वाले समय में सभी पार्टियों में इनका महत्त्व एकदम खत्म हो जाएगा इस बात इस भी दर सता रहा है ऊपर से आजकल सत्ता से बाहर है तो जनता में भी कहीं उतना महत्त्व नहीं मिल रहा है जिससे इनको तथा कथित अपना वोट बैंक भी धीरे धीरे भूल रही है तो इनकी बेचैनी बढ़नी स्वाभिक है, हो भी क्यों नही जो व्यक्ति 1996 से लेकर 2017 तक अधिकतम समय में उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट का हिस्सा रहा भरपूर दौलत कमाया वास्तविक हैसियत 200 करोड़ से अधिक ही होगा ऐसा अनुमान है, तो अब मंत्रिपरिषद का हिस्सा न होने की पीड़ा भी है, बावजूद इसके इतना बड़ा वोहदा रखते हुए 2017 विधान सभा का चुनाव भी हार गए ये तो अखिलेश यादव जी ने मान रखा और विधान परिषद में भेज दिया नहीं तो शायद अब तक राजनीत भूल चुके होते।
अब चूंकि लोकसभा नजदीक आ रहा है हो सकता है चुनाव लडने तैयारी कर रहे हो तो अपने वोटबैंक को याद दिलाना भी जरूरी था कि स्वामी प्रसाद मौर्या अभी प्रदेश की राजनीति में जीवित है तो इससे बड़ा गरम मुद्दा और कुछ हो ही नही सकता था तो इस मूढ़ ने बिना गहन अध्ययन किए अपने सलाहकारों के कहने पर इतना मूढ़ता भरा बयान दे दिया जबकि ये कई वर्षो पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुके है। 
सही ही कहा गया है अधिक महत्त्वाकांछ व्यक्ति को अक्सर अंधा बना देता है या ये कहें कि विनाश काले विपरीत बुद्धि यही हो रहा है स्वामी प्रसाद के साथ ..... यही कारण है कि 2017 विधानसभा से पहले मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देकर सपा में शामिल हुए और अब इतना बड़ा गलत बयानबाज़ी वो भी सनातन धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य रामचरित मानस पर टिप्पणी ..... 
इस मूढ़ ने रामचरित मानस के पंचम खंड सुंदरकांड के ५८ वें दोहा के अंतर्गत आने वाले ३ चौपाई 
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
पर अपनी टिप्पणी की है 

इन मूर्खो को शूद्र और ताड़ना शब्द का विरोध है तो सबसे पहले तो ये ऋषि वाल्मीकि का ही विरोध कर रहे है जो कि स्वयं शूद्र जाति से थे और इतने बड़े विद्वान थे कि भगवान श्री राम के जन्म से पहले से ही रामायण लिखना उन्होंने शुरु कर दिया था और लव कुश के जन्म और बाल्यकाल तक का पूरा विवरण लिख दिया था तो क्या रामायण का बहिष्कार इस लिए कर देना चाहिए की वो एक शुद्र कुल में जन्मे ऋषि ने लिखा था जिसका हिंदी अनुवाद रामचरित मानस है जिसके बारे ये कहा जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने एक तोता के रूप में तुलसीदास जी को सुनाया और उन्होंने लिखा प्रभू श्री राम का भी दर्शन प्राप्त किया था जो केवल ५०० वर्ष पुरानी घटना है। 
और दूसरी बात ताड़ना का अर्थ किसी को पीटने पीड़ा देने या प्रताड़ित करने से नही है बल्कि ताड़ना का वास्तविक अर्थ है 
गवार शुद्र पशु और स्त्री पर हमेशा ध्यान दृष्टि बनाए रखना सामान्य भाषा में कहे तो निगरानी रखना क्यों कि इस संसार में प्रत्येक प्राणी के अपने अपने कुछ नैसर्गिक गुण व संस्कार होते है जिसके अनुसार उनका व्यवहार होता है और कहीं उनसे कोई गलती न हों जिससे हमें पीड़ा हो इस लिए उनके ऊपर दृष्टि बनाए रखना और समय पर समय पर उचित शिक्षा देना आवश्यक होता है इस लिए ताड़न के अधिकारी शब्द का प्रयोग किया गया है । 

स्वामी प्रसाद मौर्या के बयान से अधिक तो इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जी ने उनको इस बयान पर पुरस्कृत करते हुए पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया, इसी को कहते है वोटनीति  कूटनीति अब यदि सवर्ण समुदाय या भगवान राम भक्त स्वामी प्रसाद के बयान पर विरोध प्रदर्शन करे तो मौर्य जाति के व्यक्ति का अपमान मतलब की पूरे मौर्य समाज का अपमान जिसे मुद्दा बनाके मौर्या समाज के वोट बैंक को विभाजित करना और स्वामी प्रसाद को समाज का बड़ा नेता साबित करना जिसका कुछ फायदा सपा को मिले आगामी लोकसभा चुनाओ में संभवतः ..........
लेकिन इन मूढ़ को कौन समझाए की आज के डिजिटल सोशल मीडिया के जमाने में जनता या किसी समाज को बहलाना आसान नहीं रहा और वो भी सनातन धर्म की बखिया उखेड़ के तब जब ५०० सौ वर्ष पुराना राम मंदिर निर्माण शुरु हो गया है सनातन धर्म के श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस बात को लेकर खुश है जो रामलला के दर्शन की राह देख रहे जो संभव है लोकसभा चुनावों से पहले शुरु हो जाएगा ऐसी स्थिति में सनातन समुदाय को तोड़ना आसान नहीं

वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधान सभा चुनाव से पहले राम भक्त श्री हनुमान जी के चालीसा पर गलत बयान देकर अखिलेश और स्वयं दोनो को चुनाव में पराजित कराया और अब श्री राम चरित मानस पर टिप्पणी करके पहले से ही लोकसभा चुनाव में सपा को हराने की तैयारी कर लिया उससे भी बड़ी संभावना है बेटी संघमित्रा की राह कठिन पिछली बार तो मोदी जी के नाम पर चुनाव जीत संसद में पहुंच गई थी इस बार तो लग रहा है स्वामी बेटी को भी हार की राह दिखा देंगे।
स्वामी प्रसाद जैसे नेताओं को आत्मिक शुद्धि की जरुरत है इन्हे किसी अध्यात्मिक गुरु के शरण में कुछ महीने व्यतीत करना चाहिए जिससे इनका सनातन धर्म के बारे में ज्ञान बढ़े और स्वयं से ये रामचरित मानस और इनसे जुड़े ग्रंथो का अध्यन करना चाहिए और यदि सही से न समझ आए तो किसी विद्वान व्यक्ति से रामचरित मानस के लिखे चौपाइयों का अर्थ समझना चाहिए। 

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